tag:blogger.com,1999:blog-18677393450758532332024-03-05T21:23:46.914-08:00खोज-खबरहालातों पर तात्कालिक टिप्पणियांpandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.comBlogger1940125tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-16661396722077015852020-08-14T20:43:00.002-07:002020-08-14T20:43:41.337-07:00अब तेरी हिम्मत की चर्चा गैर की महफ़िल में है <p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">अब तेरी हिम्मत की चर्चा गैर की महफ़िल में है </span></p><span id="docs-internal-guid-dfbdf200-7fff-d801-637a-eed140fe63a6"><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> किसी जमाने में आजादी के जश्न में पूरा देश डूब जाता था। एक गीत की पंक्तियां</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> <b>सरफरोशी की तमन्ना आज हमारे दिल में है</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> यह गीत जहां लोगों के मन में भारत के जोश से पूरे देश की जनता जोशीला बना देता था क्योंकि कभी यह गीत एक सपना था।अब इस पर तरह-तरह के सवाल और तरह-तरह के मायने खोजे जा रहे हैं। यहां तक कि आजादी और स्वाधीनता को दो अलग-अलग नरेशंस में बदल दिया जा रहा है। कुछ लोग आजादी की परिकल्पना को ही चुनौती देते हैं तो कुछ लोग इस पर बहस भी करते हैं। बात यहां तक चली जाती है कि देश क्या होता है, भारत से आप क्या समझते हैं? इसका उत्तर एक शोध का विषय है लेकिन शोध कौन करता है किसे पड़ी है शब्दों की व्याख्या करें। यहां देश शब्द एक जमीन का टुकड़ा नहीं है बल्कि एक भाव है। यह भाव हमारे भीतर घटने वाली घटनाओं को स्वरूप देता है। यह स्वरूप प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि एक उच्छवास है। एक गौरव शाली स्मृति है। ठीक उसी तरह जिस तरह हम राम को भगवान मान लेते हैं और उस भगवान पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। इसका न कोई इतिहास है और मैं भूगोल बल्कि एक स्मृति है जो जीवन से विराट है। यह स्मृति है जहां एक पत्थर का टुकड़ा शंकर बन जाता है एक धनुर्धारी राम बन जाता है। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> यहीं से उन दलीलों का उत्तर खोजना जरूरी है। स्वतंत्रता, आजादी या फिर स्वाधीनता चाहे जितने भी अपरूपों में विश्लेषित हों संवेदना वहीं से मनुष्य ग्रहण करता है। वरना क्या कारण था बेल्जियम से आया फौजी बनारस आकर राम भक्त बन गया, क्या कारण था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए भूमि पूजन का आंखों देखा हाल लगभग 16 करोड़ लोगों ने देखा। किसी ने राम को देखा नहीं है। राम पर उसी तरह बहस होती है जैसे राष्ट्र को लेकर होती है लेकिन हमारे भीतर राम हैं। हमारे देश की पौराणिक कथाओं में उपनिषदों में राम व्यक्ति के रूपक हैं और ठीक वैसे ही हमारा देश भी है। यह बात साहित्य समाजशास्त्र और दर्शन के तालमेल से समझ में आती है कि आखिर बात क्या है कि हमारे अमूर्त भावों के लिए संजीवनी विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है। भारत को राष्ट्र का स्वरूप देना एक तरह से संगीत की लयबद्धता है। इस में छोटे से छोटे वाद्य का सुर साफ-साफ सुनाई पड़ता है। इतिहासकार टाॅप्शन के मुताबिक भारत दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण देश है और इस पर दुनिया का भविष्य निर्भर करता है। पूरब या पश्चिम का कोई ऐसा विचार नहीं है जो भारतीय मनीषा में शामिल ना हो। स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने कोलकाता में एक संस्मरण सुनाया था कि अफगानिस्तान में एक होटल है जिसका नाम कनिष्क है और भारत में गंगोत्री से निकलकर गंगासागर तक की यात्रा करने वाली इसी तरह किसी भी संस्कृति को अपने आलिंगन में लेने से नहीं छोड़ा है। ठीक उसी तरह हमारा देश और हमारे देश की संस्कृति ने को प्रभावित करने से नहीं छोड़ा। अफगानिस्तान में होटल कनिष्क हो सकता है और इंडोनेशिया में रामलीला होती हैं। भारत का या अमृत स्वरूप सब जगह है। हमारे देश पर न जाने कितने विदेशी हमले हुए न जाने कितने प्रयास हुए हमारी संस्कृति को समाप्त कर देने के लेकिन कुछ नहीं हो सका हमारी संस्कृति जीवित है और उसी जीवंतता का प्रमाण है कि हम अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं। आज कश्मीर को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। देखिए कैसा संयोग है 5 अगस्त को राम मंदिर की भूमि पूजन हुआ कश्मीर के विवाद को समाप्त करने के लिए 1 साल पहले संविधान में उल्लिखित अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा था कि कश्मीर जो आज अधिकृत कश्मीर कहा जाता है हमारा अंग है। यह केवल भूगोल नजर से नहीं है बल्कि अध्यात्मिक या कहिए भारतीय अध्यात्मिक और हिंदू धर्म दर्शन के दृष्टिकोण से है। ईसा मसीह के जन्म के समय भारत से जो लोग वहां गए थे उन्होंने ईसा को अपने साथ लाया। बाइबल के न्यू टेस्टामेंट में कहा गया है के “ फाईव वाइज मैन फ्रॉम द ईस्ट”यह पांच ज्ञानी लोग कश्मीर के थे और आज भी जीसस की वहां उपस्थिति के सबूत मिलते हैं। हम शैव- बौद्ध दर्शन या राज तरंगिणी जैसी ऐतिहासिक रचनाओं में अपनी पारंपरिक संपदा से पृथक कर सकते हैं। समय बीतने के साथ-साथ जमीन की सरहदें बदलती जाती हैं और उसके अनुरूप संस्कृति का नक्शा बदल जाता है। भारत की आजादी के संघर्ष ने इसी लौ को जला रखा था। आज भी गंगासागर के स्नान और कुंभ के मेले में लाखों की भीड़ को देखना इसी रूप का अमूर्त रूप है। और, एक आश्वासन भी है। आजादी, स्वाधीनता जैसे मुहावरे इन लोगों के लिए नहीं है जो इस अमूर्त स्वरूप को प्रणाम करते हैं।हमारा स्वतंत्रता संग्राम सत्ता बदलने के लिए नहीं था बल्कि अपने समस्त सभ्यता भूल को अपने जीवन में प्रतिष्ठित करने का यह आंदोलन था और अब तक नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिए हैं देश या विदेश में उसमें प्रतिष्ठित करने की यह जिजीविषा महसूस की जा सकती है।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> जहां शिवा ,राणा, लक्ष्मी ने देश भक्ति का मार्ग बताया</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> जहां राम, मनु ,हरिश्चंद्र ने प्रजा भक्ति का सबक सिखाया</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> वही उनके पथ गामी बनकर हमें दिखाना है</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> भारत को खुशहाल बनाने ,आज क्रांति फिर लाना है </b></span></p><br /></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-45062849989897921402020-08-14T20:39:00.003-07:002020-08-14T20:39:40.158-07:00कोरोना और बाढ़ की त्रासदी झेलती एक बहुत बड़ी आबादी<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">कोरोना और बाढ़ की त्रासदी झेलती एक बहुत बड़ी आबादी</span></p><span id="docs-internal-guid-255f92a8-7fff-0385-253b-3dd14483233b"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> उत्तर प्रदेश और बिहार में बाढ़ का आना आम बात है। कुछ लोग बाढ़ के कारणों को जानना चाहते हैं तो कुछ उसके लिए मिलने वाले राहत धन में दिलचस्पी रखते हैं। कोई यह नहीं सोचता कि जो आबादी इस त्रासदी से जूझ रही है उसकी क्या गति होगी। कुछ लोग बिहार और उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों के लोगों को पिछड़ा हुआ और गरीब कहते हैं। कोविड-19 के पहले दौर में लंबे लॉकडाउन के दरमियान बहुत बड़ी आबादी जिसमें अबाल वृद्ध सब शामिल थे उनकी गिनती को लोग आंकड़ों की तरह उपयोग कर रहे हैं। लेकिन कोई कभी यह नहीं सोचता उनके जाने और लौटने की क्या बाध्यता है। इन दिनों खबरों में अक्सर आ रहा है उत्तर प्रदेश के और बिहार के सैकड़ों गांव बाढ़ से ग्रस्त हैं। सरकारी अफसरों को चेतावनी दी जा रही है कि यदि वह उन क्षेत्रों में जाएं तो कोरोना से बचाव का उपाय करके ही जाएं। उधर बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में लापरवाही से कोरोनावायरस का संक्रमण बढ़ने का पूरा खतरा है। उत्तर प्रदेश के कुल 75 जिलों के 20 जिलों में लगभग 20% लोग कोरोनावायरस पीड़ित हैं। यही हाल बिहार के 38 जिलों में से बाढ़ प्रभावित 16 जिलों में लगभग 15% लोग कोविड-19 से पीड़ित हैं। इतनी बड़ी आबादी के इलाज का क्या हो रहा है, किसी को कुछ मालूम नहीं। प्रशासन कहता है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, मास्क लगाएं परंतु सच तो यह है क्षेत्रों में ऐसा कुछ होता हुआ नजर नहीं आता है। जो आबादी दो वक्त भरपेट खाना नहीं खा सकती उस आबादी को मास्क खरीदने का सुझाव बड़ा अजीब लग रहा है। सरकार की तरफ से बाढ़ पीड़ितों के लिए मास्क का बंदोबस्त नहीं किया गया है। उत्तर प्रदेश के 20 जिलों में 802 गांव बाढ़ की चपेट में हैं। इन 20 जिलों में 11 अगस्त तक 28, 871 कोरोनावायरस के मामले सामने आए हैं। इसी तारीख तक संपूर्ण राज्य में 1,31,763 मामले सामने आ चुके हैं। इसका मतलब है कि उत्तर प्रदेश के 20% से ज्यादा मामले बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के हैं। सरकार कहती है कि बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और मास्क पहनें। यह तो सब जानते हैं बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र में जहां पानी जमा होता है वहां संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए हर साल सरकारी क्षेत्रों में छिड़काव कराती है ताकि कम से कम मच्छर न पैदा हों इस बार तो कोरोनावायरस की भी चुनौती है। बिहार की भी वही हालत है कई गांव में घरों में पानी घुस गया है। बिहार के 14 जिलों के 1223 पंचायतों के लगभग 73 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। राज्य में 11 अगस्त तक कोरोनावायरस के 86,812 मामले आ चुके हैं। यानी बिहार के करीब 15% मामले बाढ़ से ग्रस्त क्षेत्रों के हैं। बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में त्वचा, पेट लीवर से संबंधित बीमारियां, मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारियां, पीलिया और सांस से जुड़ी बीमारियां होती हैं।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में दवाइयां और मेडिकल हेल्प के सामने भी मुश्किलें आती हैं। जो बाढ़ के पानी के बीच में रहते हैं उन्हें खुजली का और खुजलाने के बाद थोड़ा हो जाने का सबसे बड़ा संकट है क्योंकि इसे इसी अस्पताल में नहीं दिखा सकते। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सोशल डिस्टेंसिंग का नियम खत्म हो जाता है क्योंकि लोगों को घर छोड़कर दूसरी जगह जाना होता है और वहां जितनी जगह मिलती है उतने में ही गुजारा करना होता है। बात यहीं खत्म हो तो कोई बात नहीं लेकिन जब हालात काबू से बाहर होने लगते हैं और सरकार असमर्थ हो जाती है तो बात बिगड़ने लगती है। कोरोना और महंगाई की पीड़ा को बाढ़ असह्य बना देती है और तब और भी पीड़ादायक हो जाती है जब फसलें डूबने लगती हैं । फसल मारी जाती है और मवेशी बाढ़ से खुद मर जाते हैं। मरे हुए मवेशियों के सड़ने से और बीमारियां फैलने लगती हैं। बार-बार चेतावनी दी जा रही है कि सांस लेने में तकलीफ होने पर कोरोना का भय होता है। अविलंब डॉक्टरों से संपर्क करें। लेकिन कैसे? इसका कोई समाधान नहीं होता। एक बहुत बड़ी आबादी जो देश के निर्माण में भागीदार है और आगे भी उसकी भागीदारी रहेगी वह आबादी अपने भविष्य के लिए चिंतित है तनाव में है खास करके जो नौजवान पढ़ लिख लिये और रोजगार विहीन हैं वह अपने भविष्य के बारे में सोचेंगे। सरकार को कोसेंगे लेकिन जैसे उन्हें मदद पहुंचायेगी सरकार? बाढ़ का पानी उतरने के बाद एक नया दौर आरंभ होगा वह है बेरोजगार जनित तनाव और उससे उत्पन्न तरह-तरह के अपराध चाहे वह लूटपाट हों या आत्महत्या। इसके अलावा बीमारियां फैलेंगीं उनमें खसरा, पेचिश और इंसेफेलाइटिस प्रमुख हैं। जब तक बाढ़ के कारणों का निवारण ना हो और संपूर्ण स्वच्छता ना हो तब तक इन बीमारियों और बिगड़ती सामाजिक स्थितियों को रोकना दुश्वार है। बाढ़ को प्राकृतिक आपदा बताकर अपना हाथ झाड़ लेना बड़ा सरल है लेकिन जो उसे भोग रहे हैं उनकी पीड़ा को शेयर करना बेहद कठिन है। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> राज्य की सरकारें इस मामले में तब तक कुछ नहीं कर सकतीं जब तक बाढ़ के कारण और जल प्लावन को रोकने तथा उसे खत्म करने के उपाय इमानदारी से ना किए जाएं। अगर ध्यान से देखें तो राजनीति क्षेत्र में बाढ़ भी एक तरह से आमदनी का जरिया है। राहत के पैसे दूसरी तरफ चले जाएंगे और जो लोग इसकी पीड़ा से जूझ रहे हैं उनके हालत नहीं बदलेगी।</span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-84129518200853299102020-08-14T20:38:00.001-07:002020-08-14T20:38:08.760-07:00 फिर पक रही है धर्म की खिचड़ी<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">फिर पक रही है धर्म की खिचड़ी</span></p><span id="docs-internal-guid-b7fb5638-7fff-84be-f009-414774a4244c"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> पिछले 1 वर्ष से हिंदू धर्म को लेकर एक नई बहस आरंभ हो गई है। हर दूसरा तीसरा आदमी धर्म, धार्मिकता और धर्मनिरपेक्षता पर बहस में उलझा हुआ है अल बरूनी की बात करता है तो कोई धर्म के दर्शन की। इसमें सबसे ज्यादा जो चीज नजर आ रही है वह है राजनीतिक भक्तों और विभक्तों की मानसिक रस्साकशी। अल बरूनी का जहां तक प्रश्न है तो उसने अपनी भारत यात्रा के बाद एक पुस्तक- तारीख उल हिंद- का प्रणयन किया। जिसमें उसने भारतीय सांस्कृतिक में बहुत उम्मीद दिखाई है। उसके बाद राष्ट्र का जो कांसेप्ट आया वह ऐसा नहीं था आज है। इस बीच, राम मंदिर के लिए भूमि पूजन भी हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए इस भूमि पूजन के समय और उसके पश्चात के समाज विज्ञान को तारीख उल हिंद के चश्मे से देखें तो आज भी भारतीय सांस्कृतिक एकता दिखाई पड़ेगी और यह इतिहास को नरेंद्र मोदी की देन कहा जाएगा। लेकिन, बहुत तेजी से वक्त बदला और समाज-संस्कृति को राजनीति के स्तर पर विभाजित करने का प्रयास आरंभ हो गया है। देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति का श्रीगणेश हुआ है। परशुराम की विशाल प्रतिमा बनाने की बात चल रही है और ब्राह्मणों को लेकर तरह-तरह के वायदे किए जा रहे हैं। प्रश्न यह नहीं है कि ब्राह्मण समुदाय का राजनीति में कितना अवदान है बल्कि यह प्रमुख प्रश्न है कि उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी कितनी है और समाज पर वर्चस्व कितना है। अब से कुछ दिन पहले जाति को लेकर जनगणना हुई थी और करोड़ों रुपए खर्च हो गए थे बाद में उसे दबा दिया गया। उस जनगणना के आंकड़े प्रकाशित नहीं किए। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन आंकड़ों को हथियार की तरह प्रयोग में लाने की राजनीतिक दलों की कोशिश का भय शुरू से रहा है। यह विचार इसलिए नहीं है के विभिन्न जातियों के वोट बैंक पर विभिन्न दलों का कब्जा हो जाएगा बल्कि डर यह है कि सांस्कृतिक रूप में एकजुट भारत को जातिगत रूप में बांटने की कोशिश हो जाएगी और यह कोशिश हथियार में बदल जाएगी। लेकिन बात यहीं रुकी नहीं और उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के वोट को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। अब इसकी शुरुआत मूर्ति लगाने से है। पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने 3 महत्वपूर्ण ब्राह्मण नेताओं से मुलाकात की। इस मुलाकात में जो लोग शामिल थे वह हैं अभिषेक मिश्र, मनोज पांडे और माता प्रसाद पांडे। मुलाकात के बाद अभिषेक मिश्र ने घोषणा की कि लखनऊ में भगवान परशुराम की 108 फुट ऊंची प्रतिमा लगेगी। उधर मायावती ने भी घोषणा की उससे भी ऊंची प्रतिमा और एक अस्पताल का नाम भी परशुराम के नाम पर रखेंगी। इसके बाद सपा और बसपा नेता एक दूसरे के आप खुलकर बोलने लगे। दोनों तरफ से तरह-तरह के जुमले उछाले जाने लगे। बात तो यहां तक चली गई कि भगवान परशुराम के वंशज भगवान कृष्ण के वंशजों के साथ रहने का फैसला किया है। इतना ही नहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने ली खुलकर सपा बसपा दोनों को घेरा है। ब्राह्मण समुदाय उत्तर प्रदेश में सरकार से नाराज है। कहा जा रहा है कि पिछले 3 साल में जितने भी बड़े हत्याकांड हुए हैं उसमें ब्राह्मण शामिल हैं।ब्राह्मण समुदाय के कुछ नेताओं का कहना है कि पिछले 2 साल में लगभग 500 से अधिक ब्राह्मणों की हत्या हुई है। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा से ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है और वहां औसतन 12% ब्राह्मण हैं तथा कई विधानसभा क्षेत्रों में तो 20% से ज्यादा है ऐसे में हर पार्टी की नजर ब्राह्मण वोट बैंक पर टिकी है। सपा हे वोट बैंक का समीकरण है यादव- कुर्मी- मुस्लिम और ब्राह्मण। जबकि कांग्रेस ब्राह्मण- दलित- मुस्लिम और ओबीसी का हुआ तब का जो भाजपा सपा के साथ नहीं है उसे अपनी ओर खींचने में जुटी है।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> उधर, भाजपा के सूत्र बताते हैं कि विपक्षी जिस तरह ब्राह्मणों को लेकर कूद रही है उसे देखते हुए चिंता बढ़ रही है और यही कारण है अभी तक वहां संगठनात्मक बदलाव नहीं लाया गया। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> एक बार फिर यहां अल बरूनी की चर्चा जरूरी है। उसने लिखा है कि “भारतीय सार्वजनिक बहस में दो बातें एक साथ दिखती हैं पहली उसमें विजय भाव और दूसरा अवसाद।”यहां अगर बारीकी से देखेंगे तो भूमि पूजन को लेकर एक विजय भाव है तो धर्मनिरपेक्षता की पराजय अवसाद भी है। कुछ लोग कहते हैं जिसमें समाजवादी और वामपंथी बुद्धिजीवी हैं शामिल है भारत में धर्मनिरपेक्षता समाप्त हो रही है और इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। इन दिनों एक नया शब्द सामने आया है वह है संविधानिक धर्मनिरपेक्षता। यहां इसके दो पक्ष देखते हैं पहला सभी धर्म के प्रति सम्मान और दूसरा अपने धर्म का अनुसरण। यहां धर्म विरोध की कोई बात नहीं है और हो भी नहीं सकती है खास करके भारत जैसे देश में जहां सारे समुदाय यहीं की मिट्टी से पनपे हैं वहां कट्टर धर्म विरोधी बात हो ही नहीं सकती। एक तरफ जहां राहत इंदौरी यह कह कर इस दुनिया से चले गए कि “ किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ही है” तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर भूमि पूजन समारोह में मुस्लिम समुदाय के एक नेता को बुलाकर बता दिया कि वह किसी धर्म के विरुद्ध नहीं हैं। सबसे बड़ा दुखद अध्याय है कि इन दिनों धर्म का विरोध या समर्थन राजनीति के चश्मे को पहन कर किया जाता है और उसे लेकर तरह-तरह की बातें होती हैं। अभी जो धर्म की ताजा खिचड़ी पक रही है वह बीरबल की खिचड़ी प्रमाणित हो सकती है। भारत एक ऐसा देश है जहां धर्मनिरपेक्षता की उम्मीद को नहीं छोड़ा जा सकता। बेशक कुछ गैर जिम्मेदार नेता राजनीति के पर्दे के पीछे से वर्तमान राजनीति की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन स्थाई नहीं होगा। भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी खूबी है कि नेतृत्व अपनी बात को समझाने में कितना सफल होता है और लोगों को इस बात पर पूरा भरोसा है कि नरेंद्र मोदी एक ऐसे नेता हैं जो सच को या सही को सही कहने और गलत को सही करने का दम रखते हैं। धार्मिक राजनीति पर टिका भारत का भविष्य ऐसे ही नेतृत्व की अपेक्षा करता है।