CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, January 9, 2019

पर नौकरी कहां से आएगी ?

पर नौकरी कहां से आएगी ?

इन दिनों भारत के राजनीतिक वातावरण में सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण का मसला सबसे ज्यादा गर्म है । मंगलवार को  लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक बड़ी आसानी से पारित हो गया। 
राज्यसभा में भी लंबी बहस के बाद यह विधेयक पारित हो गया। कई सदस्यों ने इसके विरुद्ध अपने विचार रखे।  जब मतदान का वक्त आया तो सदन में बहुमत नहीं होने के बावजूद सरकार द्वारा लाया गया संविधान संशोधन विधेयक पारित हो गया । इसके पक्ष में जो वोट मिले ,इसलिए नहीं मिले कि यह विधायक बहुत जायज है । बहस के दौरान इस पर बहुत से सदस्यों ने विरोध जाहिर किया था। इसके पारित होने के पीछे अंतर्निहित राजनीतिक कारण था। लगभग सभी दलों ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण देने का वादा किया था। आज अगर ऐसा नहीं होता तो चुनाव के पहले ही उनकी साख चली जाती। अब दो अड़चनों को तो इस विधेयक ने पार कर लिया।  अभी अड़चनें और हैं। सत्ता पक्ष के समर्थकों ने इसे सवर्णों के सपनों का पूरा होना बताया है। चलिए मान लेते हैं कि कुछ ऐसा ही है और सभी अड़चनें पार हो जाएंगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  समर्थक इस संशोधन को ऐतिहासिक बता रहे हैं और गरीब सवर्णों के लिए इसे एक वरदान बता रहे हैं।  इस मामले में इस बात को भी मान लेते हैं। परंतु, यदि यह कानून लागू भी हो गया हुजूर तो नौकरी कहां से लाएंगे? एक बहुत बड़ी गुत्थी है। देश में सरकारी क्षेत्र या गैर सरकारी क्षेत्र में लगातार नौकरियां कम हो रही हैं।  सरकार समेत सभी खासोआम  से यह प्रश्न है कि सरकारी या गैर सरकारी क्षेत्र में कितनी नौकरियां है कोई बता पाएगा या फिर इन जो उपलब्ध नौकरिया हैं उनमें कितने में आरक्षण प्राप्त है ? क्या  पिछले साढे चार वर्षों में सरकार की तरफ से इस संबंध में कोई बयान आया है ? शायद नहीं!मोदी सरकार  अपने शासनकाल में नौकरियों की सही संख्या जानने के लिए कोई ठीक-ठाक बंदोबस्त नहीं कर पाई और अचानक नौकरियों में नया रिजर्वेशन भी दे दिया जा रहा है।विख्यात पत्रिका इकोनामिक एंड पॉलीटिकल वीकली में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में जितनी नौकरियां उपलब्ध हैं उनमें केवल 18% पर ही आरक्षण मिलता है । केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मिलाकर देशभर में लगभग 1 करोड़ 54 लाख नौकरियां हैं। लगता है इस संख्या में  वे नौकरिया भी शामिल हैं जिनमें विभिन्न राज्यों में वहां की सरकार द्वारा स्थानीय लोगों को वरीयता दी जाती है । यह रिपोर्ट 2012 की है। इसके अनुसार उस वर्ष कुल आठ सौ छप्पन लाख लोग वेतन पाते थे। इनमें सत्तर परसेंट नौकरियां निजी क्षेत्र में थीं। मतलब है की 256 लाख लोग सरकारी क्षेत्र में नौकरी कर रहे थे। मान लें कि आज भी यही संख्या है अभी इनमें 40  प्रतिशत नौकरियों में अनुबंध पर नियुक्तियां होती हैं और अनुबंध की नौकरियों पर किसी किस्म का आरक्षण लागू नहीं होता। अब 154 लाख सरकारी नौकरियां ऐसी हैं जिनमें आरक्षण लागू होता है ।  जरा इस समीकरण को देखें। हमारे देश की आबादी लगभग 130 करोड़ है और उसमें फकत 154 लाख नौकरियों पर आरक्षण मिलता है। अब सवाल उठता है की सवर्णों को 10% आरक्षण देने से क्या मिलेगा? कहा तो यह जा रहा है कि कॉलेजों में 10 लाख सीटें बढ़ाई जायेंगी। 2007 में भी यूपीए सरकार ने कुछ इसी तरह का वादा किया था लेकिन क्या हुआ? आंकड़े बताते हैं कि 2004 -5 में सरकारी नौकरियों का अनुपात 23.2% था जो 2011- 12 में 18.5% हो गया । अब लगातार घटती जा रही इन चुटकी भर  नौकरियों में आरक्षण से क्या मिलेगा? वैसे भी नौकरियों का जो हाल है उससे तो लगता है नौकरियों का सपना देखना भी पाप हो गया है।
        बात यहीं खत्म खत्म हो जाती तो कोई बात नहीं थी। एक आरक्षण हुआ अगर लागू भी हो गया तो दूसरे आरक्षण की मांग शुरू हो जाएगी और जो लोग मांग करेंगे उनके समर्थन में कोई न कोई राजनीतिक दल आ ही जाएगा। आरक्षण का समाज विज्ञान अगर देखें तो यह कमजोरों के लिए तो है ही नहीं। यह उन जातियों के लिए है जो अपने संख्या बल के आधार पर सरकार को घुटने टिकवा सकती हैं। सवर्णों के लिए जो 10% आरक्षण की व्यवस्था की जा रही है सरकार के अनुसार उन में सभी धर्मों और जातियों के सवर्ण हैं ।जाति के आधार पर आरक्षण देने से समाज में विभाजन आ रहा है । कई बार अगर एक जाति आरक्षण की मांग लेकर आंदोलन करती है तो दूसरी जाति के लोग उसका विरोध करने लगते हैं। संविधान का उद्देश्य देश में एकता और अखंडता बनाए रखना है नाकी समाज के भीतर विभाजन को बढ़ावा देना। किसी जमाने में वर्ण व्यवस्था के कारण दलितों का शोषण हुआ लेकिन अब जमाना बदल चुका है, हालात बदल चुके हैं। अब अगर 64 वर्षों में आरक्षण से कोई जाति विकसित हो नहीं हो सकी तो फिर आरक्षण का उद्देश्य कैसे पूरा होता है ? दलितों और पिछड़ी जातियों की सूची जो शुरू में बनी थी वही कायम है। दलितों और पिछड़ों को आगे बढ़ाना हमारे समाज का कर्तव्य है। लेकिन, आरक्षण का मतलब यहां विकास नहीं है, राजनीतिक फायदा है । देश को इस पर विचार करना चाहिए।

0 comments: