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Sunday, July 26, 2020

राजस्थान की जंगः कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना



राजस्थान की जंगः कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना


राजस्थान में सियासी घमासान मचा हुआ है। वैसे राजस्थान का इतिहास भितरघातों और खुली जंग के जिक्र से भरा पड़ा है। आज भी वहां एक नया घमासान चल रहा है। इसमें भितरघात भी है और खुली लड़ाई भी है। राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ उन्हीं की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया और पायलट की पीठ पर भाजपा के हाथ हैं यह किसी से छिपा नहीं है। यह पूरा का पूरा प्लॉट कुछ वैसा ही है जैसा पिछले 70 वर्षों से भारत और पाकिस्तान के बीच के युद्ध का है। इस युद्ध से जिस तरह से लोग ऊब चुके हैं और आर पार का फैसला चाहते हैं ठीक वैसे ही आज के राजस्थान में चल रही सियासी जंग से लोग उठ गए हैं। खरीद-फरोख्त का वही पुराना रवैया के एक और महत्वाकांक्षी कांग्रेस नेता बगावत करता है, विधायकों की खरीद बिक्री का बाजार खुल जाता है तथा एक गैर भाजपाई सरकार गिरने के कगार पर आ जाती है। यह पूरी की पूरी फिल्म देखी देखी सी लगती है। भारत की जनता आखिर इसे कितनी बार देखेगी। लेकिन यहां कुछ उप कथाएं भी इस स्क्रिप्ट में जुड़ गईं हैं। जैसे दो सिंधियाओं की जंग छिड़ गई है। उधर, वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा आलाकमान की बात नहीं मानते हुए गहलोत पायलट की रस्साकशी से अलग हैं। वह अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं और पूरी तरह वाकिफ है ऐसा करने से आलाकमान नाराज हो जाएगा। वसुंधरा राजे सिंधिया लगभग चुप हैं। उन्होंने 3 दिन पहले एक ट्वीट किया था और कहा था कि जनता के बारे में सोचिए। यह उनकी अपनी ही पार्टी को दी गई झिड़की की मानिंद थी या कह सकते हैं कि कोरोना के संकट के दौरान राजस्थान सरकार को गिराने की भाजपा की कोशिशों की आलोचना जैसी थी। राजस्थान में जो जंग चल रही है उसके पहले वाले प्लॉट पर भी नजर डालें यानी दो सिंधियाओं की जंग पर। ग्वालियर के पूर्व राजघराने वंशज जायदाद के विवाद में पहले से फंसे हुए हैं, लेकिन चुनाव के दौरान कभी भी एक दूसरे के चुनाव प्रचार नहीं करते। पहली बार वे दो हजार अट्ठारह में मध्य प्रदेश के कोलारस में हुए उपचुनाव में एक दूसरे के सामने आ गये थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया वहां कांग्रेस उम्मीदवार के लिए प्रचार कर रहे थे और यशोधरा राजे सिंधिया वहां भाजपा के लिए प्रचार करने के दिए मैदान में उतर गईे। यशोधरा ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ हैं। दोनों में थोड़ा फासला हो गया। मार्च में जब ज्योतिरादित्य भाजपा में शामिल हुए तो यशोधरा राजे इसका यह कहते हैं स्वागत किया कि राजमाता के खून ने राष्ट्र हित में फैसला किया है और अब दूरी खत्म हो गई। फिर जरा राजस्थान इसमें एक और है ज्योतिरादित्य कांग्रेस में अपने पुराने साथी सचिन पायलट की पर्दे के पीछे से मदद कर रहे हैं दूसरी हैं वसुंधरा राजे जिन का राजनीतिक भविष्य पायलट के जीतने और हारने पर निर्भर है। अगर पायलट जीत जाते हैं तो बेशक वसुंधरा राजे के भविष्य पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। आप अगर पायलट किसी भी तरह से मुख्यमंत्री बन गए वसुंधरा राजे की राजनीतिक डगर पर गड्ढे जरूर आ जाएंगे। पिछले दो दशकों से वे और गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री बनते रहे हैं। अब अगर एक और विकल्प सामने आ जाए जिसके पीछे आलाकमान खुद खड़ा हो तो वसुंधरा राजे के लिए मामला बिगड़ जाएगा। सिंधिया घराने के इन दो धड़ों के बीच कितनी मिल्लत है यह बात किसी से छिपी नहीं है लेकिन तब भी किसी मोड़ पर दोनों आमने-सामने आ जाते हैं एक दूसरे के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं। लुटियंस में होने वाली पार्टियों में भी दोनों शाखाओं के सदस्यों को एक साथ कभी नहीं देखा गया। जाहिर है ज्योतिरादित्य राजस्थान में वही कर रहे हैं जो उनकी पार्टी चाहती है और अब इससे उनकी बुआ को हानि होगी तो क्या किया जा सकता है। राजघरानों का इतिहास एक दूसरे की पीठ में छुरा घोंपने के उदाहरणों से भरा पड़ा है। यहां यह जाहिर हो रहा है कि गहलोत और पायलट जोर आजमाइश का नतीजा चाहे जो हो जय और विजय तो बुआ और भतीजे में किसी एक की होगी ।





वैसे भाजपा आलाकमान से वसुंधरा राजे के संबंध बहुत ही गर्म नहीं है और यह बात किसी से छुपी नहीं है। भाजपा आलाकमान लंबे समय से वसुंधरा के विरोधियों को आगे बढ़ा रहा है उनमें से एक केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत जो ज्योतिरादित्य के साथ मिलकर वसुंधरा की राजनीतिक कश्ती डुबोने में लगे हैं। लेकिन वसुंधरा इस क्षेत्र की पुरानी खिलाड़ी हैं और उन्हें कम करके आंकना भूल होगी, उनके विरोधी यही भूल कर रहे हैं।वसुंधरा का कद राजस्थान में बहुत बड़ा है खास करके एक जन नेता के रूप में प्रदेश भाजपा में उनकी टक्कर का कोई नहीं है। अब आलाकमान गजेंद्र सिंह शेखावत को उनके विकल्प के रूप में आगे बढ़ा रहा है तो शायद यह उसकी गलती है। शेखावत मोदी लहर में दोनों बार चुनाव जीते और जोधपुर के बाहर शायद उनकी बहुत ज्यादा पहचान नहीं है। दिल्ली में बैठे लोगों को वसुंधरा के कद के बारे में बहुत अंदाजा नहीं है। पहली बार जब वसुंधरा राजे भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष बनकर आई तो लोगों में तरह-तरह की चर्चाएं होती थीं लेकिन कुछ ही महीनों में उस काल के सबसे कद्दावर नेता भैरों सिंह शेखावत से आगे बढ़कर दिखा दिया। आज राजस्थान में वसुंधरा राजे का राजनीतिक कद सबसे ऊंचा है और उनके खिलाफ अगर कोई योजना शुरू होती है तो जरूरी नहीं कि उन्हें पराजित किया जा सके। अलबत्ता, हाईकमान अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग कर उनकी राह में रोड़े जरूर अटका सकता है। उधर, सचिन पायलट पर ज्यादा निर्भर होना राज्य भाजपा के लिए बहुत उपयोगी नहीं होगा क्योंकि भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के करिश्मे और गृहमंत्री अमित शाह की रणनीतियों के बल पर चुनाव जीतती रही है। नए लोग शायद ही इस मामले में कोई सहयोग कर सकते हैं।

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