जनता सरकारों से पूछे
अगले दो दशकों में भारत की आबादी इसके समग्र विकास की राह में रोड़े बनने लगेगी और समस्या आर्थिक विकास में परिवर्तन और पर्यावरण में बदलावों से ज्यादा दुरुंह होगी। आबादी में इस वृद्धि का आधा केंवल हिंदी भाषी प्रांतों में होगा जिसके अगुवा बिहार और प्रदेश कहे जाते हैं। タया इन प्रांतों केञ् मुチयमंत्री इन भयावह प्रभावों से चिंतित हैं? सवाल है कि タया लापरवाही केञ् कारण भारत को पिछड़ जाना चाहिये? एक नजरिये से तो हमारे देश को उत्पादनशील नौजवानों का समूह प्राप्त हो रहा है, लेकिन यह नजरिया बिल्कुञ्ल सही नहीं है, タयोंकि अंतरप्रांतीय असमानताएं बढ़ती जा रही हैं। आकार और आबादी में बदलावों से समस्याएं जटिल होती जा रही हैं। आज जरूञ्री हो गया है कि इनकेञ् कारणों का विश्लेषण किया जाय और タया होने वाला है इसका अनुमान लगाया जाय। सन् ख्ख्म् तक भारत की बढ़ने वाली कुञ्ल आबादी का आधा बिहार, छाीसगढ़, झारखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उार प्रदेश में होगा। इसी अवधि में दक्षिणी प्रांतों में आबादी की वृद्धि महज क्फ् प्रतिशत होगी। आबादी में वृद्धि पर जो नियंत्रण केञ्रल ने क्ऽत्त्त्त् में, तमिलनाडु ने सन् ख् में और आंध्र प्रदेश ने सन् ख्ख् में हासिल कर लिया था उसे प्राप्त करने में हिंदी पट्टस्न्ी को कम से कम तीन दशक लगेंगे। परिवार कल्याण विभाग द्वारा किये गये ताजा सर्वेक्षण केञ् अनुसार देश में क्त्त् वर्ष से कम आयु में शादी करने वाली ग्रामीण कन्याओं की सबसे बड़ी तादाद आंध्र प्रदेश में है। यही नहीं ब्भ् साल तक केञ् उम्र समूह में अपढ़ महिलाओं की संチया यहीं सर्वाधिक है। इस नजरिये से तकनीकी तौर पर विकसित प्रांत आंध्रप्रदेश पूर्ववर्ती 'बीमारूञ्' राज्यों से भी पिछड़ा हुआ है। इन सबकेञ् बावजूद यदि आंध्र केञ् युवा वर्ग को देखें तो बहुत बड़े परिवर्तन की उミमीद दिख रही है। मसलन आंध्र में क्भ् से ख्ब् साल तक केञ् अविवाहित माध्यमिक पास युवकों और युवतियों का अनुपात कर्नाटक, महाराष्टस्न््र और गुजरात से ज्यादा है। वैसे ही आंध्र प्रदेश में ब् वर्ष की उम्र की माताओं की औसत संतान संチया फ् है। यही अनुपात तमिलनाडु, चंडीगढ़, गोवा और पंजाब केञ् समान है, जबकि गुजरात, महाराष्टस्न््र, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में यह संチया ब् है, जबकि बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में यह औसत भ् है। उधर उार प्रदेश में तो हद हो गयी है। वहां केञ् स्त्र प्रतिशत जिलों में यह औसत म् है और महिलाएं परिवार कल्याण केञ् साधनों को अपनाती भी नहीं हैं। बच्चों केञ् पैदा लेने की दर पर नियंत्रण से दो लाभ हैं पहला वर्तमान में पारिवारिक जीवन आसान होता है और दूसरा बच्चों का भविष्य सुखमय होता है। यदि प्रजनन दर में कमी होगी तो महिलाएं न केञ्वल अपनी संतानों को उचित ढंग से पाल सकेंगी, बल्कि लड़कियां उम्र केञ् पहले ホयाहने से बच जाएंगी। जीवन सरल और भविष्य सुखकर हो सकता है। दक्षिण भारत केञ् राज्यों ने बीसवीं सदी में ही इन लक्ष्यों को हासिल कर लिया है। अब मायावती, नीतीश कुञ्मार, शिवराज सिंह चौहान, अशोक गहलोत, रमन सिंह और झारखंड केञ् राज्यपाल केञ् सलाहकार चंद सवालों का उार दें। ये सवाल हैं कि タया वे लोग परिवार नियोजन (सरकारी नाम परिवार कल्याण) या यों कहें कि परिवार सीमित करने केञ् बारे में बोलने से डरते हैं? वे कच्ची उम्र में लड़केञ्-लड़कियों की शादियां रोकते タयों नहीं? タया उन्हें मालूम है कि गांव केञ् आधे लड़कों की शादी वैध उम्र केञ् पहले हो जाती है। आप इसे रोक तो सकते ही हैं, तो रोकते タयों नहीं? कहते हैं कि बढ़ती आबादी केञ् कारण लोग अपनी मांगें नहीं मांगते और राजनीतिज्ञों केञ् लिये यह मुफीद है। タया आप इससे सहमत हैं। याद रखें बढ़ती आबादी हमारे संसाधनों को सोख लेगी और भविष्य को कठिन बना देगी। यदि सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती तो यह जनता का कर्तव्य है कि वह सरकार को मजबूर करे। जनता सरकार से खुलेआम उपरोक्तञ् सवालों को पूछे।
Friday, January 30, 2009
जनता सरकारों से पूछे
Posted by pandeyhariram at 5:53 AM
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1 comments:
बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
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