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Thursday, December 29, 2011

हरिराम पांडेय के सम्मान समारोह की तस्वीरें

डॉक्टर भीमराव अंबेदकर शिक्षा संस्थान, टीटागढ़ (कोलकाता) की ओर से विगत 17 दिसंबर को आयोजित दूसरे वार्षिक समारोह में कोलकाता से प्रकाशित दैनिक सन्मार्ग के संपादक तथा ब्लॉग लेखक हरिराम पांडेय के ..भीमराव अंबेदकर आउटस्टैंडिग जर्नलिस्ट ऑफ दि इयर 2011 अवार्ड.. सम्मान समारोह के अवसर पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्र उन्हें सम्मानित करते हुए, इस मौके पर ली गयी कुछ तस्वीरें



डॉक्टर भीमराव अंबेदकर शिक्षा संस्थान, टीटागढ़ (कोलकाता) की ओर से विगत 17 दिसंबर को आयोजित दूसरे वार्षिक समारोह में कोलकाता से प्रकाशित दैनिक सन्मार्ग





डॉक्टर भीमराव अंबेदकर शिक्षा संस्थान, टीटागढ़ (कोलकाता) की ओर से विगत 17 दिसंबर को आयोजित दूसरे वार्षिक समारोह में कोलकाता से प्रकाशित दैनिक सन्मार्ग





Wednesday, December 21, 2011

राष्ट्रीय सहारा के राष्ट्रीय संस्करण में सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक 22 दिसम्बर 2011 को प्रकाशित आलेख


सियासत और शराब के मेल का नतीजा

हरिराम पाण्डेय
समस्या

जहरीली शराब का ताजा हादसा उस क्षेत्र में हुआ जो बंगलादेशी घुसपैठियों का गढ़ माना जाता है। ये लोग अपने भीतर भौगोलिक बांग्लादेश को लेकर चलते हैं और उसके तथा अपनी ताजा स्थिति में तालमेल बैठाने की जुगत में रहते हैं। आर्थिक और सामाजिक रूप में अत्यंत पिछड़ी यह आबादी राजनीतिक रूप से अति सक्रिय है, जो उसकी जरूरत भी है। इसी सक्रियता के बदौलत यह वर्ग अपने विरुद्ध किसी भी प्रशासनिक कदम को रोकता है

