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Thursday, August 31, 2017

... तब क्यों की गयी नोटबंदी

... तब क्यों की गयी नोटबंदी

भारतीय रिजर्व बैंक की 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट जारी हो चुकी है जिसमें नोट बंदी के बारे में दिए गए आंकड़े 8 नवम्बर को प्रधान मंत्री औइर आगे के दिनों में वित्त मंत्री द्वारा किये गए दावों को झुठला रहे हैं. लगता है कि इन्होने राष्ट्र को गुमराह करने की कोशिश की है. जिस दिन प्रधानमंत्री  ने 1 हज़ार और 500 के नोट बंद करने की घोषणा की कि उस समय देश की कुल नगदी का 86 प्रतिशत यही नोट थे. उन्होंने नोट बंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि इन बड़े नोटों का बहुत बड़ा भाग काले धन के रूप में  छिपा कर रखा हुआ है, बहुत बड़ी संख्या में जाली नोट चल रहे हैं और आतंकवादियों को धन दिया जा रहा है. सरका ने रातोंरात 1 हज़ार और 500 के नोट का चलन बंद कर दिया.   उसके बाद आम जनता को कितनी पीड़ा हुई इसका सच सब जानते हैं. अब रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है जिन नोटों को बंद किया गया गया था उनका 99 प्रतिशत बैंकों में वापस आ गया है. रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस समय नोट बंद किये गए थे उस समय 15.44 लाख करोड़ के बड़े नोट थे जिनमें  से 31 मार्च 2017 तक  15.28 लाख करोड़ के नोट वापस आ गए. नोट बंदी के पहले 1 हज़ार के 632. 6 करोड़ अदद नोट थे जिनमें से महज 8.9 करोड़ नोट नहीं लौटे हैं. विशेषज्ञों का मानना है की जो नोट अभी आये नहीं हैं वे नेपाल और भूटान के बैंकों में फंसे हैं और प्रवासी भारतियों के पास हैं जिनके लौटाने की अंतिम तिथि 30 जून है. फिलहाल 30 जून के बाद के प्रमाणिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. अब सवाल उठता है की वह काला धन कहाँ है जिसके बारे में प्रधान मंत्री ने दावा किया था.याद होगा 15 अगस्त 2017 को लाल किले की प्राचीर  से प्रधान मंत्री ने कहा था कि 3 लाख करोड़ का काला धन पकड़ा गया है. जबकि रिजर्व बैंक की रिपोर्ट कुछ दूसरी बात कहती है. इसमें कौन गलत है सरकार को जवाब देना चाहिए.  यही नहीं जगदीश भगवती और अरविं पानागडिया जैसे अर्थ शास्त्रियों ने जिस तरह आगे बढ़ बढ़ कर नोट बंदी  का समर्थन किया था उनकी भी विद्वता की पोल खुल गयी. क्या देश का दुर्भाग्य है की 16 हज़ार करोड़ के नोट को रद्द कर 21 हज़ार करोड़ खर्च कर नए नोट छापे  गए.

नोट बंदी के तुरत बाद पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था की इससे “लघु उद्योगों , कृषि क्षेत्र और अनौपचारिक क्षेत्र को काफी आघात पहुंचेगा. यही नहीं इससे जी  डी पी में भी गिरावट आएगी. “

जहां तक जाली नोटों का प्रश्न है तो नए नोटों के भी जाली नोट लगाता पकडे जा रहे हैं. इसका मतलब है कि जाली नोटों का आतंक कायम है और काले धन का गुब्बारा  फूट चुका है , इसका क्या अर्थ समझा जाय. यह भारतीय अर्थ व्यवस्था को भारी आघात था और इसकी कोई ज़रुरत नहीं थी. क्षमा करें हर आदमी के खाते में 15 -15 लाख रूपए जमा कराने के राजनितिक बडबोलेपण का यह दूसरा अध्याय था. यहाँ सरकार से पूछा जाना चाहिए कि नोट बंदी के हुक्म के बाद ए टी एम् की सर्पीली क्जतारों मरने वाले 120 लोगों की मौत का जिम्मेदार किसे बनाया जाय? मध्य वर्ग और दिहाड़ी पर काम करने वालों  की पीड़ा का दोष किसे दिया जाय?  प्रधान मंत्री ही नहीं पूरा मंत्री मंडल ही देश को गुमराह करने में लगा है. वित्त मंत्री अरुण जेटली रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट को जारी करते हुए कहा की आयकर देनेवालों की संख्या बढ़ी है. जबकि रिपोर्ट ही बताती है की करदाताओं की संख्या में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है बल्कि कर संग्रह बढ़ा है. इन मामलों में प्रधान मंत्री और वित्त मंत्री को देश को जवाब देना चाहिए. अब वित्त मंत्री यह कहते चल रहे हैं कि जो नोट लौटे हैं उनमें सब सफ़ेद धन नहीं हैं और उन लोगों की जांच की जायेगी जिन्होंने पिछले साल की घोषित आय से अधिक रूपए जामा कराये हैं. यह सच है की सारे नोट सफ़ेद धन नहीं हैं पर यह भी सच है की सारा काला धन नोटों की शक्ल में तिजोरिओं में नहीं रखे जाते है. 

Wednesday, August 30, 2017

बात निकली है तो दूर तलक जायेगी

बात निकली है तो दूर तलक जायेगी

देश की सबसे बड़ी अदालत नेआधार कार्ड और 12 अंकों के बायो मीट्रिक पहचान के बारे में निर्णय देते हुए कहा कि निजता का अधिकार हर नागरिक का भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है. इस ऐतिहासिक फैसले न जहां आधार कार्ड की अनिवार्यता की हवा निकाल दी वहीँ भविष्य के लिए कई और विवादों के लिए ज़मीन तैयार कर दी. भारत जहां तरह तरह की संस्कृति , पहचान , रहन सहन, खानपान के लोग रहते हैं और अद्दलती विवाद के आधार पर सामाजिक विपर्यय पैदा करने राजनितिक स्वार्थी लोग हैं वहाँ तो नए मसलों का उभरना लाजिमी है. जिन मुद्दों को लेकर लोग आने वाले दिनों में अदालतों के दरवाज़े खटखटाएंगे वे हैं यौन अभिविन्यास , जो इच्छा हो खाने की आज़ादी , चिकित्सकीय गर्भपात की आज़ादी, भौतिक और आभासी दुनिया में व्यक्तिगत सूचनाओं के प्रसार पर नियंत्रण जैसे मसायल इस फैसले के हवाले से उठेंगे. प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता में 5 जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि संविधान की धारा 21 के तहत निजता का अधिकार  जीने के अधिकार और व्यक्तिगत आज़ादी के अधिकार का हिस्सा है जिसकी संविधान के खंड 3 के तहत गारंटी दी गयी है. अदालत के सामने सवाल था कि क्या भारतीय जनता को निजता के बुनियादी अधिकार  को मानना चाहिए? फैसले में जजों की पीठ ने टेलेफोन टैपिंग एच आई वी की स्थिति की घोषणा, खाने की प्राथमिकता, आपराधिक गवेषणा के अंतर्गत वैज्ञानिक परीक्षण इत्यादि कई मामलों पर दिए गए फैसलों का हवाला दिया. अदालत ने कहा कि टेलेफोन टैपिंग और इन्टरनेट से व्यक्तिगत सूचनाओं को हैक करना निजता के अधिकार के हनन के दायरे में आता है. इसी सन्दर्भ अदालत में आधार और सरकार द्वारा बायोमेट्रिक आंकड़े  एकत्र करने  का हवाला उठा. अदालत का मानना था कि इस देश का कोई भी व्यक्ति नहीं चाहेगा की कोई सरकारी आदमी जब चाहे उसके घर में घुस जाए या बिना अनुमाती के किसी आदमी के व्यक्तिगत परिसर में सैनिक खेमा गाद दें. इस फैसले के सन्दर्भ में केंद्र सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि मौलिक अधिकार के तहत व्यक्तिगत  हित और सरकार की वैधानिक चिंता में संवेदनशील और सावधानीपूर्ण संतुलन होना ज़रूरी है. सरकार ने कहा की जो  कोर्ट द्वारा कहा  गया है उसमें शामिल है राष्ट्रीय  सुरक्षा को बनाए रखना, सामाजिक कल्याण की सुविधाएं मुहैया कराना , नवाचार को प्रोत्साहन तथा ज्ञान का प्रसार इत्यादि. सरकार ने कहा की वह इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है. अदालत में यह मामला आधार विधेयक को चुनौती देने वाले कई लंबित आवेदनों  को निपटाने के दौरान उठा. इन आवेदनों में आधार की वैधता को चुनौती दी गयी थी.

    इन सारे मामलात में दिलचस्प यह है की विधि मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है की सरकार जनता के निजता के अधिकार का साम्विध्निक अधिकार के तौर पर समर्थन करती है.  कैसी विडंबना है कि सरकार ने चार साल पहले निजता और उसके वजूद पर सवाल उठाया था और यहाँ तक कहा था की आम जनता को अपने शारीर तक पर अधिकार नहीं है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ही कहा था कि भारत जैसे गरीब देश में निजता के अधिका को ख़त्म कर दिया जाना  चाहिए . लेकिन अब यह तथ्य सार्वजनिक हो गया कि देश की जनता को सरकार और खुद को खुदा समझने वाली बहुराष्ट्रीय  कंपनियों से ज्यादा अधिकार है.

अब केवल फैसला ही नहीं फैसले मेरिन जजों ने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है वह भी आम जनता को आह्लादित करने वाले हैं. जज ने कहा कि “मुझे नहीं लगता, कोई यह पसंद करेगा कि  सरकार कहे कि क्या खाना है , क्या पहनना है और किसके साथ प्रेम करना है.” अब आधार के सम्बन्ध में आंकड़े एकत्र करना सरकार के लिए कठिन हो सकता है. हालाँकि सरका ने इस फैसले का स्वागत किया है पर जब आधार का मामला उठेगा तो इसके कई प्रावधान परीक्षाधीन होंगे और यकीनन डेटा सुरक्षा के सन्दर्भ में  अदालत का मापदंड काफी कठोर होगा. भारत में सूचना टेक्नोलोजी क़ानून अभी एक तरह से शैशव काल में है. यह डिजिटल युग है और ऐसे में जब अधिकाँश लोग अपने जीवन की गतिविधियों को वाट्सएप , ट्वीटर या ई मेल पर साझा करते हैं वैसे में डेटा की सुरक्षा ज़रूरी है. अगर क़ानून की भाषा में कहें तो यह मौलिक अधिकार की तरह एकदम बुनियादी है. इस कानून के तहत फेस बुक, वाट्सएप और यहाँ तक की गूगल को भी अपने गोपनीयता के नियमों की समीक्षा करनी होगी. इस निर्णय से यह तय हो गया कि सबको अपने शरीर पर अधिकार है. यह फैसला सरकार की ताकत के मुकाबले  आम आदमी के अधिका की रक्षा के लिए इतिहास में याद किया जाएगा. अब बात यहीं ख़त्म नहीं होगी दूर तक जायेगी.

   

Tuesday, August 29, 2017

डोकलम का मसला सुलझा, हटने लगीं फौजें

डोकलम का मसला सुलझा, हटने लगीं फौजें

लगभग 70 दिनों के बाद हिमालय में भारत चीन सीमा पर कायम गतिरोध समाप्त हो गया . भारत और चीन ने डोकलम से अपनी अपनी फौज हटाने का फैसला किया और फौजों का हटाना आरम्भ हो गया है. भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में नकहा गया है कि  हाल के हफ़्तों में चीन ने डोकलम के सम्बन्ध में  कूटनयिक  वार्ता आरम्भ की और भारत ने अपना नज़रिया ज़ाहिर किया और अपनी चिंताएं तथा हितों को बता सका. इसी आधार पर डोकलम से फौज हटाने पर सहमती हुई और इसके बाद फुज हटाने का काम शुरू हो गया. चीनी विदेश मंत्रालय ने भी इसकी पुष्टि की है पर कहा है कि डोकलम इलाके में उसकी गश्त जारी रहेगी. चीन द्वारा दोमुहां बयान दिए जाने के बावजूद भारत का  बयान दोनों देशो के बीच तनाव ख़तम होने की पहला संकेत है. डोकलम में चीन द्वारा सस्दक बनाने के औज़ार गिराए जाने के बाद से तनाव शुरू हो गया था. डोकलम को भूटान अपना क्षेत्र बताता है और चीन के यहाँ पहुँचने के बाद भारत ने वहाँ अपनी फौजें भेज दीं. चूँकि चीन  भारत की इस कारवाई को अपने क्षेत्र में भारत द्वारा दखलंदाज़ी बताता है अतएव उसने भी फौजें उतार दीं. नयी दिल्ली में चीनी दूतावास द्वारा अगस्त में  जारी एक बयान में कहा गया था कि “ यह  सत्य है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है  कि भारत ने चीन की सीमा में प्रवेश किया. यह घटना उस इलाके में घटी जहाँ सीमा एकदम स्पष्ट है.” लेकिन भारत और भूटान का यह कहना था कि चीन भूटानी क्षेत्र में सड़क बनाना चाहते थे. जो थिम्पू और बीजिंग में में 1988 और 1998 में समझौते के विरुद्ध है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने जून में कहा की चीन की सड़क बनाने की कार्यवाई से भारत चिंतित है क्योंकि भारतीय सीमा पर कायम यथ्गा स्थिति बदल जायेगी जिससे वहाँ की सुरक्षा पर प्रभाव पडेगा. पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन में कई सीमा विवाद हुए पर डोकलम इनसे थोड़ा अलग था क्योकि इस बार इसमें भूटान भी जुदा था और भूटान की हिफाज़त के लिए खडा था. अब चूँकि चीन और भोतान में कूटनीतिक सम्बन्ध नहीं है इसलिए भारत यह भूमिका निभा रहा था. अब ऐसे में चीन का आरोप अवैध कहा जाएगा.

कई हफ़्तों से हफ़्तों से भारत सरकार कह रही थी वह इस मसले का कूटनीतिक हल करने में लगी है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने गत 5 अगस्त संसद में कहा था कि  “ युद्ध कभी भी किसी विवाद का समाधान नहीं हो सकता. बुद्धिमानी इसी में है कि समस्या का समाधान कूटनीतिक तौर पर किया जाय. हम वही कर रहे हैं. इसमें न केवल डोकलम पर विवाद ख़त्म करने पर बात हो रही है साथ कई और मसलों पर भी वार्ता हो रही है.” इसके बाद गृह मंत्री राज नाथ सिंह ने भी कहा था कि मामला जल्द सुलझ जाएगा.

 अकसर ताल ठोकते रहने का आदि भारतीय मीडिया भी इसी विचार का समर्थन कर रहा था जबकि चीनी  मीडिया तो  शुरू से ही बाहें चढ़ाए था. वह 1962 की मिसाल दे दे कर कहा करता था की उसे सबक सिखाया जाएगा. पर वैसा हुआ नहीं. दोनों देशों में  समझौता हो गया. दोनों देशों के प्रधानमन्त्री अब साफ़ दिल से बातें करेंगे. दोनों नेता अगले महीने के आरम्भ में चीन के सियामन में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मलेन में मिलेंगे. मोदी चीन आयेंगे ज़रूर पर दोनों देशों की समस्या एक दिन में थोड़े सुलझ जायेगी.पर यह हर्ष की बात है कि दुनिया की सबसे लम्बी साझा सीमा के एक हिस्से पर उठा विवाद - मसला शांति और सहमती  से निपट गया किसी किस्म के हथियार का उपयोग नहीं हुआ. यह एक सकारात्मक पहल थी पर अब दोनों देशों को किसी सृजनात्मक समाधान की कोशिश करनी चाहिए न कि इस तरह के शक्ति प्रदर्शन  के अवसर आने देना चाहिए.

Monday, August 28, 2017

फिर शुरू हुई भाजपा भगाओ मुहीम

फिर शुरू हुई भाजपा भगाओ मुहीम

जब भी अपने देश में आम चुनाव की तारीखें नज़दीक आने लगतीं हैं विपक्षी दल एकजुट होने की कवायद शुरू कर देते हैं लेकिन चुनाव की तारीखों की घोषणा होने के बाद उनमें दरार दिखने लगती है. महज तृणमूल कांग्रेस को छोड़ देश में विपक्षी दलों में ऐसा कोई दल नहीं जिसमें चुनाव के दौरान भगदड़ ना मचती हो. इसबार फिर एकजुटता के प्रयास शुरू हो गए हैं और 18  विपक्षी दलों के बड़े नेता रविवार को पटना में एक मंच पर एकत्र हुए. इनमें प्रमुख थे पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्या मंत्री अखिलेश यादव, जदयू के शरद यादव, डी राजा,बाबु लाल मरांडी , सी पि जोशी , हेमंत सोरेन इत्यादि प्रमुख थे. इस अवसर पर ऐतिहासिक गाँधी मैदान में रैली का आयोजन हुआ. बताते हैं 7 लाख क्षमता वाला यह मैदान आधा भरा  हुआ था . बिहार के 20 जिलों में बाढ़ आयी हुई है और इसके बाद इतने लोगों का एकत्र होना अपने आप में एक सन्देश है. इस रैली में ममता बनर्जी ने कहा कि  “ मैं लालू जी पूरा बरोसा करती हूँ और यहाँ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए आयी हूँ. उन्होंने कहा कि बीजेपी यह समझती है कि केवल वही रहेगी बाकी सब ख़त्म हो जायेंगे लेकिन एक समय ऐसा आयेगा कि उसके सिवा साड़ी पार्टियां कायम रहेंगी.  ” लालू प्रसाद यादव ने बिहार में महागठबंधन को भंग करने के लिए मुख्य मंत्री नितीश कुमार को जम कर कोसा. सबने एकस्वर से संकल्प लिया कि  इस बार भाजपा को उखाड फेकेंगे क्योंकि देश को बचाने के लिए यह ज़रूरी है. इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और उपाध्यक्ष राहुल गाँधी , बसपा की मायावती , एनसीपी के शरद पवार शामिल नहीं हो सके थे. सोनिया  गाँधी का ऑडियो सन्देश रैली में सुनाया गया और राहुल गाँधी का लिखित सन्देश पढ़ कर सुनाया गया. इओस मंच से नारा दिया गया कि “ भाजपा भगाओ देश बचाओ. ” यह नारा उस समय दिया गया है जबकि हिमाचल प्रदेश को छोड़ पूरे उत्तर भारत में भाजपा का शासन है और यह उसपर पहला गंभीर हमला है. इस रैली में भीड़ को देख कर और उइसकी प्रतिक्रयाओं को अगर देखें तो समझा जा सकता है कि लोग भाजपा शासन में सम्प्रदायवाद और शासन से अपेक्षाएं पूरी ना होने के कारन लोग उससे असंतुष्ट हैं.  

  लेकिन यहाँ एक सवाल उठता है कि एकजुटता का यह प्रदर्शन क्या थोड़ी देर से नहीं हुआ और थोड़ा छोटा नहीं था? दूसरे शब्दों में कहें कि यह विपक्षी एकता 2019 में भाजपा को गद्दी से उतारने में सफल हो जायेगी? तीन कारणों से यह प्रश्न महत्वपूर्ण है.

पहला कि विगत तीन वर्षों में भाजपा ने विपक्ष को तहस नहस कर दिया. यह भारतीय जनजीवन की सियासी मिसाल बन गयी है. जबसे भाजपा सत्ता में आयी है तबसे विपक्षी एकता की बातें चल रहीं हैं पर कोई सकारात्मक नतीजा नहीं दिख रहा है.  राज्य स्तरीय दल क्षेत्रीय राजनीती में उलझे हुए हैं. मसलन सपा में अखिलेश यादव और मुलायम सिंह आपस में उलझे हुए हैं. सपा को पहले अपना ही घर ठीक करना होगा.  उसी तरह राजद ख़ास कर उसके नेता भ्रष्टाचार के लिए बदनाम हैं जो सफलता में अवरोध पैदा कर सकती है. एन सी पी का तीन वर्षों से सेकुलर गठबंधन से ठाडा गरम चल रहा है. एक मात्र बची कांग्रेस जो अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से जूझ रही है दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, जनता दल (एस), झामुमो  इत्यादि क्षेत्रीय राजनीती में उलझे हुए हैं. वामपंथी दल भी सैधांतिक झंझटों में उलझे हुए हैं.

इसके बावजूद रैली की कामयाबी ने आगे का रास्ता तो खोला ही है. लेकिन इसके लिए इसके नेताओं को अपनी अदूरदर्शिता को टाक पर रखने के लिए बहुत म्हणत करनी पड़ेगी और भाजपा पर सैद्धांतिक  आक्रमण करना होगा. यहाँ यह ध्यान देने की बात है की बहु जन समाज पार्टी और सबसे बड़ी वामपंथी ताकतर सी पी आई (एम) इस शक्ति प्रदर्शन से अलग थी. विगत तीन वर्षों में अगर किसी विपक्षी ताकत ने भाजपा सरकार को परेशान किया है तो वह है देश भर में दलित एकजुटता की शुरुआत और और केरल तथा त्रिपुरा में वामपंथी विपक्ष. लेकिन यह नया प्रयास बसपा और सी पी आई (एम्) को भरोसे में नहीं ले सकी.

महागठबंधन से अलग इस शक्तिप्रदर्शन में कोई भी ऐसी पार्टी शामिल थी जो भाजपा के लिए किसी अन्य राज्य में कठोर चुनौती बन सके यहाँ तक की वे साझा मोर्चा खोलें तब भी. अब ऐसे मामूली चुनावी महत्त्व को देखते हुए कहा जा सकता है कि ये किसी सामान घोषणा पत्र पर सहमत नहीं हो सकेंगे. इ८स्के अलावा विपक्षी दलों को आगे बढ़ने के लिए पीछे से एक जोरदार धक्का चाहिए. बिहार में जबतक महागठबंधन नहीं जीता था तबतक विपक्षी दलों का बहुत बड़ा भाग भारी सुस्ती का शिकार था. जब बिहार में महागठबंधन विजयी हुआ तो लालू ने फख्र से घोषणा की थी कि वे विपक्षी दलों की मदद से देश भर में भाजपा विरोधी आन्दोलन चलाएंगे. लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं सका उलटे नितीश भाजपा के साथ आ गए. यही नहीं भाजपा हिन्दुओं को एकजुट करने में लगी है विपक्ष इस स्टार पर सोच ही नहीं पा रहा है. इनमें से अधिकाँश वही जाती आधारित वोट बैंक पर निर्भर हैं.

ऐसे राजनितिक सन्दर्भ में भाजपा के लिए  इस रैली को नजरअंदाज करना सरल है. भाजपा ने रविवार की उस रैली को भ्रष्टाचारियों का गठबंधन कहा है.

अगर भाजपा के इस बडबोलेपन का तुरत विरोध नहीं हुआ तो भारतीय समाज ऐसे  दो ध्रुवों में  बाँट जाएगा जिसका कोई वास्तविक सामाजिक आर्थिक अजेंडा  नहीं होगा. इससे भाजपा को हिंदुत्व के अपनेर अजेंडे को आगे बढाने में सहूलियत होगी. इन सबके बावजूद यह प्रशंसनीय शुरुआत है. अगर रैली को मापदंड माना जय तो यह बेकारी और मूल्यवृद्धि से पीड़ित लोगों में उम्मीद ज्कागा रही थी. इसमें कोई जाती या संप्रदाय शामिल नहीं था. इसकी सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि यह एक विश्वसनीय सामाजिक आर्थिक अजेंडा पेश करे जो भगवा पार्टी से अलग हो.     

