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Friday, May 24, 2019

मोदी यानी भारत

मोदी यानी भारत

बांग्लादेश युद्ध में विजय के बाद भारत के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बारे में डी के बरुआ ने कहा था " इंदिरा इज इंडिया" आज लगभग साढे चार दशक के बाद थोड़े से हेरफेर के साथ कहा जा सकता है "मोदी यानी भारत या मोदी इज इंडिया।" मोदी ने विकासशील हिंदुत्व को अपनाने के लिए देश के लोगों तैयार कर लिया और इसी बल पर  रायसिना हिल्स लौट आए । अगर संसदीय चुनाव के इतिहास को देखें तो नरेंद्र मोदी की यह विजय जवाहरलाल नेहरू की विजय  में से बड़ी कही जा सकती है। स्वतंत्रता के बाद 1951 में पहला आम चुनाव हुआ। उस समय संसद में 489 सीटें थी और इनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 364 सीटें मिली थीं। करीब तीन चौथाई की बढ़त थी और नेहरू जब तक जीवित रहे लगभग उन्हें ऐसा ही बहुमत मिलता रहा । उनकी मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी को भी अपने दम पर बहुमत मिले। 1967 में इंदिरा जी को 283 सीटें मिली थीं और 1971 में तो 518 में से 352 सीटें।  यह बांग्लादेश युद्ध के बाद के चुनाव की स्थिति थी। जब इंदिरा और इंडिया में कोई भी भेद नहीं रह गया था। 1984 में उनकी हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी को आजादी के बाद का सबसे बड़ा जनादेश मिला।   1984 में उन्हें 514 सीटों में से 404 सीटें मिलीं। 1985 में  हुए  पंजाब और असम  लोकसभा चुनाव में प्राप्त सीटों को भी मिला लें  तो  उस समय कांग्रेस को 414 सीटें मिली थीं। लेकिन इसमें राजीव गांधी की कोई भूमिका नहीं कही जा सकती है। इसके बाद 2009 तक सात चुनाव हुए लेकिन किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। 2014 में लोकसभा चुनाव में 283 सीटें जीतने के बाद नरेंद्र मोदी नेहरू और इंदिरा के बाद अकेले ऐसे नेता बने जिनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला। लेकिन 2019 में उनकी विजय 2014 से भी बड़ी है । इस बार  पूरे देश में उनके पांव जम गए हैं और यही नहीं  भाजपा को मिलने वाले मतों का हिस्सा भी बढ़ा है यानी वोट प्रतिशत बढ़े हैं। यही नहीं नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने लगातार दो बार बहुमत हासिल किया। मोदी ने अपनी मेहनत और प्रचार अभियान में अपनी वाकपटुता से 543 लोकसभा चुनाव क्षेत्रों को एक राष्ट्रवादी चुनाव क्षेत्र में बदल दिया और इसका उन्हें बहुत ज्यादा लाभ मिला।
        मोदी ने एक ऐसा विचार हिंदू  मतदाताओं के मन में बैठा दिया कि उन्हें भीतरी और बाहरी दुश्मनों से खतरा है । उन्होंने एक ताकतवर नव हिंदुत्ववाद को विकसित किया और इस प्रक्रिया में मोदी जी ने भारत में बहुलतावाद, विविधता और धर्मनिरपेक्षता के विचारों को चुनौती दे दी।  