CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Tuesday, September 10, 2019

फिर चली है हवा नागरिकता रजिस्टर की

फिर चली है हवा नागरिकता रजिस्टर की

केंद्रीय मंत्री अमित शाह सोमवार को गुवाहाटी में थे और उन्होंने इस बात को मानने से इंकार कर दिया कि सरकार नागरिकता संशोधन बिल को दोबारा पेश करना चाह रही है। उन्होंने कहा कि उत्तर पूर्वी राज्य और वहां के निवासियों की संवैधानिक सुरक्षा में कटौती नहीं करेगी और नागरिकता संशोधन विधेयक उनके बीच नहीं आएगा। दरअसल जब से कश्मीर की घटना हुई है पूर्वोत्तर भारत के लोगों को लगातार यह डर सता रहा है कि कहीं अनुच्छेद 370 के बाद अब अनुच्छेद 371 को तो नहीं  रद्द कर दिया जाएगा । अमित शाह ने ही संसद में 370 को खत्म करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। वही अमित शाह धारा 371 को बचाने में लगे हैं या कहिए बचाना चाहते हैं। लेकिन क्यों? गुवाहाटी में सोमवार को उनके भाषण के बाद लगातार लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है। लेकिन लोग यह जानने की कोशिश नहीं कर रहे हैं 371 में और 370 में फर्क क्या है।  अमित शाह के अनुसार धारा 370 अस्थाई प्रावधानों से जुड़ा था जबकि धारा 371 विशेष प्रावधानों के संदर्भ में है। दोनों में बड़ा फर्क है। हमारे देश के संविधान में  धारा 369 से लेकर धारा 395 तक को स्पष्ट किया गया है। पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए विशेष प्रावधान बनाए जाने का मुख्य कारण था कि अनेक राज्य बहुत पिछड़े हुए थे और उनका विकास सही समय से नहीं हो पाया था। यही नहीं वहां की जनजातीय संस्कृति का भी यह धारा संरक्षण करती है। धारा 370 और 371 में जो स्पष्ट दृश्य अंतर था वह था धारा 370 के अंतर्गत कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान  हुआ करता था जबकि धारा 371 के अंतर्गत पूर्वोत्तर राज्यों का कोई पृथक झंडा नहीं है नाही कोई अलग संविधान। धारा 370 को समाप्त करने के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसके तहत राज्य पिछड़ा हुआ है लेकिन उत्तर पूर्वी राज्यों में यह तर्क नहीं काम करेगा। 
        उत्तर पूर्वी राज्य में फिलहाल नेशनल सीटीजन रजिस्टर की हवा तेज है और इस वातावरण में सरकार वहां कोई भी नया मोर्चा नहीं खोलना चाहती। गुवाहाटी में अपने भाषण में गृहमंत्री ने महाभारत के किरदारों का पूर्वोत्तर से जोड़कर यह बताना चाहा इस क्षेत्र का भारत के शेष हिस्से से पौराणिक और स्वाभाविक संबंध है। यही नहीं अरसे से भाजपा की नजर इस क्षेत्र पर लगी हुई है धारा 371 न केवल भारत के उत्तर पूर्वी राज्य पर ही लागू है बल्कि महाराष्ट्र गुजरात और हिमाचल प्रदेश के भी कुछ हिस्सों में लागू है। इसके अंतर्गत महाराष्ट्र और गुजरात के राज्यपालों कुछ खास अधिकार मिले हुए हैं।
           कहते हैं ना कि "जब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी" उत्तर पूर्वी राज्यों में एनआरसी का मामला राजस्थान के पुष्कर में आर एस एस की बैठक में भी उठा और संघ के संयुक्त महासचिव दत्तात्रेय होसाबले ने बैठक के बाद कहा कि एनआरसी में कई त्रुटियां हैं जल्दी से जल्दी ठीक किया जाना चाहिए। बैठक में उपस्थित पार्टी के महासचिव राम माधव ने भी लोगों को एनआरसी के बारे में विस्तार से बताया और इसमें सरकार के हस्तक्षेप का सुझाव दिया। बैठक के बाद इस बात पर चिंता व्यक्त की गई कि एनआरसी से लगभग 10 लाख बांग्ला भाषी हिंदुओं को बाहर कर दिया गया है। यह चिंता का विषय है। भाजपा नागरिकता संशोधन बिल को लेकर  भीतर ही भीतर कोशिश में लगी है लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में इसके विरुद्ध है हिंसक प्रदर्शन को देखते हुए उसे थोड़ा रोक दिया गया है। संघ की बैठक में कहा गया कि हिंदू चाहे दुनिया के किसी कोने में रहता हो भारत के दरवाजे उसके लिए सदा खुले हैं। वह भारत में रह सकता है और यहां की नागरिकता ले सकता है।
दूसरी तरफ राष्ट्र संघ मानवाधिकार संस्था ने एनआरसी पर चिंता जाहिर की है। जेनेवा में अपने भाषण की शुरुआत में मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेसलेट  ने कहा कि एनआरसी से बहुत ही चिंता और अनिश्चितता पैदा हो रही है । उन्होंने सरकार से अनुरोध किया किया, ऐसी स्थिति पैदा करें जिससे लोगों को आत्म संतोष हो। एनआरसी तथा धारा 371 का भविष्य क्या होगा यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन संघ की बात सुनकर एक दिशा तो दिखाई पड़ रही है कि पूर्वोत्तर भारत में हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए यह सब किया जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो सबसे बड़ा आघात उस क्षेत्र की पहचान यानी सामाजिक पहचान पर होगा और उसके बाद क्या होगा यह कहना थोड़ा कठिन है।

0 comments: