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Friday, August 14, 2020

अब तेरी हिम्मत की चर्चा गैर की महफ़िल में है

 अब तेरी  हिम्मत की चर्चा  गैर की महफ़िल में है 


 किसी जमाने में आजादी के जश्न में पूरा देश डूब जाता था। एक गीत की  पंक्तियां

 सरफरोशी की तमन्ना आज हमारे दिल में है

 देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है

   यह गीत जहां लोगों के मन में  भारत के जोश से पूरे देश की जनता जोशीला बना देता था क्योंकि कभी यह गीत एक सपना था।अब इस पर तरह-तरह के सवाल और तरह-तरह के मायने खोजे जा रहे हैं। यहां तक कि  आजादी और स्वाधीनता को दो अलग-अलग नरेशंस में बदल दिया जा रहा है।  कुछ लोग आजादी की परिकल्पना को ही चुनौती देते हैं तो कुछ लोग इस पर बहस भी करते हैं।  बात यहां तक चली जाती है कि  देश क्या होता है,  भारत से आप क्या समझते हैं? इसका उत्तर एक शोध का विषय है लेकिन शोध कौन करता है किसे पड़ी है शब्दों की व्याख्या करें।  यहां देश शब्द एक जमीन का टुकड़ा नहीं है बल्कि एक भाव है।  यह भाव  हमारे भीतर घटने वाली घटनाओं को स्वरूप देता है। यह स्वरूप प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि एक उच्छवास है। एक गौरव शाली स्मृति है। ठीक उसी तरह जिस तरह हम राम  को भगवान  मान लेते हैं और उस भगवान पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। इसका न कोई इतिहास है और मैं भूगोल बल्कि एक स्मृति है जो जीवन से विराट है। यह स्मृति है जहां एक पत्थर का टुकड़ा शंकर बन जाता है एक धनुर्धारी राम बन जाता है।  

         यहीं से उन दलीलों का उत्तर खोजना जरूरी है।  स्वतंत्रता,  आजादी या फिर स्वाधीनता चाहे जितने  भी अपरूपों  में विश्लेषित हों  संवेदना वहीं से मनुष्य ग्रहण करता है।  वरना क्या कारण था बेल्जियम से आया फौजी बनारस आकर राम भक्त बन गया,  क्या कारण था कि  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए भूमि पूजन का आंखों देखा हाल लगभग 16 करोड़ लोगों ने देखा। किसी ने राम को देखा नहीं है। राम पर उसी तरह बहस होती है जैसे राष्ट्र को लेकर होती है लेकिन हमारे भीतर राम हैं।  हमारे देश की पौराणिक कथाओं में उपनिषदों में राम व्यक्ति के रूपक  हैं और ठीक वैसे ही हमारा देश भी है।  यह बात साहित्य समाजशास्त्र और दर्शन के तालमेल से समझ में आती है कि  आखिर बात क्या है कि  हमारे  अमूर्त भावों  के लिए संजीवनी विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है।  भारत को राष्ट्र का स्वरूप देना एक तरह से संगीत की  लयबद्धता है। इस में  छोटे से छोटे वाद्य  का सुर  साफ-साफ सुनाई पड़ता है।  इतिहासकार  टाॅप्शन के मुताबिक  भारत दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण देश है और इस पर दुनिया का भविष्य निर्भर करता है।  पूरब या पश्चिम का कोई ऐसा विचार नहीं है जो भारतीय मनीषा में शामिल ना हो।  स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई  ने  कोलकाता में एक संस्मरण सुनाया था कि  अफगानिस्तान में एक होटल है जिसका नाम कनिष्क है और भारत में गंगोत्री से निकलकर गंगासागर तक की यात्रा करने वाली इसी तरह किसी भी संस्कृति को अपने आलिंगन में लेने से नहीं छोड़ा है। ठीक उसी तरह हमारा देश और हमारे देश की संस्कृति ने  को  प्रभावित  करने से नहीं छोड़ा।  अफगानिस्तान में होटल कनिष्क हो सकता है और इंडोनेशिया में रामलीला होती हैं।  भारत का या अमृत स्वरूप सब जगह है।  हमारे देश पर न जाने कितने विदेशी हमले  हुए न जाने कितने प्रयास हुए हमारी संस्कृति को समाप्त कर देने के लेकिन कुछ नहीं हो सका हमारी संस्कृति जीवित है और उसी जीवंतता का प्रमाण है कि हम अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं।  आज कश्मीर को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है।  देखिए कैसा संयोग है 5 अगस्त को  राम मंदिर की भूमि पूजन हुआ कश्मीर के विवाद को समाप्त करने के लिए 1 साल पहले संविधान में उल्लिखित अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा था कि कश्मीर जो आज  अधिकृत कश्मीर कहा जाता है हमारा अंग है।   यह केवल भूगोल  नजर से नहीं  है बल्कि  अध्यात्मिक या कहिए भारतीय अध्यात्मिक और हिंदू धर्म दर्शन के दृष्टिकोण से है।  ईसा मसीह के जन्म के समय भारत से जो लोग वहां गए थे उन्होंने ईसा को अपने साथ लाया।  बाइबल के न्यू टेस्टामेंट में कहा गया है के  “ फाईव वाइज मैन फ्रॉम द ईस्ट”यह पांच  ज्ञानी लोग  कश्मीर के थे और आज भी जीसस की वहां उपस्थिति  के सबूत मिलते हैं। हम शैव- बौद्ध दर्शन या राज तरंगिणी जैसी ऐतिहासिक रचनाओं में अपनी पारंपरिक संपदा से पृथक कर सकते हैं। समय बीतने के साथ-साथ जमीन की  सरहदें  बदलती जाती हैं और उसके अनुरूप संस्कृति का नक्शा बदल जाता है।  भारत की आजादी के संघर्ष  ने इसी लौ को जला रखा था। आज भी गंगासागर के  स्नान और कुंभ के मेले में लाखों की भीड़ को  देखना इसी रूप का  अमूर्त रूप है। और, एक आश्वासन भी है। आजादी,  स्वाधीनता जैसे मुहावरे इन लोगों के लिए नहीं है जो इस अमूर्त स्वरूप को प्रणाम करते हैं।हमारा  स्वतंत्रता संग्राम  सत्ता बदलने के लिए नहीं था बल्कि अपने समस्त सभ्यता भूल को अपने जीवन में प्रतिष्ठित करने का यह आंदोलन था और अब तक नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिए हैं देश या विदेश में उसमें प्रतिष्ठित करने की  यह जिजीविषा महसूस की जा सकती है।

