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Thursday, June 13, 2019

बंगाल में स्वास्थ्य सेवा में विरोध

बंगाल में स्वास्थ्य सेवा में विरोध

नीलरतन सरकार (एन आर एस )मेडिकल कॉलेज में बुधवार को जूनियर डॉक्टरों और रोगियों के रिश्तेदारों के बीच इलाज को लेकर जमकर मारपीट हुई और इसमें दो इंटर्न घायल हो गए। यह घटना तब हुई  जब  74 वर्षीय  मोहम्मद शाहिद  को खराब स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया और इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उसके रिश्तेदारों ने वहां जमकर मारपीट की। इस मारपीट में दो डॉक्टर घायल हो गए। जिनमें एक की हालत गंभीर है। इस घटना के बाद राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों में विरोध फैल गया और उसका स्वरूप राजनीतिक हो गया। विरोध का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी कर रही है। बसीरहाट में तृणमूल कार्यकर्ताओं और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष में एक टीएमसी कार्यकर्ता की मृत्यु के बाद से ही डॉक्टरों के प्रतिरोध ने राजनीतिक रंग लेना शुरू किया। बुधवार  को एनआरएस में प्रारंभ हुआ काम रोको आंदोलन राज्य के 13 मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों में फैल गया है। अस्पतालों के आउटपेशेंट डिपार्टमेंट बंद हो गये। हालांकि कुछ में आपात सेवा कायम है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य की स्वास्थ्य मंत्री भी हैं।   डॉक्टरों ने उनके प्रत्यक्ष हस्तक्षेप  और अस्पतालों में सुरक्षा की मांग की है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चेतावनी  और तृणमूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बैनर्जी के बीच-बचाव के बाद भी डॉक्टरों की हड़ताल खत्म नहीं हो सकी।
        इस बीच भाजपा ने राज्य में गिरती कानून और व्यवस्था का आरोप लगाया है और उसे अस्पतालों की स्थिति ने एक नया मसाला दे दिया है। वह लगातार डॉक्टरों की सुरक्षा की मांग कर रही है। भाजपा ने राज्य सरकार द्वारा मुस्लिम तुष्टीकरण की बात को उठाकर चुनाव अभियान को सफल बनाया था । उसने एनआरएस की घटना को इसमें जोड़ दिया। भाजपा के राज्य नेताओ ने कहा है कि "इस सरकार के तहत डॉक्टर भी सुरक्षित नहीं है। लोग बाहर से गुंडों को लेकर आते हैं और यहां मारपीट करते हैं। जब डॉक्टरों को पीटा जा रहा था तो पुलिस क्यों निष्क्रिय थी।  एक विशेष समुदाय के असामाजिक तत्व पुलिस की हिफाजत में यह सब कर रहे हैं।" बुधवार को ही भाजपा के कार्यकर्ताओं का लाल बाजार अभियान भी था। जहां पुलिस ने उनको लाठियों से पीटा और उनपर आंसू गैस के गोले भी दागे। कांग्रेस के नेता अधीर चौधरी ने मांग की है की मुख्यमंत्री तत्काल आंदोलनरत डॉक्टरों के साथ बैठें और मामले को सुलझाएं। डॉक्टरों की सुरक्षा एक गंभीर मसला है क्योंकि इससे आम आदमी की चिकित्सा जुड़ी हुई है। वामपंथी छात्र संगठनों में भी एक रैली निकाली है और हड़ताली डॉक्टरों के साथ एकजुटता प्रदर्शित किया है।
