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Sunday, December 31, 2017

नया साल, नये संकल्प 

नया साल, नये संकल्प 

मेरी प्रगति या अगति का

यह मापदंड बदलो तुम 

मैं अभी अनि​श्चित हूं।

21 सदी का सत्रहवां वर्ष अभी खत्म कर उषा 18 वें वर्ष के क्षितिज पर खड़ी है। यह कल्पना में कुछ इेसा ही लगता है जेसे महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने कृष्ण से कहा था ," सेनयोरुभयोभयोर्मध्ये यथं स्थापय मे अच्युत " 2018 की उष के उसपार पीछे देखने पर कुछ अजीब सा दिख रहा है। 21 वी सददी का सत्रहवां वर्ष कैशौर्य और जवानी की वयसंधि और 17 वर्षै या उससे कम उम्र के बच्चों के खून से सने हाथ और उनके अपराध याद आयेंगे। इस साल बच्चों के अपराध की तीन ऐसी वारदात हुई कि हमें मां-बाप, बच्चों और समाज के आपसी रिश्तों पर सोचने को मजबूर कर दिया। यही नहीं यौन हिंसा के लिये ब्ाी इस वर्ष को याद रखा जायेगा। खुलेआम महिलाओं की छेड़खानी, बंद कमरे में उनसे हिंसक आचरण और सिनेमा के सेट से लेकर संतों के  डेरे तक  में उनका दुरुपयोग। एक अजीब किस्म का आपराधिकता चारो तरफ दिख रही है।

व्यापक परिप्रेंक्ष्य में नोटबंदी के हाहाकार से शुऱू हुआ यह साल जी एस टी के विवाद और 2जी की न्यायिक व्यर्थता के साथ समाप्त हुआ। अपराध की इन घटनाओं और सरकारी तंत्र का यह सब देखना , क्या इनमें कोई सह सम्बंध था? यह खोजना समाजशा​​​िस्त्रयों का विषय है। अब अगर हम 2018 की तरफ देखते हैं तो सरकार के लिये भी तीन ही अड़चने स्पष्ट दिखतीं हैं ओर उन्हें दूर करने का संकल्प नहीं लेते हैं सरकार के अगुआ फिर क्या होगा यह समझाना फिलहाल कठिन है। 

जब देखो दिल में एक जलन

उल्टे उल्टे से चाल चलन

सिर से पावों तक क्षत विक्षत 

यह क्यों? 

अभी हाल में सरकार ने " 2017 का सार्वजनिक उगाही आदेश " जारी किया और उसमें हर टेंडर में भारतीय निर्माताओं को प्राथमिकता देने का हुक्म दिया गया है। इसमें स्थानीय निर्माताओं को 20 प्रतिशत लाभ मिलेगा। इसके बावजूद कोई विदेशी बोली जीत जाता है तो उसे दिये जाने वाले आर्डर का आधा हिससा भारतीय को ही मिलेगा। कुछ ऐसा नहीं लग रहा है कि 400 अरब डालर की विदेशी मुद्रा का खजाना होते हुये भी  हम 20वीं सदी के 70 वें वर्ष में आ गये हैं। अब इस परिप्रेक्ष्य में जरा बुलेट ट्रेन के बारे में सोचें। ग्लोबल टेंडर की जगह भारतीय कम्पनियों को यह काम दिया जायेगा और वह भी 20 प्रतिशत ज्यादा कीमत पर। चाहे उनके पास इसकी दक्षता हो या ना हो। टैक्स के नाम पर हमारी आपकी जेब से निकले पैसे से यह काम होगा और नतीजा क्या होगा इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है।

अर्थ व्यवस्था की बड़ी बड़ी बातें कहीं जातीं हैं। लेकिन बैकों का रीकैपिटलाइजेशन क्या है। 1991- 92 में जब देश दिवालिया हो रहा था तो एकाउंटिंग की जादूगरी दिखा कर खुद को बचाये रखने की सरकार की कोशिशें कुछ हद तक सही कही जा सकती हैं पर जबकि खुशहाली का दावा किया जाता है तो ऐसा क्यों? सरकार ने कोई नया आइडिया नहीं अपनाया। जो होता रहा है वही कर डाला। कुछ नया आइडिया तो आजमाएं। 