 जहां शिवा ,राणा, लक्ष्मी ने देश भक्ति का मार्ग बताया

 जहां राम, मनु ,हरिश्चंद्र ने प्रजा  भक्ति का सबक सिखाया

 वही उनके पथ गामी बनकर हमें दिखाना है

 भारत को खुशहाल बनाने ,आज क्रांति फिर लाना है 


कोरोना और बाढ़ की त्रासदी झेलती एक बहुत बड़ी आबादी

 कोरोना और बाढ़ की त्रासदी  झेलती एक बहुत बड़ी आबादी

 उत्तर प्रदेश और बिहार में बाढ़ का आना आम  बात है।  कुछ लोग बाढ़ के कारणों  को जानना चाहते हैं तो कुछ उसके लिए मिलने वाले राहत धन में दिलचस्पी रखते हैं। कोई यह नहीं सोचता कि जो आबादी इस त्रासदी  से जूझ रही है उसकी क्या गति होगी।  कुछ लोग बिहार और उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों के लोगों को पिछड़ा हुआ और गरीब  कहते हैं।  कोविड-19 के पहले दौर में  लंबे  लॉकडाउन के दरमियान बहुत  बड़ी आबादी जिसमें  अबाल  वृद्ध सब शामिल थे उनकी गिनती  को  लोग आंकड़ों की तरह उपयोग कर रहे हैं।  लेकिन कोई कभी यह नहीं सोचता उनके जाने और लौटने की क्या  बाध्यता है।  इन दिनों  खबरों में अक्सर आ रहा है उत्तर प्रदेश के और बिहार के सैकड़ों गांव बाढ़ से ग्रस्त हैं।  सरकारी अफसरों को चेतावनी दी जा रही है कि यदि वह उन क्षेत्रों में जाएं तो कोरोना से बचाव का उपाय करके ही जाएं।  उधर बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में लापरवाही से कोरोनावायरस का संक्रमण बढ़ने का पूरा खतरा है। उत्तर प्रदेश के कुल 75 जिलों के 20 जिलों में लगभग 20% लोग कोरोनावायरस पीड़ित हैं।  यही हाल बिहार के 38 जिलों में से बाढ़ प्रभावित 16 जिलों में  लगभग 15% लोग कोविड-19  से पीड़ित हैं।  इतनी बड़ी आबादी के इलाज का क्या  हो रहा है,  किसी को कुछ मालूम नहीं। प्रशासन कहता है कि  सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें,  मास्क लगाएं परंतु सच तो यह है क्षेत्रों में ऐसा कुछ होता हुआ नजर नहीं आता है।  जो आबादी दो वक्त भरपेट खाना नहीं खा सकती उस आबादी को मास्क  खरीदने का सुझाव बड़ा अजीब लग रहा है। सरकार की तरफ से बाढ़ पीड़ितों के लिए मास्क का बंदोबस्त  नहीं किया गया है।  उत्तर प्रदेश के 20 जिलों में 802 गांव बाढ़ की चपेट में हैं।  इन 20 जिलों में 11 अगस्त तक 28, 871 कोरोनावायरस के मामले सामने आए हैं।  इसी तारीख तक संपूर्ण राज्य में 1,31,763 मामले सामने आ चुके हैं।  इसका मतलब है कि उत्तर प्रदेश के 20% से ज्यादा मामले बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के हैं।  सरकार कहती है कि बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और मास्क पहनें। यह तो सब जानते हैं बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र में जहां पानी जमा होता है वहां संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है।  इसलिए हर साल सरकारी क्षेत्रों में छिड़काव  कराती है ताकि कम से कम मच्छर न पैदा हों इस बार तो कोरोनावायरस की भी चुनौती है।  बिहार की भी वही हालत है कई गांव में घरों में पानी घुस गया है। बिहार के 14 जिलों के  1223 पंचायतों के लगभग 73  लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। राज्य में 11 अगस्त तक कोरोनावायरस के 86,812 मामले आ चुके हैं। यानी बिहार के  करीब 15% मामले  बाढ़ से ग्रस्त क्षेत्रों के हैं।  बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में त्वचा,  पेट लीवर से संबंधित बीमारियां,  मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारियां,  पीलिया और सांस से जुड़ी बीमारियां होती हैं।

         बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में दवाइयां और मेडिकल हेल्प के सामने भी मुश्किलें आती हैं।  जो बाढ़ के पानी के बीच में रहते हैं उन्हें खुजली का और  खुजलाने के बाद  थोड़ा हो जाने का सबसे बड़ा संकट है क्योंकि इसे इसी अस्पताल में नहीं दिखा सकते।  बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में  सोशल डिस्टेंसिंग का नियम खत्म हो जाता है क्योंकि लोगों को घर छोड़कर दूसरी जगह जाना होता है और वहां जितनी जगह मिलती है उतने में ही गुजारा करना होता है। बात  यहीं खत्म हो तो कोई बात नहीं लेकिन जब हालात काबू से बाहर होने लगते हैं और सरकार असमर्थ हो जाती है तो बात बिगड़ने लगती है।  कोरोना और महंगाई की पीड़ा को  बाढ़  असह्य  बना देती है और तब  और भी  पीड़ादायक  हो जाती है जब फसलें डूबने  लगती हैं । फसल मारी जाती है और मवेशी बाढ़ से खुद मर जाते हैं।  मरे हुए मवेशियों के सड़ने से और बीमारियां फैलने लगती हैं।  बार-बार चेतावनी दी जा रही है कि  सांस लेने में तकलीफ होने पर  कोरोना का भय होता है।  अविलंब डॉक्टरों से संपर्क करें। लेकिन कैसे?  इसका कोई समाधान नहीं होता।  एक बहुत बड़ी आबादी जो देश के निर्माण में भागीदार  है और आगे भी उसकी भागीदारी रहेगी वह आबादी अपने भविष्य के लिए चिंतित है तनाव में है खास करके जो नौजवान पढ़ लिख  लिये  और रोजगार विहीन हैं  वह अपने भविष्य के बारे में  सोचेंगे। सरकार को कोसेंगे  लेकिन जैसे उन्हें मदद पहुंचायेगी सरकार? बाढ़ का पानी उतरने  के बाद एक नया दौर आरंभ होगा वह है बेरोजगार जनित तनाव और उससे उत्पन्न तरह-तरह के अपराध चाहे वह लूटपाट हों  या आत्महत्या।  इसके अलावा बीमारियां फैलेंगीं  उनमें खसरा,  पेचिश और इंसेफेलाइटिस प्रमुख हैं।   जब तक बाढ़ के कारणों का निवारण ना हो और संपूर्ण स्वच्छता ना हो तब तक इन बीमारियों और बिगड़ती सामाजिक स्थितियों को रोकना दुश्वार है। बाढ़ को प्राकृतिक आपदा बताकर अपना  हाथ झाड़  लेना बड़ा  सरल है लेकिन जो उसे भोग रहे हैं उनकी पीड़ा को शेयर करना बेहद कठिन है।  

       राज्य की सरकारें इस मामले में तब तक कुछ नहीं कर सकतीं  जब तक बाढ़ के कारण और जल प्लावन को रोकने तथा उसे खत्म करने के उपाय इमानदारी से ना  किए जाएं।  अगर ध्यान से देखें तो राजनीति क्षेत्र में बाढ़ भी एक तरह से  आमदनी का जरिया है।  राहत के पैसे दूसरी तरफ चले जाएंगे और जो लोग इसकी पीड़ा  से जूझ रहे हैं उनके हालत नहीं  बदलेगी।


फिर पक रही है धर्म की खिचड़ी

 फिर पक रही है धर्म की खिचड़ी

 पिछले 1 वर्ष से हिंदू धर्म  को लेकर एक नई बहस आरंभ हो गई है।  हर दूसरा तीसरा आदमी धर्म, धार्मिकता और धर्मनिरपेक्षता पर बहस में  उलझा  हुआ है  अल बरूनी की बात करता है तो कोई धर्म के दर्शन की।  इसमें सबसे ज्यादा जो चीज नजर आ रही है वह है राजनीतिक भक्तों और  विभक्तों की मानसिक रस्साकशी।  अल बरूनी का जहां तक प्रश्न है तो उसने अपनी भारत यात्रा के  बाद एक पुस्तक-  तारीख उल हिंद- का  प्रणयन  किया।  जिसमें उसने भारतीय सांस्कृतिक  में  बहुत उम्मीद दिखाई है।  उसके बाद राष्ट्र का जो कांसेप्ट आया वह ऐसा नहीं था आज है।  इस बीच,  राम मंदिर के लिए भूमि पूजन भी हुआ।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए इस भूमि पूजन  के  समय और उसके पश्चात के समाज विज्ञान को तारीख उल  हिंद के चश्मे से देखें तो आज भी भारतीय सांस्कृतिक एकता दिखाई पड़ेगी और यह इतिहास को नरेंद्र मोदी की देन कहा जाएगा।  लेकिन,  बहुत तेजी से वक्त बदला और  समाज-संस्कृति को  राजनीति के स्तर पर विभाजित करने का प्रयास आरंभ हो गया है।  देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति का श्रीगणेश हुआ है।  परशुराम की विशाल प्रतिमा बनाने की बात चल रही है और ब्राह्मणों को लेकर तरह-तरह के वायदे किए जा रहे हैं।  प्रश्न यह नहीं है  कि  ब्राह्मण समुदाय का राजनीति में कितना अवदान है बल्कि यह प्रमुख प्रश्न है कि  उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी कितनी है और समाज पर वर्चस्व कितना है।  अब से कुछ दिन पहले जाति को लेकर जनगणना हुई थी और करोड़ों रुपए खर्च हो गए थे बाद में उसे दबा दिया गया।  उस जनगणना के आंकड़े प्रकाशित नहीं किए।  क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन आंकड़ों को हथियार की तरह प्रयोग में लाने की राजनीतिक दलों की कोशिश का  भय शुरू से रहा है।  यह  विचार इसलिए नहीं है के विभिन्न जातियों के वोट बैंक पर विभिन्न दलों का कब्जा हो जाएगा बल्कि डर यह है कि  सांस्कृतिक रूप में एकजुट भारत को जातिगत रूप में बांटने की कोशिश हो जाएगी  और यह कोशिश हथियार में बदल जाएगी। लेकिन बात  यहीं  रुकी नहीं और उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के वोट को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। अब इसकी शुरुआत मूर्ति लगाने से है।  पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने 3 महत्वपूर्ण ब्राह्मण नेताओं से मुलाकात की। इस मुलाकात में  जो लोग शामिल थे वह हैं अभिषेक मिश्र,  मनोज पांडे और माता प्रसाद पांडे। मुलाकात के बाद अभिषेक मिश्र  ने घोषणा की कि लखनऊ में  भगवान परशुराम की 108  फुट ऊंची प्रतिमा लगेगी।  उधर मायावती ने भी घोषणा की उससे भी ऊंची प्रतिमा और एक अस्पताल का नाम भी परशुराम के नाम पर रखेंगी।  इसके बाद सपा और बसपा नेता एक दूसरे के  आप खुलकर बोलने लगे।  दोनों तरफ से तरह-तरह के  जुमले  उछाले जाने लगे।  बात तो यहां तक  चली गई कि  भगवान परशुराम के वंशज भगवान कृष्ण के वंशजों के साथ रहने का फैसला किया है। इतना ही नहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने ली खुलकर सपा बसपा दोनों  को घेरा है।  ब्राह्मण समुदाय उत्तर प्रदेश में सरकार से नाराज है।  कहा जा रहा है कि पिछले 3 साल में जितने भी बड़े हत्याकांड हुए हैं उसमें  ब्राह्मण शामिल हैं।ब्राह्मण समुदाय के कुछ नेताओं का कहना है कि पिछले 2 साल में लगभग 500 से अधिक ब्राह्मणों की हत्या हुई है। 

       उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा से ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है और वहां  औसतन 12% ब्राह्मण हैं तथा कई विधानसभा क्षेत्रों में तो 20% से ज्यादा है ऐसे में हर पार्टी की नजर ब्राह्मण वोट बैंक पर टिकी है।  सपा हे वोट बैंक का समीकरण है यादव- कुर्मी- मुस्लिम और ब्राह्मण।  जबकि कांग्रेस ब्राह्मण- दलित- मुस्लिम और ओबीसी का हुआ तब का जो भाजपा सपा के साथ नहीं है उसे अपनी ओर खींचने में जुटी है।

     उधर,  भाजपा के सूत्र बताते हैं कि विपक्षी जिस तरह ब्राह्मणों को लेकर कूद  रही है उसे देखते हुए चिंता बढ़ रही है और यही कारण है अभी तक वहां संगठनात्मक बदलाव नहीं लाया गया। 

      एक बार फिर यहां अल बरूनी  की चर्चा जरूरी है।  उसने लिखा है कि “भारतीय सार्वजनिक बहस में दो बातें एक साथ दिखती हैं पहली उसमें विजय भाव और दूसरा अवसाद।”यहां अगर बारीकी से देखेंगे तो भूमि पूजन को लेकर एक विजय भाव है तो धर्मनिरपेक्षता की पराजय अवसाद भी है। कुछ लोग कहते हैं जिसमें समाजवादी और वामपंथी बुद्धिजीवी हैं शामिल है भारत में धर्मनिरपेक्षता समाप्त हो रही है और इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। इन दिनों एक नया शब्द सामने आया है वह है संविधानिक धर्मनिरपेक्षता। यहां इसके दो पक्ष देखते हैं पहला  सभी धर्म के प्रति सम्मान और दूसरा अपने धर्म का अनुसरण। यहां धर्म विरोध की कोई बात नहीं है और हो भी नहीं सकती है खास करके भारत जैसे देश में जहां सारे समुदाय यहीं की मिट्टी से  पनपे  हैं वहां कट्टर धर्म विरोधी बात हो ही नहीं सकती। एक तरफ जहां राहत इंदौरी यह कह कर इस दुनिया से चले गए कि “ किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ही है” तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर भूमि पूजन समारोह में मुस्लिम समुदाय के एक नेता को बुलाकर बता दिया कि वह किसी धर्म के विरुद्ध नहीं हैं। सबसे बड़ा दुखद अध्याय है कि  इन दिनों धर्म का विरोध या समर्थन राजनीति के चश्मे को पहन कर किया जाता है और उसे लेकर तरह-तरह की बातें  होती हैं।  अभी जो धर्म की ताजा खिचड़ी पक रही है वह  बीरबल की खिचड़ी प्रमाणित हो सकती है।  भारत एक ऐसा देश है जहां धर्मनिरपेक्षता की  उम्मीद को नहीं छोड़ा जा सकता।  बेशक कुछ गैर जिम्मेदार नेता राजनीति के पर्दे के पीछे से वर्तमान राजनीति की  आलोचना कर सकते हैं,  लेकिन स्थाई नहीं होगा।  भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी खूबी है कि  नेतृत्व अपनी बात को समझाने में कितना सफल होता है और लोगों को इस बात पर पूरा भरोसा है कि  नरेंद्र मोदी एक ऐसे नेता हैं जो सच को या सही को सही कहने  और गलत को सही करने का  दम रखते हैं।  धार्मिक राजनीति पर टिका भारत का भविष्य ऐसे ही नेतृत्व की अपेक्षा करता है।


राजस्थान की सियासी जंग फिलहाल थमी

  राजस्थान की सियासी जंग फिलहाल थमी

 सचिन पायलट ने सोमवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की।  इस मुलाकात में कांग्रेस की  महासचिव  प्रियंका गांधी भी मौजूद थीं।  इस मुलाकात के बाद सचिन पायलट ने कांग्रेस के हित में काम करने को कहा है।  जानकार बताते हैं कि पायलट ने पार्टी से बगावत इसलिए की थी  कि उन्हें मुख्यमंत्री पद चाहिए था।  इस दौरान बहुत  अफवाहें उड़ीं और यह भी कहा जाने लगा कि  पायलट भाजपा में शामिल होना चाहते हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं।  अब राहुल और प्रियंका के मुलाकात के बाद पायलट का कहना है कि वह किसी पद के लोभी नहीं हैं। पार्टी ने यदि पद दिया है वापस भी ले सकती है।  उन्हें अपना स्वाभिमान बचाए रखना था।  हालांकि,  पायलट ने नहीं बताया किस बात से उनके स्वाभिमान को आघात लगा था। पायलट ने कहा कि वह पिछले दो दशक से पार्टी में काम कर रहे हैं और हरदम उनकी कोशिश रही है कि वे उन लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करें जिन्होंने सरकार बनाने में काफी मेहनत की है। सचिन पायलट ने कहा कि कई चीजें ऐसी थी जो सिद्धांतों पर आधारित थीं  और उन्हें पार्टी फोरम पर उठाया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस मुलाकात के बाद पायलट ने अपने समर्थक विधायकों के साथ प्रियंका गांधी  से भी मुलाकात की।  हालांकि,  राहुल गांधी से मुलाकात के दरमियान प्रियंका मौजूद थीं  पर यह मुलाकात  उनसे अलग से हुई । पायलट के साथ जो विधायक थे उसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल शामिल थे। इन मुलाकातों के बाद  कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि सचिन पायलट ने खुलकर अपनी बात  कहीं और संकल्प जताया कि  राजस्थान में वह कांग्रेस के हित में  काम करेंगे।  सोनिया गांधी ने पूरी बात सुनने के बाद एक 3 सदस्यीय समितिका गठन किया जो इनकी बात सुनने के बाद शिकायतों का निपटारा कर पूरे विवाद का हल निकालेगी।  इस समिति में अहमद पटेल,  केसी वेणुगोपाल और प्रियंका गांधी शामिल हैं।  14 अगस्त को शुरू होने वाले राजस्थान विधानसभा सत्र से पहले सचिन पायलट की मुलाकात एक सकारात्मक संदेश और उम्मीद की जा सकती है पार्टी के भीतर का यह विवाद  फिलहाल खत्म हो गया।

       जब विवाद आरंभ हुआ था राजस्थान के सियासी माहौल में बेहद तनाव था।  पायलट न जाने किस कारण इतने खफा हो गए थे कि  अपने समर्थक 18 विधायकों को  लेकर बाहर निकल आए। उनकी इस कार्रवाई के बाद उनका पद ले लिया गया।