पश्चिम बंगाल में सुंदर वन की गोद में बसे अपेक्षाकृत कम शहरी और राजनीतिक प्रक्रिया में जरूरत से ज्यादा शामिल दक्षिण चौबीस परगना जिले के मोगराहाट में जहरीली शराब पीने से लगभग पौने दो सौ लोग मारे गए। प्रदेश सरकार ने मृतकों को दो-दो लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की है। यह अपने तरह की देश की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है। एक हफ्ता पहले कोलकाता में स्थित एक अस्पताल में आग लगने से लगभग 90 लोग मारे गए। ये दो नमूने यहां इसलिए पेश किए गए हैं ताकि शासन में सरकारी तंत्र की लापरवाही कितनी ज्यादा हो सकती है इसका अंदाजा लग सके। यहां सबसे बड़ी चिंता का विषय है कि सरकार ऐसी घटनाओं पर रोकथाम करने की बजाय इसे लेकर राजनीति शुरू कर चुकी है। शराब से मौतों के मामले में सत्तारूढ़ तृणमूल कांगेस का आरोप है कि यह सारी करतूत मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की है। उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने तो खुल कर कहा कि यह सीपीएम के काडरों ने किया है। वे जानबूझकर ऐसे केमिकल शराब में मिलाते हैं ताकि लोगों की जान चली जाय। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो विधानसभा में यह कह कर विवाद ही पैदा कर दिया कि जब सीपीएम के नेता अब्दुल रज्जाक मौला मंत्री थे तो उनकी नाक नीचे ऐसी घटना घटी थी। मौला दक्षिण चौबीस परगना से ही चुनाव लड़ते हैं। लेकिन अब इस बात का क्या उत्तर है कि गत चार महीनों से तो ममता की ही सरकार है और उसने रेल लाइन की डिस्टीलरीज को बंद करने के लिये क्या किया। अगर राजनीतिक नजरिए को अलग रख दें तो इसका सबसे बड़ा कारण प्रशासनिक भ्रष्टाचार कहा जा सकता है। यह इलाका कई अथरे में अवैध शराब के कुटीर उद्योग का केंद्र है। सियालदह से आगे कैनिंग तक यहां रेल लाईन के किनारे अवैध शराब के उत्पादन केंद्र हैं। स्थानीय भाषा में इसे ‘चुलाइ मद या चुल्लू’ कहते हैं। 300 मिलीलिटर के पाउच में यह 9 रु पए में बिकती है। इसे चावल से बनाया जाता है और कोलकाता तथा उपनगरों में रबर के ब्लैडर में डालकर कर भेजा जाता है। इस शराब का मुख्य घटक इथेनॉल होता है और ज्यादा नशीला बनाने के लिये इसमें औद्योगिक स्तर का सोडियम क्लोरेट और मिथाइल अल्कोहल मिला देते हैं। यह इतना जहरीला होता है कि 20 मिली पीने से अंधापन हो जाता है और 30 मिली पीने से जान जा सकती है। जहरीली शराब का ताजा हादसा उस क्षेत्र में हुआ जो बंगलादेशी घुसपैठियों का गढ़ माना जाता है। ये लोग अपने भीतर भौगोलिक बंगलादेश को लेकर चलते हैं और उसके तथा अपनी ताजा स्थिति में तालमेल बैठाने की जुगत में रहते हैं। आर्थिक और सामाजिक रूप में अत्यंत पिछड़ी यह आबादी राजनीतिक रूप में अति सक्रिय है और यह उसकी जरूरत भी है। अपनी इसी सक्रियता के बदौलत यह वर्ग अपने विरुद्ध किसी भी प्रशासनिक कदम को रोकता है। यह इलाका सुंदर वन के मुहाने पर है और दक्षिण बंगाल के वन प्रदेशों की तरह यहां माओवादियों का वर्चस्व नहीं बल्कि ‘उस पार’ के तस्करों और उनके कूरियर्स का बाहुल्य है। कु ल मिलाकर यह क्षेत्र राजनीतिक तौर पर जागरूक और सामाजिक तौर पर सुषुप्त है। यहां के प्रखंड स्तरीय अस्पतालों में नियुक्त डाक्टरों को ऊपर से निर्देश मिलते हैं कि वे किसी भी रोगी को उपचार के लिये बाहर जाने की सलाह नहीं देंगे। इस इलाके के अस्पतालों में सबसे ज्यादा मामले जहरीले सांपों के काटने के आते हैं। अस्पताल में दवा न होने के बावजूद डाक्टर रोगियों को दूसरे बड़े अस्पतालों में भेज नहीं सकते और उपचार का नाटक करते हैं। बेशक रोगी की जान ही क्यों न चली जाय। अस्पतालों में वि स्वास्थ्य संगठन द्वारा मुहैया कराई गईं और अन्य सस्ती दवाएं ही रहती हैं। इस क्षेत्र में आर्थिक तौर पर कमजोर लोग रहते हैं। ये कोलकाता के बाजारों में मजदूरी करते हैं और शाम को घर लौटते वक्त किसी भी लोकल स्टेशन के बगल में ‘चुल्लू’ पी कर घर पहुंचते हैं। महिलाएं भी मजदूरी करती हैं या शहर के विभिन्न इलाकों में अवैध शराब पहुंचाने का काम करती हैं। उनके शराब ढोने का भी बड़ा दिलचस्प तरीका है। वे रबर से भरे ब्लैडर को पेट पर इस तरह बांध लेती हैं मानों गर्भवती महिला हों। पुलिस भी इससे बखूबी वाकिफ है। किनंग से आने वाली सवेरे की पहली लोकल ट्रेन में अवैध शराब के सैकड़ों कू रियर कोलकाता आते हैं। पूर्ववर्ती सरकार ने नारा ही दे रखा था, ‘जे सर्वहारा मानुष खेटे खगछे तो कि आपत्ति’ (सर्वहारा लोग यदि मेहनत कर के खाते हैं तो क्या आपत्ति)। बांग्लादेश में चूंकि शराब पर बंदिश है और यहां कच्ची शराब का उत्पादन सरल और सुरक्षित है इसलिए इस क्षेत्र के विस्थापितों ने शराब बनाने और उसे तस्करी के जरिये बांग्लादेश ले जाने को आजीविका के रूप में अपना लिया है। इधर से शराब ले जाई जाती है और उधर से चकला घरों या अमीर घरों में काम करने के लिए बेचने की गरज से लड़कियां लाई जाती हैं। यही नहीं, बंगाल की खाड़ी से गुजरने वाले चीनी जहाजों से औषिधयों की अवैध खेप भी ये लोग उतार कर बाजार में पहुंचाते हैं। वोट बैंक के रूप में इनकी पहचान इन्हें प्रशासनिक दबाव से मुक्त रखती है। मृतकों को दो-दो लाख रुपए मुआवजे दिए जाने के पीछे भी यही कारण है। इन रुपयों के जरिए इस समुदाय तक सरकार की रहमदिली का संदेश जाएगा जो बाद में वोट में बदलेगा। इसकी पृष्ठभूमि में पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था और समाज व्यवस्था है। आर्थिक तौर पर पिछड़ा बंगाली समाज पूरी तरह से दो खेमों में बंटा हुआ है। पहला भद्र लोग यानी इलीट मिडिल क्लास; इसे यहां की बोलचाल में ‘घोटी’ कहते हैं। यह बंगाल के इसी हिस्से का आरंभिक निवासी है। दूसरा वर्ग है उस पार से आये बंगालियों का, जो बांग्लादेश के मूल वासी हैं और हालात के दबाव से वे इधर आ गए हैं। इन्हें यहां ‘बांगाल’ कहते हैं। दोनों वगरे में आंतरिक सामाजिक संघर्ष होता है। चूंकि सरकार ने यहां आरंभ से ही कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया तथा नीतियां गरीबोन्मुख बनायी गई जिनमें सरकार का जबरदस्त हस्तक्षेप था। इसलिए वैकिल्पक अर्थव्यवस्था का विकास नहीं हो सका। नई सरकार भी उसी दिशा में चल रही है। निम्न मध्य वर्ग में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है और अनैतिक अपराधों की श्रृंखलाएं तैयार होने लगी हैं। इस वर्ग को सियासी सक्रियता के बदले मिले कवच ने प्रशासनिक कार्रवाइयों को प्रभावित किय है। इसलिए यह लगभग निश्चित है कि मौजूदा सरकार चाहे जितनी भी बड़ी-बड़ी बातें कर ले लेकिन हालात को बदल नहीं सकती। आने वाले दिनों में ऐसी घटनाएं और सुनने को मिलें तो हैरत नहीं होनी चाहिए।

Saturday, December 3, 2011

दिल्ली से प्रकाशित आज समाज दैनिक पत्र में दिनांक 3 दिसम्बर 2011 को प्रकाशित आलेख