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Friday, May 31, 2019

विश्वास का चुनाव

विश्वास का चुनाव

मोदी जी ने चुनाव के समय एक नारा दिया था वह था चौकीदार । चौकीदार यानी सुरक्षा का भरोसा । हमारे देश की सबसे बड़ी ट्रेजेडी  यह है कि हमारे यहां भरोसे की मानसिकता नहीं है और यही कारण है हमारे देश के कानून वगैरह इतने जटिल हैं कि उनका पालन करना मुश्किल हो जाता है और उन्हें बदलना  और भी जटिल। इस कारणवश देश का अधिकांश नागरिक कानून तोड़ने वाला बन जाता है।  वह कभी न कभी किसी न किसी मोड़ पर कानून को तोड़ता हुआ नजर आता है। यही नियम और कानून को तोड़ने की मानसिकता एक दूसरे पर अविश्वास पैदा करती है। 2019 के चुनाव के नतीजों को देश के कई विशेषज्ञों ने अपनी- अपनी तरफ से व्याख्यायित करने का प्रयास किया कोई से "टीना" या " देयर इज नो   अल्टरनेटिव" यानी कोई "विकल्प नहीं है"  तो कोई इसे उम्मीद  के कारण हुई विजय बताया। लेकिन अगर समाज विज्ञान खासतौर पर अपराध शास्त्र की कसौटी पर इस विजय को परखें तो यह कुछ दूसरी ही बात  कहती नजर  आएगी। 2014 के चुनाव परिणाम को अगर समन्वित रूप में देखें तो लगता है कि इसके पीछे  एक उम्मीद  है, एक आशा  है खास करके अच्छे दिन आएंगे वाले जुमले के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है । 2019 के चुनाव में जो सबसे बड़ा तत्व था वह था "मैं  चौकीदार" वाला नारा। प्रधानमंत्री ने अलग से कुछ नहीं कहा उन्होंने "मैं  चौकीदार" वाला नारा लगाकर लोगों को आश्वस्त किया कि सब देशवासी देश की रक्षा और उसके भले के लिए सजग रहें तो सबका विकास हो सकता है। मोदी जी ने  कोई महत्वपूर्ण नया वादा नहीं किया बल्कि उन्होंने जो किया उसके जरिये उन्होंने  देशवासियों को याद दिलाया कि वह सब मिलकर देश के लिए कुछ अच्छा करें । देशवासियों के लिए अच्छा करें। एक अलग तरीके से, लोगों के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले एक अच्छे आदमी की वही कहानी ओडिशा में भी सफल रही। ओडिशा में नवीन पटनायक  दो-तिहाई बहुमत से लगातार पांचवीं बार चुने गए ।             
       हमारे देश में पहले जाति और धर्म  नेताओं पर भरोसा करने और उनके लिए मतदान करने के आधार हुआ करते थे। अब विश्वास  आधार बन गया, जो एक व्यक्ति की अदूषणीयता , निस्वार्थता और लोगों की बेहतरी के लिए प्रतिबद्धता में बदल गया है। मोदी और पटनायक जैसे नेता  भारत में हैं  जिन पर भरोसा किया जा सकता है।  भारतीयों ने पूरे विश्वास के साथ उनके प्रति अपने भरोसे को इस चुनाव में दोहराया है। यदि यह प्रवृत्ति एक-दो चुनावी चक्रों के लिए बनी रह सकती है और लोगों का विश्वास लोगों में विश्वास का पूरक हो सकता है, तो अगले दो दशकों में करोड़ों भारतीयों के जीवन में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।
यहां समझना जरूरी है कि "लोगों में विश्वास" से तात्पर्य क्या  है?  डॉ बी बी मिश्र ने अपनी विख्यात  पुस्तक  "ब्यूरोक्रेसी इन इंडिया" में लिखा है कि "भारतीय प्रशासन को  बहुत अर्से से लोगों में विश्वास की कमी रही है और यही प्रशासन  की विशेषता समझी जाती है।  हमारे कानूनों और नियमों  को मोटे तौर पर एक प्रतिशत नियम-तोड़ने वालों को देखने के लिए तैयार किया गया है।" हालांकि, इस गैर-भरोसेमंद मानसिकता के कारण, हमारे कानून और नियम इतने जटिल हो गए हैं कि उनका पालन करना मुश्किल है। मजबूरन हर भारतीय नियम-तोड़ने वाला बन जाता है।  यह मनोदशा हमें एक-दूसरे के प्रति और सरकार के प्रति अविश्वास  करना सिखाती है।