     पायलट की खुली बगावत चारों तरफ बातें होने लगीं थीं कि   कांग्रेस  नेतृत्व एक कमान  भी भी होती जा रही है।  पंजाब से हरियाणा तक हिमाचल प्रदेश से छत्तीसगढ़ तक  पार्टी में असंतोष पनप रहा है और नेता राज्य नेतृत्व को खुली चुनौती दे रहे हैं कि  वे पार्टी से अलग हो जाएंगे। लेकिन यह कोई बता नहीं पा रहा था  कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? कुछ लोग अपनी बात करने से  हिचक रहे थे।  पार्टी के पूर्व प्रवक्ता संजय झा ने कहा था कि  इन दिनों पार्टी में प्रतिभाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है तो कुछ लोग कमजोर नेतृत्व को  दोषी बना रहे थे।  संजय झा ने  सोमवार को कहा कि वे सचिन पायलट का समर्थन करते हैं।  उन्होंने कुछ आंकड़े पेश किए थे इसमें कहा गया था 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 163 सीटें मिली थी और कांग्रेस को महज 21।  2018 के  राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक सौ सीटें मिली जबकि भाजपा को 73।  यह सचिन पायलट का ही करिश्मा था लेकिन मुख्यमंत्री किसे बनाया गया यह सब जानते हैंं। सचिन पायलट की बगावत  की कोशिश  को नाकाम  होने के प्रमुख कारणों में से एक है कि  राजस्थान की सबसे कद्दावर नेता वसुंधरा राजे ने कथित तौर पर कांग्रेस  सरकार को गिराने के लिए विधायकों के साथ योजना बनाने से  इंकार कर दिया।  अब भाजपा उनके बगैर बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकती थी।  राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां क्षेत्रीय नेताओं का वर्चस्व केंद्रीय नेताओं के  मुकाबले ज्यादा है। यही नहीं,  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी राजनीतिक  सूझबूझ से पायलट को हमेशा परेशान किए रखा। 

       कांग्रेस पार्टी में सुलह के आसार तो उसी दिन दिखने लगे थे जब शनिवार को  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि अगर हाईकमान बागियों को माफ कर देगा  तो वह उन्हें वापस ले  लेंगे। इसके पहले फिजां  दूसरी थी।   गहलोत ने ही  पायलट को  निकम्मा कहा था। अब वह कह रहे हैं कि अगर हाईकमान पायलट और उनके साथियों को क्षमा कर देता है वापस लेने में कोई दिक्कत नहीं है।यही नहीं,  निलंबित विधायक भंवर लाल शर्मा ने सोमवार की शाम गहलोत से मुलाकात की और कहा कि वे  सीएम के साथ हैं। सचिन पायलट की घर वापसी के बाद सोमवार को कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि  यह संभवत भाजपा के और लोकतांत्रिक चेहरे पर सीधा तमाचा है।


14 अगस्त से विधानसभा का सत्र आरंभ होने वाला है और अटकलें हैं कि गहलोत को  विश्वास मत में बहुमत हासिल नहीं होगा 200 सदस्यों वाली विधानसभा में  गहलोत के 100 सदस्यों में  19 पायलट के साथ निकल गए।  बाकी बचे 81 सदस्य।  अगर भाजपा कांग्रेस के बागी सदस्यों को समर्थन दे देती है तो मामला गड़बड़ हो सकता है। 

       लेकिन सोमवार के मुलाकात के बाद लगता है  सुलह  हो गई क्योंकि नेताओं के वक्तव्य के मुहावरे बदलते नजर आ रहे हैं।  पायलट को निकम्मा कहने वाले  गहलोत अब यह कहते सुने जा रहे हैं कि उन्हें किसी से कोई झगड़ा नहीं है लोकतंत्र में आदर्श, नीतियां और कार्यक्रम को लेकर मतभेद तो होते ही हैं इसका मतलब सरकार थोड़ी गिरा दिया जाना है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी  पत्र लिखा है कि  उनकी सरकार को गिराने का प्रयास  छोड़ दें। 

      पायलट ने  उनके मामले पर  विचार के आश्वासन  के लिए कांग्रेस हाईकमान को धन्यवाद दिया है। विधायकों  ने कहा है कि  गहलोत  को भी उनका और उनके काम का सम्मान करना चाहिए। इन सब बातों के बाद कांग्रेस विधायक रिसोर्ट में   ठहराए गए थे  उन्हें जयपुर वापस आने के लिए कहा गया है।


तस्माद्युध्यस्व भारत

 तस्माद्युध्यस्व भारत


आज जन्माष्टमी है।  भगवान श्री कृष्ण का जन्म इसी दिन हुआ था।  विश्व इतिहास में शायद कोई ऐसी घटना दर्ज नहीं है जिसमें किसी देश में 1 सप्ताह में  भारत के जो ऐसे दिव्य  पुरुषों  को स्मरण किया गया हो जैसा हमारे देश में हुआ अब से  हफ्ता भी नहीं पूरा हुआ होगा राम मंदिर के भूमि पूजन को समाप्त हुए।  अयोध्या में राम का जो भजन था उसकी गूंज अभी तक हवाओं में  कायम है और अब जय श्री कृष्ण के नाम से मृदंग पर थाप पड़ने  लगी।  अगर राम हमारे देश में आदर्श पुरुष हैं  तो कृष्ण  योगेश्वर।  राम का जन्म जब हुआ एक प्रश्न घूमता रहा  कि आखिर राम का जन्म क्यों हुआ? द्वापर से घूमता यह प्रश्न त्रेता में पहुंचा और महाभारत के युद्ध में दोनों सेनाओं के बीच खड़े होकर कृष्ण ने इसका उत्तर दिया-  विनाशाय च दुष्कृताम्….।कैसी समानता है  कि राम  का जब राज्य अभिषेक होने वाला था  तो उन्हें बनवास मिला और कृष्ण ने जब जन्म  लिया तो उन्हें अपना घर छोड़ दूसरे के यहां जाना पड़ा ।लेकिन दोनों भारत  की कृषि संस्कृति  के बीच पले बढ़े। कह सकते हैं कि  जन के बीच कृष्ण  पले और बढ़े। यही कारण है कि  कान्हा से द्वारकाधीश होने के बावजूद उन्होंने किसी को विस्मृत नहीं किया। कृष्ण का यह जीवन आज के नेताओं के लिए स्वयं में एक सबक है यह एक आदर्श नहीं है यानी कोई सिद्धांत नहीं है,  यह एक यथार्थ है। राजा और राजधर्म की अभिव्यंजना  जिस यथार्थ के संदर्भ में  हुई है उसमें मानव मात्र  की सुरक्षा और कर्म परायणता  के लिए अर्थ आवश्यक है।  आधुनिक युग में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके उदाहरण हैं। क्योंकि,  लोक जीवन में आर्थिक आग्रह के साथ जीवन प्रक्रिया में बदलाव आता है आता है फलस्वरूप जीवन दर्शन बदल जाता है।  उपनिषदों में  भोग हीन  दर्शन के बावजूद उत्पादन और उपभोग की परंपरा चलती  रही। मानव जीवन आदि से अब तक विकास मान है इसलिए वह ऐतिहासिक है।  इतिहास में व्यक्ति और समाज की भूमिका समान रूप से होती है।  एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं होता। मानव विकास के इतिहास में व्यक्ति और समाज दोनों का समान रूप से प्राधान्य होता है और उनमें से किसी एक को भी प्राथमिक नहीं कहा जा सकता। 