Sunday, August 27, 2017

राष्ट्र के आदर्श को खतरा

राष्ट्र के आदर्श को खतरा

शुक्रवार का दिन दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में होहल्ले का दिवस कहा जा सकता है. दक्षिण कोरिया मे  सैमसंग के प्रमुख को जेल हो गयी, थाईलैंड में पूर्व प्रधान मंत्री युन्गुलुक शिनावात्रा अपने खिलाफ अदालती फैसले के डर फैसला सुनाये जाने के पहले ही देश से भाग निकले. लेकिन इस भारत भू  पर  सबसे बड़ी घटना घटी जिसका देश के शिष्टाचार और विवेक पर भरी प्रभाव पडेगा. संतों की  पूजा करने वाले इस देश में एक संत को बलात्कार के अपराध में जेल जाना पडा. हालाँकि यह पहली घटना नहीं है इसके पहले भी अपने को कद से बड़ा दिखाने वाले आशाराम भी जेल गए. पहले इसके कि बाबा राम रहीम इतिहास कूड़े वाले ड्रम में फ़ेंक दिए जाएँ उनके चेले देश कि न्याय व्यवस्था का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आये. आम जनता के जानोमाल कि हानि हुई , 30 से ज्यादा लोग मारे गए, कई वहां फूँक डाले गए और भरी पैमाने पर तो०द फोड़ हुई. पुलिस तमाशबीन बनी रही. खुद को प्रभु का दूत बताने वाले बाबा राम रहीम को अपने बारे में कई खुशफहमियाँ थीं. वे स्वयं को करिश्माई  बताते थे, दार्शनिक कहते थे गायक, और न जाने क्या क्या कहते थे. इसके बावजूद उनका अपराध जघन्य था. एक कमज़ोर लड़की को यौनक्रिया के लिए मजबूर करने का अमानवीय कृत्य उस कथित संत ने किया था. यह अपराध अदालत में साबित हो गया और अदालत ने इसके लिए सज़ा सुनायी. जिसदिन उन्हें सज़ा सुनायी जाने वाली थी वे लगभग 200 वाहनों के काफिले के साथ 250 कि मी दूर अदालत गए. इनके साथ टीवी के वाहनों और रिपोर्टरों कि गाड़ियों का हुजूम अलग से. सुबह से फौज ने फ्लैग मार्च किया और किसी भी बिगड़ी परिस्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया. यहाँ तक कि व्यवस्था बनाये रखने के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया. लेकिन भक्तों ( गुंडों पढ़ें ) को काबू नहीं किया जा सका. पहले सड़कों पर शुरू हुई अव्यवस्था अचानक मार पीट और पुलिस पर हमले में बदल गयी जो कुछ ही देर में शहर कि विभिन्न स्थानों में भयानक अराजकता में ख़त्म हुई. चारोतरफ भीड़ का पागलपन दिख रहा था. घर फूंके जा रहे थे . लोगों को मारा जा रहा था , पत्रकारों को पीटा  जा रहा था वहां जलाए जा रहे थे – यह सब इसलिए हो रहा था कि क़ानून ने अपना किया था.  भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है , आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर  बढ़ रहा है , दुनिया कि विशालतम सैन्य शक्ति है इसके पास और इस देश का भविष्य ऐसे  दंगाई  नागरिकों पर निर्भर कर रहा है जो एक अपराधी को  अदालत द्वारा सज़ा दिए जाने के विरोध में  30 – 30 लोगों को मार डालते हैं सैकड़ों को घायल कर देते हैं, घर वाहन फूँक डालते हैं. ये क़ानून कर रहे हैं जिसकी इज्ज़त करने पर देश महान बनता है. सैकड़ों वर्षों कि गुलामी के बाद आज़ादी के सात दशक समाज को शिष्ट नहीं बना सके. यह सोच कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि भारत की  प्रगति की वल्गाएँ  इन गुंडों के हाथों में है. इनके पास असीम और बेलगाम ताकत है इसलिए नहीं कि ये विध्वंस करते हैं या खून खराबा करते हैं बल्कि इस ये उन लोगों के लिए वोट का जुगाड़ करते हैं जो इन्हें और इनके “गुरुओं ” को इस देश को अंध विश्वास और दुर्गति में झोंक देने इजाज़त देते हैं. यह बात केवल एक राम रहीम और उनके जैसे कथित संतों के लाखों  भक्तों की  नहीं है बल्कि ऐसे हज़ारों लोगों कि भी है जो तरह तरह के बहानों के माध्यम से इस भारत राष्ट्र के आदर्श को नेस्तनाबूद करने पर लगा है. इनका निशाना उस भारत पर नहीं है जिसकी अपनी धार्मिक पहचान है , उसकी भी नहीं है जिसकी सामाजिक पहचान है, उसकी भी नहीं जिसके अतीत का एक गौरव है बल्कि यहाँ उस भारत के अस्तित्व का प्रश्न है जो 1947 में जन्मा था. यही एक भारत है जिसका सबसे ज्यादा महत्व है.

गौर करें, इस तरह के समुदायों का उभार आज कि सबसे परेशान करनेवाला फिनोमिना है. सतयुगी कथाओं के आधार पर ये कथित बाबा पिछड़े और वंचित लोगों के समुदाय में सपने , अपेक्षाएं और नाटकीयता का आरोपण करते हैं जिसमे भविष्य बड़ा लुभावना लगता है. वे एक तरह की आभासी दुनिया में जीते हैं और किसी भी मामले में शासन का हस्तक्षेप नागवार लगता है और वे चाहते हैं कि उनके मामलों का निपटारा उनके ही प्रभु के दूत करें. बाबा राम रहीम को सजा सुनाये जाने के बाद जो गड़बड़ी हुई उसका मुख्य कारण यही था. ऐसे बाबाओं का विकास देश कि व्यवस्था तथा विवेक के लिए खतरनाक हो सकता है.