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Sunday, January 13, 2019

समरसता खिचड़ी ये क्या है प्रभु !

समरसता खिचड़ी ये क्या है प्रभु !

अपने देश में एक अजीब गोरख धंधा चल रहा है । कभी कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगता था, हाल तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भी इस तरह के आरोप लगे। उसके बाद देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के वारिस राहुल गांधी जनेऊ धारी ब्राह्मण बन कर मंदिर - मंदिर घूमने लगे और "राष्ट्रभक्त " भारतीय जनता पार्टी मंदिर और विकास का मसला छोड़कर अब अचानक समरसता के मसले से जुड़ गई है और अब वह समरसता खिचड़ी बनाने लगी है। पिछले रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को आदेश दिया कि वे दलितों से जुड़ें। दलितों से जुड़ने का सबसे अभिनव तरीका निकाला गया कि  उनके साथ बैठकर खिचड़ी खाई जाए । पार्टी भक्त नेता इस मुहिम में जुड़ गए और गांव गांव से चावल दाल मांगकर खिचड़ी बनाने का अभियान चालू हुआ । यह महा नाटक की तरह लग रहा है । पार्टी के इस अभियान से दलित नेता भी असंतुष्ट हैं । उत्तर पश्चिम दिल्ली के भाजपा सांसद और वरिष्ठ नेता उदित राज के अनुसार "पहले तो वे दलितों के घर जाते हैं थोड़ा बहुत खाना खाते हैं और उसके बाद बाहर निकल कर मिनिरल वॉटर और बाहर का खाना मंगवा कर खाते हैं यह दलितों के लिए और अपमानजनक है। "पाठकों को याद होगा कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने भी इस तरह का कुछ प्रयोग किया था और ना केवल भाजपा ने उसकी बुरी तरह खिल्ली उड़ाई थी बल्कि यह अभियान पिट गया था।  अब भाजपा ने इसे शुरू किया है और पार्टी के दलित नेताओं के अनुसार इससे भारी नुकसान हो सकता है। गत जनवरी 2009 में राहुल गांधी ने  तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव डेविड मिलिबैंड के साथ अमेठी में एक दलित के घर में रात गुजारी थी और भाजपा ने यह कह कर उसकी खिल्ली उड़ाई थी कि यह "दरिद्र पर्यटन या पॉवर्टी टूरिज्म" है । अब दलित वोट बैंक के लिए भाजपा ने यही नीति अपनाई है। आंकड़े बताते हैं कि 2014 के आम चुनाव में पार्टी को दलितों का भारी समर्थन प्राप्त हुआ था। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भी पार्टी को दलितों के वोट मिले थे । लेकिन हाल के चुनावों में दलितों ने भाजपा से पल्ला झाड़ लिया, क्योंकि भाजपा शासित कई राज्यों से दलितों पर भारी अत्याचार की खबरें आईं। अब इसी क्षति की पूर्ति के लिए पार्टी ने यह सब आरंभ किया है । यही नहीं , अनुसूचित जाति और जनजाति से संबंधित कानून पर 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भाजपा को और भी किनारे कर दिया। पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है और दावा भी किया है कि अगर अदालत में पूर्ववर्ती फैसले को जारी रखा तो वह कानून में संशोधन करेगी।  इससे दलित आश्वस्त नहीं हुए और 2 अप्रैल को राष्ट्रव्यापी हड़ताल हुई। जिसमें 12 लोग मारे गए । उत्तर प्रदेश में पांच दलित भाजपा सांसदों  ने खुल कर कहा कि मोदी सरकार ने दलित  समुदाय के लिए कुछ नहीं किया है। इस असंतोष से भाजपा को भय है कि वह दलित वोट खो देगी। इसीलिए यह महा नाटक आरंभ हुआ है। यह नाटक दरअसल पांच अप्रैल को उस समय आरंभ हुआ जब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह उड़ीसा के बोलांगीर में एक दलित के घर में भोजन करने गए। जब शाह भोजन कर रहे थे तो घर के बाहर गांव वाले  विरोधी नारे लगा रहे थे। 30 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के मंत्री सुरेश रैना अलीगढ़ जिले के एक दलित के घर में रात में चले गए। वहां बाहर से उनके लिए भोजन और मिनरल वाटर मनाया गया और वह खाना मंत्री महोदय ने उस दलित परिवार के साथ खाया। गृह स्वामी रजनीश कुमार ने कहां "उन्हें  कुछ मालूम नहीं था । सब कुछ पूर्व नियोजित था खाना बाहर से लाया गया और उनके परिवार को कहा गया उनके साथ बैठकर भोजन करें।'1 मई को उत्तर प्रदेश के एक और मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह ने एक दलित के घर में खाना खाकर  भगवान राम से अपनी तुलना की और कहा "राम और शबरी संवाद रामायण में है आज आज जब ज्ञान जी की मां ने मुझे रोटी परोसी तो उन्होंने कहा मेरा उधार हो गया ।" राजेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि" मैं क्षत्रिय हूं और धर्म की रक्षा करना मेरे रक्त में है। उन्हें लगता है कि उन्होंने अनमोल चीज दे दी है जिसे वह खरीद नहीं सकते।" दूसरी तरफ भाजपा के वरिष्ठ नेता और मंत्री उमा भारती ने राजेंद्र प्रताप के इस कथन का खंडन किया। उन्होंने कहा कि "मैं इस बात पर भरोसा नहीं करती कि दलित के  घर में जाकर भोजन किया जाए बल्कि होना यह चाहिए कि दलित को अपने घर में बुलाकर खाना परोसा जाए।" गत 6 जनवरी को रामलीला मैदान में भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने अपनी घोषणा में कई बार संशोधन किया "पहले उन्होंने कहा कि खिचड़ी बांटी जाएगी फिर उन्होंने कहा खिचड़ी परोसी जाएगी फिर उन्होंने अपने सुरीले अंदाज में भाजपा के नारे को गाकर सुनाया उसके बाद फिर कहा कि जब खिचड़ी परोसी जाएगी तो हम भी यहां उपस्थित लोगों के साथ बैठकर खाएंगे।"
       यह बात समझ में नहीं आती कि भाजपा- कांग्रेस जैसी पार्टी केवल इस भोजन राजनीति में क्यों जुटी हैं ? बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ऐसा क्यों नहीं करती?  वही लोग जो दलितों को नीच समझते हैं वह इस में भाग ले रहे हैं । यहां दावा है कि भारतीय राजनीति के शीर्ष नेताओं  को किसी दलित भोजन के बारे में जानकारी नहीं होगी। दलितों के लगातार दमन के फलस्वरूप उनका खानपान भी समाप्त हो गया।   इस भोजन सियासत से कुछ नहीं होने वाला क्योंकि खिचड़ी चमचों से खाई और खिलाई जाएगी। इस पर गंभीरता से विचार करने पर पता चलेगा खिचड़ी में जो दाल है उसमें कुछ काला जरूर है।

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