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Wednesday, May 29, 2019

भारतीय वोट कैसे देते हैं

भारतीय वोट कैसे देते हैं

जम्हूरियत वह तर्जे हुकूमत है जिसमें
बंदे तौले नहीं जाते गिने जाते हैं
19 वां लोकसभा का चुनाव खत्म हो गया।  कल देश के सदर को अपने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाएगी। शपथ के बाद से वह अगले पांच वर्ष तक भारत का मुकद्दर लिखने की ताकत हासिल कर लेगा। इस वर्ष भी यह ताकत हमारे देश की जनता के माध्यम से संविधान ने  नरेंद्र मोदी को सौंपी है। उनके पिछले कार्य काल में क्या क्या विकासमूलक कार्यों की योजनाएं बनीं कितनी अमल में लायीं गयीं  , उनमें  कामयाबी और नाकामयाबी का अनुपात क्या रहा, नाकामियों पर लंबे- लंबे लेख लिखे गए। भविष्यवाणियां की गईं कि इसबार नरेंद्र मोदी जी को पिछले चुनाव से कम सीटें हासिल होंगी। इन भविष्यवाणियों के आधार पर चर्चा होने लगी कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा ? लेकिन सब  गलत। इन बार भी मोदी जी ही प्रधानमंत्री हुए और पहले  से ज्यादा सीटें  हासिल कर।  यहां सवाल है कि जनता ने उन्हें कैसे और क्यों वोट  दिया? इतना बड़ा जनादेश क्यों मिला? हाल में एक अध्ययन के मुताबिक भारतीय मतदाताओं ने 2019 के चुनाव में  नीतियों और विकास के आधार पर वोट नहीं डाला। बेरोजगारी और कृषि पीड़ा जैसी आर्थिक परेशानियों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने 50% सीटें जीत लीं। ऑक्सफ़ोर्ड की एक प्रोफेसर तनुश्री गोयल ने देश की 90 प्रतिशत आबादी के  मतदाताओं से भरे 14 राज्यों  का अध्ययन किया। उन्होंने 1998 से 2017 के मध्य  प्रधानमंत्रियों की योजनाओं के तहत किये गए कार्यों और विधानसभाओं तथा लोकसभा चुनाव के नतीजों से  उनके  संबंधों की व्याख्या की गई। गौर करें सन 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में एक अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना आरम्भ हुई थी - " प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना।" 2018 तक इस योजना के तहत  280 लाख करोड़ रुपये  खर्च कर देश में समग्र रूप से  5,50,000 कि मी लंबी ग्रामीण सड़कें बनीं। गांवों में इस कार्यक्रम के सफलता पूर्वक लागू किये जाने के बावजूद  मतदाताओं ने उसी सरकार को वोट नहीं दिए। उदाहरण के लिए , 1998 से 2003 के बीच राजस्थान सरकार ने राज्यभर में 13,634.43 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया लेकिन 2003 में कांग्रेस को औसतन 9.6 प्रतिशत मतों का नुकसान हुआ। भाजपा वहां सत्ता में आ गयी।1999 से 2004 के बीच संयुक्त आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी 8167.6 की मी सड़कें बनायीं और 2004 के चुनाव में तेलुगु देशम पार्टी7.3 प्रतिशत मतों से हार गई, कांग्रेस सत्ता में आ गयी। 
      अध्ययन में पाया गया कि दुनिया के सबसे बड़े ग्रामीण सड़क कार्यक्रम  का चुनावी लाभ शून्य रहा। गोयल के अनुसार बहुत कम ऐसा हुआ है कि चुनाव खासतौर पर सकारात्मक या  नकारात्मक हों जिसका परिणाम पर संसार पड़ा हो जिससे महसूस हो कि विकास का लाभ मिला है ,वे  अक्सर बहुत अशक्त या असंगत होते देखे गए हैं। सबने गौर किया होगा कि 2019 के चुनाव प्रचार में प्रधान मंत्री के भाषणों में ढांचागत परियोजनाओं पर बातें बहुत कम हुईं। प्रचार के दौरान नीतियों के सिवा सब पर बातें हुईं। देश में इस स्थिति का लोकतंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।  एक अन्य मतदान और विकास परियोजनाओं के साक्षरता और लापरवाही के कारण संबंध नहीं रह पाता है। देश के एक से दो प्रतिशत मतदाता ही विभिन्न दलों के चुनाव घोषणा पत्रों को पढ़ते हैं और समझते हैं। यदि उच्च शिक्षा और सही सूचनाएं प्राप्त हों तो मतदाता उम्मीदवारों की जवाबदेही तय कर सकते हैं। सरकारी योजनाओं के प्रति चेतना यहां तक कि ठोस सबूत के बावजूद  राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर  मत दाताओं को प्रभावित नहीं कर सकती। जनता नीतियों के आधार वोट देने निर्णय नहीं करती। 
       2019 का चुनाव भी नीतियों के आधार पर नहीं लड़ा गया। ध्यान दें , भाजपा का सुर इस वर्ष बदला हुआ था वह विकास और हिंदुत्व पर बातें नहीं करती थी इसबार वह पहचान और जाति पर केंद्रित थी। अब सवाल है कि अगर विकास  का निर्वाचकीय लाभ नहीं प्राप्त होता है तो आखिर कोई सरकार इसमें धन और समय क्यों बर्बाद करती है। तक्षशिला के आर्थिक शोधकर्ता अनुपम मानुर के अनुसार " सड़कें बनाने का बेशक चुनावी लाभ ना मिले लेकिन बनाने का भारी घटा जरूर मिलेगा।" दरअसल लोकतांत्रिक जंग अनुभूति का युद्ध है। 2014 में मोदी ने जनता में एक खास प्रकार की अनुभूति पैदा कर दी और सत्ता में आ गए। गोयल के अनुसार भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में जाति मुख्य भूमिका निभाती है। लेकिन विकासशील नीतियों पर इसका बुरा प्रभाव होता है। इसका सीधा अर्थ है कि मतदाता अन्य बातों पर ध्यान देते हैं। इन दिनों जाति मौलिक पहचान नहीं है। आजकल आधुनिक राजनीतिक पहचान का भी प्रभाव होता है। एक ही जाति के दो मतदाता दो पार्टियों को वोट देते देखे जा सकते हैं। मतदाताओं की भनाओं के अलावा उनकी जरूरतों पर आधारित होती हैं। विकास को वे अपनी ही जरूरत की वस्तु नहीं मानते। वह तो सबके लिए है। जनता यह देखती है कि इसमें उसके लिए क्या है। इसीलिए राजनीतिक दल मतदातों को लुभाने के लिए तरह- तरह की चीजें भेंट करते हैं के वह लैपटॉप हो या साइकिल हो या और कुछ।

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