</span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-74716763296229517442020-08-14T20:36:00.001-07:002020-08-14T20:36:24.215-07:00राजस्थान की सियासी जंग फिलहाल थमी<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;"> राजस्थान की सियासी जंग फिलहाल थमी</span></p><span id="docs-internal-guid-eb7b6cd6-7fff-ec73-0857-a801e7106cdf"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> सचिन पायलट ने सोमवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की। इस मुलाकात में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी भी मौजूद थीं। इस मुलाकात के बाद सचिन पायलट ने कांग्रेस के हित में काम करने को कहा है। जानकार बताते हैं कि पायलट ने पार्टी से बगावत इसलिए की थी कि उन्हें मुख्यमंत्री पद चाहिए था। इस दौरान बहुत अफवाहें उड़ीं और यह भी कहा जाने लगा कि पायलट भाजपा में शामिल होना चाहते हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब राहुल और प्रियंका के मुलाकात के बाद पायलट का कहना है कि वह किसी पद के लोभी नहीं हैं। पार्टी ने यदि पद दिया है वापस भी ले सकती है। उन्हें अपना स्वाभिमान बचाए रखना था। हालांकि, पायलट ने नहीं बताया किस बात से उनके स्वाभिमान को आघात लगा था। पायलट ने कहा कि वह पिछले दो दशक से पार्टी में काम कर रहे हैं और हरदम उनकी कोशिश रही है कि वे उन लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करें जिन्होंने सरकार बनाने में काफी मेहनत की है। सचिन पायलट ने कहा कि कई चीजें ऐसी थी जो सिद्धांतों पर आधारित थीं और उन्हें पार्टी फोरम पर उठाया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस मुलाकात के बाद पायलट ने अपने समर्थक विधायकों के साथ प्रियंका गांधी से भी मुलाकात की। हालांकि, राहुल गांधी से मुलाकात के दरमियान प्रियंका मौजूद थीं पर यह मुलाकात उनसे अलग से हुई । पायलट के साथ जो विधायक थे उसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल शामिल थे। इन मुलाकातों के बाद कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि सचिन पायलट ने खुलकर अपनी बात कहीं और संकल्प जताया कि राजस्थान में वह कांग्रेस के हित में काम करेंगे। सोनिया गांधी ने पूरी बात सुनने के बाद एक 3 सदस्यीय समितिका गठन किया जो इनकी बात सुनने के बाद शिकायतों का निपटारा कर पूरे विवाद का हल निकालेगी। इस समिति में अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल और प्रियंका गांधी शामिल हैं। 14 अगस्त को शुरू होने वाले राजस्थान विधानसभा सत्र से पहले सचिन पायलट की मुलाकात एक सकारात्मक संदेश और उम्मीद की जा सकती है पार्टी के भीतर का यह विवाद फिलहाल खत्म हो गया।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> जब विवाद आरंभ हुआ था राजस्थान के सियासी माहौल में बेहद तनाव था। पायलट न जाने किस कारण इतने खफा हो गए थे कि अपने समर्थक 18 विधायकों को लेकर बाहर निकल आए। उनकी इस कार्रवाई के बाद उनका पद ले लिया गया।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> पायलट की खुली बगावत चारों तरफ बातें होने लगीं थीं कि कांग्रेस नेतृत्व एक कमान भी भी होती जा रही है। पंजाब से हरियाणा तक हिमाचल प्रदेश से छत्तीसगढ़ तक पार्टी में असंतोष पनप रहा है और नेता राज्य नेतृत्व को खुली चुनौती दे रहे हैं कि वे पार्टी से अलग हो जाएंगे। लेकिन यह कोई बता नहीं पा रहा था कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? कुछ लोग अपनी बात करने से हिचक रहे थे। पार्टी के पूर्व प्रवक्ता संजय झा ने कहा था कि इन दिनों पार्टी में प्रतिभाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है तो कुछ लोग कमजोर नेतृत्व को दोषी बना रहे थे। संजय झा ने सोमवार को कहा कि वे सचिन पायलट का समर्थन करते हैं। उन्होंने कुछ आंकड़े पेश किए थे इसमें कहा गया था 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 163 सीटें मिली थी और कांग्रेस को महज 21। 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक सौ सीटें मिली जबकि भाजपा को 73। यह सचिन पायलट का ही करिश्मा था लेकिन मुख्यमंत्री किसे बनाया गया यह सब जानते हैंं। सचिन पायलट की बगावत की कोशिश को नाकाम होने के प्रमुख कारणों में से एक है कि राजस्थान की सबसे कद्दावर नेता वसुंधरा राजे ने कथित तौर पर कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए विधायकों के साथ योजना बनाने से इंकार कर दिया। अब भाजपा उनके बगैर बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकती थी। राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां क्षेत्रीय नेताओं का वर्चस्व केंद्रीय नेताओं के मुकाबले ज्यादा है। यही नहीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से पायलट को हमेशा परेशान किए रखा। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> कांग्रेस पार्टी में सुलह के आसार तो उसी दिन दिखने लगे थे जब शनिवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि अगर हाईकमान बागियों को माफ कर देगा तो वह उन्हें वापस ले लेंगे। इसके पहले फिजां दूसरी थी। गहलोत ने ही पायलट को निकम्मा कहा था। अब वह कह रहे हैं कि अगर हाईकमान पायलट और उनके साथियों को क्षमा कर देता है वापस लेने में कोई दिक्कत नहीं है।यही नहीं, निलंबित विधायक भंवर लाल शर्मा ने सोमवार की शाम गहलोत से मुलाकात की और कहा कि वे सीएम के साथ हैं। सचिन पायलट की घर वापसी के बाद सोमवार को कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह संभवत भाजपा के और लोकतांत्रिक चेहरे पर सीधा तमाचा है।</span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">14 अगस्त से विधानसभा का सत्र आरंभ होने वाला है और अटकलें हैं कि गहलोत को विश्वास मत में बहुमत हासिल नहीं होगा 200 सदस्यों वाली विधानसभा में गहलोत के 100 सदस्यों में 19 पायलट के साथ निकल गए। बाकी बचे 81 सदस्य। अगर भाजपा कांग्रेस के बागी सदस्यों को समर्थन दे देती है तो मामला गड़बड़ हो सकता है। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> लेकिन सोमवार के मुलाकात के बाद लगता है सुलह हो गई क्योंकि नेताओं के वक्तव्य के मुहावरे बदलते नजर आ रहे हैं। पायलट को निकम्मा कहने वाले गहलोत अब यह कहते सुने जा रहे हैं कि उन्हें किसी से कोई झगड़ा नहीं है लोकतंत्र में आदर्श, नीतियां और कार्यक्रम को लेकर मतभेद तो होते ही हैं इसका मतलब सरकार थोड़ी गिरा दिया जाना है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा है कि उनकी सरकार को गिराने का प्रयास छोड़ दें। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> पायलट ने उनके मामले पर विचार के आश्वासन के लिए कांग्रेस हाईकमान को धन्यवाद दिया है। विधायकों ने कहा है कि गहलोत को भी उनका और उनके काम का सम्मान करना चाहिए। इन सब बातों के बाद कांग्रेस विधायक रिसोर्ट में ठहराए गए थे उन्हें जयपुर वापस आने के लिए कहा गया है।</span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-20726923251624028292020-08-14T20:34:00.002-07:002020-08-14T20:34:34.566-07:00 तस्माद्युध्यस्व भारत<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">तस्माद्युध्यस्व भारत</span></p><span id="docs-internal-guid-e1c08d6f-7fff-fb8a-8d55-b5121c431e51"><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">आज जन्माष्टमी है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म इसी दिन हुआ था। विश्व इतिहास में शायद कोई ऐसी घटना दर्ज नहीं है जिसमें किसी देश में 1 सप्ताह में भारत के जो ऐसे दिव्य पुरुषों को स्मरण किया गया हो जैसा हमारे देश में हुआ अब से हफ्ता भी नहीं पूरा हुआ होगा राम मंदिर के भूमि पूजन को समाप्त हुए। अयोध्या में राम का जो भजन था उसकी गूंज अभी तक हवाओं में कायम है और अब जय श्री कृष्ण के नाम से मृदंग पर थाप पड़ने लगी। अगर राम हमारे देश में आदर्श पुरुष हैं तो कृष्ण योगेश्वर। राम का जन्म जब हुआ एक प्रश्न घूमता रहा कि आखिर राम का जन्म क्यों हुआ? द्वापर से घूमता यह प्रश्न त्रेता में पहुंचा और महाभारत के युद्ध में दोनों सेनाओं के बीच खड़े होकर कृष्ण ने इसका उत्तर दिया- विनाशाय च दुष्कृताम्….।कैसी समानता है कि राम का जब राज्य अभिषेक होने वाला था तो उन्हें बनवास मिला और कृष्ण ने जब जन्म लिया तो उन्हें अपना घर छोड़ दूसरे के यहां जाना पड़ा ।लेकिन दोनों भारत की कृषि संस्कृति के बीच पले बढ़े। कह सकते हैं कि जन के बीच कृष्ण पले और बढ़े। यही कारण है कि कान्हा से द्वारकाधीश होने के बावजूद उन्होंने किसी को विस्मृत नहीं किया। कृष्ण का यह जीवन आज के नेताओं के लिए स्वयं में एक सबक है यह एक आदर्श नहीं है यानी कोई सिद्धांत नहीं है, यह एक यथार्थ है। राजा और राजधर्म की अभिव्यंजना जिस यथार्थ के संदर्भ में हुई है उसमें मानव मात्र की सुरक्षा और कर्म परायणता के लिए अर्थ आवश्यक है। आधुनिक युग में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके उदाहरण हैं। क्योंकि, लोक जीवन में आर्थिक आग्रह के साथ जीवन प्रक्रिया में बदलाव आता है आता है फलस्वरूप जीवन दर्शन बदल जाता है। उपनिषदों में भोग हीन दर्शन के बावजूद उत्पादन और उपभोग की परंपरा चलती रही। मानव जीवन आदि से अब तक विकास मान है इसलिए वह ऐतिहासिक है। इतिहास में व्यक्ति और समाज की भूमिका समान रूप से होती है। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं होता। मानव विकास के इतिहास में व्यक्ति और समाज दोनों का समान रूप से प्राधान्य होता है और उनमें से किसी एक को भी प्राथमिक नहीं कहा जा सकता। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> कृष्ण के साथ या कहें राम के साथ सबसे बड़ा अनूठापन यह है कि ये हुए थे तो अतीत में लेकिन वह अतीत व्यतीत नहीं था वह आज भी और भविष्य में भी भारत के और उसकी सभ्यता संस्कृति में स्पंदित होते रहेंगे। भविष्य में ही शायद ऐसा हो पाएगा कि हम कृष्ण को समझ पाएं। यहीं आकर राम और कृष्ण के व्यक्तित्व विभाजित हो जाते हैं। कृष्णा एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की ऊंचाइयों और गहराइयों पर भी होकर गंभीर नहीं हैं, हंसते हैं गाते हैं। अतीत का सारा धर्म चाहे वह राम हों या कोई और सब दुख वादी रहा है। अतीत का समस्त धर्म उदास और आंसुओं से भरा था। यहां तक कि आधुनिक युग के देवता माने जाने वाले जीसस के बारे में कहा जाता है ऐसे ही नहीं। जीसस का उदास चेहरा और सूली पर लटका उनका शरीर दुखों को बहुत आकर्षित करता है। सभी धर्मों में जीवन को दो हिस्सों में बांट दिया है एक वह जिसे स्वीकार किया जा सके और दूसरा जिसे इनकार किया जा सके। कृष्ण अकेले समग्र जीवन को स्वीकार कर लेते हैं। राम भी परमात्मा के अंश लेकिन कृष्ण संपूर्ण परमात्मा हैं। कृष्ण ने सब कुछ आत्मसात कर लिया। यदि हम कृष्ण को भुला देते हैं तो अल्बर्ट श्वेतजर की बात सही हो जाती है कि भारतीय धर्म लाइफ नेगेटिव है। लेकिन कृष्ण के साथ ऐसा नहीं है। वह नेगेटिविटी से नकारात्मकता से युद्ध की घोषणा करते हैं और कुरुक्षेत्र में स्पष्ट शब्दों में अर्जुन को कहते हैं - तस्माद्युध्यस्व भारत।अल्बर्ट श्वेतजर शायद कृष्ण को समझा ही नहीं। कृष्ण के बाद शायद कोई ऐसा हुआ नहीं जो हर बात में हंसता हो। अतीत में कोई हंसता हुआ जन्म लेता है और उसके बाद धर्म नकारात्मक हो जाता है यानी हो सकता है भविष्य में धर्म हंसना सिखाये। फ्रायड के पहले की दुनिया वह फ्रायड के पश्चात नहीं हो सकती। एक बहुत बड़ी क्रांति हो गई और मनुष्य की चेतना में दरार पड़ गई। भारत के देवता राम और कृष्ण पुरुष होकर भी स्त्रियों से पलायन नहीं करते। परमात्मा का अनुभव करते हुए भी बुद्ध का सामर्थ्य रखते हैं। अहिंसक चित्त है उनका फिर भी युद्ध के दावानल में उतर जाने का सामर्थ्य रखते हैं। आधुनिक युग में गांधी गीता को माता कहते थे लेकिन गीता को अपने भीतर आत्मसात नहीं कर पाए क्योंकि गांधी की अहिंसा युद्ध की संभावनाओं को इंकार कर देती थी। यहां गौर करने की बात है श्री राम के जीवन को हम चरित्र कहते थे लेकिन कृष्ण का जीवन लीला मय था। कृष्ण मानव चेतना की संपूर्णता के प्रतीक हैं उनके संपूर्ण व्यक्तित्व का तरल प्रतिबिंब।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> <b>जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नेत्ति मामोति सो अर्जुन</b></span></p><br /></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-20423787925591512242020-08-14T20:32:00.001-07:002020-08-14T20:32:13.744-07:00महामारी के दौर में दुष्प्रचार<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">महामारी के दौर में दुष्प्रचार</span></p><span id="docs-internal-guid-cf70c3ea-7fff-0298-2378-902081d8d503"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> सोशल मीडिया के जमाने में बड़ी अजीब स्थिति हो गई है। इसे इस्तेमाल करने वाला आदमी कुछ ऐसा लगता है जैसे आईने के महल में खड़ा हो। हर कोण से अलग-अलग मुद्राओं में दिखने वाला बिंब। ऐसे में यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कौन सही है और कौन गलत। इस सोशल मीडिया के जमाने में कुछ ऐसा ही है। यह पता लगाना बड़ा कठिन है कि कौन सी खबर सही है और कौन सी गलत। लेकिन यहां मुख्य समस्या जरिया नहीं है समस्या है वह वजह जिसके चलते कुछ लोग अपने घृणित इरादे के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। यह महामारी अपना अलग ब्रांड लेकर आई है। इसमें साजिश का सिद्धांत रखने वाले लोगों से लेकर सरकार की कार्रवाई दूसरे एजेंडे में शामिल है। जरा पीछे लौटें। जब यह महामारी शुरू हुई थी तो चीन और रूस में इसे अमेरिका के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया। उन्होंने लोगों के बीच यह संदेह है फैलाना शुरू किया कि अमेरिका इससे नहीं निपट पाएगा। रूस समर्थक वेबसाइट ने डर फैलाने के लिए साजिश का सिद्धांत रचा और उसे चारों तरफ प्रसारित करना शुरू कर दिया। चीन ने तो इसके लिए सरकारी सोशल मीडिया का उपयोग आरंभ कर दिया। पिछले महीने यूरोप एक बहुत बड़ी रिपोर्ट को साझा किया था जिसके तहत यह बताने की कोशिश की गई थी फर्जी खबरों के लिए जिम्मेदार हैं। इस रिपोर्ट में कहां गया था कि कुछ विदेशी और कुछ दूसरे देश कोविड-19 को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं और जनता को प्रभावित करने के अभियान में लगे हुए हैं। यूरोपियन यूनियन ने इस एपिसोड में पहली बार चीन का नाम लिया। उसका कहना है इसके लिए उसके पास पर्याप्त सबूत हैं। क्या सबूत हैं यह तो वही जाने लेकिन पिछले 1 महीने से यूरोपियन यूनियन और चीन में नूरा कुश्ती चल रही है। हालांकि पिछले बुधवार को यूरोपियन यूनियन के विदेश ने की प्रमुख जोसेफ बोरेल चीन के विदेश मंत्री से कहा कि यूनियन उससे शीत युद्ध करने जा रहा है। हालांकि, बाद में यूनियन ने कहा हर मामले में उनका प्रतिद्वंदी है लेकिन फिलहाल युद्ध का खतरा नहीं है। दुष्प्रचार के खिलाफ लड़ाई चल रही है और यूरोपियन यूनियन उस लड़ाई के लिए संसाधन मुहैया कराने के लिए। लेकिन यदि केवल चीन के लिए नहीं और ना ही चीन से जुड़ी वस्तु है। रूस खेल का पुराना खिलाड़ी है। जमाने में एक नया शब्द याद किया गया था-डेजइन्फोर्मेटसिया। यह दरअसल यूरोपियन यूनियन के खिलाफ रूस का अभियान था। इससे लड़ने के लिए यूरोपियन यूनियन की राजनीतिक सेवा यूरोपियन एक्सटर्नल एक्शन सर्विस (ईईएएस) का गठन किया गया था। अब इस सर्विस के भीतर इस्ट स्ट्रेटकाॅमफोर्स का गठन किया गया जो कोविड-19 से जुड़ी गलत जानकारी प्रसारित करने के अभियान पर नजर रखे हुए है। अमेरिका चीन के संदर्भ में गलत जानकारी कहीं ज्यादा जहर भरी है। कोविड-19 के शुरुआती दिनों में अमरीका के लाखों लोगों के पास सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी भेजी गई कि ट्रंप प्रशासन वहां मार्शल लाॅ लगाने की तैयारी में है। बात तो यहां तक फैलाई गई यह महामारी अमेरिका से शुरू हुई थी। टि्वटर ऐसी जानकारियों की बाढ़ आ गई थी। अंत में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को इस बात का खंडन करना पड़ा यह सारी जानकारियां गलत हैं और संदेश फर्जी हैं।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार बड़ी संख्या में संदिग्ध टि्वटर हैंडल बड़ी संख्या में चेन्नई और समाचार संगठनों के टि्वट को रिट्वीट करने में लगे हैं। कुछ तो ऐसा कर रहा है मानो शेयरिंग प्लेटफॉर्म नहीं लाउडस्पीकर का इस्तेमाल हो रहा है। एक तिहाई टि्वटर हैंडल 15 महीनों में सामने आए। अमेरिका के खिलाफ यह भयानक सूचना युद्ध अमेरिका को विशेषकर डॉनल्ड ट्रंप को बदनाम करना है और उसकी क्षमता को कम करना है। गलत स्वास्थ सूचना और दुष्प्रचार का यह संगठित अभियान चला दी जाने का मकसद यह है के इस महामारी की तरफ से लोगों का ध्यान हट जाए और बार-बार चीन का नाम ना आए। इतना ही नहीं विदेशों में खुद की छवि मजबूत कर ले चीन। लेकिन यह दुष्प्रचार एक तरफा नहीं है। पॉलीटिको एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप सरकार ने भी इसका इस्तेमाल करने में कसम नहीं उठा रखा है। गलत जानकारी या दुष्प्रचार उतना ही पुराना है जितना पुराना हमारा इतिहास है हां इसमें नई चीज यह है कि मोबाइल फोन और सोशल मीडिया सॉफ्टवेयर के रूप में तकनीकी आ जाने के कारण इसका प्रसार तेजी से हो रहा है।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> भारत में ही देखें तो सामाजिक विखंडन को लेकर कितनी तरह की बातें हैं उठ रही हैं। कई जगह इसका उपयोग सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने के लिए तो कई जगह इसे धार्मिक प्रचार के लिए उपयोग किया जा रहा है। राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर एक तरफ धार्मिकता का ज्वार पैदा करने की कोशिश की गई दूसरी तरफ छद्म उदारवाद के नाम से इसके खिलाफ धार्मिक उपनिवेशवाद फैलाने की बात कहीं गई। कहीं नहीं इन खबरों से या कहें इन सूचनाओं से प्रभावित तो होते ही हैं। ऐसी अभिक्रिया में हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक पूर्व ग्रह को नकारात्मक दिशा की ओर बढ़ने का मार्ग मिलता है। इससे निपटना एक बड़ी परियोजना है जिसमें समाज को खुद शिक्षा और जागरूकता के जरिए मुख्य भूमिका निभानी चाहिए। गलत जानकारी बेहद घातक होती है और इस मामले में पहले से ही लहूलुहान हमारे समाज की जीवन पद्धति बदलने लगती है। विश्वसनीय सूचना के प्रवाह को जब बड़वा मिलेगा तो हमारे भीतर दुष्प्रचार के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा होगी। इसलिए जरूरी है दुष्प्रचार पर ध्यान ना दें।