          कृष्ण के साथ या  कहें राम के साथ सबसे बड़ा  अनूठापन  यह है कि  ये   हुए थे तो अतीत में लेकिन वह अतीत व्यतीत नहीं था वह आज भी और भविष्य में भी भारत के और उसकी सभ्यता संस्कृति में स्पंदित होते रहेंगे।  भविष्य में ही शायद ऐसा हो पाएगा कि हम कृष्ण को समझ पाएं।  यहीं आकर राम और कृष्ण के व्यक्तित्व विभाजित हो जाते हैं। कृष्णा एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की ऊंचाइयों और गहराइयों पर भी होकर गंभीर नहीं हैं, हंसते हैं गाते हैं। अतीत का सारा धर्म चाहे वह राम हों  या कोई और सब दुख वादी रहा है।  अतीत का समस्त धर्म उदास और आंसुओं से भरा था। यहां तक कि  आधुनिक युग के देवता माने जाने वाले जीसस के बारे में कहा जाता है ऐसे ही नहीं।  जीसस का उदास चेहरा और सूली पर लटका उनका शरीर दुखों को बहुत आकर्षित करता है।  सभी धर्मों में जीवन को दो हिस्सों में बांट दिया  है एक  वह जिसे स्वीकार किया जा सके और दूसरा जिसे इनकार किया जा सके।  कृष्ण अकेले समग्र जीवन को स्वीकार कर लेते हैं। राम भी परमात्मा के अंश लेकिन कृष्ण संपूर्ण परमात्मा हैं।  कृष्ण ने सब कुछ आत्मसात कर लिया।  यदि हम कृष्ण को भुला देते हैं तो अल्बर्ट श्वेतजर की बात सही हो जाती है कि भारतीय धर्म लाइफ नेगेटिव है।  लेकिन कृष्ण के साथ ऐसा नहीं है।  वह नेगेटिविटी से नकारात्मकता से युद्ध की घोषणा करते हैं और  कुरुक्षेत्र में स्पष्ट शब्दों में अर्जुन को कहते हैं - तस्माद्युध्यस्व भारत।अल्बर्ट श्वेतजर शायद कृष्ण को समझा ही नहीं।  कृष्ण के बाद शायद कोई ऐसा हुआ नहीं जो हर बात में  हंसता हो। अतीत में कोई हंसता हुआ जन्म लेता है और उसके बाद धर्म नकारात्मक हो जाता है यानी हो सकता है भविष्य में धर्म हंसना  सिखाये। फ्रायड  के पहले  की दुनिया वह फ्रायड के पश्चात नहीं हो सकती। एक बहुत बड़ी क्रांति हो गई और मनुष्य की चेतना में दरार पड़ गई। भारत के देवता राम और कृष्ण पुरुष होकर भी स्त्रियों से पलायन नहीं करते।  परमात्मा का अनुभव करते हुए भी बुद्ध का सामर्थ्य रखते हैं।  अहिंसक चित्त है उनका फिर भी  युद्ध के दावानल में उतर जाने का सामर्थ्य रखते हैं। आधुनिक युग में गांधी गीता को माता  कहते थे लेकिन गीता को अपने भीतर आत्मसात नहीं कर पाए क्योंकि गांधी की अहिंसा युद्ध की संभावनाओं को इंकार कर देती थी। यहां गौर करने की बात है श्री राम के जीवन को हम चरित्र कहते थे लेकिन कृष्ण का जीवन  लीला मय  था। कृष्ण मानव चेतना की संपूर्णता के प्रतीक हैं उनके संपूर्ण व्यक्तित्व का तरल प्रतिबिंब।