 यही नहीं जितनी बड़ी सरकार होगी उतना ही ज्यादा खर्च होगा। 43 महीने बीतने के बाद भी सरकार का आकार विशाल है। कहते हैं कि सरकार का आकार जितना बड़ा होगा रोजाना के काम में नियंत्रण और दखल ज्यादा होगी। 21सदी 18 वें पायदान पर खड़ी है और सरकार के पास 17 महीने रह गये हैं कुछ कर दिखाने के लिये। फिर वही 17 और 18 का समीकरण। क्या उम्र के उफनते जोश में सरकार नियंत्रण का मोह नहीं छोड़ सकती? लेकिन, छोड़ना तो दूर है सरकार ने आधार को भी नियंत्रण का औजार बना लिया। कहां तो तय था कि इसे लाभ बेजने का तंत्र बनाया जायेगा और कहां अब इसे बैंक खाते से जोड़ दिया गया कि सरकार इस बात पर नजर रखे कि बैंक में जमा रुपयों से आप सोना खरीदतें हैं या बीमार मां-बाप के लिये दवाइयां। अगर आधार को बैंकों से मुक्त करा दिया जाय तो एक मात्र यही उपाय सरकार की केंद्रीकृत सत्तात्मक छवि से मुक्ति दिला सकती है। बायो मेट्रिक पहचान निरंकुश राज्य सत्ता के लिये तोहफा है। इसके गैर जरूरी इस्तेमाल और दुरूपयोग दोनों का भयानक खतरा है। प्रधानमंत्री ने 2013 में  वादा किया था " मिनिमम गवर्नमेंट" , अबतक वें इस वादे को पूरा नहीं कर सके। अगर सरकार इन तीन हालातों पर काबू पा जाय या इनहें सुलझा लेे तो अगले 17 महीनों के बाद आने वाला समय खुशहाली से खुशरोशन दिख सकता है।   

कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुये

मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है

Friday, December 29, 2017

पाकिस्तानी दरियादिली का छल 

पाकिस्तानी दरियादिली का छल 

कुलभूषण जाधव मामले में पाकिसतान ने जो कुछ भी किया वह सुनने में ही किसी नाटक का अंश लगता था। पाकिसतान में कथित रूप से जासूसी करने तथा आतंकवाद को बड़ावा देने के आरोप गिरफ्तार भारतीय कुलभूषण जाधव को इस्लामाबाद की सैनिक अदालत ने मौत की सजा सुनायी है। वह अपनी जिंदगी की घड़ियां गिनत रहा है। ... और इस दुखद गाथा में पाकिस्तानिे जाधव की पतनी और मां को मोहममद अली जिन्ना के जनमदिन पर  इंसानियत के नाते उससे मिलने की अनुमति दी। पाकिस्तान का यह एक छल था। वह दुनिया को यह दिखाना चाहता था कि भारत आतंकवाद की साजिश करने वालों में से एक है और उसने अपने जेल में बंद आतंकवाद के एक मास्टरमाइंड से उसके परिजनों को मिलने की इजाजत देने की दरियादिली दिखायी है। इस मुलाकात की सही स्थिति और पाकिस्तान ने इस आादमी के साथ कैसा सलूक कियफा है इस पर कई सवाल उठते हैं। अंतरराष्ट्रीय अदालत भी इस पर सवाल उठाने की तैयारी में हैं। इस हफ्ते के शुऱु में विदेश मंत्रालय ने जादाव और मां  - पत्नी से मुलाकात के सम्बंध  में बयान जारी किया कि " इस मुलाकात के पहले दोंनों सरकारों में इसके तौर तरीकों को तय करने के लिये कूटनीतिक माध्यम से बातें होती रहीं। दानों पक्षों में सारी शर्तों पर समझौता हो गया और भारत ने समझौते की हर शर्त को बहुत ही संजीदगी से पालन किया। " सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया कि "  पाकिस्तान ने यह मुलाकात ऐसे करवाई जिसच्में समझौते का अक्षरश: उल्लंघन हुआ।" सरकार का कहना है कि तय था कि जादाव की मां और पतनी को मीडिया तंग नहीं करेगी लेकिन इसके विपरीत मडिया ने उनहें तंग किया। असुविधाजनक सवाल पूछे। यही नहीं यह भी तय था कि सुरक्षा के नाम पर सांसकृतिक चिनहों को नजर अंदाज कियफा जायेगा लेकिन पाकिस्तानी अफसरों ने उनकी चूड़ियो, बिन्दी और मंगल सूत्र उतरवा लिये। जाधव की् मां को बेटे से अपनी भाषा में बात करने पर पाब्ंदी लगा दी गयी। उनकी भाषा मराठी है और जब भी वह कुछ मराठी शब्द बोलती थीं तो उन्हें टोक दिया जाता था। यही नहीं यह भी तय था कि वार्ता के समय परिवार के साथ भारतीय उपउच्चयुक्त रहेंगे लेकिन उनहें बी अलग कर दिया गया और उनहें उनके साथ ैठने की इजाजत मिली तो अलग बेठाया गया। पता नहीं क्यों जाधव की पत्नी के जूते मुलाकात के समय उतरवा लिये गये थे और बार बार कहने पर भी जूतों को लौटाया नहीं गया। सरकार को मिली जानकारी के अनुसार जाधव बहुत डरे हुये लग रहे थे और कुछ ऐसी बातें बोल रहे थे मानो उनहें वह सब्पा कहने के लिये कहा गया हो और साथ में गंबी चेतावनी दी गयी हो। यही नहीं वे काफी कमजोर भी लग रहे थे। बयान में साफ तौर पर कहा गया है कि " ​जिस तरह से मुलाकात करवायी गयी और उसके बाद जो कुछ भी हुआ वह साफ बताता है कि पाकिस्तान का इरादा श्री जाधव के बारे में गलत और बेबुनियाद आरोपों को दुनिया में प्रचारित करना है।" 

 पाकिस्तान दूसरी राह अपना रहा हे। यह मुलाकात जो हुई उससे जो समझा जा रहा है वह इस्लामाबाद के इरादे से एकदम अलग है। पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल ने अपने बयान में कहा कि " इस मुलाकात का अंतरराष्ट्रीय नयायालय या सियासत से कुछ लेना देना नहीं है।  यह सब इंसानियत के नजरिये से इस्लाम के सिद्धांत के मुताबिक किया गया।" बयान में कहा गया कि " इस्लाम शांति का धर्म है, दया का धर्म है... इसे कूटनीतिक वार्ता से कुछ लेना देना नहीं है।" अब पाकिस्तान कब क्या कहता है या वहां का कौन नेता क्या कहता है यह समझ पाना बड़ा मुश्किल है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवकता के बयान के एक दिन पहले पाकिस्तान के विदेशमंत्री ख्वाजा आसिफ ने भारत ने जाधव मामले में कूटनीतिक वार्ता की इजाजत दी है। दूसरे ही दिन वे उससे मुकर गये और लगे कहने कि कूटनीतिक वार्ता का मामला अंतरराष्ट्रीय अदालत तय करेगी। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने गत मई में अंतरिम आदेश दिया था कि जाधव को फांसी न दी जाय। तबे यह मामला विचाराधीन है कि उसके साथ क्या किया जाय। जैसी कि खबर है कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय अदालत में जनवरी में उठने वाला है। इस बीच पाकिस्तान अपने पक्ष में वातावरण बनाना चाहता है , खास कर प्रेस को अपने पक्ष में रखना चहहता है। क्योंकि दंनिया भर में पाकिस्तान के इरादे और ईमान पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है। चर्चा यह है कि इसी कारण से जाधव की फांसी रोक दी गयी थी। यही कारण है कि वह इंसानियत की दरियादिली दिखा रहा है पर लोगों को यह छल प्रतीत हो रहा है। 