</span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-79675848506901279962020-08-14T20:28:00.001-07:002020-08-14T20:28:31.615-07:00एक नया इतिहास लिखा गया<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">एक नया इतिहास लिखा गया</span></p><span id="docs-internal-guid-5e7787ac-7fff-826c-1c6e-19bd6d2d1e68"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया। सदियों पुराना विवाद मिट गया और भारत में भारत के सबसे महान पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम की स्मृति में एक भव्य मंदिर के निर्माण का करोड़ों भारतीयों का सपना पूरा हो गया। राम एक राजकुमार से मर्यादा पुरुषोत्तम बने औरइसके बाद भगवान बन गए। ठीक वैसे ही जैसे पहले कोई व्यक्ति होता है फिर अपने कर्मों से व्यक्तित्व में बदल जाता है और तब विचार बन जाता है। राम के जीवन में कुछ ऐसा ही हुआ। यही कारण है कि राम हजारों वर्षों के बाद भी भारत की आत्मा में जीवित हैं और उनका एक मूर्तिमान स्वरूप सबके सामने मौजूद है। राम केवल हिंदुओं के नहीं थे वह संपूर्ण भारत के थे इसी लिए कबीर से लेकर शमशी मिनाई तक ने राम पर कुछ न कुछ कहा है। एक तरफ जहां अल्लामा इकबाल राम को इमाम ए हिंद की संज्ञा देते हैं वही उसी के समानांतर शमशी ने कहा है मेरी हिम्मत कहां है श्री राम पर लिखूं कुछ, बाल्मीकि तुलसी ने छोड़ा नहीं कुछ। इसका अर्थ है हर कालखंड में राम पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं। राम के बारे में बुधवार को मोदी ने श्री राम सबके हैं और भूमि पूजन के माध्यम से एक नवीन इतिहास की रचना हो रही है। कुछ धर्मनिरपेक्ष वादियों ने राम के बारे में सुनने के बाद हिंदू धार्मिक चश्मे से इसकी व्याख्या करनी आरंभ कर दी। यह नहीं सोचा कि अगर राम की तरह या उनके द्वारा अनुसरण किए गए मार्गों को अपना लिया जाए तो यह दुनिया कितनी खूबसूरत हो जाएगी। आज हम आतंकवाद और अलगाववाद से त्रस्त हैं और ठीक यही हालत उस काल में भी हुई थी जब राम को राज्य अभिषेक छोड़कर वन जाना पड़ा था। राह में विभिन्न प्रकार के राक्षस जो रावण द्वारा प्रेषित थे। राम ने उन्हें सजा तो दी पर मारा नहीं। क्योंकि यह सब आधुनिक आतंकवाद के स्लीपर सेल थे और उन के माध्यम से उनके प्रमुख तक स्पष्ट संदेश पहुंचाने का यही तरीका था। इतना ही नहीं अयोध्या जाते समय और अयोध्या से वन जाते समय दोनों यात्राओं में राम ने जो सबसे बड़ा काम किया हुआ था भारतवर्ष की एकात्मता का काम। उन्होंने इन यात्राओं में मित्र बनाने का भी काम किया और मित्रता की परिभाषा भी गढ़ी। तुलसीदास ने मानस में लिखा है जे न होइहें देख दुख मित्र दुखारी , तेहि विलोकत पातक भारी।राम पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संपूर्ण भारत को जोड़ा। राम पहले व्यक्ति जिन्होंने इस पूरे भारत को आतातायी सोच के खिलाफ खड़ा किया। अंगद ने आतंकवाद और आतातायी सोच को त्यागने के लिए रावण के दरबार में जब रावण को समझाना चाहा कि वह श्रीराम से जीत नहीं सकता, रावण ने कहा था वह अधनंगा सन्यासी क्या मुझे पराजित करेगा? और रावण का क्या हुआ या किसी को बताने की जरूरत नहीं है। आज भी जब हम रामलीला देखने जाते हैं या रावण दहन देखने जाते हैं तो चर्चा होती है कि फलां रावण इतना ऊंचा था। कभी कोई राम के कद के बारे में चर्चा नहीं करता। इसका अर्थ राम ने कभी किसी को आतंकित नहीं किया, सदा आकर्षित किया इसीलिए वह विचार बन गए और रावण अहंकार का प्रतीक। हर वर्ष उसे जलाया जाता है पर राम हर वक्त याद किए जाते हैं। राम जीवन में कभी कोई चमत्कार नहीं दिखा जो कुछ था वह स्वअर्जित था।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> भूमि पूजन के लिए अयोध्या गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों से कुछ ऐसा ही झलक रहा था। उन्होंने इस बात का खंडन किया कि कई इतिहासकारों ने राम को सत्य नहीं कथा माना है और इसी के आलोक में मंदिर निर्माण को गलत बताया है। प्रधानमंत्री ने कहा यह विचार ही गलत हैं, यह संकल्पना भ्रमित है। राम जन्मभूमि के लिए यह भूमि पूजन भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। यह हमारे आंतरिक विश्वास का और हमारी संस्कृति का मूर्तिमान स्वरूप जिसमें भारत की संकल्पना ही नहीं भारत के प्रति भक्ति भी परिलक्षित होती है यह हमारी राष्ट्रीय भावनाओं को ,हमारी संस्कृति और सभ्यता को तथा करोड़ों राम भक्तों को प्रेरित करता है। जिस तरह सामूहिक समर्थन से महात्मा गांधी जी आजादी की लड़ाई की लोै जलाई उसी तरह आज का यह दिन जनता के सामने समर्थन के बगैर संभव नहीं था। आम जनता ने जिस तरह राम जन्मभूमि मंदिर के लिए संघर्ष किया यह शोध का विषय है। फिलहाल जितना महसूस होता है उसके अनुसार राम समस्त देशवासियों के अवचेतन में मौजूद हैं। इसके बावजूद हमारे समाज के जो विश्व में कभी-कभी इसी मसले को लेकर टकराव हो जाता है। नरेंद्र मोदी ने 2020 में जो सबसे बड़ा काम किया क्या कह सकते हैं इतिहासिक काम किया वह था श्री राम के विरोधाभासी रूपों को समाप्त कर एक रूप में डालने का प्रयास वरना हमारी नई पीढ़ी राम को कैसे देखती यह कहना बड़ा मुश्किल है। नई पीढ़ी राम को कैसे समझती श्रद्धा धर्म भक्ति और साहित्य से लेकरइतिहास और राजनीति तक को एक व्यंजन के रूप में परोसने वाला यह समय हमारी इंस्टैंट पीढ़ी को राम का कौन सा रूप परोसता यह तय नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानवता और विज्ञान के स्वाभाविक विकास के क्रम से इस चिंता को मुक्त कर दिया। नई पीढ़ी जिस राम को जानेगी वह राम अब तुलसी के होंगे। आधुनिक विज्ञान युग की नई पीढ़ियां राम और रहीम जैसे शब्दों ऐतिहासिक आध्यात्मिक और वैज्ञानिक अर्थों तथा सुंदर हो को अपनी वैज्ञानिक अनुभूतियों से अवश्य समझ जाएंगी। बस उसमें एक तात्कालिक अवरोध होगा कि राम के नाम पर कथित राम भक्त और राम विरोधी दोनों अपनी-अपनी राजनीति करते रहने के लोभ को रोक नहीं पाएंगे। भूमि पूजन और वहां आयोजित समारोह के माध्यम से नरेंद्र मोदी ने इस विवाद को समाप्त कर दिया और बता दिया कि राम क्या हैं। इसीलिए कहा जा रहा है कि बुधवार को एक नया इतिहास लिखा गया जिसमें इन विवादों को समाप्त करने का संदेश है। </span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-50510742760563602642020-08-14T20:25:00.002-07:002020-08-14T20:25:47.690-07:00आज ही कटी थी बेड़ियां<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">आज ही कटी थी बेड़ियां</span></p><span id="docs-internal-guid-b4f6920e-7fff-f217-e170-766e6ec3c4ef"><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b>यह जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई</b></span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">अब से ठीक 1 वर्ष पहले भारत के जिगर में रिसते हुए एक जख्म का सफल उपचार हुआ और हमारे देश के भीतर कायम एक “देश” मिट गया, बेड़ियां कट गईं । भारत के स्वायत्त राष्ट्र सत्ता पर लगाए गये प्रतिबंध समाप्त हो गये। भारतीय मानस जो पहले खुद को अपने भीतर महसूस करता था वह राष्ट्रीय अस्मिता और स्वचेतना एहसास को समझने लगा। स्वचेतना का भाव इसमें सबसे महत्वपूर्ण था। आजादी के बाद का भारतीय का सबसे बड़ा दर्द खत्म हो गया। तत्कालीन नेताओं ने 1947 में जब भारत के बंटवारे पर दस्तखत किए उसी वक्त यह गलती हो गई। इसके पीछे क्या कारण थे वह एक अलग इतिहास है लेकिन आजादी के दौरान एक छोटी सी चूक ने पिछले सात दशक तक हमारे देश के स्वाभिमान और गौरव को खंडित करने की कोशिश की। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> <b>कुछ पन्ने इतिहास के</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> मेरे मुल्क के सीने में शमशीर हो गए</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> जो लड़े, जो मरे वह शहीद हो गए</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> जो डरे जो झुके वह वजीर हो गए</b></span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> लेकिन, आज के दिन ही 2019 में नरेंद्र मोदी ने इस दाग को मिटा दिया। कश्मीर पर लगे अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया। इसका संपूर्ण श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। एक देश में दो ध्वज दो कानून और दो तरह की सुविधाएं हमारे भीतरी अहं को उस समय बुरी तरह आघात पहुंचाता था जब केसर की क्यारियों में भारतीय सैनिकों का लहू दिखता था। वह अनुच्छेद सरकार ने हटा दिए। उसे लेकर आरंभ में कुछ विवाद हुआ लेकिन फिर सब कुछ ठीक हो गया। जब से देश आजाद हुआ तब से यह सरकार और देशवासियों चिंता का विषय रहा है। आजादी के बाद जम्मू कश्मीर के भारतीय संघ में विजय के समय कुछ अस्थाई तथा संक्रमण कालीन प्रावधान किए गए थे। इन प्रावधानों अंतर्गत जम्मू कश्मीर अन्य राज्यों की तुलना में अस्थाई सही अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई थी। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सबसे पहले इसका जोरदार ढंग से विरोध किया। पिछले वर्ष मोदी जी की सरकार इन अस्थाई प्रावधानों को समाप्त कर दिया। इसके बाद 31 मार्च 2020 को सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर राज्य के विधि का अनुकूलन कर दिया। नई अधिसूचना के फलस्वरूप वहां कुछ कानूनों में संशोधन हुआ और अस्थाई निवासी शब्द की जगह अधिवासी शब्द कर दिया गया। अब इसके फलस्वरूप कश्मीर में पढ़ने वाले हजारों भारतीय छात्र वहां की सरकारी सेवा में आ सकते हैं। यही नहीं इस नए संशोधन से बहुत से अन्य लोगों को भी लाभ होगा जैसे 1957 में पंजाब से लाकर बताए गए वाल्मीकि समुदाय की हजारों लोग जो अभी तक सफाई कर्मचारी के रूप में वहां काम कर रहे थे अब वह भारत के शेष भाग की तरह कश्मीर की सरकारी सेवा में भी शामिल हो सकते हैं क्योंकि अधिवासी की परिभाषा यह बनाई गई जो लोग वहां 15 वर्षों से रह रहे हैं वे अधिवासी हैं। यही नहीं इस नई नीति के अंतर्गत पश्चिमी पाकिस्तान से उजाड़े और खदेड़े गए लोगों को भी राहत मिलेगी यही नहीं 1990 में कश्मीर घाटी से भगाए गए पंडितों के जख्म पर भी मरहम लगेगा। इतना ही नहीं अब जम्मू कश्मीर से बाहर विवाह करने वाली लड़कियों और उनके बच्चों के अधिकारों की भी हिफाजत हो सकती है। लड़कियों को मनचाही शिक्षा आजादी मिल गई है। अब कुछ लोग अफवाह फैला रहे हैं कि इसके माध्यम से जनसांख्यिकी को बदलने की कोशिश की गई है। यह कथन बेमानी है। एक देश के लोगों को अपने देश के किसी भी भाग में बस में और वहां रोजगार करने का अधिकार है।अब यह बात समझ से परे है एक ही देश के लोग अपने ही देश में पैसे बाहर हो गए। आज देश के कोने-कोने से आकर लोग कश्मीर में सेवा कर रहे हैं। कश्मीर के कई उद्योग और निर्माण कार्य इन्हीं प्रवासियों पर निर्भर हैं। यानी कह सकते हैं कि जम्मू कश्मीर के विकास में गति देने में इन प्रवासियों की बहुत बड़ी भूमिका है। अब जो लोग अपना जीवन और उसका सर्वोत्तम भाग वहां लगा रहे हैं तो क्या वे अपना अधिकार नहीं मांग सकते? अब अधिकार की मांग को कोई जनसांख्यिकी परिवर्तन का सिलसिला कहे तो उसे देशद्रोही कहा जा सकता है। वहां सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है वह है की प्रशासन के अन्याय के खिलाफ जनता के पक्ष में आवाज उठाया जाना अब देशद्रोह नहीं कहा जाएगा। यह कहा जा सकता है कि इस नई व्यवस्था ने लोगों में यह भाव भर दिया एक कानून के सब बराबर चाहे वह किसी भी जाति का हो चाहे वह किसी भी समुदाय क्षेत्र या धर्म का हो। सब बराबर हैं। नया परिवर्तन लैंगिक भेदभाव को खत्म करने वाला है। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का सबसे बड़ा लाभ वहां के सामाजिक मनोविज्ञान पर पड़ा। लोग आशावादी होने लगे। जिन हाथों में लैपटॉप होना चाहिए था वह हाथ बंदूके पकड़ने लगे तो परिवार को तो ग्लानि होती ही है। कभी इसे स्वर्ग की संज्ञा देने वाले बोल बीच में गुम हो गए थे। अब फिर से कहा जाने लगा</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> <b>अगर बर रूए जमीं अस्त</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> हमीं अस्त, हमीं अस्त</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> इसका मतलब है किस सोच में परिवर्तन हो गया यह उम्मीद करने लगे कि विकास होगा।पर्यटन जो पहले भय दायक हुआ करता था अब आनंदित करने लगा। लेकिन इसके संपूर्ण आनंद और भय हीनता के लिए जरूरी है यहां से आतंकवाद समाप्त हो जाए और कश्मीरी पंडितों की संपत्ति उन्हें हासिल हो जाए। धारा 35ए और 370 को हटाए जाने के फलस्वरूप गिलगित तथा बालटिस्तान के लोगों में जो पाकिस्तान और चीन के जुल्म को सहने के लिए बाध्य थे उनमें भी आशा का संचार हुआ है। जम्मू कश्मीर और लद्दाख प्रथा अन्य क्षेत्रों के लोग इस बात की प्रतीक्षा में है कि कब संपूर्ण अधिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा बन जाए। जो लोग इसे यानी इस भावना को ज्यादती समझते और मानवाधिकार का हनन समझते हैं वे खुद में देशद्रोही हैं। वह देश को बांटना चाहते हैं।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> ब<b>हती है अमन की गंगा बहने दो,</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> मत फैलाओ देश में दंगा अमन चैन रहने दो</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> लाल हरे रंग में न बांटो हमको</b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b> मेरे छत पर एक तिरंगा रहने दो</b></span></p><br /></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-88145579734822637102020-08-14T20:22:00.001-07:002020-08-14T20:22:23.031-07:00भारत के हिंदू धर्म स्थल विचार हैं <p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">भारत के हिंदू धर्म स्थल विचार हैं </span></p><span id="docs-internal-guid-3ab05dcd-7fff-dc7c-026d-7e2525bc7c80"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> विभिन्न प्रकार की अफवाहों और विरोधी विचारों की ओट में स्थापित विचार को समाप्त करने कोशिश तब से चल रही है जब से मानव सभ्यता है। आधुनिक भारत में दो बड़े परिवर्तन आए पहला भारत का विभाजन और दूसरा 1992 में बाबरी ढांचे को ध्वस्त किया जाना। दोनों परिवर्तनों में एक जटिल संबंध है वह है कि पहला भारत के लिए एक घाव था और बाबरी ढांचा को ढाहा जाना विश्व हिंदू मानस के लिए गौरव का विषय था। 1992 में बाबरी ढांचे को ध्वस्त किए जाने के बाद एक लंबी कानूनी और सामाजिक- वैचारिक लड़ाई चली। बाद में सब कुछ सुलझ गया और भगवान श्री राम का मंदिर बनाने की तैयारी शुरू हो गई। करोड़ों रुपए की लागत से मंदिर बनाने की योजना आरंभ हुई है तथा इसके लिए 5 अगस्त को भूमि पूजन है। इस भूमि पूजन समारोह का श्रेय बहुत से नेता और बहुत से राजनीतिक दल ले सकते हैं लेकिन जो इसमें सबसे महत्वपूर्ण है वह है आम भारतीय हिंदू परिवार। 1990 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी ने मंदिर का आंदोलन आरंभ किया लेकिन इस पूरे आंदोलन में जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है आडवाणी द्वारा हिंदुत्व गौरव की नई परिभाषा गढ़ा जाना। अपनी रथयात्रा के दौरान आडवाणी ने भाषणों में ऐतिहासिक घाव का उल्लेख करते हुए भारतीय हिंदू परिवारों में बाबरी मस्जिद को नफरत का विशेषण बना दिया, या कह सकते हैं कि पर्यायवाची बना दिया। कल यानी 2 अगस्त को विनय तोगड़िया ने कहा कि इस भूमि पूजन समारोह उन परिवारों के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए जिन्होंने अपने बेटे इस आंदोलन में कुर्बान कर दिए थे। उन्हें भी इस का श्रेय मिलना चाहिए। यहां एक अजीब शून्य की रचना होती है। इतिहास शुरू से ही चकाचौंध का मारा हुआ है उसे बेशक उस के माध्यम से सच मालूम होने का दावा किया जाता है लेकिन वास्तविकता नहीं। इतिहास की संरचना सत्ता और समाज के पारस्परिक इंटरेक्शन से होती है। यही कारण है कि साहित्य इतिहास नहीं सकता और इतिहास साहित्य नहीं हो सकता लेकिन दोनों में एक समानता है कि दोनों समाज के दर्पण हैं। 5 अगस्त को हमारे देश में एक विशेष तरह की प्रतिक्रिया होगी। इतिहास अमूर्त सामूहिक स्मृतियों में बदल जाएगा।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> बाबरी ढांचे को ढाने के पहले हिंदू घरों के भीतर, परिवारों के भीतर उसकी बुनियाद को धीरे-धीरे खोखला कर दिया गया। इसका श्रेय सीधे तौर पर लालकृष्ण आडवाणी को जाता है। हिंदुओं की कई पीढ़ियों से बाबरी ढांचे को ऐतिहासिक अपमान माना जाता था। सामूहिक लोक स्मृति को गढ़ने का एक तरीका यह भी है । बाबरी ढांचे को गिराए जाने की यह घटना पहली बार नहीं बल्कि इससे पहले बहुत पहले मौखिक इतिहासों और पारिवारिक चर्चाओं में हुई थी। इसलिए 1992 में यह विध्वंस अचानक नहीं हुआ। आम भारतीय हिंदू परिवारों मेंअयोध्या की चर्चा में इसे कई बार गिराया जा चुका है। 5 अगस्त को जो भूमि पूजन कार्यक्रम होगा उसमें राजनीतिक सितारों की जमघट के अलावा एक विजयी भाव साफ दिखेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को विश्व गुरु बनाने का संकल्प किया है। गौर करने की चीज है कि भारत की संकल्पना अभी भी कायम है जबकि भारत पर न जाने कितने विदेशी आक्रमण हुए। भारत की संकल्पना इसलिए कायम रही क्योंकि इसके मूल में राम थे। आज फिर हमें अवसर मिला है कि हम राम को केवल हिंदुओं का अवतार में बल्कि अन्य धर्मो के साथ भी उसकी क्रियात्मक गति उसकी डायनामिक्स है। यही कारण है कि अयोध्या भी आहिस्ता आहिस्ता विचार बन गई और हो सकता है कि भविष्य में यह भारत में प्रमुख तीर्थ के रूप में गिना जाने लगे। भारत को और भारत की संकल्पना को इस राह पर ले जाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है। उन्होंने धर्म और इतिहास को मूर्तिमान स्वरूप देने का प्रयास किया। मैकाइवर ने लिखा है कि मनुष्य की मानवीय प्रकृति तभी विकसित होती है जब वह सामाजिक मनुष्य होता है और जब अनेक मनुष्यों के साथ एक सामान्य जीवन में भागीदार होता है। समाज की रचना परमाणु रचना की तरह होता है। इसके अंतर्गत हर मनुष्य आकर्षण तथा विकर्षण का अनुभव करता है और उस अनुभव के कारण आपस में आबद्ध रहता है। नरेंद्र मोदी ने मनुष्यता को इस भागीदारी का अवसर दिया।</span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-37717842849610357072020-08-14T20:20:00.000-07:002020-08-14T20:20:07.778-07:00अब लिपुलेख सीमा पर तनाव<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">अब लिपुलेख सीमा पर तनाव</span></p><span id="docs-internal-guid-33a65fcd-7fff-bcf4-3bd3-115b3efb434c"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> चीन ने लिपुलेख सीमा पर फौज तैनात कर दी है और उसे लेकर काफी तनाव है। इधर नेपाल भारत के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है और उसने भारत के 3 क्षेत्रों पर अपना दावा पेश करते हुए एक नए नक्शे को तैयार किया है। इस नक्शे को वहां की संसद ने मंजूरी दे दी है। इसका मतलब हुआ कि नेपाल के अधिकांश राजनीतिक दलों ने उन 3 क्षेत्रों पर नेपाल के अधिकार को मंजूरी दे दी है। नेपाल अब इस नक्शे को राष्ट्र संघ में ले जाने वाला है। यह तो सभी जानते हैं कि सीमा का विवाद चीन की शह पर हो रहा है और इससे स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि राष्ट्र संघ में इस नक्शे को हीन और उसके गुट का समर्थन मिलेगा। नेपाल इसे गूगल को भी भेजने वाला ताकि उसके पुराने नक्शे में वह अपेक्षित सुधार कर ले। यह सारी कोशिशें केवल इसलिए हैं कि नेपाल के दावे को अंतरराष्ट्रीय विवाद का विषय बना दिया जाए। भारत ने इस नक्शे को स्वीकार नहीं किया है और उसका कहना है कि इसका आधार बिना किसी ऐतिहासिक प्रमाण के हैं। नेपाल की सीमा और भारत की सीमा जहां मिलती है वहां पहले से ही समझौता हो चुका है और निशान बताने वाले खंभे लगाए गए हैं जिसमें साफ तौर पर चिन्हित किया गया है कि इसमें किस ओर भारत की सीमा है और किस ओर नेपाल की। नेपाल ने कदम तब उठाया जब भारतीय सीमा पर कैलाश मानसरोवर सड़क बनी जो लिपुलेख होकर गुजरती है। लिपुलेख भारत नेपाल और चीन के 3 मुहाने पर है और वहां से कैलाश मानसरोवर जाना अपेक्षाकृतआसान है। यहां कैलाश मानसरोवर का जिक्र इसलिए किया गया कि चीन की शह पर नेपाल ने पहले राम के जन्म को लेकर भारतीय धार्मिक भावनाओं को भड़काया और अब ठीक उसके समानांतर कैलाश मानसरोवर को सामने रखकर भारतीय धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश की जा रही है। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">यह पूरा विवाद उस समय आरंभ हुआ जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को वीडियो लिंक के जरिए 90 किलोमीटर लंबी इस सड़क का उद्घाटन किया। उन्होंने पिथौरागढ़ से वाहनों का पहला काफिला रवाना किया। सरकार का मानना है इस सड़क से सीमावर्ती गांव सड़कों से जुड़ जाएंगे। हालांकि चीन इस विवाद को द्विपक्षीय मानता है लेकिन और यह कहता है कि दोनों इसे जल्द ही सुलझा लेंगे। लेकिन अगर थोड़ा सा पीछे जाएं तो पता चलेगा इसे देखकर भारत और चीन में पहले से ही विवाद चल रहा है और नेपाल तब से इस पर बोल रहा है। भारत के हजारों तीर्थयात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाते हैं लेकिन सबके पथ अलग-अलग हैं। लिपुलेख सड़क को बनाने के पीछे भारत का यही उद्देश्य है कि मानसरोवर तक पहुंचने में करीब-करीब चार-पांच दिन कम चलना पड़ेगा। नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने सत्ता संभालने के बाद सीमा विवाद पर कई बार भारत से बातें करने की कोशिश की लेकिन अब तक कोई बातचीत नहीं हुई है । नेपाल के नए नक्शे को देखते हुए यह स्पष्ट होता है इससे मामला जटिल होगा। प्रधानमंत्री ओली क्या करना चाहते हैं इसे लेकर कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता है। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है भारत और नेपाल दोनों के पास दो अलग-अलग नक्शे हैं और शायद ही इसका कोई समाधान निकले। यही बात नया नहीं है केवल चीन राजनीतिक भाव समानता के कारण नेपाल के साथ मिलकर भारत को ब्लैकमेल करने के लिए इसका उपयोग कर रहा है। यह विवाद तो उस समय आरंभ हो गया था जब 1816 में ब्रिटिश हुकूमत ने नेपाल पर हमला किया था और नेपाल को अपने कई ईलाके गंवाने पड़े थे। उस समय नेपाल पर वहां के सम्राट की हुकूमत चलती थी। सम्राट के साथ सुगौली में अंग्रेजों से संधि हुई और उसे सिक्किम नैनीताल दार्जिलिंग लिपुलेख काला पानी भारत को देना पड़ा था। 1857 में स्वतंत्रता संग्राम में नेपाल में अंग्रेजों का साथ दिया और अंग्रेजों ने इनाम स्वरूप पूरा तराई का इलाका नेपाल को दे दिया। 1816 की पराजय की पीड़ा गोरखा समुदाय में अभी भी है और इसी का फायदा आज जीनु खा रहा है। जब नेपाल में वामपंथी सत्ता में आए तो चीन ने उनसे नजदीकी बढ़ाना शुरू कर दिया। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी वामपंथी हैं और अपने भारत विरोधी विचारों के लिये नेपाल में मशहूर हैं।नेपाल सरकार ने अपने इन्हीं विचारों के कारण चीन का समर्थन हासिल करना शुरू किया और उसने चीन से सौदा कर लिया और उस सौदे के मुताबिक चीन ने नेपाल को अपना एक पोर्ट उपयोग करने के लिए दे दिया। इसके पहले नेपाल की पहुंच केवल कोलकाता पोर्ट तक ही थी और यहां से नेपाल के लिए आया सामान ट्रकों से जाता था। नेपाल लैंडलॉक्ड यानी जमीन से घिरा मुल्क है और उसे लगा के नेपाल की गोद में जाने से उसकी समस्या का समाधान हो जाएगा। चीन ने उसे अपने चार टोटके उपयोग की अनुमति दे दी। अब नेपाल चीन के बी आर आई प्रोग्राम में भी शामिल हो गया। 3 बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश कर रहा है। आरंभ से माओवादी भारत के विरोधी रहे हैं। यहां भी सियासत पर उन्हीं का कब्जा है और वह कट्टर चीन समर्थक हैं। नेपाल में वहां की पुरानी पार्टी नेपाली कांग्रेस नेपथ्य में चली गई और वामपंथी दल ने नेपाल को मानसिक रूप से दो हिस्सों में बांट दिया- पहाड़ी और मधेसी। मधेसी चूंकि भारत बहुल हैं चीनियों ने पहाड़ी नेपालियों में भारत के खिलाफ नफरत पैदा कर दी। इसी नफरत का फायदा उठा कर ओली चुनाव जीत गए। नेपाल पहले पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र था और अब वहां मुस्लिम समुदाय एक बड़ी आबादी आकर बस गयी है। अब उसी जन भावना का फायदा उठाकर चीन लिपुलेख तक घुस आया है और वहां अपनी फौज तैनात कर दिया है । एक तरफ चीन लगातार कह रहा है लिपुलेख के ट्राई जंक्शन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा कोई बदलाव नहीं किया जाएगा और दूसरी तरफ वह अपनी फौज में खड़ी कर रहा है। इसका मतलब सब समझते हैं।</span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-12078406389791387092020-08-14T20:17:00.003-07:002020-08-14T20:17:59.771-07:00दबाव वाले बिंदुओं पर भारत को खुद को मजबूत करना होगा<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">दबाव वाले बिंदुओं पर भारत को खुद को मजबूत करना होगा</span></p><span id="docs-internal-guid-c2a2ba4d-7fff-cb94-cb35-8654297a5bba"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> भारतीय सेना और चीन की सेना तकनीकी क्षमताओं में अंतर तथा चीन द्वारा बेहतर भौगोलिक नियंत्रण बनाए रहने के लिए आगे बढ़ते कदम उठाने को देखते हुए भारत के लिए एक विवेकपूर्ण रणनीति है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल महीने वाली स्थिति हासिल करने के लिए वार्ताएं जारी रखें। इन वार्ताओं में कूटनीतिक और सैन्य वार्ताएं भी शामिल है। यहां तक कि एक बफर जोन बनाए जाने के साथ यथास्थिति जहां गश्ती, तैनाती या ढांचागत सुविधाएं निर्मित करने की अनुमति नहीं हो वहां भी समझौता करना अव्यवहारिक नहीं कहा जाएगा। इस समर नीति के पीछे एक सरल तर्क है कि चीनियों को किसी तरह थका दिया जाए, क्योंकि यह मोर्चे जिन दुर्गम क्षेत्रों में हैं वहां बहुत लंबे समय तक तैनाती सरल नहीं है। ऐसी स्थिति में जब मौसम बेहद खराब हो और चीन भारत की रणनीति भांप जाए तो खतरा और बढ़ जाता है क्योंकि वह गांव बढ़ा देगा तथा दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र और पैंगोंग त्सो तथा पूर्वोत्तर और पूरब के इलाकों पर कब्जे का प्रयास कर सकता है। इस समर नीति का मुकाबला केवल दबाव से किया जा सकता है। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> यहां यह जानना सबसे जरूरी है जिन क्षेत्रों में चीन ने अतिक्रमण किया है उनका सामरिक महत्व क्या है? सबसे पहले देखें पूर्वी लद्दाख को। इस क्षेत्र का भूगोल अनूठा है। लेह और उससे लगभग 200 किलोमीटर पूरब तक का इलाका बेहद दुर्गम है। मेजर जनरल बीएम कौल ने 1962 की जंग के बाद लिखी अपनी पुस्तक में कहा है कि वहां संकरी घाटियां हैं और उसके चारों तरफ 15000 फुट से ऊंचे पहाड़ हैं। यही हालत श्योक नदी से सटे देपसंग मैदान तक और पैंगोंग त्सो से लगभग 34 किलोमीटर उत्तर तक कायम है। इन इलाकों के आगे तिब्बत का पठार है जहां आकर घाटियां चौड़ी हो जाती हैं और बुनियादी ऊंचाई बढ़कर लगभग 15000 फुट हो जाती हैं। टोही सर्वेक्षणों के बाद वहां तक ट्रैक कर के हाई मोबिलिटी वाहनों से पहुंचा जा सकता है। चूंकि, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अक्सर शांति बनी रहती थी इसलिए वहां एलओसी जैसा बंदोबस्त नहीं किया और केवल आइटीबीपी की निगरानी तथा गश्त की व्यवस्था की गई थी। हालांकि, 3500 किलोमीटर लंबी सरहद पर दुनिया की दो सबसे बड़ी सेना कई बिंदुओं पर एक दूसरे से आंखों में आंखें डाल खड़ी है। दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगने वाले अपने इलाकों मैं हवाई अड्डों और सड़कों के निर्माण के लिए पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। यही नहीं इस इलाके में अन्य सैन्य सुविधाओं का भी आधुनिकीकरण किया जा रहा है। वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी सीमा पर ,जिसे दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय सीमा तो नहीं मानते पर यह जरूर मानते हैं यह लकीर दोनों के बीच है और दोनों को अलग करती है। भारत ने अपने क्षेत्र में सीमा के आसपास जो निर्माण किया है उससे चीन नाराज है। लेकिन, वह खुद अपने तरफ वाले इलाके में कई साल से निर्माण कर रहा है। अब दोनों में से कोई एक देश जब किसी बड़े प्रोजेक्ट को बनाने की घोषणा करता है तो तनाव बढ़ जाता है। क्योंकि वे इसे रणनीतिक बढ़त मानते हैं।दूसरी तरफ अमेरिका का यह मानना है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग शासन यह देखने की कोशिश में है अगर वह भारत और भूटान में घुसपैठ के जरिए उसका विरोध कितना होता है। दूसरी तरफ भारत ने साफ कहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा से अभी पूरी तरह पीछे नहीं हटा है। बुधवार को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना था कि दोनों देशों ने तीन बिंदुओं पर पीछे रखने का काम पूरा कर लिया है और सिर्फ पैंगोंग लेक में पीछे हटना बाकी है। उधर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव का कहना है पीछे हटने का काम पूरा नहीं हुआ है और वहां की शांति प्रभावित नहीं है। इन सारी बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि चीन का इरादा बिल्कुल ठीक नहीं है। इस पूरे क्षेत्र में भारत के कई सुरक्षात्मक और इस क्षेत्र में किसी भी तरह की हलचल से भारत की समर नीतिक गणना गड़बड़ हो सकती है। इसलिए, हम इस बात के लिए तैयार रहें कि जो लड़ना चाहता है वह युद्ध की कीमत भी समझे। आर्थिक विकास और समृद्धि के बाद भी चीन खुद को वैश्विक दृष्टिकोण की सोच से मुक्त नहीं कर पाया है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि चीन विस्तार वादी है। चीन की गतिविधियों और उसका ऐतिहासिक विश्लेषण करने पर यह साफ पता चलता है कि वह जमीन के अपने मोह को छोड़ नहीं पाया है और ना उसकी लालच से मुक्त हो पाया है। यही कारण है कि छोटे-छोटे देशों को पहले कर्ज में फंसाता है और फिर उन्हें अपना कर बना लेता है। नेपाल का उदाहरण हमारे सामने है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और भारतीय क्षेत्र पर चीन का नाजायज दावा चीन के दुष्प्रचार साहित्य के तौर पर पक्षपातपूर्ण इतिहास की रचना की जाती है। 1962 का युद्ध जिन कारणों के चलते हुआ वह युद्ध अभी भी चल रहा है। वह केवल खयालों में खत्म हुआ है दूसरे तक अभी भी जारी है।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> भारत को सबसे पहले इन खयालों से निकलना होगा। हमें भी वहां चीन के बराबर सैनिकों को इकट्ठा करना और हथियारों का भंडारण करना होगा ताकि चीन यह महसूस कर सके कि भारत भी दबाव बनाना जानता है। भारत को इस खेल में और तेज होने की जरूरत है जिसके जरिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर विजय पाई जा सके।हमें अपने भीतर सजा देने की क्षमता भी विकसित करनी होगी केवल सजा देना जरूरी नहीं है। इसके लिए जिन बिंदुओं पर चीन अपनी सेना खड़ी कर रखा है वहां भारत को भी दबाव बनाना पड़ेगा बिना दबाव बनाए वह कुछ नहीं कर सकता।</span></p><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-81048628485299658852020-08-14T20:15:00.000-07:002020-08-14T20:15:35.775-07:00शिक्षा के तौर-तरीकों में बदलाव<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">शिक्षा के तौर-तरीकों में बदलाव</span></p><span id="docs-internal-guid-9b0a5ad7-7fff-0718-0622-6465380eae0d"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">केंद्रीय सूचना मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बुधवार को बताया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल में नई शिक्षा नीति को अनुमति दी है। केंद्र सरकार द्वारा अनुमति मिलने के बाद अब फिर से मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदल दिया गया। अब यह शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जाएगा। अब स्कूली शिक्षा में 1 से लेकर पांचवी क्लास तक की पढ़ाई में क्षेत्र विशेष की मातृभाषा को माध्यम बनाया जाएगा। यानी, हिंदी भाषी प्रदेशों में जो बच्चे पांचवी क्लास तक पढ़ते हैं उन्हें अब हिंदी में शिक्षा लेनी पड़ेगी, बंगाल के बच्चे बांग्ला में और अन्य प्रांतों के बच्चे वहां की स्थानीय भाषा में शिक्षा ग्रहण करेंगे। इसके दो लाभ होंगे । पहला कि जो बच्चे रट्टा मार कर सब याद कर लेते थे उन्हें अब स्किल आधारित शिक्षा की ओर ले जाएगा। यह सुझाव इसरो के पूर्व प्रमुख कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में गठित पैनल ने दिया था। “ ब्रिटिश जमाने में मेकाॅले ने ब्रिटिश पार्लियामेंट में कहा था कि जब तक भारतीय शिक्षा को कमतर नहीं किया जाएगा तब तक भारत पर शासन नहीं किया जा सकता।” उसी रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेजी को बढ़ावा देने और उससे शिक्षा प्राप्त किए लोगों को रोजगार दिए जाने के फलस्वरूप धीरे-धीरे भारतीय भाषाएं और भारतीय शिक्षा खत्म होने लगी तथा अंग्रेजी और अंग्रेजियत को बढ़ावा मिलने लगा। एक जमाने में भारत में शिक्षा पर नहीं सीखने पर जोर था अब धीरे-धीरे वह सीखना खत्म हो गया और डिग्रियां उनकी जगह आ गई। अब से हजारों साल पहले भारत के एक कवि कालिदास ने बादलों को दूत बनाया और उन के माध्यम से संदेश प्रेषित किया। अब क्लाउड में संदेश रखे जा रहे हैं। भौतिक शास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने भारत में एक वार्ता के दौरान जब यह सुना तो हैरत में पड़ गये। उनका कहना था कि भारत देश में इतनी चीजें हैं तो लोग सीखने विदेश क्यों जाते हैं। ऐसा लगता है कि कस्तूरीरंगन को वह वाक्य भीतर से उद्वेलित कर रहा था। यही कारण हो सकता है जिसके चलते उन्होंने शिक्षा में यह बुनियादी परिवर्तन की सिफारिश की। 34 वर्षों के बाद10+2 के शिक्षा के ढांचे को परिवर्तित कर दिया गया और अब उसकी जगह शुरू किया गया है 5+3+3+4।यानी, स्नातक कक्षा तक पहुंचने में पहले 12 वर्ष लगते थे अप 15 वर्ष लगेंगे। अब ज्यादा परिपक्व तथा जिज्ञासु ग्रेजुएशन तक पहुंचेंगे। उनमें सीखने की क्षमता ज्यादा होगी। दूसरी लाभ है कि पांचवी क्लास तक के बच्चे अपनी संस्कृति और अपनी सभ्यता को ना केवल समझेंगे बल्कि उसे महसूस भी करेंगे। बचपन से राम को रामा बोलने वाले बच्चे अब नहीं मिलेंगे। वह राम को राम ही कहेंगे।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि यह नीति 2020 का मील पत्थर साबित होगी। अब जो नई नीति बनी है उसके मुताबिक 6 से 8 साल का बच्चा पहली और दूसरी क्लास में पढ़ेगा। इसके बाद 11 से 14 क्लास की पढ़ाई होगी आप सब 14 से 18 साल की उम्र तक में छात्र 12वीं क्लास तक की पढ़ाई लेगा। इस नई नीति में आर्ट्स और साइंस के बीच कोई गंभीर अलगाव नहीं होगा। यही नहीं कैरीकुलर और एक्स्ट्रा कैरीकुलर गतिविधियों को भी अलग नहीं समझा जाएगा यही बात वोकेशनल और एकेडमिक शिक्षा के साथ भी लागू होगी।शिक्षा सचिव अनिता करवाल के अनुसार अब इस नई नीति में बोर्ड की परीक्षा का महत्व कम होता जाएगा। इसके लिए इसे दो भागों में बांटने जैसे कई प्रस्ताव हैं इसके अंतर्गत अब बोर्ड की परीक्षाएं दो बार होंगी। अब बोर्ड की परीक्षाओं में रट्टा मारना काम नहीं आएगा इसमें रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी बातें ही पूछी जाएंगी। यही नहीं अपने रिपोर्ट कार्ड का मूल्यांकन खुद कर लेगा। मातृभाषा को सिखाने का माध्यम बनाए जाने के मामले में पांचवी क्लास तक को प्राथमिकता एवं आठवीं क्लास के छात्र इस पर जोर बनाए रखने की प्राथमिकता है। प्री स्कूल से माध्यमिक स्तर तक ग्रॉस इनरोलमेंट रेश्यो को 2030 तक 100% करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत में लगभग 2 करोड़ बच्चे स्कूलों में नहीं पढ़ते हैं , उन्हें भी स्कूल जाने का बंदोबस्त किया जाएगा। इस नई शिक्षा नीति का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जो बच्चा स्कूल की पढ़ाई खत्म कर लेगा वह कम से कम पढ़ाई के साथ साथ एक कौशल भी सीख जाएगा। कौशल से आगे काम में सहूलियत मिलेगी। शिक्षा नाति का सबसे बड़ा फायदा है कि अगर किसी पारिवारिक समस्या या किसी और समस्या के कारण पढ़ाई रुक जाती है और सेमेस्टर छोड़ने पड़ते हैं तो मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम के तहत अगर किसी बच्चे ने 1 साल की पढ़ाई की है तो उसे सर्टिफिकेट ,2 साल की पढ़ाई की है तो उसे डिप्लोमा मिलेगा और 3 या 4 वर्ष के बाद डिग्री दी जाएगी। यानी, कोई छात्र अधूरी पढ़ाई का भी उपयोग कर सकता है। यही नहीं अगर किसी ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और कुछ साल के बाद उसे पूरी करना चाहता है तो उसके लिए भी इस नीति में उपाय हैं। अगर कोई बच्चा तीसरे साल में पढ़ाई छोड़ता है और तय समय सीमा में लौटना चाहता है तो उसे सीधे उसी साल एडमिशन मिल जाएगा। आज स्थिति यह है कि अगर कोई बच्चा 4 सेमेस्टर या 6 सेमेस्टर पढ़ने के बाद पढ़ नहीं पाता तो आगे नहीं पढ़ पाएगा। लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं रह गई। सबसे बड़ी सुविधा रिसर्च में जाने के लिए मिली है।उसके लिए 4 वर्षों का डिग्री प्रोग्राम का विकल्प दिया जाएगा यानी 3 वर्ष डिग्री के साथ 1 वर्ष मास्टर डिग्री हासिल करने और फिर फैलोशिप की जरूरत नहीं है। अब सीधा रिसर्च में जाया जा सकता है। यही नहीं, अब मल्टीडिसीप्लिनरी सब्जेक्ट भी लिया जा सकता है। जैसे कोई छात्र इंजीनियरिंग पढ़ता है और उसे संगीत में रुचि है तो वह पढ़ाई के साथ साथ उसे भी जारी रख सकता है। इसमें जो सबसे बड़ी बात है वह है कॉलेज में प्रवेश के पूर्व बोर्ड की परीक्षा का मूल्य घटा दिया गया है। अब यह दो बार होगा। बोर्ड की परीक्षाओं में ज्ञान की परीक्षा होगी ना कि किसी विषय को रटकर उसकी परीक्षा दी जा सकती है। इस सारी प्रणाली में जो सबसे बड़ी बात है वह है कि किसी छात्र को सीखने का मौका मिलेगा केवल किताबी ज्ञान से काम नहीं चलेगा। </span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-62841021655879379522020-08-14T20:12:00.002-07:002020-08-14T20:12:39.215-07:00 अब बाढ़ की आपदा<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">अब बाढ़ की आपदा</span></p><span id="docs-internal-guid-f123c07c-7fff-bfe3-f458-7d78c108285b"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> कोरोनावायरस , बढ़ती बेरोजगारी और बिगड़ती अर्थव्यवस्था के बीच समाज के विभिन्न क्षेत्रों में तनाव जनित अपराध के साथ अब बारिश के दौरान आने वाली बाढ़ की आपदा। इसमें जो सबसे खतरनाक है वह है दूसरे देशों से भारत में प्रवेश करने वाली नदियों की उफनती धारा और उससे बढ़ता जल प्लावन का खतरा। उत्तर प्रदेश तथा बिहार को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली दो नदियां गंडक और घाघरा नेपाल से आती है। नेपाल से परिवर्तित हुए संबंध के कारण और नेपाल में उन नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में ज्यादा बारिश होने के फलस्वरूप इन नदियों में अधिक पानी छोड़ा जा रहा है। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">जल का एक रणनीतिक स्वरूप भी है। इसका ताजा उदाहरण गलवान घाटी से आयीं कुछ सेटेलाइट तस्वीरें हैं। यहां ही एक बांध बनाने की तैयारी कर रहा है। करीब 29 किलोमीटर लंबी ब्रह्मपुत्र नदी दक्षिण तिब्बत से निकलती है भारत में प्रवेश करती हैं।हमारे देश में इसकी विभिन्न धाराओं को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है इनमें ब्रह्मपुत्र एक है और इसके बाद वह बांग्लादेश में प्रवेश कर जाता है। चीन ने इस नदी की दो धाराओं यारलुंग और जागपा को बांध लिया है और और बांधों का निर्माण कर रहा है। अगर उसने ब्रह्मपुत्र की ऊपरी धारा को बांध लिया तो एक तरह से भारत के कुछ हिस्से में जब चाहे जल प्रलय ला सकता है। एक तरह से यह हथियार के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> इधर, भारत के विभिन्न शहर जो नदियों के किनारे बसे हैं उनके विकास के नाम पर जो कचरा नदियों में छोड़ा गया वह उनमें जमा होकर उनकी सतह को ऊंचा कर दिया। इसके कारण थोड़ी सी बारिश शहरों और गांव के लिए खतरनाक बन जाती है। हर साल तस्वीर कुछ ऐसी ही होती है बस आंकड़े बदल जाते हैं। यहां भी आंकड़ों को राजनीतिक प्रिज्म पर देखने की जरूरत है। बदले हुए आंकड़े का मतलब राजनीति के शब्दकोश में बदला हुआ मुआवजा होता है। आंकड़ों को उसी अंदाज में देखा जाता है किस साल कितना मुआवजा मिला या फिर या फिर अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ, कितने लोग मरे। इस मरे का मतलब कितने इंसान मरे। राजनीतिक अर्थशास्त्र में यह नहीं देखा जाता है कि इन मरे लोगों के कारण कितनी गृहस्थियां तबाह हो गईं। इनमें उनकी गणना नहीं होती कि कितने बच्चों के स्कूल छूट गए। यहां तो गिना जाता है कि माटी के चूल्हे और जलावन की जगह कितने लोगों को उज्जवला योजना में शामिल किया गया। देश चूल्हे चिमटी से आगे बढ़कर उज्जवला के दौर में चला गया। बाढ़ कैसे रुकेगी इस पर कभी विचार नहीं हुआ। बांध, डैम और नदी जोड़ो योजनाओं पर बहुत कुछ काम किया गया लेकिन बाढ़ नहीं रुकी। बाढ़ तो आ ही गई है। बाढ़ से होने वाले नुकसान का मुआवजा भी पिछले साल से दुगना मिल रहा है। बिहार में चुनाव है। असम और बिहार में बाढ़ नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार के अलावा विदेशों से भी सहायता मिल रही है। असम के मुख्यमंत्री के एक ट्वीट के मुताबिक केंद्र सरकार पहली किस्त में बाढ़ नियंत्रण एवं राहत के लिए 346 करोड़ रुपए दिए हैं। असम के 33 जिलों में 26 जिलों में 26.32 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं हैं। ऐसा नहीं कि केवल मुआवजे के लिए ही नेता खुश हैं। बिहार में बारिश के ठीक पहले गंगा का कटाव रोकने के लिए तटों पर गेबिएन किया जाता है। गेबिएन प्लास्टिक की रस्सी की तरह होता है जिसमें एक प्लास्टिक बैग बांधकर उसमें 126 किलोग्राम सफेद बालू भरकर लटका दिया जाता है। सफेद बालू में मिट्टी से चिपकने का गुण होता है यह बालू गंगा तट पर नहीं मिलता। अब जैसे बारिश का मौसम शुरू होता है वैसे ही इसके लिए टेंडर निकाले जाते हैं और फिर काम मिलने पर यह जांच पाना लगभग असंभव है कि बोरों में कितनी बालू भरी गई क्योंकि पानी के साथ बालू भी बहती रहती है। अब सरकार को यह मालूम नहीं है कि फरवरी-मार्च में काम क्यों नहीं पूरा कर लिया जाता। ठीक उसी तरह जिस तरह जब सरकारी नेता संकल्प पर्व के दौरान पौधे रोपते हैं तो उन पौधों का क्या हुआ। नदी तट पर रोपे गए पौधे अगर बाढ़ में बह गए इसकी गिनती कौन करेगा। करोड़ों की संख्या में देश भर में पौधे लगाए जाते हैं लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जंगल धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं। यही हाल दिल्ली के किनारे जमुना का है या फिर कहें कि सारी नदियों का है। गाद भराव के कारण नदियां उथली होती जा रही हैं और पहली ही बारिश पानी नदियों से निकलकर सड़क और खेतों में फैलने लगता है। जनता डर कर यह तो उस इलाक़े को छोड़कर कर चली जाती है या फिर प्राण रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करती रहती है। हमारे नेता हेलीकॉप्टर बाढ़ का जायजा लेते हैं। उन्हें मालूम है कि बाढ़ में नदी क्या-क्या लाई है। पानी उतरने के बाद नदी की सतह को साफ करने का काम शुरू होगा। यही नहीं, शहरों में पानी निकलने वाले रास्तों पर अवैध कॉलोनियां बन गईं। यही हाल देश के अन्य भागों का भी है। वेटलैंड में अवैध निर्माण हो गये पानी निकासी की व्यवस्था रही नहीं। हजारों एकड़ खेत बाढ़ से प्रभावित हैं और अगर सामाजिक अर्थशास्त्र के नजरिए से देखें तो हर वर्ष आने वाली यह बाढ़ एक तरह से कैश क्रॉप बन गई है। एक तरह से इस क्राॅप की बीज भी सरकार ही लगाती है। सरकार को यह मालूम होता है क्या होने वाला है लेकिन केंद्र से सहायता के नाम पर जो धन मिलता है उसे भी तो नहीं छोड़ा जा सकता है। जरा उदाहरण सरकार इसे इस तरह बढ़ावा देती है। केंद्रीय जल आयोग ने जून में एक डाटा जारी किया था। जिसमें बताया गया था कि देश के 123 बांधों या जलग्रहण क्षेत्रों में लगभग 10 सालों में 165 प्रतिशत पानी जमा हो चुका है। इसका मतलब है इन बांधों में पर्याप्त से अधिक जल का भंडार हो चुका है। इन 123 बांधों का प्रबंधन और देखभाल केंद्रीय जल आयोग करता है और इनमें देश के कुल भंडारण क्षमता का 66% पानी जमा हुआ करता है। जब बांध से पानी ऊपर बहने लगता है तो उसके दरवाजे खोल दिए जाते हैं और परिणाम यह होता है कि पहले से उफनती नदी में बहाव के जो जाता है तथा शहरों में गांवों में है घुस जाता है। एक तथ्य काबिले गौर है कि जब अम्फान जैसे तूफान के दौरान लोगों की जान माल की सुरक्षा की जा सकती है बाढ़ के दौरान क्यों नहीं। निर्माण और विकास के नाम पर जमीन को कंक्रीट से पाट दिया गया पानी जमीन के भीतर जा नहीं पाता तो उसके खेतों और रिहायशी इलाकों में बढ़ने के अलावा कोई उपाय नहीं है। </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b><i>काजू भुने पलेटों में व्हिस्की गिलास में</i></b></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><b><i> आया है रामराज विधायक निवास में</i></b></span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-15071023352584214072020-08-14T20:09:00.003-07:002020-08-14T20:09:48.954-07:00 गुरु चरणों से ऑनलाइन शिक्षा तक<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">गुरु चरणों से ऑनलाइन शिक्षा तक</span></p><span id="docs-internal-guid-8b42816f-7fff-e781-6fc5-53363b071366"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">जिन लोगों ने अब से कोई 30 40 वर्ष पहले स्कूली शिक्षा पाई होगी उन्हें ज्ञात होगा कि शिक्षक क्या हुआ करता था और उससे पहले भी प्राचीन काल में जब राजा महाराजा हुआ करते थे तो शिक्षकों का मूल्य क्या था? पढ़ाई उपनिषद के रूप में आज भी उपलब्ध है। राज्य पुत्र अपनी शानो शौकत को त्याग कर गुरु के आश्रम में जाते थे और शिक्षा ग्रहण करते थे। शिक्षक कभी होम ट्यूटर नहीं बनकर आता था। धीरे धीरे शिक्षा और शिक्षक दोनों का अवमूल्यन होता गया गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु केआसन से शिक्षक श्रमजीवी हो गया और उसी परिमाण में शिक्षा का भी अवमूल्यन हो गया। अब से पहले शायद ही किसी शिक्षक का फोन नंबर छात्रों के पास हुआ करता था पर अब शिक्षक का फोन नंबर छात्रों के पास होने के साथ-साथ छात्र के परिवार वालों के पास भी हुआ करता है। छात्रों के फोन अक्सर आते रहते हैं और गुड नाइट गुड इवनिंग भी हुआ करता है। कुछ मजबूरी तो शिक्षकों की है अपनी जीविका बचाने की और इस गला काट प्रतियोगिता में कुछ पढ़ लेने की मजबूरी छात्रों के पास भी है। अब अगर पढ़ने पढ़ाने के तो फिर उनका उपयोग क्यों नहीं किया जाए। आज कोरोना काल में स्कूल बंद और विभिन्न एप्स के जरिए ऑनलाइन क्लासेज चल रही है यह क्लासेज केवल क्लासरूम तक सीमित ना रहकर शिक्षकों की निजी जिंदगी तक पहुंच गई है। बच्चों तथा उनके मां-बाप तक सूचनाएं पहुंचाने के लिए शिक्षकों ने अलग-अलग ग्रुप्स बना लिए हैं। जिस मोबाइल के माध्यम से बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं या फिर अपने मित्रों से व्हाट्सएप के जरिए बातें करके वह मोबाइल फोन आधे से ज्यादा बच्चों के पास नहीं है। उस तरह का फोन या तो बच्चों के माता-पिता का होता है या बड़े भाई बहनों का। इसी कारण से शिक्षकों के नंबर बच्चों के परिवार में पहुंच जाते हैं। बेशक यह नंबर बड़ी बात नहीं है लेकिन सदा यह डर बना रहता है कि जब सब कुछनॉर्मल हो जाएगा तो इन नंबरों का कहीं दुरुपयोग ना हो। महिला शिक्षिकाएं तो बहुत सोच समझ कर अपना नंबर देती हैं लेकिन जब से कोरोना का काल आया तब से आजीविका के चलते सोचने का मौका ही नहीं मिला। लॉकडाउन एक कारण कोई नया नंबर भी खरीदा नहीं जा सकता इसलिए पहले से चले आ रहे हैं नंबर को ही शेयर करना होता है। इतना ही नहीं नई शिक्षा पद्धति जिसे ऑनलाइन शिक्षा कह सकते हैं उसने शिक्षकों के आगे चुनौतियों का पिटारा खोल दिया है। शिक्षकों पर परफॉर्मेंस का बेहिसाब दबाव रहता है। अब काम केवल पढ़ाना नहीं है बल्कि हर बच्चे को रात में बुलाना और उनसे असाइनमेंट और बाकी एक्टिविटी करवाना और जिसके चलते काम तथा गांव की आवधि बड़ी हो गई। शिक्षक गुरु की गरिमा से उतर श्रमजीवी हो गया। हालात यह हैं कि कई शिक्षकों को दिन भर में 4-4 क्लास लेने पड़ते हैं। हर क्लास में 40- 50 बच्चे हैं लेकिन आते हैं सिर्फ 20-25। अब यह शिक्षकों की जिम्मेदारी है बच्चे क्लास में क्यों नहीं आये? उनसे फोन करके पूछा जाए नहीं आने का कारण। इस काम में दिन में कई घंटे बर्बाद हो जाते हैं। यहां जो सबसे बड़ी समस्या है वह कि स्कूल प्रशासन का नजरिया और छात्रों की आर्थिक स्थिति के बीच समझ बूझ की कमी। दूसरी बात है छात्र-छात्राओं की सामाजिक स्थिति में अंतर। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में लड़कियों के पास इंटरनेट की जितनी सुविधाएं हैं उससे कहीं ज्यादा लड़कों के पास हैं। भारत में महिलाओं की तुलना में 20 करोड़ ज्यादा इंटरनेट की सुविधाएं पुरुषों के पास हैं। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में 5 साल से अधिक उम्र के कुल 45.1 करोड़ लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा है इनमें 25.8 करोड़ पुरुष हैं जबकि महिलाओं की संख्या है। देश में इंटरनेट का उपयोग करने वाले पुरुषों का अनुपात 67% है जबकि महिलाओं का अनुपात 33 प्रतिशत है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात का अंतर और बढ़ जाता है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट का उपयोग करने वाले कुल लोगों में 72% पुरुष और सिर्फ 28% महिलाएं हैं। यह अंतर इंटरनेट तक ही सीमित नहीं है, साक्षरता के अनुपात में भी यह दिखाई पड़ता है। विश्व बैंक के एक अध्ययन में पाया गया है लड़कियां अगर माध्यमिक तक पड़ जाते हैं उनकी कमाई करने की क्षमता में 18% की वृद्धि होती है। ऐसी सामाजिक- आर्थिक व्यवस्था के बीच अगर छात्र आभासी कक्षा तक नहीं आए तो यह जिम्मेदारी शिक्षक की होती है कि वह पूछे कि छात्र क्यों नहीं आया। छात्र या उसके अभिभावक उत्तर देते हैं कि कल से आएगा लेकिन कैसे? रातों-रात इंटरनेट की व्यवस्था कहां से होगी, उसका रिचार्ज कहां से भरा जाएगा इत्यादि तो कोई नहीं बताता। होमवर्क को लेकर भी यही प्रॉब्लम है। लेकिन शिक्षक के परफॉर्मेंस पर ध्यान स्कूल प्रशासन ही नहीं मां बाप भी देते हैं। यही नहीं क्लास रूम में बच्चों को शिक्षक के प्रति जो आश्वासन होता है वह इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं होता नतीजा यह होता है कि शिक्षक अपने छात्रों से हंसी मजाक नहीं कर सकते क्योंकि बच्चे के घर में उस पर ध्यान दिया जा रहा है। यह एक मानसिक दबाव है।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> ऑनलाइन क्लास से जहां बच्चों के पढ़ने का तरीका बदल गया है वही शिक्षकों के पढ़ाने का तरीका बदल गया है। वर्चुअल सेटअप से तालमेल बनाना मानसिक तौर पर बड़ा कठिन है। सबसे पहली बात शिक्षक समझी नहीं पता कि कौन क्या कह रहा है। बस शिक्षक को मान लेना पड़ता है कि बच्चे पढ़ रहे हैं। यही नहीं मोबाइल नेटवर्क की भी एक समस्या है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया बताते हैं शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुंच आधी से भी कम है। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक 12 वर्ष से ज्यादा उम्र के 38 करोड़ पचास लाख इंटरनेट यूजर 51% शहरी क्षेत्र में है और बाकी ग्रामीण इलाकों में। इतना ही नहीं 5 से 11 वर्ष के 6 करोड़ 60 लाख बच्चे इंटरनेट यूजर हैं।</span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">ऐसे में जब इंटरेक्शन का प्रॉब्लम होता है आप तो ऐसे में जितना संघर्ष शिक्षकों का होता है उतना ही बच्चों का भी। कई बार देखा गया है कि शिक्षक बच्चों के अभिभावकों को बताते हैं कि एक विशेष ऐप का उपयोग कैसे होता है। अचानक इस नए सिस्टम में डालने और उनकी मूल्यांकन करने के बजाए टीचर को भी सीखने का मौका दिया जाना चाहिए लेकिन उनकी समस्या को कौन समझता है। शिक्षा का अंदाज़ बदल गया शिक्षकों का तरीका बदल गया अब केवल शिक्षा ही नहीं शिक्षण भी क्रांतिकारी परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। </span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-50914990186993768152020-07-26T07:55:00.000-07:002020-07-26T07:55:29.969-07:00 युद्ध को चीन की धरती पर ले जाना जरूरी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br /> युद्ध को चीन की धरती पर ले जाना जरूरी<br /><br /><br /> <br /><br /><br /> अब से हजारों वर्ष पहले महाभारत का युद्ध हुआ था और उसमें कितनी जान हानि हुई थी इसके बारे में कोई गिनती नहीं है बस उस दिन से युद्ध हमारा गौरव का विषय हो गया। हमारे नेता हमारे सैनिकों को सीमा पर भेज के शहीद करते हैं और इसे देश की शान तथा लज्जा से जोड़ देते हैं।<br /><br /><br /> जो आप तो लड़ता नहीं<br /><br /><br /> कटवा किशोरों को मगर<br /><br /><br /> आश्वस्त होकर सोचता है<br /><br /><br /> शोणित बहा , लेकिन, <br /><br /><br /> गई बच लाज सारे देश की<br /><br /><br /> और तब सम्मान से जाते गिने <br /><br /><br /> नाम उनके, देशमुख की लालिमा<br /><br /><br /> है बची जिनके लुटे सिंदूर से<br /><br /><br /> देश की इज्जत बचाने के लिए <br /><br /><br /> या चढ़ा दिए जिसने निज लाल हैं<br /><br /><br /> आज भारत का याद आ रहा है। लेकिन तब के युद्ध में और आज के युद्ध में बहुत बड़ा अंतर है। पिछले दिनों भारतीय सेना और चीन की सेना में पूर्वी लद्दाख में झड़प हो गई। हमारे 20 सैनिक शहीद हो गए। इसके बाद कूटनीतिक एवं सैन्य स्तरीय वार्ताएं चली और दोनों पक्ष उस इलाके से पीछे हटने पर सहमत हो गए। पर, चीन ने उस सहमति का सम्मान नहीं किया और बड़ी संख्या में उसकी फौज वहां कायम रही। ऐसे हालात में मीडिया को एक व्यवस्थित तरीके से उस क्षेत्र के कथानक मुहैया कराने के स्रोत भी मौन हो गए। जो खबरें पहले पन्ने पर होती थी वह भी चली गईं। यह स्थिति चीनी सेना के दक्षिणी शिंजियांग सैन्य क्षेत्र के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन के कठोर और अड़ियल रवैया के कारण उत्पन्न हुई सी लगती है। लिन देपसांग से किसी भी तरह से पीछे हटने को तैयार नहीं है। उन्होंने इसे चीनी भू भाग होने का दावा करते हैं। हॉट स्प्रिंग के उत्तर कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां से चीन थोड़ा पीछे हटा है बेशक सीमित स्तर पर ही , लेकिन वह पीछे हटना समझौते के अनुरूप नहीं हैं। चीन उस क्षेत्र को लेकर बड़ा ही सक्रिय है क्योंकि वहीं से गलवान नदी के ऊपरी क्षेत्र की राह निकलती है। गोगरा इलाके में भी बात है इसलिए जो समझौता हुआ वह पूरी तरह पालन नहीं किया जा रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक हफ्ते पहले लद्दाख में सेना को संबोधित करते हुए कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा उपरोक्त स्थिति पर खुलकर बातचीत हुई और अभी भी बातचीत चल रही है लेकिन कितना समाधान हो पाएगा यह कहना मुश्किल है। इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती है लेकिन दुनिया की कोई भी ताकत हमारी 1 इंच जमीन नहीं ले सकता। मई में चीनी अतिक्रमण के बाद या पहली बार अधिकृत तौर पर कहा गया है कि चीन जहां तक घुस आया है उस इलाके को खाली नहीं करना चाहता है।<br /><br /><br /> प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्ष में आरोप लगाया है कि सख्त नेता की छवि को कायम रखने के लिए इस मुद्दे पर भ्रम का सहारा लिया जा रहा है। चीन की हठधर्मिता और अड़ियल रवैये के सामने भारत के पास दो ही विकल्प और वह हैं चीन द्वारा आरंभ किया गया युद्ध और दूसरा भारत द्वारा छेड़ी गयी जंग। अगर चीन युद्ध आरंभ करता है तो उसका परिदृश्य पाकिस्तान की तरह एटमी आराम तक भी खिंच सकता है। चीन ऐसा कई बार इशारा भी कर चुका है।यदि भारत ने आगे बढ़कर चीनी कार्रवाई के चलते वर्तमान स्थिति को स्वीकार करने हो तैयार नहीं होता है संभव है कि चीन की शेरा इस स्थिति को अनिश्चित काल तक के लिए खींचेगी या फिर या फिर अपनी बात मनवाने के लिए भारत को पूरी तरह से उस क्षेत्र में पराजित करने के बारे में सोचे। भारत के मुख्य रक्षा पंक्ति बहुत ऊंचाई पर है और जो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर है 10 से 80 किलोमीटर दूर है। अब अगर युद्ध होता है तो संभावना है कि भारत के मुख्य रक्षा पंक्ति से आगे वह लड़ेगा। ऐसी स्थिति में हमारा मुख्य उद्देश्य चीन की सेना को रोकने के साथ उससे अधिक या बराबर की जमीन पर अधिकार का होना चाहिए ताकि सौदेबाजी की जा सके। शत्रु को पीछे धकेलने के लिए हमारे पास सेना की कमी नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह भारत के लिए फायदेमंद होगा क्योंकि चीनी सेना को भारतीय सेना की टुकड़ियों से दो दो हाथ करना होगा जो उसके सामने भी वर्चस्व वाली स्थिति में है।<br /><br /><br /><br /><br /><br /> अब अगर चीन बढ़त बनाकर रखना चाहता है यह हमारे ऊपर होगा कि उसे ऐसा करने से रोकें और इसके लिए जरूरी है कि हम सीधे घुसपैठ वाले बिंदुओं पर हमला करें। हमारे लिए एक और विकल्प है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वह हमला करें जहां उसकी मोर्चाबंदी कमजोर है और फिर सौदेबाजी हो। अगर हमें अपने देश का सम्मान बचाना है तो इसे युद्ध को दुश्मन के खेमे मेले जाना ही होगा। इसके बाद ही सौदेबाजी हो सकती है।<br /><br /></div>
pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-75352931390067837022020-07-26T07:52:00.000-07:002020-07-26T07:54:26.394-07:00ममता और पवार का अनुकरण क्यों नहीं किया पायलट ने <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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ममता और पवार का अनुकरण क्यों नहीं किया पायलट ने <br />
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ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट एकदम नौजवान नेता हैं और यकीनन एक नई पार्टी बनाकर कांग्रेस और भाजपा के विकल्प के रूप में एक राजनीतिक संगठन प्रस्तुत कर सकते थे। जैसा कि ममता बनर्जी ने कांग्रेस से टूटकर किया था। हालांकि, सिंधिया ने तो भाजपा का दामन पकड़ दिया है लेकिन पायलट कहां जाएंगे यह अभी तक साफ नहीं हुआ है और ना ही उनकी तरफ से कोई ऐसा संकेत मिला है जिससे पता चले किधर जा रहे हैं या फिर कोई नई पार्टी बनाना चाह रहे हैं। पायलट ममता बनर्जी नहीं हैं की उम्र में ममता जी की तरह संघर्ष की क्षमता हो और आम मतदाताओं को यह विश्वास दिला सकें कि उनमें लड़ने की ताकत है। ममता जी ने अपनी इसी क्षमता के कारण कामयाबी पाई और आज प्रदेश की गद्दी पर हैं। पायलट ने आखिर यह साहस क्यों नहीं दिखाया जबकि उनका दावा है राजस्थान की जनता उन्हें पसंद करती है। संभवतः उनकी तरह धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील विचारों वाले नेता बहुसंख्यक वादी राजस्थान में कितना सफल हो पाएंगे इसकी गणना उनके पास भी नहीं है। पायलट पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह अपने समर्थकों को लेकर भाजपा में जा रहे हैं। यह आरोप ही अपने आप में उत्तर है। इससे पता चलता है पायलट मेहनत करने की बजाय मौजूदा समय में स्थापित पार्टी में शामिल हो जाना सही समझते हैं। जिन लोगों ने ममता बनर्जी को पार्टी खड़ी करते देखा है वह उनकी मेहनत से वाकिफ होंगे। सचमुच एक नई पार्टी खड़ी करने में जो जटिलताएं सामने आती हैं और जितनी मेहनत करनी पड़ती है वह सोचा जा सकता है। एक नई पार्टी बनाने के लिए एक व्यापक जनाधार, समय, शक्ति, धनबल और बाहुबल के साथ-साथ व्यापक तजुर्बे की भी जरूरत होती है। ऐसे विचार को करने की आवश्यकता होती है जो बाध्यकारी हो साथ ही नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने की क्षमता के बीच वोटरों का मनोभाव समझने का भी आत्मविश्वास होना चाहिए। या तो आज के समय में नई पार्टी बनाने वाले को अरविंद केजरीवाल की तरह होना चाहिए जो भयानक विद्रोहियों तथा मान्य व्यवस्थाओं को मटियामेट करने की क्षमता रखता हो। अथवा, ममता बनर्जी की तरह युद्ध के मैदान में केवल अपने समर्थकों के बल पर निहत्थे खड़ा होने का साहस होना चाहिए। जिन्होंने सीपीआईएम के काल में ममता बनर्जी के साथ हुए सितम को देखा होगा और महसूस किया होगा वही इसे समझ सकते हैं। पायलट में ऐसा साहस और गुण नहीं है। <br />