           जन्म कर्म च मे  दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः

           त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नेत्ति मामोति सो अर्जुन


महामारी के दौर में दुष्प्रचार

 महामारी के दौर में दुष्प्रचार

 सोशल मीडिया के जमाने में बड़ी अजीब स्थिति हो गई है।  इसे इस्तेमाल करने वाला आदमी कुछ ऐसा लगता है जैसे आईने के महल में खड़ा  हो। हर  कोण से अलग-अलग मुद्राओं में दिखने वाला बिंब।  ऐसे में यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कौन सही है और कौन गलत। इस सोशल मीडिया के जमाने में कुछ ऐसा ही है। यह पता लगाना बड़ा कठिन है कि कौन सी खबर सही है और  कौन सी गलत। लेकिन यहां  मुख्य समस्या जरिया नहीं है समस्या है वह वजह जिसके चलते  कुछ लोग अपने  घृणित इरादे  के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।   यह महामारी  अपना अलग ब्रांड लेकर आई है।  इसमें साजिश का सिद्धांत रखने वाले लोगों से लेकर सरकार की कार्रवाई दूसरे  एजेंडे में शामिल है। जरा पीछे  लौटें।  जब यह महामारी शुरू हुई थी तो चीन और रूस में इसे अमेरिका के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया।  उन्होंने लोगों के बीच  यह संदेह है फैलाना शुरू किया कि अमेरिका  इससे नहीं निपट पाएगा।  रूस समर्थक वेबसाइट ने डर फैलाने के लिए साजिश का सिद्धांत रचा  और उसे  चारों तरफ प्रसारित करना शुरू कर दिया। चीन ने  तो इसके लिए सरकारी सोशल मीडिया का उपयोग आरंभ कर दिया।  पिछले महीने यूरोप एक बहुत बड़ी  रिपोर्ट को साझा किया था जिसके तहत यह बताने की कोशिश की गई थी फर्जी खबरों के लिए जिम्मेदार हैं।  इस रिपोर्ट में  कहां गया था कि कुछ विदेशी और कुछ दूसरे देश कोविड-19 को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं और जनता को प्रभावित करने के अभियान में लगे हुए हैं। यूरोपियन यूनियन  ने इस एपिसोड में  पहली बार चीन का नाम  लिया। उसका कहना है इसके लिए उसके पास पर्याप्त सबूत हैं।  क्या सबूत हैं  यह तो वही जाने लेकिन पिछले 1 महीने से यूरोपियन यूनियन और चीन में  नूरा कुश्ती चल रही है। हालांकि पिछले बुधवार को यूरोपियन यूनियन के विदेश  ने की प्रमुख जोसेफ बोरेल  चीन के विदेश मंत्री  से कहा कि यूनियन  उससे शीत युद्ध करने जा रहा है।  हालांकि,  बाद में यूनियन ने कहा हर मामले में उनका प्रतिद्वंदी है लेकिन  फिलहाल युद्ध का खतरा नहीं है। दुष्प्रचार के खिलाफ लड़ाई चल रही है और यूरोपियन यूनियन उस लड़ाई के लिए संसाधन मुहैया कराने के लिए।  लेकिन यदि केवल चीन के लिए नहीं और ना ही चीन से जुड़ी वस्तु है। रूस खेल का पुराना  खिलाड़ी है।  जमाने में एक नया शब्द याद किया गया था-डेजइन्फोर्मेटसिया। यह दरअसल यूरोपियन यूनियन  के खिलाफ रूस का अभियान था।  इससे लड़ने के लिए यूरोपियन यूनियन की राजनीतिक सेवा यूरोपियन एक्सटर्नल एक्शन सर्विस (ईईएएस) का गठन किया गया था।  अब इस सर्विस के भीतर  इस्ट स्ट्रेटकाॅमफोर्स  का गठन किया गया जो कोविड-19 से जुड़ी गलत जानकारी  प्रसारित करने के अभियान पर नजर रखे हुए है। अमेरिका चीन के संदर्भ में गलत जानकारी कहीं ज्यादा  जहर भरी है।  कोविड-19 के शुरुआती दिनों में  अमरीका के लाखों लोगों के पास सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी  भेजी गई कि  ट्रंप प्रशासन वहां  मार्शल लाॅ लगाने की तैयारी  में है। बात तो यहां तक फैलाई गई  यह महामारी अमेरिका से शुरू हुई थी।  टि्वटर ऐसी जानकारियों की बाढ़ आ गई थी।  अंत में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को इस बात  का खंडन करना पड़ा यह सारी  जानकारियां गलत हैं और  संदेश फर्जी हैं।

        न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार बड़ी संख्या में संदिग्ध  टि्वटर हैंडल बड़ी संख्या में चेन्नई और समाचार संगठनों के टि्वट को  रिट्वीट करने में लगे हैं।  कुछ तो ऐसा कर रहा है मानो शेयरिंग प्लेटफॉर्म नहीं लाउडस्पीकर का इस्तेमाल हो रहा है।  एक तिहाई टि्वटर हैंडल 15 महीनों में सामने आए। अमेरिका के खिलाफ यह भयानक सूचना युद्ध अमेरिका को विशेषकर डॉनल्ड ट्रंप को बदनाम करना है और उसकी क्षमता को कम करना है। गलत स्वास्थ सूचना और दुष्प्रचार का यह संगठित अभियान चला दी जाने का मकसद यह है के इस महामारी  की तरफ से लोगों का ध्यान हट  जाए और बार-बार चीन का नाम ना आए। इतना ही नहीं विदेशों में खुद की छवि मजबूत कर ले चीन।  लेकिन यह दुष्प्रचार एक तरफा नहीं है। पॉलीटिको एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप सरकार ने भी इसका इस्तेमाल करने में कसम नहीं उठा रखा है।  गलत जानकारी या दुष्प्रचार उतना ही पुराना है जितना पुराना हमारा इतिहास है हां इसमें नई चीज यह है कि मोबाइल फोन और सोशल मीडिया सॉफ्टवेयर के रूप में तकनीकी आ जाने के कारण इसका प्रसार तेजी से हो रहा है।

       भारत में ही देखें तो सामाजिक  विखंडन को लेकर कितनी तरह की बातें हैं उठ रही हैं। कई जगह इसका उपयोग सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने के लिए तो कई जगह इसे धार्मिक प्रचार के लिए उपयोग किया जा  रहा है।  राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर एक तरफ धार्मिकता का  ज्वार पैदा करने की कोशिश की गई दूसरी तरफ  छद्म उदारवाद के नाम से  इसके खिलाफ धार्मिक उपनिवेशवाद फैलाने की बात कहीं गई।  कहीं नहीं इन खबरों से या कहें इन सूचनाओं से प्रभावित तो होते ही हैं।  ऐसी अभिक्रिया में हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक  पूर्व ग्रह को नकारात्मक दिशा की ओर बढ़ने का मार्ग मिलता है।  इससे निपटना एक बड़ी परियोजना है जिसमें समाज को खुद शिक्षा और जागरूकता के जरिए मुख्य भूमिका निभानी चाहिए।  गलत जानकारी बेहद घातक होती है और इस मामले में पहले से ही  लहूलुहान हमारे समाज की जीवन पद्धति बदलने लगती है।  विश्वसनीय सूचना के प्रवाह को जब बड़वा मिलेगा तो हमारे भीतर दुष्प्रचार के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा होगी। इसलिए जरूरी है  दुष्प्रचार पर ध्यान ना दें।