यह रोशनी है हकीकत में छल लोगों

जैसा है जल में झलकता महल लोगों

Thursday, December 28, 2017

बढ़ती गैरबराबरी

बढ़ती गैरबराबरी

लगी है होड़ - सी देखो अमीरी औ गरीबी में 

ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है 

देश में आर्थिक विकास का ढोल लगबग हर सरकार द्वारा पीटा जाता रहा है। आजादी के बाद  से अब तक देश में बनीं सारी सरकारें  भारत को आर्थिक तौर पर समृद्ध होता हुआ देश बताने और उसे साबित करने जुटी रहीं हैं। लेकिन हकीकत कुछ दूसरी ही है। हालात ये रहे हैं कि अमीर लगातार अमीर होते रहे हैं और गरीब लगातार गरीब् होते हैं। दोनें की बीच गैर बराबरी बढ़ती रही है। हाल में जारी विश्व असमानता रिपोर्ट 2018 में कहा गया है कियहां 1980 के मध्य से लगातार असामनता बढ़ी है। 1980 के शुरूआती दौर में 1 प्रतिशत अमीर लोग देश की 6 प्रतिशत आय हड़प ले रहे थे। जबकि 2000 में यही एक प्रतिशत लोग देश की 6 प्रतिशत आय तथा आज 22 प्रतिशत आय हजम कर जा रहे हैं। यानी अमीर तेजी से अमीर हो रहे हैं और गरीब तेजी से गरीब होते जा रहे हैं। चूकि यह रपट विश्व भर की है तो कहा जा सकता है किन हम दूसरे देशों की भी इस संदर्भ में तुलना कर सकते र्है। हमारे देश में गरीबी के आंकडे बड़े भयावह हैं । इन आंकड़ों की असलियत और सच्चाई पर बार – बार उठने वाले  सवालों के बावजूद देश की गरीबी और बदहाली को छिपाया नहीं जा सका है । सर्वेक्षणों में यह बात सामने आयी है कि 1991में तत्कालीन कांग्रेस नीत केंद्र सरकार ने जो आर्थिक उदारीकरण प्रक्रिया शुरू की थी , उसका गरीबी बढ़ानेवाला घातक परिणाम आज भी दिख रहा है , क्योंकि किसी भी सरकार ने इस पर रोक नहीं लगाई है ।

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का 

उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है 

भाजपा जब केन्द्रीय सत्ता से बाहर थी , तो उदारीकरण के विरुद्ध बोलती थी , लेकिन सत्ता पाते हीउसकी बोलती बंद ही नहीं हो गई , उसके भी  कदम प्राथमिकता के साथ उदारीकरण की ओर ही बढ़े !अब तो जिस उद्देश्य के लिए उदारीकरण लागू किया था , पूंजीवाद ने उसे बख़ूबी हासिल कर लिया है । हमारा देश ग्राम प्रधान देश है , इसलिए कहा जाता है कि देश की आत्मा गांवों में बसती है । अतः देश की गरीबी का सीधा प्रभाव ग्रामीणों पर पडता है । देश की 125 करोड़ आबादी में से गांवों में रहनेवाले 70 प्रतिशत लोगों के लिए गरीबी जीवन का कटु सत्यहै । यह बात भी सच है कि ग्रामीण भारत उससे अधिक गरीब है , जितना अब तक आकलन किया गया था । झूठे सर्वेक्षणों से बार – बार ग्रामीण भारत की भी गलत तस्वीर सामने आती रही है । 2011 में एक सर्वेक्षण के अनुसार , वे लोग गरीब थे  जो शहरी इलाक में रोज़ाना 17 रूपये और ग्रामीण इलाकों में 12 रुपये रोज  खर्च कर रहे थे । पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की जनहित ने एक जनहित याचिका दायर कर इसका विरोदा किया था और इस पर सुनवायी करते हुये सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि  ‘ यहाँ दो भारत नहीं हो सकते ।’उसने हरेक राज्य में बीपीएल परिवारों की संख्या 36 प्रतिशत तय करने के पीछेकेयोजना आयोग के तर्को को जानना चाहा था ।सुप्रीम कोर्ट ने जानना चाहा कि 1991 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 2011 के लिए यह प्रतिशत कैसे तय कर लिया गया ? वास्तव में यह सवाल बार – बार खड़ा होता है कि एक ओर देश तरक्की कर रहा है , दूसरी ओर गरीबों की संख्या काबू में क्यों नहीं आ पा रही है ? वर्तमान सदी में विकास के तमाम आयाम छूने के बाद भी गरीबी और अमीरी के बीच की खाई बढ़ी है। दुनिया के दो सबसे बड़ी आबादी वाले देशों भारत और चीन में अमीरी और गरीबी का फासला बढ़ा है। हालांकि ये उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं। इसके बाद भी गरीबी और अमीरी का अंतर बेहद आश्चर्यजनक है ।अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और चीन में तेज आर्थिक-प्रगति और गरीबी तेजी से घटने के साथ-साथ लोगों के बीच आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ी है। वैसे भी देश में अमीरी-गरीबी को लेकर पहले भी कई सर्वेक्षण आते रहे हैं। इसके पहले  अर्जुन सेन गुप्ता समिति की रिपोर्ट में भी इन हालात पर गंभीरचिंता जताई जा चुकी है। गुप्ता की रिपोर्ट में कहा गया था कि तेजी से हो रही आर्थिक प्रगति के बहुत से सालों के गुजरने के बाद भी देश में 77 प्रतिशत आबादी हर रोज 20रुपये से कम के खर्च में अपना गुजारा चलाने को मजबूर है। रिपोर्ट में इसका बड़ा कारण खेती का लगातार फायदेमंद साबित नहीं होना और देश के श्रमबल का 86 प्रतिशत  हिस्से का अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में होना कहा गया था। इतना ही नहीं इसमें काम की स्थितियों से लेकर मजदूरी तक का मामले और नियोक्ता की मनमर्जी की बात को भी इस गैर आर्थिक असमानता का जिम्मेदार बताया गया। समिति ने यह भी कहा था कि गरीबों में सर्वाधिक लोग अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल लोगों और मुसलमानों की है। यह रिपोर्ट जीडीपी की दर पर आधारित तेज आर्थिक विकास की पोल खोल रही थी। 

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी 

जिसने जिस्म गिरवी रख के ये कीमत चुकायी है

इसके बाद इस रिपोर्ट पर कुछ दिनों की चर्चा के बाद भुला दिया गया। अब आलम यह है कि जीडीपी के आंकड़ों पर बनी विकास की अवधारणा को सबसे चमकदार और सभी के लिए लाभदायी कहने वाली सरकार ने2014 में कह दिया कि गरीबों की संख्या साल 2004- 05 के 40.74 करोड़ से घट कर 2011-12 में केवल 27 करोड़ रह  गयी है।  विश्वबैंक ने तो गरीबी की गणना की अपनी नयी व्याख्या के द्वारा इस गरीबों की संख्या और कम करनी चाही। पर इन सब के बीच यह भुला दिया गया कि भारत में गरीबी रेखा से नीचे होने के लिए जो मानक तय किये गये हैं, वे असल में भुखमरी की हालत में होने को बताते हैं। 

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है 

मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है 

Wednesday, December 27, 2017

बढ़ रहा है किसानों का गुस्सा

बढ़ रहा है किसानों का गुस्सा

गुजरात चुनाव के नतीजें की अगर बारीक वयाख्या की जय तो निश्कर्ष मिलेगा कि अब भारतीय राजनीति में किसाानों का गुस्सा दिखायी पड़ने लगा है। गुजरात में 22 साल से सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी ने अपनी 50 प्रतिशत सीटें केवल ग्रामीण इलाकों के चुनाव क्षेत्रों में गवांयी हैं। ग्रामीण गुजरात की 109 सीटों में सें उसकी 66 सीटें हाथ से चली गयीं। इस नतीजे से एक और निष्कर्ष निकल सकता है या यों कहें कि कयास लगाया जा सकता है कि इस बार के बजट में सरकार किसाानों के कुछ लम्बी चौड़ी घोषणा करेगी क्योंकि अगले साल लोकसभा के चुनाव हैं ओर कहीं उसमें किसानों का रोष दिखायी पड़ा तो - सत्यानाश ! लेकिन यहां सवाल उठता है कि क्या वित्तमं1ाी अरूण जेटली दो एक सुविधायें दे कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधार सकतमे है? लेकिन इसी प्रश्न के साथ एक ओर प्रश्न जुड़ जाता है कि क्या पिछले बजटों में जेटली ने किसानों को नजरअंदाज किया है? शायद नहीं। क्योंकि अपने 2014- 15 के बजट भाषण में अरूण जेटली ने खेत और किसान शब्दों का 25 बार उच्चारण किया। जबकि 2015-16 के भाषण में उनहोंने इस शब्द को केवल 13 बार दोहराया गया और 2017-18 में यही शब्द 29 बार दोहराये गये। मजे की बात है कि बजट भाषण में किसान और खेत से ज्यादा जिस शब्द को दोहराया गया है वह शब्द है टैक्स।सरकार ने बहुत कोशिश की कि किसानों के लिये कुछ किया जाय ओर नहीं तो कम से कम कुछ करता हुआ दिखे। इस अवधि में सिंचाई के विकास के लिये कई योजनाओं की घोषणाएं हुईं।शोध और क्रेडिट की सुविधाएं भी इसी काल में हुईं। इन सबके बावजूद जबसे एन डी ए सरकार सत्तामें आयी तबसे अबतक औसतन 12000 किसानों ने आत्म हत्या की। लेकिन इसका अर्थ यह कनहीं है कि इसी सरकार के शासन काल में किसानों खुदकुशी शुरू की। लेकन यहा यह पूच जा सकता है कि सरकार ने किसानों के लिये जो उपयुक्त योजनाएं शुरू कीं उसका उनके जीवन पर क्या असर पड़ा? कुछ ​िस्थतियों पर गौर करें तो परिदृश्य की एक झलक मिल सकतमी है। पहली कि नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर किसानों पर पड़ा। रिजर्व बैंक ने सहकारिता बैकों को नोट बदलने की अनुमति नहीं दी। अधिकांश किसान खेती के कर्जे के लिये सहकारी बैंकों पर ही निर्भर रहते हैं। इससे किसानों की मुश्किलें बढ़ गयीं। लेकन यह एक उदाहरण है। खेती की मुश्किलों भारत में पहले से भी कायम थीं। नोटबंदी ने इसे थोड़ा बढ़ा दिया। विख्यात अर्थ शास्त्री प्रणब सेन के मुताबिक किसानों की विपदा को बड़ाने के लिये मूलत: देश की मौद्रिक नीति जिम्मेदार है। मसलन देश के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य और पेय पदार्थों का भाग 54.18 प्रतिशत है। इन खद्य और पेय पदार्थों में 12 तरह की वस्तुएं शामिल हैं मसलन, अनाज, मांस , मछली, दूध आॡ् दूदा के उत्पादन , सब्जी तथा दालें इत्यादि। 2011 से 2013 के बीच खुदरा मुद्रास्फीति 9.69 प्रतिशत थी जबकि 2014 से अक्टूबर 2017 के बीच खुदरा मुद्रास्फीति की दर 5.03 प्रतिशत हो गयी।इस अवधि में दाल , सब्जी और खाद्यान की कीमतें गिरीं। नतीजतन कृषि आय में घाटा हो गया। सबसे दुखद तो यह है कि जब खेती अच्ची होती है तब भी कीमतें गिरतीं हैं और जब फसल मारी जाती हैं तब भी कीमतें गिरतीं हैं। 2014 से ही भारत सरकार की नीति रही है कि खाद्यानन की कीमतों को बढ़ने दिया जाय। क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार 2009 से 2013 के बीच कृषि आय में औसत वृद्धि 19.3 प्रतिशत थी 2014 से 2017 केबीच कृषि आय घट कर 3.6 प्रतिशत हो गयी। सरकार का तर्क है कि खाद्यान्न  कम   कीमतें गरीबों के लिये मुफीद होती हैं। बेशक जिस देश में 21.9 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं  वहां बढ़ी हुयीं कीमतें आतंक पैदा कर देती हैं। मोदी जी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान खाद्यानन की महंगायी को बड़ा मुद्दा बनाया था और जब वे  सत्ता में आये तो उनकी कीमतों पर नियंत्रण रखा। पर इससे किसान दुखी अवस्था में आ गया। यह साफ है कि बजट में दो एक बार नाम लेने से हालात नहीं बदलेंगे।