राष्ट्र की प्रगति के लिए, हमें "ब्रिटिश राज" की नियंत्रण मानसिकता से दूर होना होगा। वे हमपर शासन करते थे और कानून उसी इरादे से बनाये गए ताकि   भारतीय सब कुछ करने के पहले अनुमति लें।   अमरीका, ऑस्ट्रेलिया या कई और राष्ट्र हैं , जहां नागरिकों पर भरोसा किया जाता है। उनकी आकांक्षाओं और सपनों को पूरा करने में मदद  के लिए कानून बनाए जाते हैं "प्रतिबंधित वस्तुओं" की एक छोटी सूची को छोड़कर हर नागरिक जो चाहता है करने के लिए स्वतंत्र होता है, प्रशासन कोई   हस्तक्षेप नहीं करता।
हमारे राष्ट्र को निम्न-आय से मध्य-आय वाले देश में स्थानांतरित करने और सामाजिक सामंजस्य और सद्भाव बढ़ाने के लिए कुछ उपाय करने जरूरी हैं।  जरा प्रशासनिक तंत्र पर गौर करें 1947-2014 के मध्य सरकार  ने एक नियंत्रण और कमान अर्थव्यवस्था की कोशिश की है। हर काम के लिए अनुमति की जरूरत और लाल फीतों से बंधी अफसरशाही की भूलभुलैया।  हम प्रयोग के तौर पर 10 वर्षों तक एक अलग दृष्टिकोण की कोशिश क्यों नहीं करते हैं । लोगों को वह करने दें जो वे करना चाहते हैं। देश के  लोगों पर भरोसा करें और बाजारों पर भरोसा करें। लोगों पर शासन न करें  लेकिन उन्हें सशक्त बनाएं और उन्हें सक्षम करें । ऐसा करने का एक बड़ा उदाहरण  है कि एलपीजी पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ने वाली बात। सरकार ने लोगों से अपील करने का तरीका अपनाया और लगभग 1करोड़ 20लाख  से अधिक लोगों ने सब्सिडी त्याग दी।
प्रत्येक भारतीय को खुश रहने का अधिकार है और   अगर खुशी आर्थिक रूप से सफल होने से आती है, तो हमें राष्ट्रीय कर्तव्य के रूप में धन का सृजन करने में सक्षम होना चाहिए। धन अच्छा है। नौकरी करने वाले हमारे समाज के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य हैं। 23 मई को अपने विजय भाषण में पीएम ने बहुत ही सहजता से कहा था  कि "भारत में अब केवल दो जातियां होंगी एक वे जो गरीब हैं और दूसरे वे जो उन्हें गरीबी से बाहर लाने का प्रयास कर रहे हैं"। भारत का एक राष्ट्रीय कर्तव्य है कि हम यह सुनिश्चित करें कि हम प्रत्येक भारतीय के लिए उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन का सृजन करें और यह केवल पीएम के कथन को आगे बढ़ाते हुए कहा जा सकता है कि हर कोई जो नौकरी करने वाला है उसे मदद और समर्थन करने की आवश्यकता है।
ऐसे समय तक जब तक हम बेहतर शिक्षा, बेहतर बुनियादी ढांचे, पूंजी की कम लागत और सामाजिक सुरक्षा  की नींव पर  अधिक उत्पादक अर्थव्यवस्था में बदल देते हैं तो बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है खास कर उनके लिए जो सबसे गरीब हैं। बेशक इसमें   कम से कम 10-15 साल लगेंगे। हमें इस दिशा  में कुछ करने की आवश्यकता है। भारत में सबसे गरीब कृषि क्षेत्र है। कृषि को हमारी आबादी का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा चाहिए लेकिन हमारी आबादी का 40 प्रतिशत से अधिक कृषि में शामिल है। जब तक हम उनके लिए अन्य क्षेत्रों में अच्छी नौकरियों का सृजन नहीं करते तो विकास का 
हमें ग्रामीण भारत के लिए बुनियादी आय  प्रणाली आरम्भ करने की जरूरत है। जैसी कि अमरीका की सामाजिक सुरक्षा है । इसे एन डी ए सरकार ने 2019 के अंतरिम बजट में 6,000 रुपये प्रतिवर्ष के साथ किसानों के लिए शुरू किया है। यह छोटी जोत के किसानों के लिए हैं।  इसे सुनिश्चित कर औऱ  विस्तार किया जा सकता है कि कोई भी भारतीय परिवार गरीबी में न रहे । 
भारत में वास्तविक ब्याज दरें दुनिया में सबसे अधिक हैं। हर नौकरी करने वाले, हर कर्जदार पर यह बहुत बड़ा टैक्स है। "मेक इन इंडिया" कैसे सफल हो सकता है, हम कैसे प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं यदि चीनी और अमरीकी निर्माता 3-4 प्रतिशत पर उधार ले सकते हैं और हमारे नौकरी करने वालों को 12-14 प्रतिशत व्याज पर उधार लेना होता है। पिछले पांच वर्षों के नीतिगत उपायों के कारण, भारत ने मुद्रास्फीति पर एक महत्वपूर्ण जीत हासिल की है भारतीय मुद्रास्फीति  अब अमरीका और ब्रिटेन के  स्तर के आसपास है। हमने अभी तक भारतीयों को मुद्रास्फीति के खिलाफ युद्ध में जीत का लाभ नहीं दिया है। हमने महंगाई को सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ा क्योंकि हम इसे नापसंद करते हैं, बल्कि इसलिए कि यह भारत को कम लागत के साथ उपभोग और निवेश को सक्षम करके अधिक समृद्ध बनने में सक्षम बना सकता है। हमें अगले 12 महीनों में ब्याज दरों में  कम से कम 2 प्रतिशत  की कटौती की आवश्यकता है और  वास्तविक ब्याज दरों पर लगभग 1.5प्रतिशत कटौती जरूरी है। 
केंद्र सरकार का कर्ज लगभग 1.2 खराब डॉलर है। इसके बाद राज्य सरकारों और पीएसयू के ऋण पर विचार करना है। इन उधारों पर ब्याज की लागत में कमी से सरकार के लिए लगभग  50 अरब डॉलर  की वार्षिक बचत हो सकती है। इस संदर्भ में, भारत का राजकोषीय घाटा (केंद्र सरकार)  80 अरब डॉलर  से अधिक है। इस  50 बिलियन डॉलर को महत्वपूर्ण सामाजिक क्षेत्र के खर्च और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए उपयोग किया जा सकता है। भारतीय बैंक एनपीए से अपने घाटे के एक महत्वपूर्ण हिस्से को एक बार में सरकारी बॉन्ड की होल्डिंग से राजकोषीय लाभ के माध्यम से प्राप्त करने में सक्षम होंगे।  यह बैंकिंग प्रणाली को फिर से कार्यात्मक बनाने और हर उत्पादक उद्यमी को ऋण देने के अपने वास्तविक लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम होगा। जैसा कि वरिष्ठ नागरिकों एवं अन्य विशेष श्रेणी के सेवा क्षेत्र के लोगों के लिए ब्याज दरें कम की जाती हैं, सरकार 3-5 वर्षों के लिए चरणबद्ध सब्सिडी प्रदान कर सकती है, जिसकी लागत सरकार द्वारा बचाए गए  50 अरब से भी कम होगी।
इससे सरकार पर देशवासियों का और देशवासियों का सरकार पर भरोसा बढ़ेगा और भरोसा राष्ट्र की प्रगति के उत्प्रेरक का कार्य करेगा। यही कारण है कि मोदी जी ने कहा"सबका साथ,सबका विकास और सबका भरोसा।" चौकीदार और भरोसा क्रियात्मक तौर पर और  बिंबविधान के आधार पर अन्योन्याश्रित रूप से जुड़े हैं, सम्बद्ध हैं।


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