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किसी भी नई पार्टी के राष्ट्रीय विकल्प के रूप में खड़े होने के लिए राजनीतिक व्यवस्था की कमजोरियों के कारण एक उपयुक्त राजनीतिक वातावरण का होना जरूरी है। संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान इंदिरा जी के आपातकाल और राजीव गांधी के काल में बोफोर्स दलाली से लेकर आज के अरविंद केजरीवाल द्वारा भ्रष्टाचार के नारों ने यह वातावरण मुहैया कराया। लेकिन आज हालात दूसरे हैं। मोदी और अमित शाह किसी भी मूल्य पर किसी भी विपक्षी विकल्प को भरने का मौका नहीं देते। इसलिए पायलट या सिंधिया के लिए नए सिरे से शुरुआत करने का कोई स्कोप नहीं है। यहां तक कि अरविंद केजरीवाल ने भी मोदी शाह के युग के पहले यह सब किया था। सिंधिया और पायलट एक बात समान है वह कि दोनों को यह मुगालता था कि चुनाव जीतने के बाद उन्हें अपने-अपने राज्यों का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन जो उनसे सीनियर थे उनके इगो के आगे उनकी एक नहीं चली। पायलट अपने 18 समर्थक विधायकों को लेकर अलग हुए और अगर उनमें इतना ही साहस था उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए तो उन्हें अपनी अलग पार्टी बनानी चाहिए थी। हालांकि पायलट ने मुख्यमंत्री बनने का अपना सपना कभी किसी से गोपनीय नहीं रखा और सदा शिकायत करते हैं कि उन्हें गलत तरीके से मुख्यमंत्री पद से अलग रखा गया है। उनका मानना था यह गलत है और ज्यादा थी भरा है। कांग्रेस के नौजवान नेताओं के साथ हर जगह यानी हर राज्य में ऐसा ही हो रहा है और अगर पायलट में इतनी क्षमता थी तो उन्हें सभी राज्यों के ऐसे नेताओं को जोड़ने के लिए कदम आगे बढ़ाना चाहिए था। पायलट को यह मालूम है एक स्थापित मंच पर जगह बनाना आसान है स्टार्टअप के मुकाबले। अगर आनन फानन में ताकत एकत्र करनी है तो नई पार्टी नहीं चलेगी। वोट बैंक बनाने के लिए कठोर मेहनत की जरूरत पड़ती है और लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहना पड़ता है तथा इस अवधि में धैर्य जरूरी है। यही नहीं इसके लिए धन जुटाना भी बहुत कठिन काम है।<br />
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शरद पवार ने 1999 में सोनिया गांधी से नाता तोड़ लिया था और कांग्रेस छोड़ दीजिए तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था। इन 21 वर्षों में उन्होंने महाराष्ट्र के बिग बॉस का मुकाम हासिल किया। ममता बनर्जी 1997 में कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाई और पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक जड़े जमाने की कोशिश करने लगीं।लेकिन इलीट गाइडेड पश्चिम बंगाल की राजनीति में किसी नई पार्टी को जड़े जमाना बड़ा कठिन है। यही नहीं पश्चिम बंगाल की राजनीति वामपंथियों के कारण बेहद हिंसक और और स्पष्ट थी। लेकिन उन्होंने वाम मोर्चे की सत्ता को उखाड़ फेंका। आज पायलट के बारे में एक महत्वपूर्ण प्रश्न है या फिर चाहते क्या हैं? अगर आसानी से जगह बनानी है तो भाजपा मुफीद है और अगर एक पहचान कायम करनी है तो उन्हें एक नई राजनीतिक विरासत की नींव रखनी होगी और खुद को एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में पेश करना होगा। उनका कंफ्यूजन भारतीय राजनीति को नुकसान पहुंचाएगा।<br />
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pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-79724560118490846852020-07-26T07:48:00.002-07:002020-07-26T07:49:13.559-07:00राजस्थान की जंगः कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br />राजस्थान की जंगः कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना<br /><br /><br />राजस्थान में सियासी घमासान मचा हुआ है। वैसे राजस्थान का इतिहास भितरघातों और खुली जंग के जिक्र से भरा पड़ा है। आज भी वहां एक नया घमासान चल रहा है। इसमें भितरघात भी है और खुली लड़ाई भी है। राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ उन्हीं की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया और पायलट की पीठ पर भाजपा के हाथ हैं यह किसी से छिपा नहीं है। यह पूरा का पूरा प्लॉट कुछ वैसा ही है जैसा पिछले 70 वर्षों से भारत और पाकिस्तान के बीच के युद्ध का है। इस युद्ध से जिस तरह से लोग ऊब चुके हैं और आर पार का फैसला चाहते हैं ठीक वैसे ही आज के राजस्थान में चल रही सियासी जंग से लोग उठ गए हैं। खरीद-फरोख्त का वही पुराना रवैया के एक और महत्वाकांक्षी कांग्रेस नेता बगावत करता है, विधायकों की खरीद बिक्री का बाजार खुल जाता है तथा एक गैर भाजपाई सरकार गिरने के कगार पर आ जाती है। यह पूरी की पूरी फिल्म देखी देखी सी लगती है। भारत की जनता आखिर इसे कितनी बार देखेगी। लेकिन यहां कुछ उप कथाएं भी इस स्क्रिप्ट में जुड़ गईं हैं। जैसे दो सिंधियाओं की जंग छिड़ गई है। उधर, वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा आलाकमान की बात नहीं मानते हुए गहलोत पायलट की रस्साकशी से अलग हैं। वह अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं और पूरी तरह वाकिफ है ऐसा करने से आलाकमान नाराज हो जाएगा। वसुंधरा राजे सिंधिया लगभग चुप हैं। उन्होंने 3 दिन पहले एक ट्वीट किया था और कहा था कि जनता के बारे में सोचिए। यह उनकी अपनी ही पार्टी को दी गई झिड़की की मानिंद थी या कह सकते हैं कि कोरोना के संकट के दौरान राजस्थान सरकार को गिराने की भाजपा की कोशिशों की आलोचना जैसी थी। राजस्थान में जो जंग चल रही है उसके पहले वाले प्लॉट पर भी नजर डालें यानी दो सिंधियाओं की जंग पर। ग्वालियर के पूर्व राजघराने वंशज जायदाद के विवाद में पहले से फंसे हुए हैं, लेकिन चुनाव के दौरान कभी भी एक दूसरे के चुनाव प्रचार नहीं करते। पहली बार वे दो हजार अट्ठारह में मध्य प्रदेश के कोलारस में हुए उपचुनाव में एक दूसरे के सामने आ गये थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया वहां कांग्रेस उम्मीदवार के लिए प्रचार कर रहे थे और यशोधरा राजे सिंधिया वहां भाजपा के लिए प्रचार करने के दिए मैदान में उतर गईे। यशोधरा ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ हैं। दोनों में थोड़ा फासला हो गया। मार्च में जब ज्योतिरादित्य भाजपा में शामिल हुए तो यशोधरा राजे इसका यह कहते हैं स्वागत किया कि राजमाता के खून ने राष्ट्र हित में फैसला किया है और अब दूरी खत्म हो गई। फिर जरा राजस्थान इसमें एक और है ज्योतिरादित्य कांग्रेस में अपने पुराने साथी सचिन पायलट की पर्दे के पीछे से मदद कर रहे हैं दूसरी हैं वसुंधरा राजे जिन का राजनीतिक भविष्य पायलट के जीतने और हारने पर निर्भर है। अगर पायलट जीत जाते हैं तो बेशक वसुंधरा राजे के भविष्य पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। आप अगर पायलट किसी भी तरह से मुख्यमंत्री बन गए वसुंधरा राजे की राजनीतिक डगर पर गड्ढे जरूर आ जाएंगे। पिछले दो दशकों से वे और गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री बनते रहे हैं। अब अगर एक और विकल्प सामने आ जाए जिसके पीछे आलाकमान खुद खड़ा हो तो वसुंधरा राजे के लिए मामला बिगड़ जाएगा। सिंधिया घराने के इन दो धड़ों के बीच कितनी मिल्लत है यह बात किसी से छिपी नहीं है लेकिन तब भी किसी मोड़ पर दोनों आमने-सामने आ जाते हैं एक दूसरे के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं। लुटियंस में होने वाली पार्टियों में भी दोनों शाखाओं के सदस्यों को एक साथ कभी नहीं देखा गया। जाहिर है ज्योतिरादित्य राजस्थान में वही कर रहे हैं जो उनकी पार्टी चाहती है और अब इससे उनकी बुआ को हानि होगी तो क्या किया जा सकता है। राजघरानों का इतिहास एक दूसरे की पीठ में छुरा घोंपने के उदाहरणों से भरा पड़ा है। यहां यह जाहिर हो रहा है कि गहलोत और पायलट जोर आजमाइश का नतीजा चाहे जो हो जय और विजय तो बुआ और भतीजे में किसी एक की होगी ।<br /><br /><br /><br /><br /><br /> वैसे भाजपा आलाकमान से वसुंधरा राजे के संबंध बहुत ही गर्म नहीं है और यह बात किसी से छुपी नहीं है। भाजपा आलाकमान लंबे समय से वसुंधरा के विरोधियों को आगे बढ़ा रहा है उनमें से एक केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत जो ज्योतिरादित्य के साथ मिलकर वसुंधरा की राजनीतिक कश्ती डुबोने में लगे हैं। लेकिन वसुंधरा इस क्षेत्र की पुरानी खिलाड़ी हैं और उन्हें कम करके आंकना भूल होगी, उनके विरोधी यही भूल कर रहे हैं।वसुंधरा का कद राजस्थान में बहुत बड़ा है खास करके एक जन नेता के रूप में प्रदेश भाजपा में उनकी टक्कर का कोई नहीं है। अब आलाकमान गजेंद्र सिंह शेखावत को उनके विकल्प के रूप में आगे बढ़ा रहा है तो शायद यह उसकी गलती है। शेखावत मोदी लहर में दोनों बार चुनाव जीते और जोधपुर के बाहर शायद उनकी बहुत ज्यादा पहचान नहीं है। दिल्ली में बैठे लोगों को वसुंधरा के कद के बारे में बहुत अंदाजा नहीं है। पहली बार जब वसुंधरा राजे भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष बनकर आई तो लोगों में तरह-तरह की चर्चाएं होती थीं लेकिन कुछ ही महीनों में उस काल के सबसे कद्दावर नेता भैरों सिंह शेखावत से आगे बढ़कर दिखा दिया। आज राजस्थान में वसुंधरा राजे का राजनीतिक कद सबसे ऊंचा है और उनके खिलाफ अगर कोई योजना शुरू होती है तो जरूरी नहीं कि उन्हें पराजित किया जा सके। अलबत्ता, हाईकमान अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग कर उनकी राह में रोड़े जरूर अटका सकता है। उधर, सचिन पायलट पर ज्यादा निर्भर होना राज्य भाजपा के लिए बहुत उपयोगी नहीं होगा क्योंकि भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के करिश्मे और गृहमंत्री अमित शाह की रणनीतियों के बल पर चुनाव जीतती रही है। नए लोग शायद ही इस मामले में कोई सहयोग कर सकते हैं। </div>
pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-11413911219600323292020-07-26T07:45:00.002-07:002020-07-26T07:46:19.542-07:00ओली की समस्या कैसे सुलझाए भारत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br />ओली की समस्या कैसे सुलझाए भारत<br /><br /><br /> नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली लगातार भारत के सामने समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि वह ऐसा चीन के इशारे पर कर रहे हैं। भारत को शर्मशार करने के लिए उन्होंने राम का मसला उठा दिया। प्रधानमंत्री ओली ने दावा किया राम का जन्म ठोरी गांव में हुआ। त्रेता युग से अब तक किसी ने इस पर बात नहीं की थी और मानस में प्रसंग है जिसमें मिथिला और अवध की संस्कृतियों के बारे में राम और सीता के विवाह को लेकर व्याख्या की गई है। इसके अलावा भारत में कई ऐसे स्थल हैं जहां राम के सांस्कृतिक उद्भव के निशान मिलते हैं। यही नहीं, भगवान राम का वन गमन, हनुमान ,बालि, सुग्रीव इत्यादि से मुलाकात और फिर लंका अभियान एवं वहां से वापसी के रोड मैप पर अवधी संस्कृति का स्पष्ट उल्लेख है। ओली ने इन सारी व्याख्या तथा व्यंजनाओं को गलत बताते हुए राम को नेपाल का बाशिंदा बताया। यही नहीं, राम का राजकुमार राम से मर्यादा पुरुषोत्तम में बदलने के हालात के बारे में भी जो व्याख्या भारतीय वांग्मयों में उपलब्ध है उन्हें भी ओली ने स्वीकार नहीं किया और ऐसे मौके पर यह विवाद पैदा किया जब भारत में राम मंदिर के निर्माण की तैयारी हो रही है। इस इलाके में और आसपास के क्षेत्रों में कई मस्जिदें हैं जहां बांग्लादेश और पाकिस्तान के कट्टरपंथी तत्वों का बोलबाला है। डर है कि भविष्य में राम मंदिर को लेकर एक नया आंदोलन आरंभ हो जाय। बात यहीं खत्म हो जाए तब भी गनीमत है। ओली ने वर्षों से कायम भारत- नेपाल सीमा को भी अमान्य करते हुए भारत के 3 गांव पर अपना हक जताया है।शनिवार को भारतीय सीमांत पर स्थित गांव भिखना ठोरी में उनके आगमन के पूर्व काफी तोड़फोड़ हुई। नेपाल प्रशासन के हुक्म से सीमा स्तंभ 436 को उखाड़ दिया गया। इतना ही नहीं सीमा के पंडई नदी का पानी भी भारत में आने से रोक दिया गया। मामला बिगड़े नहीं इसलिए भारतीय सीमा सुरक्षा बल सब जान कर भी अंजान बनी हुई है। उधर, ओली के इस क्षेत्र में आने का उद्देश्य ही है राम को लेकर भारत में आंदोलन शुरू करवाना। ठोरी बीरगंज जिले में एक छोटा सा गांव है और उसी से सटे हुए भारतीय सीमा आरंभ होती है। नेपाल के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस क्षेत्र में धनुषा नदी के किनारों बारा और चितवन के जंगलों में राम के जन्म के सबूत खोजने शुरू कर दिये हैं। आरंभ में तो इस संस्था में साफ कहा था ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे राम के जन्म का प्रमाण माना सके। लेकिन आप उन्होंने प्रधानमंत्री ओली के बयान का समर्थन हो सके। ओली के बयान से भारत में बहुत बड़ी संख्या में लोग क्षुब्ध हैं। यही नहीं ओली ने भारत पर आरोप लगाया है सांस्कृतिक आक्रमण कर रहा है और ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ रहा है।<br /><br /><br /> ओली के कुछ सहायकों ने इसे मनगढ़ंत बताया है यहां तक कि कुछ विद्वानों ने तो इसे एक विकृत मस्तिष्क की कसरत बताया है। ओली भारत और नेपाल आपसी रिश्तों को बिगाड़ने में लगे हैं। उन्होंने इन संबंधों को पहले ही बहुत बिगाड़ दिया है। यहां तक कि नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि प्रधानमंत्री की बात राम और रामायण के बारे में और अधिक तथ्य जुटाने के प्रयास स्वरूप यह बात कही है। अगर ऐसा है तो ओली ने भारत पर सांस्कृतिक आक्रमण का आरोप क्यों लगाया? ओली के बॉडी लैंग्वेज, मनोविज्ञान और उनकी कोशिशों देखने से यह पता चलता है वे अपनी कुर्सी बचाने में जी जान से लगे हैं। हालांकि ओली धीरे- धीरे अब मत में आ गए हैं ।अब तक और दहल में 8 बार बातें हो चुकी हैं। ओली फिलहाल पार्टी के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री हैं। वह दोनों में से किसी भी पद को छोड़ना नहीं चाहते। 17 जुलाई को वार्ता के दौरान उन्होंने अपने समर्थकों को भड़का दिया तथा वह वार्ता स्थल पर प्रदर्शन करने लगे। इससे, पार्टी के अन्य नेता काफी नाराज हो गए। ओली का संसद में बहुमत नहीं है और इसलिए वे राष्ट्रपति का सहयोग चाहते हैं ताकि राष्ट्रपति संसद को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दें। 25 अगस्त को सेंट्रल कमिटी की मीटिंग होने वाली है और अगर संसद को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया तो ओली को इन विरोधियों से थोड़ी निजात मिल जाएगी। वहां कई ऐसे हैं जो चाहते हैं कि महामारी को बेकाबू होने के कारण देश में स्वास्थ्य आपात व्यवस्था लागू हो जाए। <br /><br /><br /><br /><br /><br /> ओली के पक्ष में तीन मामले हैं। पहला की दहल और अन्य सदस्य चाहते हैं कि पार्टी में किसी कीमत पर विभाजन नहीं हो। दूसरा कि, देश के राष्ट्रपति पाऊस में पूर्ण समर्थन है। तीसरा कि चीन से मिलने वाला संकेत जिसमें साथ आ गया है पार्टी को किसी भी कीमत पर टूटने से बचाना होगा। चीन से संबंध बनाए रखना उसकी मजबूरी है क्योंकि भारत से उसके रिश्ते बिगड़ चुके हैं। जो खबरें मिल रही हैं उससे लगता है कि संभवतः सेंट्रल कमेटी की मीटिंग अगस्त में नहीं होगी और ओली को थोड़ा वक्त मिल जाएगा। इसमें एक अच्छी बात दिख रही है कि सभी तरह के उकसावे के बावजूद भारत कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त कर रहा है। भारत को इंतजार करना चाहिए और किसी भी किस्म की प्रतिक्रिया से बचना चाहिए। ओली की समस्या को सुलझाने का एक मात्र यही विकल्प है। </div>
pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-69302457630978448012020-07-26T07:41:00.002-07:002020-07-26T07:42:20.178-07:00अब एक और अयोध्या विवाद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br /> अब एक और अयोध्या विवाद<br /><br /><br /> नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने दावा किया है कि भारत ने सच्चाई को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है और राम को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद की अयोध्या का राजा बताया है जबकि सच है किराम आज के नेपाल के किसी स्थान से आए थे। नेपाल के राष्ट्रकवि भानुभक्त आचार्य 206वीं जन्म जयंती पर आयोजित एक समारोह में ओली ने कहां की अयोध्या बिहार की सीमा बीरगंज के पश्चिमी क्षेत्र में थी। यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि भानुभक्त ने बाल्मीकि रामायण का नेपाली में अनुवाद किया था। ओली ने कहा कि उत्तर प्रदेश से आकर राम ने अयोध्या में शादी की यह सही नहीं है। “ हमें सांस्कृतिक रूप में चला गया है और भारत ने वास्तविकता को तोड़ा मरोड़ा है।” ओली ने कहा कि उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के अयोध्या का उदय बाद में हुआ और वह वास्तविक राम की राजधानी नहीं थी। उन्होंने कहा कि राम नेपाल के थे और सीता भी नेपाल की थीं। उन्होंने बारे में बताया कि बिहार की सीमा पर ठोरी एक जगह है वहीं अयोध्या थी। पुराणों में कहा गया है कि जब राम ने सीता का त्याग कर दिया तो वह अपने पुत्रों लव और कुश के साथ महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहती थीं। यह नारायणी( आज के गंडक) के तट पर था। यह नेपाल और बिहार की सीमा पर है और आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ जाते हैं। ओली ने दावा किया कि जिन पंडितों ने राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था नेपाल के रिदी क्षेत्र से गए थे। <br /><br /><br />नेपाल के प्रधानमंत्री का यह बयान एक ऐसे समय में आया है जब भारत और नेपाल में पहले से ही तनाव कायम है। नेपाल में कुछ लोग इस टिप्पणी का समर्थन भी कर रहे हैं और ज्यादा लोग इसका मजाक उड़ा रहे हैं। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने ओली के बयान पर तंज किया और ट्वीट किया कि “ होली द्वारा रचित कल युग रामायण सुनिए और सीधे बैकुंठ की यात्रा कीजिए।” नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री कमल थापा ने कहा किसी भी प्रधानमंत्री के इस तरह का आधारहीन बयान देना उचित नहीं है। प्रधानमंत्री के इस बयान पर नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार अमित ढकाल ने भी चुटकी ली और कहा कि “श्रीलंका काशी के पास है और वहां हनुमान नगर विजय जिसका निर्माण वानर सेना ने तब किया होगा जब वे पुल बनाने के लिए वहां एकत्र हुए होंगे।” <br /><br /><br /> राजनीति और कूटनीति से ऊपर है धर्म और बड़ा ही भावनात्मक मामला है। इस तरह की बयानबाजी से शर्मिंदगी के अलावा कुछ नहीं है क्योंकि अगर अयोध्या नेपाल में है और थी तो सरयू कहां है। लगता है कि ओली भारतीय मीडिया को मसाला दे रहे हैं। इस तरह की अनर्गल बातें खास करके पौराणिक तथ्यों के बारे में कहना और कह कर खुद को विद्वान महसूस करना बड़ा हास्यास्पद है। नेपाल के प्रधानमंत्री की बात को सुनकर ऐसा लगता है कि वे भारत को उकसाने के लिए उसने कुछ करते रहना चाहते हैं। नेपाल में अभी हाल में सीमा को लेकर जो कुछ बयानबाजी की है उसे कायम कटुता अभी खत्म नहीं हुई और केपी शर्मा ओली एक नया बयान देकर कटुता को बढ़ाने की कोशिश की है। राम और अयोध्या का संबंध एक ऐसा मसला है जो सदियों से भारत में विवाद का विषय बना है और इसे लेकर कई बार खून खराबे भी हुए हैं। बड़ी मुश्किल से अदालत के हस्तक्षेप के बाद मामला है और भगवान राम का मंदिर बनने की तैयारी चल रही है। ओली के इस बयान से इस स्थिति में कटुता पैदा हो सकती है। ओली जिस पार्टी के हैं उसका नाम है नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी । नाम में ही कम्युनिस्ट लगा है और कम्युनिज्म धर्म को नहीं मानता। ओली के प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो उन्होंने भगवान का नाम लेने से इनकार कर दिया था और जब भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने जनकपुर में पूजा की थी ओली उससे अलग ही थे। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मौके पर जब राजनीतिक पैंतरा बदलना है तो ओली को राम की याद आ गई।<br /><br /><br /> विगत कुछ महीनों से भारत और नेपाल में नक्शे को लेकर तनाव चल रहा है। नेपाल ने अपने नए नक्शे में लिपुलेख, लिंपियाधुरा और काला पानी पर दावा किया है। यह तीनों इलाके फिलहाल भारत में हैं। इस नए नक्शे के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ता गया। पिछले साल जम्मू कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद भारत ने अपना नक्शा अपडेट किया उस समय यह तीनों इलाके भारत के थे। लेकिन नेपाल में चीनी राजदूत होउ यांकी की मुलाकात के बाद तनाव बढ़ने लगा। कहा तो यह भी गया कि ओली को हनी ट्रैप में फंसा कर यह सब करवाया जा रहा है। इस पर ओली ने बहुत कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की। भारतीय मीडिया के कई चैनलों पर रोक लगा दी गई। वैसे चीन के राजदूत की नेपाल में सक्रियता को देखकर वहां के लोगों ने भी इस पर आपत्ति की है। <br /><br /><br /><br /><br /><br /> धीरे धीरे भारत और नेपाल में तनाव बढ़ता जा रहा है। नेपाल को अपनी सीमाएं और भारत पर आर्थिक निर्भरता के बारे में सोचना चाहिए। नेपाली अर्थव्यवस्था भारत पर बहुत कुछ टिकी है। नेपाल चुकी लैंडलॉक्ड है इसलिए वह भारतीय गोदियों को अपने व्यापार के लिए इस्तेमाल करता है और लगभग 60 लाख नेपाली भारत में काम करते हैं। नेपाल को अपनी गलतियों से सीखना चाहिए मलहम वह भारत से वार्ता के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। सीमा विवाद एक गंभीर परिणाम हो सकते हैं भारत और नेपाल दोनों देशों को समझना चाहिए। </div>
pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-84109932457958037222020-07-17T18:16:00.002-07:002020-07-17T18:16:57.653-07:00चीन की आक्रामक रणनीति का भारत द्वारा जवाब<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br /> चीन की आक्रामक रणनीति का भारत द्वारा जवाब<br /><br /><br /> चीन को भारत यह समझाने में लगा है कि अगर दोनों देशों में युद्ध होता है तो ज्यादा नुकसान चीन का होगा और भारत ने उस पर आर्थिक वार करना आरंभ कर दिया है। बुधवार को भारत में 5जी नेटवर्क तैयार करने और उसके अनुरूप टेलीफोन या कहें स्मार्ट फोन बनाने के लिए जहां भारत के जिओ नेटवर्क ने गूगल से हाथ मिलाया है वहीं भारत सरकार ने तीनों सेनाओं को रक्षा खरीद की खुली छूट दे दी है और साथ ही कूटनीतिक एवं सैन्य वार्ताओं के माध्यम से भी उसे बताने में लगा है कि जंग ना हो उसी में भलाई है। भारत में 5जी नेटवर्क के लिए गूगल ने 33,737 करोड़ रुपए के निवेश की मंजूरी दे दी है। वहीं भारत चीन गतिरोध के मद्देनजर भारत सरकार ने सेना के तीनों अंगों को 300 करोड़ रुपए तक की पूंजीगत खरीद की मंजूरी दी है। इन सबके बावजूद यहां एक प्रश्न उभरता है क्या यह वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे हटने संबंधी समझौता सचमुच शांति के लिए है या यह नए तरह का युद्ध है। जहां तक वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे हटने संबंधी समझौते की बात है तो उस पर ज्यादा भरोसा करना उचित नहीं होगा क्योंकि पीछे हटने की प्रक्रिया बहुत धीमी है और इसी बीच वार्ताएं भी हो रही हैं। वार्ताओं के बीच चीन ने साफ कर दिया है कि वह फिंगर क्षेत्र को खाली नहीं करेगा। हालांकि वह फिंगर 4 से थोड़ा पीछे हटा है लेकिन वह पूरे फिंगर क्षेत्र को खाली करने को तैयार नहीं है। भारत और चीन में बुधवार को 15 घंटे तक बातचीत चली और 21 या 22 जुलाई को भारत और चीन पीछे हटने की प्रक्रिया को वेरीफाई करेंगे। भारत और चीन के बीच जो वार्ताएं उस का मुख्य आधार था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव कम किया जाए। इसके अलावा मीटिंग में पैंगोंग त्सोऔर देपसॉन्ग पर भी वार्ताएं हुई । लेकिन चीन की गतिविधि लगता है कि वार्ता के पर्दे में एक नए तरह का युद्ध चला रहा है। गलवान में जो मुठभेड़ हुआ वह चीन की अगली रणनीति की ओर इशारा करता है तथा भारत को भी यह संदेश देता है कि वह आदेश की प्रतीक्षा ना करें और तारक कदम उठाएं। <br /><br /><br /> <br /><br /><br />वैसे आज युद्ध का स्वरूप बदल गया हैऔर अब वह केवल मैदान में ही सीमित नहीं रहा जाता वहां से निकलकर तरह-तरह के रूप बदलकर हमें या कहिए लड़ने वालों को प्रभावित करता है। जहां तक, भारत चीन समरनीतिक रिश्ते हैं हमें उनकी जटिलताओं आकलन करना होगा । अभी जो सैनिक हैं ,हथियार हैं और वार्ताएं हैं वह सब तात्कालिक हैं क्योंकि यह सब चलता रहता है और युद्ध भी स्वरूप बदल कर कायम रहता है जैसे आतंकवाद, कूटनीति गुटबाजी, आर्थिक प्रहार इत्यादि इत्यादि। यह सब युद्ध के बदले हुए स्वरूप हैं। जब से भारत आजाद हुआ चीन से हमारा नरम गरम रिश्ता कायम रहा है। इन सबके बीच चीन हमले भी कर लेता है और मोर्चेबंदियां भी। यह कहने का मतलब है कोई भी समझौता और इस तरह की चीजें ब्रह्मवाद नहीं हैं इन सब का इस्तेमाल बहुत सोच समझ कर किया जाना चाहिए। जैसे हमने चीनी आयात पर प्रतिबंध की बात की है तो हमें देखना पड़ेगा कि वर्तमान में चीन और भारत के आर्थिक रिश्ते कितनी दूर तक जुड़े हुए हैं और यदि उन पर प्रहार होता है तो ज्यादा हानि किसकी होगी? हमारे यहां आत्मनिर्भर भारत जबरदस्त चर्चा है लेकिन हमें यह देखना होगा हमारी आत्मनिर्भरता कितनी दूर तक परनिर्भरता से जुड़ी है और हम उससे क्या-क्या लाभ उठा सकते हैं। चीन ने इस तथ्य को अच्छी तरह समझा है। वह यूरोप पर निर्भर रहते हुए आत्मनिर्भर हो गया और फिर उसके पल्ला झाड़ लिया। भारत को भी इस गणित का लाभ उठाना चाहिए। जहां तक कूटनीतिक पैंतरेबाजी का सवाल है तो इसका दिलचस्प उदाहरण हांगकांग है। अभी हाल में चीन ने हांगकांग पर एक नया कानून थोपा जिसके अंतर्गत चीन का विरोध करने वाले प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल भेजा जा सकता है। अमेरिका में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई और अमेरिका ने भी एक नया कानून पारित कर दिया। देखने की बात है दोनों देशों ने जो कानून बनाए हैं वह एक्स्ट्रा टेरिटोरियल है। ना यह कानून चीनी सीमा के भीतर लागू है और ना अमेरिकी सीमा के। यहां एक दिलचस्प मसला सामने आता है हांगकांग पर नई स्थिति का क्या असर होगा और उसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा क्योंकि हांगकांग के रास्ते भारत में आयात ज्यादा है। पिछले कुछ वर्षों से चीन से आयात कम हो रहा है और हांगकांग से बढ़ रहा है। इस बीच हमारे देश में आत्मनिर्भरता की बात उठ रही है। आत्मनिर्भरता के लिए सबसे जरूरी है अपने देश के उद्योग धंधों को वैश्विक स्तर पर प्रतियोगितामूलक बनाना। अगर कोई देश हमारे उद्योगों से ज्यादा सस्ता माल बनाता है तो वह हमारे देश में आएगा ही चाहे जिस रास्ते से आए। अगर हमें आत्मनिर्भर बनना है तो अपने देश में बिकने वाले माल को दूसरे देशों से आने वाले उसी माल से सस्ता देना होगा। अगर ऐसा हम नहीं कर पाते हैं तो आत्मनिर्भरता के नारे सिर्फ नारे बनकर रह जाएंगे। अभी चीन के साथ जो कुछ भी चल रहा है वह एक युद्ध है और हमें उस में चीन को पछाड़ने की बात सोचनी चाहिए। हम युद्ध नहीं चाहते हैं लेकिन अपनी भूमि नहीं छोड़ेंगे। अगर हम चीन की योजनाओं के शिकार होते हैं तो हमारा भविष्य हमें नहीं माफ करेगा। हमें हर मोर्चे पर दृढ़ता से अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी होगी चाहे वह प्रत्यक्ष युद्ध का मैदान हो या परोक्ष मोर्चाबंदी।<br /></div>
pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-53466651353537436592020-07-17T18:14:00.002-07:002020-07-17T18:14:47.290-07:00राजस्थान का सियासी तापमान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br />राजस्थान का सियासी तापमान<br /><br /><br /> राजस्थान के कांग्रेसी सियासत में अब पायलट सीट नहीं रही। बगावती सचिन पायलट को 72 घंटे तक मनुहार किया जाता रहा लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ उसके बाद उन पर कार्रवाई की गई। उन्हें उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया। हालांकि अभी उन्हें पार्टी से निकाला नहीं गया है। झगड़ा तब शुरू हुआ जब सचिन पायलट मुख्यमंत्री पद से नीचे के लिए तैयार नहीं थे और कांग्रेस हाईकमान गहलोत से पल्ला झाड़ने के पक्ष में नहीं है। 72 घंटे तक बात चली पायलट ने राहुल गांधी से भी मुलाकात की और उनकी बात से भी इंकार कर दिया। पायलट ने सिर्फ कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष 4 शर्तें रखी थी लेकिन बात नहीं बनी और अंततः पायलट को हटा दिया गया। अब बात उठती है कि आगे क्या होगा? राजस्थान में 2018 में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को पराजित कर कांग्रेस ने गद्दी अपनायी थी। इसके पहले कांग्रेस की करारी हार हो गई थी। सचिन पायलट वाले मामले से पहले मध्यप्रदेश में ऐसा हो चुका है और वहां कांग्रेस को सत्ता खोनी पड़ी है। इसके बाद आया है मामला राजस्थान और इस मामले ने कांग्रेस के भीतर की समस्त व्यवस्था को झकझोर दिया है। मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में ऐसा हुआ है और इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता हुआ है, पार्टी के भीतर खलबली मच गई है। वैसे सियासी गलियारों में यह चर्चा है बगावत की शुरुआत तो मार्च में ही हो गई थी लेकिन हाईकमान को इसका पता नहीं चला और जब पता चला तो परंपरागत इलाज के अलावा कुछ नहीं था, कोई रास्ता ही नहीं बचा। कांग्रेस पार्टी 2014 के पराजय के बाद से भीतरी चुनौतियों का सामना कर रही है। आंतरिक विद्रोह के कारण यह चारों खाने चित नजर आ रही है। आखिर देश की सबसे पुरानी पार्टी का इतना बुरा हाल क्यों हुआ? लोग पार्टी छोड़ कर क्यों जा रहे हैं? कांग्रेस के चरित्र और उसके आचरण को देखते हुए यह कहा जा सकता है की जो कुछ हो रहा है उसकी वजह गांधी परिवार है खास कर वर्तमान में सोनिया गांधी। अगर कांग्रेस का इतिहास देखें तो हर पार्टी के भीतर टूटन के लिए पार्टी हाईकमान का जिद्दी रवैया ही जिम्मेदार रहा है। सुभाष चंद्र बोस की घटना हो या फिर पटेल की या भारत के विभाजन की सब जगह पार्टी नेतृत्व का जिद्दी रवैया दोषी रहा है। इस बार भी चाहे वह सचिन पायलट का मामला हो या सिंधिया का सोनिया गांधी का मनोविज्ञान साफ दिख रहा है कि वह नहीं चाहतीं कोई भी ऐसा नेता उभरे जो राहुल गांधी की चुनौती बन सके। यहां तक कि उन्होंने प्रियंका गांधी के भी आगे नहीं बढ़ने दिया। पार्टी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि बेटे के करियर को आगे बढ़ाने के लिए सोनिया गांधी ने सिद्धांतों और मेरिट को भी कुर्बान कर दिया। आम धारणा है कि भारतीय जनता पार्टी इन नेताओं को कांग्रेस से निकलने के लिए ना केवल उकसा रही है बल्कि बाध्य भी कर रही है। परंतु भारतीय जनता पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने कभी इनको बुलाया नहीं आए। इनका मानना है पार्टी में मेरिट को नजरअंदाज कर दिया जा रहा है और राहुल गांधी में राजनीति की समझ शून्य है । भाजपा का दावा है उसकी पार्टी में आने वाले कांग्रेसियों की लाइन लगी हुई है लेकिन जिनमें कुछ मेरिट है उन्हें ही पार्टी में लिया जा रहा है।<br /><br /><br /> दूसरी तरफ कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि सोनिया गांधी या राहुल गांधी से किसी को कोई समस्या नहीं है। कुछ कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार को सोशल मीडिया पर लगातार बदनाम किया जा रहा है। एक साथ गिरोह बन गया है जिसमें सोशल मीडिया के लोग, बिकी हुई मीडिया और कुछ फिल्म स्टार शामिल हैं। उन्हें देशद्रोही की तरह पेश किया जाता है। यह हिटलर का जमाना याद दिलाता है। यह एक बड़ा संघर्ष है जिससे हम मुकाबले की कोशिश में लगे हुए हैं। लेकिन पार्टी के चरित्र को निश्चित किए जाने के बाद निष्कर्ष निकलता है के कांग्रेस पार्टी समय के अनुसार खुद को नहीं बदल पा रही है और उसने अब तक भीतर से आत्म निरीक्षण नहीं किया। कांग्रेस में राजनीतिक और वैचारिक कायाकल्प का कभी गंभीर प्रयास नहीं किया गया। बेशक, कांग्रेस पार्टी आंदोलन के आधार पर खड़ी हुई और वहीं से उसका सियासी सफर शुरू हुआ जिसके कारण पार्टी में काडर नहीं बल्कि कार्यकर्ता हैं। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी काडर आधारित पार्टी है। यहां गौर करने की चीज है कि काडर विचारधारा से बनता है जबकि पार्टी वर्कर से बनती है। वैसे बाजार में एक चर्चा है इन दिनों राजनीति मनी, मसल और मीडिया से न केवल संचालित रहती है बल्कि इसी से प्रभावित भी होती है। कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी मजबूरी है इससे निपटने का तरीका उसको मालूम नहीं है। <br /><br /><br /><br /><br /><br />इन सब मजबूरियों के बावजूद सचिन पायलट ने कांग्रेस नहीं छोड़ने का फैसला किया है और आगे के कदमों पर विचार कर रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी के भीतर उनकी छवि खराब करने के लिए यह लगातार बात फैलाई जा रही है वह भाजपा के साथ खड़े हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे भाजपा में शामिल नहीं हो रहे हैं।उनका कहना है कि वह अभी भी कांग्रेस पार्टी में है और आगे क्या करना है इस पर फैसला कर रहे हैं। वह राजस्थान के लोगों की सेवा करते रहेंगे। राजनीति में अटकलबाजियां बहुत होती हैं और इनके आधार पर कोई भी निर्णय बड़ा कठिन होता है। इसलिए यहां यह कहना ही पर्याप्त है कि सब कुछ आने वाला समय बताएगा। कांग्रेस पार्टी ने भी पायलट के लिए एक खिड़की खुली रखी है और वह है अभी उन्हें पार्टी से निकाला नहीं गया है केवल पद से हटाया गया है। इसका मतलब है पायलट अभी भी कांग्रेस में हैं और कुछ भी हो सकता है। कोविड-19 के इस दौर में दो चीजों का आकलन बड़ा कठिन है पहला शारीरिक तापमान और सांस लेने की प्रक्रिया। राजस्थान की सियासत में कुछ ऐसा ही दिख रहा है, वहां के सियासी तापमान को मापना बड़ा कठिन है।</div>
pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-45107219153135338712020-07-17T18:12:00.000-07:002020-07-17T18:12:31.838-07:00अब एक और अयोध्या विवाद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br />अब एक और अयोध्या विवाद<br /><br /><br /> नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने दावा किया है कि भारत ने सच्चाई को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है और राम को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद की अयोध्या का राजा बताया है जबकि सच है किराम आज के नेपाल के किसी स्थान से आए थे। नेपाल के राष्ट्रकवि भानुभक्त आचार्य 206वीं जन्म जयंती पर आयोजित एक समारोह में ओली ने कहां की अयोध्या बिहार की सीमा बीरगंज के पश्चिमी क्षेत्र में थी। यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि भानुभक्त ने बाल्मीकि रामायण का नेपाली में अनुवाद किया था। ओली ने कहा कि उत्तर प्रदेश से आकर राम ने अयोध्या में शादी की यह सही नहीं है। “ हमें सांस्कृतिक रूप में चला गया है और भारत ने वास्तविकता को तोड़ा मरोड़ा है।” ओली ने कहा कि उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के अयोध्या का उदय बाद में हुआ और वह वास्तविक राम की राजधानी नहीं थी। उन्होंने कहा कि राम नेपाल के थे और सीता भी नेपाल की थीं। उन्होंने बारे में बताया कि बिहार की सीमा पर ठोरी एक जगह है वहीं अयोध्या थी। पुराणों में कहा गया है कि जब राम ने सीता का त्याग कर दिया तो वह अपने पुत्रों लव और कुश के साथ महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहती थीं। यह नारायणी( आज के गंडक) के तट पर था। यह नेपाल और बिहार की सीमा पर है और आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ जाते हैं। ओली ने दावा किया कि जिन पंडितों ने राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था नेपाल के रिदी क्षेत्र से गए थे। <br /><br /><br />नेपाल के प्रधानमंत्री का यह बयान एक ऐसे समय में आया है जब भारत और नेपाल में पहले से ही तनाव कायम है। नेपाल में कुछ लोग इस टिप्पणी का समर्थन भी कर रहे हैं और ज्यादा लोग इसका मजाक उड़ा रहे हैं। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने ओली के बयान पर तंज किया और ट्वीट किया कि “ होली द्वारा रचित कल युग रामायण सुनिए और सीधे बैकुंठ की यात्रा कीजिए।” नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री कमल थापा ने कहा किसी भी प्रधानमंत्री के इस तरह का आधारहीन बयान देना उचित नहीं है। प्रधानमंत्री के इस बयान पर नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार अमित ढकाल ने भी चुटकी ली और कहा कि “श्रीलंका काशी के पास है और वहां हनुमान नगर विजय जिसका निर्माण वानर सेना ने तब किया होगा जब वे पुल बनाने के लिए वहां एकत्र हुए होंगे।” <br /><br /><br /> राजनीति और कूटनीति से ऊपर है धर्म और बड़ा ही भावनात्मक मामला है। इस तरह की बयानबाजी से शर्मिंदगी के अलावा कुछ नहीं है क्योंकि अगर अयोध्या नेपाल में है और थी तो सरयू कहां है। लगता है कि ओली भारतीय मीडिया को मसाला दे रहे हैं। इस तरह की अनर्गल बातें खास करके पौराणिक तथ्यों के बारे में कहना और कह कर खुद को विद्वान महसूस करना बड़ा हास्यास्पद है। नेपाल के प्रधानमंत्री की बात को सुनकर ऐसा लगता है कि वे भारत को उकसाने के लिए उसने कुछ करते रहना चाहते हैं। नेपाल में अभी हाल में सीमा को लेकर जो कुछ बयानबाजी की है उसे कायम कटुता अभी खत्म नहीं हुई और केपी शर्मा ओली एक नया बयान देकर कटुता को बढ़ाने की कोशिश की है। राम और अयोध्या का संबंध एक ऐसा मसला है जो सदियों से भारत में विवाद का विषय बना है और इसे लेकर कई बार खून खराबे भी हुए हैं। बड़ी मुश्किल से अदालत के हस्तक्षेप के बाद मामला है और भगवान राम का मंदिर बनने की तैयारी चल रही है। ओली के इस बयान से इस स्थिति में कटुता पैदा हो सकती है। ओली जिस पार्टी के हैं उसका नाम है नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी । नाम में ही कम्युनिस्ट लगा है और कम्युनिज्म धर्म को नहीं मानता। ओली के प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो उन्होंने भगवान का नाम लेने से इनकार कर दिया था और जब भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने जनकपुर में पूजा की थी ओली उससे अलग ही थे। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मौके पर जब राजनीतिक पैंतरा बदलना है तो ओली को राम की याद आ गई।<br /><br /><br /> विगत कुछ महीनों से भारत और नेपाल में नक्शे को लेकर तनाव चल रहा है। नेपाल ने अपने नए नक्शे में लिपुलेख, लिंपियाधुरा और काला पानी पर दावा किया है। यह तीनों इलाके फिलहाल भारत में हैं। इस नए नक्शे के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ता गया। पिछले साल जम्मू कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद भारत ने अपना नक्शा अपडेट किया उस समय यह तीनों इलाके भारत के थे। लेकिन नेपाल में चीनी राजदूत होउ यांकी की मुलाकात के बाद तनाव बढ़ने लगा। कहा तो यह भी गया कि ओली को हनी ट्रैप में फंसा कर यह सब करवाया जा रहा है। इस पर ओली ने बहुत कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की। भारतीय मीडिया के कई चैनलों पर रोक लगा दी गई। वैसे चीन के राजदूत की नेपाल में सक्रियता को देखकर वहां के लोगों ने भी इस पर आपत्ति की है। <br /><br /><br /><br /><br /><br /> धीरे धीरे भारत और नेपाल में तनाव बढ़ता जा रहा है। नेपाल को अपनी सीमाएं और भारत पर आर्थिक निर्भरता के बारे में सोचना चाहिए। नेपाली अर्थव्यवस्था भारत पर बहुत कुछ टिकी है। नेपाल चुकी लैंडलॉक्ड है इसलिए वह भारतीय गोदियों को अपने व्यापार के लिए इस्तेमाल करता है और लगभग 60 लाख नेपाली भारत में काम करते हैं। नेपाल को अपनी गलतियों से सीखना चाहिए मलहम वह भारत से वार्ता के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। सीमा विवाद एक गंभीर परिणाम हो सकते हैं भारत और नेपाल दोनों देशों को समझना चाहिए। </div>
pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-32880678429894675102020-07-14T06:39:00.002-07:002020-07-14T06:39:47.886-07:00धोरों में बवंडर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br /> धोरों में बवंडर<br /><br /><br /> धोरों की धरती राजस्थान में इन दिनों सियासी बवंडर चल रहा है। स्थापित शासन संकट में आ गया है और आरोपों-प्रत्यारोपों झड़ी लगी हुई है। 2 दिन पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह उनकी सरकार को गिराने में लगी है । उनका कहना है कि फिलहाल वे तीन तीन मोर्चों पर जूझ रहे हैं। एक तरफ तो कोरोना से दो-दो हाथ कर रहे हैं दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए लड़ रहे हैं और अब यह तीसरा सियासी मोर्चा खुल गया है। भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगी है। इस खरीद-फरोख्त को लेकर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप जांच में भी लगी है। पुलिस के इस स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मुख्य सचेतक को भी जांच के लिए बुलाया था। लेकिन अब बात बदल चुकी है। अब राजस्थान की यह सियासी जंग अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट की हो गई है। ठीक उसी तरह जैसे मध्यप्रदेश में कमलनाथ बदाम ज्योतिरादित्य सिंधिया की हो गई थी और वहां से कांग्रेस को हाथ धोना पड़ा। सचिन पायलट का कहना है कि गहलोत की सरकार अल्पमत में आ गई है। उधर कांग्रेस का कहना है गहलोत के साथ 109 विधायक हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया है कि “ क्या हम तभी जागेंगे जब सारे घोड़े अस्तबल से निकल जाएंगे। ” राजस्थान की यह खींचतान 2018 में उस समय से शुरू होती है जब यहां कांग्रेस की सरकार बनी और मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत तथा सचिन पायलट में रस्साकशी शुरू हो गई। हालांकि, गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट उप मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद रस्साकशी खत्म हो गई। लेकिन अब करीब डेढ़ साल बाद एक बार फिर से राजस्थान कांग्रेस में इन दोनों शीर्ष नेताओं के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। तनाव का चरित्र और भारतीय राजनीतिक आचरण को देखते हुए ऐसा लग रहा है अब राजस्थान में भी वही होने जा रहा है जो मार्च में मध्यप्रदेश में हुआ। मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने के माध्यम से सचिन पायलट के लिए समर्थन जताया है और कहा है कि कांग्रेस में प्रतिभा और काबिलियत के लिए बहुत कम जगह है। अब यहां जो पहला सवाल उठता है वह कि क्या सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ेंगे? शायद ऐसा नहीं होगा क्योंकि अक्षर कांग्रेस के पुनरुत्थान की बात करते हैं और अभी भी उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या होने वाला है। <br /><br /><br /> अगर मामला इतना लचीला है तो फिर कांग्रेस में युवा नेता और पुराने क्षेत्रीय नेताओं में तालमेल का इतना अभाव क्यों? मध्यप्रदेश में आज जो कुछ हुआ है वह तो अच्छे से दिख रहा था और अब राजस्थान में भी दिखने लगा है कि क्या होने वाला है और क्या हो रहा है। इस सारे सियासी खेल में समय और आरोपों का शौक था महत्वपूर्ण है। यह कैसे वक्त में आया जब सरकार महामारी से जूझ रही है, लॉक डाउन चल रहा है और अधिकांश राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक गतिविधियों को खुलकर नहीं चला पा रहे हैं और ना इसमें कोई बाहरी कारक हैं। लेकिन इसमें कांग्रेस के आंतरिक डायनामिक्स का सबसे ज्यादा साबका है। <br /><br /><br /> भारत की राजनीति में पायलट की है दूसरी पीढ़ी है लेकिन राजनीतिक स्टाइल में यह उससे यानी पहली पीढ़ी से बिल्कुल अलग है। आज पायलट को राजस्थान के सबसे प्रभावशाली जाति समूह गुर्जरों का समर्थन प्राप्त है। सचिन पायलट ने ऊपमुख्यमंत्री पद के लिए कठोर संघर्ष किया इससे साफ जाहिर होता है पायलट में सियासत की भूख है और महत्वाकांक्षा है साथ ही वे समझते हैं कि इस विद्रोह की क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। इसलिए, कहा जा सकता है कि इस बार मोर्चाबंदी जरा कठोर है और वह जानते हैं इस बार यह पहले की तरह कारोबार नहीं है तथा पार्टी नेतृत्व उनकी बात सुनना चाहता है। <br /><br /><br /><br /><br /><br /> गहलोत एक ही पत्थर से दो शिकार करना चाहते हैं और इसलिए उन्होंने कदम थोड़ा आगे बढ़ा दिया है। गहलोत ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह पार्टी को तोड़ना चाहती है और इसके लिए उन्होंने एक दिखावटी जांच बैठा दी।वह थोड़ा आगे बढ़ गए उन्होंने यह नहीं समझा पालक इसका जवाब देंगे। पायलट ने इस पर गहलोत की उम्मीद से तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की । अतीत में भी दोनों में कहासुनी हो चुकी है। विभागों के बंटवारे से लेकर गहलोत द्वारा अपने बेटे वैभव को लोकसभा चुनाव में खड़ा किए जाने की इच्छा को लेकर दोनों भिड़ गए थे। कोटा हे अस्पताल में बच्चों की मौत को लेकर भी दोनों में कहासुनी हो चुकी है। इस बार गहलोत और पायलट के बीच रस्साकशी का एक कारण को छोड़कर कोई जाहिर कारण नहीं है। लेकिन जो भी हो यह बवंडर राजस्थान में पार्टी के भविष्य को तय करेगा।</div>
pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-46695330258183040012020-07-13T08:08:00.000-07:002020-07-13T08:08:44.679-07:00भारत की “चीन” पहेली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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भारत की “चीन” पहेली<br />
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भारत में जिस तरह गीता का सम्मान है उसी तरह चीन में प्राचीन पुस्तक आई चिंग का मान है। आई चिंग में बताया गया है कि “अपनी भावनाओं पर काबू रखें अगर ऐसा नहीं करेंगे तो आगे तबाही का सामना करना पड़ेगा। ”चीन पर शासन करने वाले सम्राट समझदारी भरे इस सलाह को बहुत सम्मान देते थे। आज भी आई चिंग चीन में उसी तरह जबरदस्त असर है रखती है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी अभेद्यता के लिए दुनिया में मशहूर है और इसीलिए इसे फोरबिडेन सिटी कहते हैं।चीन इससे कई बार डिगा भी है लेकिन बाद में इसे संभाल लिया है। चीन ने कोविड-19 हो जिस तरह संभाला वह उदाहरण का मुद्दा है। अलग-अलग महा देशों में हजारों लोगों की मौत उससे भी ज्यादा प्रभावित है और उससे कई गुना ज्यादा आजीविका के खत्म होने से छीन के प्रति गुस्सा तो जरूर है और यह वास्तविक है। आगे भी यह गुस्सा कायम रहेगा। चीन का शासक अच्छी तरह समझता है इस गुस्से का व्यापक नतीजा हो सकता है। बेशक दुनिया भर का गुस्सा चीन की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालेगा। यही नहीं इस गुस्से और उसके असर के कारण हो सकता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी योजना और सियासत दोनों खत्म हो जाए। राजनीतिक और आर्थिक रूप से चीन अलग-थलग हो जा सकता है एक आदेश हो सकता है और तब यह वैश्विक ताकत हो जाने की महत्वाकांक्षा नहीं रख सकता। जब से चीन में डेंग जियाओ पिंग का शासन था तब से चीन की सत्ता का लक्ष्य वैश्विक ताकत बनना ही था। चीन की मौज मस्ती खत्म हो गई है। आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की लगाम थाम ली है और सभी देश इस से मुक्त होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन चीन को यह गुमान है कि वह इससे बाहर निकल आएगा और उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा तो उसने खुद का गलत आकलन किया है। पूरी दुनिया के साथ साथ चीन की अर्थव्यवस्था भी कठिनाई में पड़ी हुई है। आंकड़ों को अगर देखें तो पता चलेगा चीन में बेरोजगारी की दर लगभग 10% है, यानी हर दसवां आदमी बेकार है। कल कारखाने बंद है इसका मतलब है रोजगार में कमी। शी जिनपिंग कभी सोचा ही नहीं होगा और वायरस चीन पर इतना प्रहार करेगा। 2019 की पहली तिमाही के मुकाबले 2020 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था 6.8% गिर जाएगी। यही कारण है पिछले हफ्ते चीन की सबसे महत्वपूर्ण बैठक टू सेशन्स बैठक में अर्थव्यवस्था और आगे के सभी राहों पर लंबी चर्चा हुई। इस बैठक में हुई चर्चा में सरकार का मिजाज कैसा था इसकी झलक तो जरूर मिली है। 1990 के बाद से पहली बार चीन ने सालाना जीडीपी लक्ष्य नहीं तय किया है। चीन की सरकार दोबारा वही सोच लगेगी जहां दशकों पहले थी यानी रोजगार का निर्माण लाखों लोगों की नौकरी चली गई और उन्हें फिर से खपाना इसके साथ ही ही 87 लाख ग्रेजुएट के लिए रोजगार पैदा करना, महंगाई से निपटना इत्यादि ऐसी है जो चीन के सामने प्रस्तुत है। चीन का आर्थिक व्यापार पूरी तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। चीन की सरकार या चीनी सत्तारूढ़ दल के लिए अच्छा समय नहीं है। चीन की देश में आलोचना और विदेशों में निंदा हो रही है तथा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने के चीनी मंसूबे तार-तार हो गए। महामारी के प्रकोप से निपटने के चीनी सरकार के खासकर शी जिनपिंग तरीकों का उल्टा असर पड़ा। शी जिनपिंग के तरीके में मोह, माया, कोमलता, चिंता दया इत्यादि की कमी दिखाई पड़ी। दूर की कौड़ी लाने वाले लोग यह कहते सुने जा रहे हैं चीन की कार्रवाई भारत द्वारा धारा 370 को खत्म करने तथा जम्मू कश्मीर को पुनर्गठित करके तो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश में बदलने जिसके तहत लद्दाख सीधे केंद्र सरकार के अधीन आ जाता है। चीन की वर्तमान आक्रमकता का कारण यही है। चीन ने यही कारण है ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया और उसे अमेरिका का कुत्ता कहा। जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन के राष्ट्रपति सनकी कहा। ऐसा करके आई चिंग को नजरअंदाज कर रहा है, जिसमें कहा गया है ऐसा करने से कोई फायदा नहीं होगा केवल तमा ही जाएगी।<br />
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भारतीय क्षेत्र के लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बार-बार चीन की घुसपैठ और नेपाल की ओली सरकार द्वारा भारत की छवि जमीन कब्जा करने वाले देश के रूप में पेश करने अभियान को इसी पृष्ठभूमि जाना चाहिए। भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में बयान दिया था अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन का नियंत्रण अपने हाथ में देंगे के लिए भारत वचनबद्ध है। यह बात समझ से परे है अगर चीन युद्ध नहीं चाहता तो वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के रणनीतिक बुनियादी ढांचे के निर्माण से गुस्से में क्यों है? वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की कार्रवाई के तीन कारण हो सकते हैं पहला की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता देश में बढ़ती दिक्कतों की वजह से लोगों की सरकार विरोधी भावनाओं को भटकाना चाहते हैं। ठीक वैसा ही जिस तरह अरब देशों में जब-जब घरेलू मुद्दों पर असंतोष बढ़ता है और वह सड़कों पर उतरते हैं तो वहां की सरकार हद स्टील के लिए समर्थन का ऐलान कर देती है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में चीन ने अपने दूतावासों को आक्रामक अंदाज में रखा है लेकिन इस हिस्से में अपनी सेना को वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भेज कर भारतीय इलाके में शिविर डाल दिया है। दोनों ही चाल कम लागत वाली है। दूसरा कारण हो सकता है कि शी जिनपिंग की सरकार अपने देश की जनता को बताना चाहती है कोविड-19 के लिए उसे जो कीमत चुकानी पड़ रही है उससे चीन भले ही कमजोर हो गया है लेकिन विचलित नहीं हुआ है। शी यह दिखाना चाहते हैं कि वे हर हाल में अपराजेय हैं और दुनिया में चीन की धाक जमाने में लगे हैं। तीसरी बात है कि वह भारत को चेतावनी देना चाहता है कि महामारी की वजह से जो जगह खाली है मुझे भरने की कोशिश ना करें और खुद को सप्लाई लाइन के केंद्र के रूप में पेश न करें। लेकिन यह सब अटकलबाजी है। लड़ाई झगड़े से रोमांच तो जरूर पैदा होता है लेकिन यह मूर्खता पूर्ण है। अटल बिहारी बाजपेई ने कहा था कि कितना भी समतल क्यों न हो हर जगह ढलान है। धौंस जमाने वाले नतीजों की परवाह किए बगैर ढलान में गिर जाते हैं और जिम्मेदार ताकतें ढलान को छोड़ देती हैं।</div>
pandeyhariramhttp://www.blogger.com/profile/11145272682268868610noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1867739345075853233.post-70131767157287381672020-07-13T08:04:00.002-07:002020-07-13T08:04:53.128-07:00चीन के मंसूबे ढेर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br />चीन के मंसूबे ढेर<br /><br /><br /> सभ्यताएं बताती हैं कि आबादी के सोचने का ढंग क्या है। हमारे यहां वेदों में कहा गया है कि जैसी सभ्यता होगी वैसे ही सोचने का तरीका होगा। भारतीय सभ्यता हो अगर कुल मिलाकर देखें तो वह वसुधैव कुटुंबकम की सभ्यता है। इसका मतलब है कि हम भारतीय आक्रमण और प्रसार में भरोसा नहीं रखते जबकि चीन शब्द का मतलब है केंद्र। चीन शब्द की शुरुआत चुंग वा साम्राज्य से आरंभ हुई और इसका मतलब होता है मध्य देश। चीन के सोचने का ढंग भी कुछ ऐसा ही है कि खुद को दुनिया का केंद्र मानता है यानी दुनिया की हर चीज हर ताकत उसके चारों ओर घूमती है और वह स्वयं केंद्र में रहे। चीन खुद के लिए सबसे ज्यादा सोचता है । हम यहीं से अलग हो जाते हैं। दुनिया के दो शक्तिशाली देश जो एक दूसरे के पड़ोस में हैं वहां की आबादी यह सोचने का ढंग अलग अलग है। अतीत में गस्ती हुआ करती थी और कभी कभार दोनों देशों की सेना भी आमने-सामने आ जाती, लेकिन सैनिकों की संख्या बहुत कम होती थी , 40, 50या 100 के आसपास। परंतु इस बार पूर्वी लद्दाख में बड़ी संख्या में फौज उतर गई। चीनी सेना ने इसके लिए तैयारी की थी। यही कारण है कि हमारी सरकार कह रही है कि चीनी फौजों की यह मोर्चाबंदी सोची समझी गई थी। पूर्वी लद्दाख में फौज उतारी गई और उसे भी सीमा पर तैनात ना कर के भारतीय सीमा के थोड़ा भीतर किया गया। ऐसा रातो रात हो नहीं सकता है,इसके लिए पहले से तैयारी करनी होगी और चीन ने अप्रैल के आरंभ से ही यहां युद्धाभ्यास करने की योजना बनाई और आनन-फानन में पूर्वी क्षेत्र में सेना भेज दी गई।<br /><br /><br /> चीनी सेना मोर्चे पर एकदम तैयार होकर और योजना बना कर आई थी यह अचानक नहीं हुआ था। इसे सेना की दो टुकड़ियों के बीच अचानक “फेस ऑफ” नहीं कहा जा सकता है।इसलिये हमें खुद से एक सवाल पूछना होगा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है और इसका संदेश क्या है? अब लगता है इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला रणनीतिक जिसे सब कोई कह सकता है यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर। अब यहां यह याद करना होगा वास्तविक नियंत्रण रेखा खुद में विवादास्पद है और इसे लेकर दोनों देशों के बीच भारी वैचारिक मतभेद है। अब ऐसा लगता है कि चीन खुद एक तरफा वास्तविक नियंत्रण रेखा करना चाहता है। समरनीतिक दृष्टिकोण से देखें सचिन सीमा पर शांति चाहता है क्योंकि संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए यह पहली जरूरत है इसलिए वह भारत को धोखे में रखना चाहता है और यह बताना चाहता है कि उसका देश एशिया में महाशक्ति है। लेकिन भारत उसे यह नहीं करने दे रहा है। गलवान घाटी में भारतीय सेना में उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर रोक दिया। दोनों देशों में वार्ता के दौरान भारत की ज़िद थी कि चीन पूर्ववर्ती यथास्थिति कायम रखें इसका मतलब है कि चीन पीछे लौटे और वहां जाए जहां आरंभ में थी। <br /><br /><br /> गलवान घाटी में झड़प के दौरान भारतीय सेना के 20 जवान मारे गए लेकिन कितने सैनिक मारे गए इसके बारे में कोई सही खबर नहीं है यह बात खुलेगी भी नहीं, यह उनकी आदत है। इससे साफ जाहिर होता है कि चीनी प्रशासन पारदर्शी नहीं है। चीन में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वह है अर्थव्यवस्था का। अगर, हम 1980 के दशक में देखते हैं पता चलेगा कि भारत और चीन की जीडीपी बराबर है परंतु आज चीन की जीडीपी लगभग 4.5 गुना ज्यादा है। 1980 के दशक में चीन डेंग जियाओ पिंग की कहावत पर चलता था चीन को अपनी ताकत को छुपाना चाहिए और अपने को बढ़ाना चाहिए। अब इस घटना के चार दशक हो गए और इस अवधि में चीन में काफी विकास हुआ लगभग 10% प्रतिवर्ष और अब उस पर शी जिनपिंग का शासन है जो उनके चीन के राष्ट्रपति होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि वाह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव भी हैं। अब चीनियों को लगता है उनका समय आ गया है तथा यह दिखाना होगा में कितनी ताकत है। वह दक्षिण चीन सागर में भी कुछ ऐसा ही कर रहा है। हांगकांग में भी उसके यही करतूत हैं। इसका साफ मतलब है कि चीन में दो तरह की शासन पद्धति चल रही है एक तो वह अपने देश में संप्रभुता की बात करता है और दूसरे हांगकांग की संप्रभुता का हनन कर रहा है। ताइवान को चेतावनियां दे रहा है और अमेरिका के साथ एक तरह से तकनीकी युद्ध आरंभ कर चुका है साथ ही भारत के साथ मामला गर्म हो ही रहा है। लेकिन उसके मंसूबों पर पानी उस समय फिर गया जब भारत में खुलकर मुकाबला किया। चीन को यह उम्मीद नहीं थी। वह आज के भारत को भी 1962 का भारत समझ रहा था। लेकिन उसे क्या मालूम कि आज का भारत नरेंद्र मोदी का भारत है जिसका सूत्र वाक्य है कि शांति भंग करने वालों हम भंग कर देंगे।आज का भारत कबूतरों वाली शांति के पक्ष में नहीं है वह सोए हुए शेर की शांति का समर्थक है।<br /><br /><br /> हमने लौटाए सिकंदर सिर झुकाए मात खाए<br /><br /><br /> हम से भिड़ते हैं वे जिनका मन धरा से भर गया है <br /><br /><br /> सिंह के दांतो से गिनती सीखने वालों के आगे<br /><br /><br /> शीश देने की कला में क्या अजब है क्या नया है<br /></div>
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