Tuesday, December 26, 2017

लालू का जाना जेल 

लालू का जाना जेल 

बिहार के विख्यात चारा घोटाला मामले के दूसरे प्रकरण में भी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ओर राजद के तेज तर्रार नेता लालू प्रसाद यादव को अदालत ने दोषी करार दिया है ओर उन्हे इस मामले सजा की पेशकश की है। सजा की मियाद क्या होगी यह 3 जनवरी 2018 को घोषित होगा। 1991 से 1994 के बीच चारा खरीदे जाने के नाम पर  देवघर ट्रेजरी से 89.27 लाख रुपये गलत ढंग से निकाले गये थे। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को भी शामिल किया गया था पर अदालत ने उन्हें निर्दोष करार दिया। इस सजा के साथ यू पी ए दलों के नेताओं के बरी होने का मौसम खत्म हो गया। इसके पूर्व 2जी घोटाले में कांग्रेस और डी एम के के बरी होने और फिर कांग्रेस के आदर्श कांड में बरी होने की घटना ने देश भर में सनसनी फैला दी थी। लालू की सजा का बिहार की सियासत पर भारी असर पड़ेगा। खास कर इस बात पर के 2018- 2019 के चुनावों में गटबंधन के समीकरण में राजद खुद को कैसे शामिल करता है। जैसा कि अदालत ने बताया है कि लालू जब मुख्यमंत्री थे उस समय देवघर ट्रेजरी से 89.27 लाख रुपया नाजायज तरीके से निकाला गया। यह रकम कई करोड़ रुपये के चारा घोटाले की रकम का हिस्सा है। लालू प्रसाद यादव की यह दूसरी सजा है। सजा सुनाये जाने के बाद सिलसिलेवार ट्वीट कर लालू यादव ने कहा कि " पूर्वाग्रही दुष्प्रचार के लिये सच को झूठा, संदिग्ध या अद्धसत्य के रूप में पेश किया जा सकता है, लेकिन पूर्वग्रह और नफरत की यह परत एकदिन जरूर हटेगी और अंत में सत्य ही जीतेगा।" लालू यादव ने भाजपा पर निशाना साधते हुये कहा कि " धूर्त भाजपा अपनी जुमलेबाजी ओर कारगुजारी को छुपाने के लिये विपक्ष का पब्लिक पसेंप्शन बिगाड़ने के अनैतिक और द्वेष की भावना से ग्रस्त गंदा खेल खेलती है।"   पहली सजा 2013 में सुनायी गयी थी। यह मामला चाईबासा ट्रेजरी से रुपया ​निकाले जाने का था। दिलचस्प बात यह है कि इनदिनों संदेहास्पद एजेंसी सी एजी ने ही इस घोटाले को पकड़ा था।  उस समय महा लेखा परीक्षक थे टी एन चतुर्वेदी। यह धोखाधड़ी का यह प्रकरण 1985 में शुरू हुआा और लगभग 10 साल तक चला। इसमें खर्चे की फर्जी रिपोर्ट जमा कर सरकारी खजाने से लगभग 900 करोड़ रुपये उड़ा लिये गये। 2013 में जब लालू यादव को सजा सुनायी गयी उस समय के बाद से ही वे सक्रिय राजनीति से बाहर हो गये। उनके चुनाव लड़ने से रोक लग गयी। हालांकि बिहार विधानसबा चुनाव में राजद को भारी विजय मिली थी। इसके फलस्वरूप उनकी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया गया। वह कठपुतली मुख्यमंत्री थीं और लालू परदे के पीछे से डोर खींचते थे।यह सब 2005 तक चला। इसके बाद नौजवान राजनीतिज्ञों का युग आरंब हुआ। लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव और राहुल गांधी सामने आ गये। दोनों दलों में समझौते भी हुये। पर अब जबकि दूसरी बार भी उन्हें सजा मिल गयी तो  मामला गड़बड़ हो गया। एक लांछित राजनीतिज्ञ से हाथ मिलाना राहुल के लिये कठिन हो गया। खास कर ऐसे मौके पर जब 2जी घोटाले से कांग्रेस बेदाग निकल आयी है तो वह राजद के साथ कैसे हाथ मिला सकती है। हालांकि, लालू यादव के खिलफ सजा का ऐलान भारतीय व्यवस्था में भरोसा पैदा करता है , क्योंकि विगत कई मामलों में बरी होने के कारण भारतीय संस्थाऔं की साख पर से आस्था घटने लगी थी। लालू यादव को भी बरोसा था कि फैसला उनके प2ा में आयेगा इसीलिये वे रांची गये थे। जब सी बी आई की अदालत ने फैसला सुनाया तो उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने कहा कि यह गरीबों के मसीहा और धर्मनिरपेक्षता के कट्टर रहनुमा के खिलाफ गया है। हालांकि फैसले की मियाद की घोषणा जनवरी में होगी पर नये साल में उनके जेल में रहने से यू पी ए का नैतिक बल घटेगा ओर उसके शिविर में खलबली रहेगी।