एक नया इतिहास लिखा गया

 एक नया इतिहास लिखा गया

 बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया। सदियों पुराना विवाद मिट गया और भारत में भारत के सबसे महान पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम की स्मृति में एक भव्य मंदिर के  निर्माण का  करोड़ों भारतीयों  का सपना पूरा हो गया। राम एक राजकुमार से मर्यादा पुरुषोत्तम  बने औरइसके बाद भगवान  बन गए।  ठीक वैसे ही जैसे पहले कोई व्यक्ति होता है फिर  अपने कर्मों से व्यक्तित्व में बदल जाता है और  तब विचार बन जाता है।  राम के जीवन में कुछ ऐसा ही हुआ।  यही कारण है कि राम हजारों वर्षों के बाद भी भारत की आत्मा  में  जीवित हैं और उनका एक मूर्तिमान स्वरूप सबके सामने मौजूद है। राम केवल हिंदुओं के  नहीं थे वह संपूर्ण भारत के थे  इसी लिए कबीर से लेकर  शमशी मिनाई तक ने  राम  पर कुछ न कुछ कहा है।  एक तरफ जहां अल्लामा इकबाल राम को इमाम ए हिंद की संज्ञा देते हैं वही उसी के समानांतर  शमशी ने  कहा है  मेरी हिम्मत कहां है श्री राम पर लिखूं  कुछ,  बाल्मीकि तुलसी ने छोड़ा नहीं कुछ।  इसका अर्थ है हर कालखंड में राम पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र रहे  हैं।  राम के बारे में बुधवार को मोदी ने श्री राम सबके हैं और भूमि पूजन के माध्यम से एक नवीन इतिहास की रचना हो रही है।  कुछ धर्मनिरपेक्ष वादियों ने  राम के बारे में सुनने के बाद हिंदू धार्मिक चश्मे से इसकी व्याख्या करनी  आरंभ कर दी।  यह नहीं सोचा कि  अगर राम की तरह या उनके  द्वारा अनुसरण किए गए मार्गों को अपना लिया जाए तो यह दुनिया कितनी खूबसूरत  हो जाएगी।  आज हम आतंकवाद और अलगाववाद से त्रस्त  हैं और ठीक  यही हालत  उस काल में भी हुई थी जब राम को राज्य अभिषेक छोड़कर वन जाना पड़ा था। राह में विभिन्न प्रकार के राक्षस जो रावण द्वारा प्रेषित थे। राम ने  उन्हें सजा तो दी पर मारा नहीं।  क्योंकि यह सब आधुनिक आतंकवाद के स्लीपर सेल  थे और उन के माध्यम से उनके प्रमुख तक स्पष्ट संदेश पहुंचाने का यही तरीका था। इतना ही नहीं अयोध्या जाते समय और अयोध्या से वन जाते समय दोनों यात्राओं में राम ने जो सबसे बड़ा काम किया हुआ था भारतवर्ष की एकात्मता का काम। उन्होंने इन यात्राओं में  मित्र बनाने का भी काम किया और मित्रता की परिभाषा  भी गढ़ी।  तुलसीदास ने मानस में लिखा है जे न होइहें देख दुख मित्र दुखारी , तेहि विलोकत पातक भारी।राम पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संपूर्ण भारत को जोड़ा। राम पहले व्यक्ति जिन्होंने इस पूरे भारत को आतातायी सोच के खिलाफ खड़ा किया। अंगद ने आतंकवाद और  आतातायी  सोच को त्यागने के लिए रावण के दरबार में जब रावण को समझाना चाहा कि  वह श्रीराम से  जीत नहीं सकता, रावण ने कहा था वह  अधनंगा  सन्यासी क्या मुझे पराजित करेगा? और रावण का क्या हुआ या किसी को बताने की जरूरत नहीं है।  आज भी  जब हम रामलीला देखने जाते हैं  या रावण दहन देखने जाते हैं तो चर्चा होती है कि  फलां  रावण इतना ऊंचा था।  कभी कोई राम के कद के बारे में चर्चा नहीं करता।  इसका अर्थ राम ने कभी किसी को आतंकित नहीं किया,  सदा आकर्षित किया इसीलिए वह विचार बन गए और रावण अहंकार का प्रतीक।  हर वर्ष उसे जलाया जाता है पर राम हर वक्त याद किए जाते हैं। राम जीवन में कभी कोई चमत्कार नहीं दिखा जो कुछ था वह  स्वअर्जित था।

      भूमि पूजन  के लिए अयोध्या गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों से कुछ ऐसा ही झलक रहा था।  उन्होंने इस बात  का खंडन किया  कि  कई इतिहासकारों ने राम को सत्य नहीं कथा माना है  और इसी के आलोक में मंदिर निर्माण को गलत बताया है।  प्रधानमंत्री ने कहा यह विचार ही गलत  हैं,  यह संकल्पना भ्रमित है।  राम जन्मभूमि के लिए यह भूमि पूजन भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। यह हमारे आंतरिक विश्वास का और हमारी संस्कृति का मूर्तिमान स्वरूप जिसमें भारत की संकल्पना ही नहीं भारत के प्रति भक्ति  भी परिलक्षित होती है यह हमारी राष्ट्रीय भावनाओं को ,हमारी संस्कृति और सभ्यता को तथा करोड़ों राम भक्तों को प्रेरित करता है।  जिस तरह सामूहिक समर्थन से महात्मा गांधी जी आजादी की लड़ाई की लोै जलाई  उसी तरह आज का यह दिन जनता के सामने समर्थन के बगैर संभव नहीं था।  आम जनता ने जिस तरह राम जन्मभूमि मंदिर के लिए संघर्ष किया यह शोध का विषय है। फिलहाल जितना महसूस होता है उसके अनुसार राम समस्त देशवासियों के अवचेतन में मौजूद हैं।  इसके बावजूद हमारे समाज के जो विश्व में कभी-कभी इसी मसले को  लेकर  टकराव हो जाता है। नरेंद्र मोदी ने 2020 में जो सबसे बड़ा काम किया क्या कह सकते हैं इतिहासिक काम किया वह था श्री राम के विरोधाभासी रूपों को समाप्त कर एक रूप में डालने का प्रयास वरना हमारी नई पीढ़ी राम को कैसे देखती  यह कहना बड़ा मुश्किल है।  नई पीढ़ी राम को कैसे समझती श्रद्धा धर्म भक्ति और  साहित्य से लेकरइतिहास और राजनीति तक  को एक व्यंजन के रूप में परोसने वाला यह समय हमारी इंस्टैंट पीढ़ी को राम का कौन सा रूप परोसता यह तय नहीं है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानवता और विज्ञान के स्वाभाविक विकास के क्रम  से इस चिंता को मुक्त कर दिया।   नई पीढ़ी जिस राम को जानेगी वह राम  अब तुलसी के होंगे।  आधुनिक विज्ञान  युग की नई पीढ़ियां राम और रहीम जैसे शब्दों ऐतिहासिक आध्यात्मिक और वैज्ञानिक अर्थों तथा सुंदर हो को अपनी वैज्ञानिक अनुभूतियों से अवश्य समझ जाएंगी।  बस उसमें एक तात्कालिक अवरोध होगा कि राम के नाम पर कथित राम भक्त और राम विरोधी दोनों अपनी-अपनी राजनीति करते रहने के  लोभ को  रोक नहीं पाएंगे।  भूमि पूजन और वहां आयोजित समारोह  के माध्यम से नरेंद्र मोदी ने इस विवाद को समाप्त कर दिया और बता दिया कि राम क्या हैं। इसीलिए कहा जा रहा है कि बुधवार को एक नया इतिहास लिखा गया जिसमें इन विवादों को समाप्त करने का संदेश है।