याद रखने की बात है कि हिंदुत्व का विकास सदा पुराने ढांचे को तोड़कर ही हुआ है। मीडिया ने ,चाहे वह टेलीविजन हो या सोशल मीडिया सबने, लगातार मोदी जी के नेतृत्व को नई कथाओं और बिंबो   के रूप में देशभर में समस्याओं को हल करने वाले  एक व्यक्ति  के तौर पर एक नई छवि तैयार की है। विश्लेषक मोदी की शैलीगत मिलनसारिता को  समझ नहीं पाए। उनका विख्यात रेडियो शो "मन की बात" ने उन्हें लोगों के करीब ला दिया। इसने मोदी जी की छवि नए युग के पश्चिमी टेलीविजनलिस्ट के रूप में तैयार कर दी। इसमें सर्जिकल स्ट्राइक ने लोगों में पारिवारिक और सामाजिक तनाव से थोड़ी देर के लिए ही सही एक गंभीर संज्ञानात्मक और मनोवैज्ञानिक राहत दिलाई । विभिन्न हिंदू जातियों को एकजुट होने के लिए एक सही मंच प्रदान किया और इस मंच ने भाजपा के प्रसार में बहुत बड़ा सहयोग किया। मोदी जी ने इस चुनाव को समाज की बुराइयों के खिलाफ एक जंग के समतुल्य बना दिया। इस नए वैचारिक औजार ने विपक्ष को सत्ता के लोभी के रूप में जनता के समक्ष खड़ा कर दिया। इससे नरेंद्र मोदी की जो नई छवि बनी उसने चुनाव अभियान में चमत्कार कर दिया। इस का सबसे बड़ा उदाहरण भदोही में उनका भाषण था जिसमें उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश में 4 तरह कि राजनीतिक संस्कृति  और शासन व्यवस्था रही है ,वह है "नाम पंथी, वामपंथी दाम और दमन पंथी एवं चौथी विकास पंथी।" उन्होंने अपनी छवि विकास पंथी के रूप में प्रस्तुत की।
            दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी दल कृषिपीड़ा, बेरोजगारी और नोटबंदी का राग अलापते रहे। विपक्षी दल अपना ध्यान नकारात्मक राजनीति पर ज्यादा लगाए रखे।  भारतीय राजनीति और लोकतंत्र चूंकि संस्कृति उन्मुख रहा है इसलिए वह आरंभ से ही जाति ,भ्रष्टाचार और अपराध  (थ्री सी यानी कास्ट करप्शन एंड क्राइम)    से घिरा रहा ।  इस बार मोदी जी ने उसका स्वरूप बदल दिया उन्होंने इस 3 सी का मतलब बदल दिया । उन्होंने इसे मिलो, जोड़ो और अपने साथ ले लो ( कैच कनेक्ट एंड क्लोज)। पूरे अभियान को ध्वनि, विजुअल और भाषण  से एक उत्पाद बना दिया और मतदाता उसके उपभोक्ता बन गए । बाजार का एक बहुत चतुराई पूर्ण तरीका है।  कांग्रेस पार्टी यहां कामयाब नहीं हो सकी।
       मोदी जी की विजय में फिर से  बन रहे  एक नए भारत के सभी चिन्ह मौजूद हैं। इसमें लोकतांत्रिक तानाशाही, अफसरशाही अधिनायकवाद के लक्षण भी दिखाई पड़ रहे हैं। इसमें व्यक्तिगत नेतृत्व को विकसित होता हुआ भी देखा जा सकता है जो भारत में शासन के राष्ट्रपति - प्रधानमंत्री मॉडल के रूप में परिलक्षित हो रहा है। इसलिए नरेंद्र मोदी को अपने शासन काल के इस दूसरे दौर में थोड़ा सचेत रहना पड़ेगा।  इस नई ताकत में भाजपा और खुद उनके नाम का आतंक फैलाकर अल्पसंख्यकों को दबाने वाली सोच भी दिखाई पड़ रही है। अगर मोदी जी भारत को टुकड़े टुकड़े में देखने के बदले उसे एक समन्वित तौर पर देखने वाली सोच से ऊपर उठते हैं तो इतिहास में महानायक बन जाएंगे वरना भारत के लोकतंत्र के इतिहास के नायक तो बन ही गए हैं । मोदी जी की इस बात से आशा व्यक्ति है जिसमें उन्होंने कहा है यह विजय हिंदुस्तान उस की जनता और लोकतंत्र की विजय है। उन्होंने कहा कि वह संघवाद और संविधान के प्रति समर्पित हैं तथा केंद्र एवं राज्य  विकास में कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे। मोदी जी ने कहा कि सरकार भले ही बहुमत से चलती है लेकिन देश सर्वमत से चलता है और वह इस विचार के साथ सबको साथ लेकर चलेंगे। मोदी जी ने अपने विशेष अंदाज में कहा कि जो बीत गई वह बात गई। विरोधियों को भी देश हित में एक साथ लेकर चलना है बेशक कोई गलती हो सकती है लेकिन वह इरादतन नहीं होगी । मोदी जी की बात बहुत उम्मीद जगाने वाली है।

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