          अगर इस पूरी समस्या को समग्र रूप से देखा जाए तो ऐसा लगता है कि यह होने ही वाला था । डॉक्टरों के इस विरोध को डॉक्टरों के कई संगठनों ने समर्थन दिया है जैसे मेडिकल सर्विस सेंटर और रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन इत्यादि। बंगाल में डॉक्टरों पर हमले की घटना इन दिनों आम हो गई है। केवल इस साल डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मचारियों पर हमले की 100 घटनाएं हुई। यह कोई नई बात नहीं है वामपंथ के जमाने से भी ऐसा ही होता चला आ रहा है । डॉक्टर और चिकित्सा कर्मी राज्य के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में सुरक्षा की अपर्याप्त व्यवस्था पर नाराजगी जाहिर करते आ रहे हैं। लेकिन कभी कुछ हुआ नहीं है। दूसरी तरफ रोगियों के साथ आए लोग डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों के गलत आचरण तथा उचित चिकित्सा सेवा में कमी की शिकायत करते आ रहे हैं । डॉक्टरों का कहना है कि बार-बार ऐसी घटना के बाद भी अस्पतालों में और मेडिकल कॉलेजों में सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी।    जबकि सभी मेडिकल कॉलेज में पुलिस की चौकी है। मजे की बात है कि एनआरएस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जूनियर डॉक्टर अपनी सुरक्षा के लिए 2017 से मार्शल आर्ट्स का प्रशिक्षण ले रहे हैं। वह डरे हुए हैं कि कब किस रोगी का रिश्तेदार उन पर हमला कर देगा। गुंडे बाहर से आकर अस्पताल में तोड़फोड़ करते हैं । डॉक्टरों की पिटाई करते हैं। लेकिन कभी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाता और अगर कभी  गिरफ्तारी हो भी जाती है तो उन्हें तत्काल जमानत पर छोड़ दिया जाता है । पुलिस मामले की संवेदनशीलता का रोना  रोती रहती है। डॉक्टरों का कहना है कि स्वास्थ्य सेवा के ढांचागत सुधार में विकास के बावजूद मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में सुरक्षा की अपर्याप्त व्यवस्था है खास करके वहां आने वाले रोगियों की संख्या को देखते हुए। राज्य के 13 मेडिकल कॉलेजों के आउटडोर विभाग में लगभग 15000  और सरकारी अस्पतालों में लगभग 80 हजार बेड हैं। लेकिन जिलों के अस्पतालों में उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण सभी रोगियों को मेडिकल कॉलेजों में भेज दिया जाता है। इसके कारण मेडिकल कॉलेजों में भीड़ बढ़ती जा रही है रोगियों को भर्ती करने के लिए बेस्ट नहीं हो पा रहे हैं उन्हें फर्स्ट पर ले पाया जाता है उनकी जांच के लिए महीने - महीने भर तक इंतजार करना पड़ता है 2014 में तृणमूल सरकार ने अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा यहां तक कि भर्ती रोगियों की मुफ्त जांच तथा दवाइयां दिए जाने के आदेश के बाद दूसरे राज्यों से आने वाले रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
   सारा संकट दृढ़ता पूर्वक निपटाना होगा। अस्पताल को युद्ध क्षेत्र ना बनने दिया जाए, वही बेहतर है । भाजपा इसे अवसर मान रही है बेशक यह स्थिति कुछ सांप्रदायिक और कुछ राजनीति होती जा रही है। लेकिन, डॉक्टरों को इस में डालना और उन्हें किसी खास संप्रदाय का विरोधी बताना गलत है। घटना की गंभीरता को देखते हुए तृणमूल सरकार के नेताओं का आरोप सही नहीं है और भाजपाई नेता भी जिम्मेदाराना रुख नहीं अपना रहे हैं। रोगियों के रिश्तेदारों को भी समझना चाहिए कि इलाज के दौरान मृत्यु हो भी सकती है। इसमें डॉक्टरों को दोषी क्यों बनाया जाए।  अगर ऐसा होता भी है तो उन्हें हिंसक रुख अपनाने के बदले कानूनी रास्ते से जाना चाहिए । सोचिए अगर डॉक्टर इमरजेंसी मामलों में इलाज करना छोड़ दें तो क्या होगा? अंततः रोगी ही घाटे में रहेंगे
      

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