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Monday, July 31, 2017

नमो- नीकु मिलन से उठा तूफान अभी थमा नहीं 

नमो- नीकु मिलन से उठा तूफान अभी थमा नहीं 

भारत का " सेकुलर गठबंधन" इस समय बड़े उत्तर चढ़ाव के दौर से गुजर रहा है।उत्तरप्रदेश विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की भारी विजय के बाद से ही सेकुलर गठबंधन की सांस फूलती नज़र आ रही है। अब बिहार में जो हुआ उससे तो रही सही  आस भी जाती रही। लालू यादव- नीतीश कुमार के अलग होने या नमो नीतीश के मिलन के बाद से सेकुलर गठबंधन या विपाक्षी एकता ही बात फकत ठगी का जुमला लगने लगी। सेकुलरीटी  का जो फंडा  था वह कुछ समय पहले तक भ्रष्टाचार  लांछित , मुस्लिम - यादव या मुस्लिम - दलित वोट बैंक के लिए गुत्थम - गुत्था या आज़ाद कश्मीर। का गुप् चुप समर्थन करने वाले या अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के झंडाबरदार  नेताओं के लिए हाथ मिलाने का एक मंच था। वे इसकी तरफ खिंचे चले आते थे लेकिन इसमें टिका रहना कठिन था। यह केवल सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी का काम करता था। जब नीतीश ने लालू से दागा करने की सोची उसी क्षण भारतीय राजनीति में भारी परिवर्तन की शुरुआत हुई। विपक्ष द्वारा जोड़ तोड़ के  आरोप लगाने  की जगह बन गयी। हालांकि विपक्ष ने तो ई वी एम मशीन में भी घपले आरोप लगाया था। वैसे राजनीतिज्ञों में हारने का औचित्य बताने या उसके कारण बताने की विचित्र प्रतिभा होती है लेकिन इस बार वह गोटी भी गयी। अब विपक्ष किस तरह से या कहें किस मुंह से भा ज पा को सांप्रदायिक या जोड़ तोड़ करने वाला बतायेगा। नरेंद्र मोदी और  अमित शाह में  विपक्ष को औचक में दबोच लेने की अद्भुत प्रतिभा है। गोआ से बिहार तक इसकी मिसालें  भिखरी पड़ीं हैं। अब विपक्ष नीतीश को कुर्सी कुमार कह रहा है पर उसके पहले उसे भीतर झांकना होगा कि इस तरह के बवंडर के कारण क्या हैं? मोदी के खिलाफ यह बिहार फार्मूला कैसे पिट गया। महागठबंधन  क्यों नाकामयाब हो गया?
यह बड़ा विचित्र लगता है कि खानदान परास्त कोंग्रेस उस हालात को ताड़ने में कामयाब नही हो सका जिसे सब लोग पहले ही भांप जाते  हैं। ऐसे में अगर राहुल गांधी उस पार्टी के नेता हैं तो नरेंद्र मोदी को जरा भी शंकित होने की ज़रूरत नहीं है। जहां तक भारत की जनता की बात है तो वह एक ऐसे लोकतंत्र में रहने को अभिशप्त है जिसमें  विपक्ष बेअसर है। यह लोकतंत्र में बहुत बड़ा अपशकुन है कि विपक्ष केवल कानूनी या नैतिक आधार पर ही इस्तीफा देता है। कोई भी अक्षमता के आधार पर इस्तीफा नही देता। क्या यह राहुल मुक्त कोंग्रेस का वक्त नहीं है। सर्वेक्षण करें कि राहुल गंदर्शी को कितने लोग प्रधान मंत्री के रूप में वोट देना चाहेंगे तो आपको जावेआब मिल जाएगा।
यह बहुत गाम्भीर स्थिति है कि हमारे देश ऐसा सत्ताधारी दल है जिसने चुनाव में भारी विजय पाई है फिर भी इधर उधर हाथ मार रही है। दूसरी तरफ विपक्ष अपनी अपनी डफली बजा रहा और सबको यह मुगालता है कि वह भा ज पा को पराजित कर देगी या उसके दांत खट्टे कर देगी। नीतीश  को अवसरवादी या  भा ज पा को सम्प्रदायवादी कहने से राहुल  नेता नहीं बन जाएंगे। " मुझे पता था कि ये होने वाला है " इसासे पार्टिकर्मियों में आत्मविश्वास नहीं पनपेगा।
  लालू एक सनकी बाप हैं। उन्हें यह भ्रम है कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी औलाद को उनके " कर्मो" की सज़ा मिलेगी। वे चारा घोटाले में फंस कर पटना रांची के बीच दौड़ रहे हैं। उन्हें मालूम है कि मामला उनके हाथ से फिसल रहा है। वे खुद या अन्य नेता भी जानते हैं कि करप्शन उस हिम खंड की तरह होता जो ऊपर तोड़ा सा दिखता है और अंदर टाइटेनिक को डूबा देता है। 
सपा के मुलायम सिंह यादव भी अच्छी स्थितिमें नहीं हैं। ममता बनर्जी भी भाजपा के पोशीदा हमलों से परेशान हैं। अब दोस्त से दुश्मन और फिर दुश्मन से दोस्त बन नीतीश मोदी  के लिए एक ऐसा मोहरा हैं जो काम से कम करप्शन को मात देने के काम आएगा। भ ज पा की नज़र बिहार से आगे है। उसके रथ को रोकना कठिन है। हैमल में जो घटना क्रम हुए जिसके कारण तेजस्वी को हटाना पड़ा यह  अरविंद केजरीवाल को हटाने के काम भी आएगा। नीतीश कुमार जिन्होंने  करप्शन के आरोप से लांछित अपने डेप्युटी सी एम को  इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया और नहीं देने की सूरत में खुद इस्तीफा दे दिया, ये भा ज पा के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले नए योद्धा के रूप में उभरेंगे। जो दिख रहा है भविष्य उससे बहुत व्यापक है और जिस झंझावात ने सेकुलर के जहाज को डूबा दिया वह झंझा अभी भी कायम है।

Sunday, July 30, 2017

जी, मोदी जी क्यों चुप हैं ?

जी, मोदी जी क्यों चुप हैं ?

नवाज शरीफ, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री, निहायत बदकिस्मत इंसान हैं। तीसरी बार प्रधान मंत्री पद से हटाए गए। इस बार तो बदनाम पनामा पेपर्स की भेंट चढ़ गए। पकिस्तान  के सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पी एम पद के लिए अयोग्य ठहराया। मजे की बात है कि जिस पड़ोसी को हैम पानी पी पी कर कोसते हैं और मोदी जी की डफली बजाते हैं कि करप्शन पर उनका जीरो टॉलरेंस है , वही मोदी जी इसी पनामा पेपर्स को ताक पर रख कर गौ माता की जय बोल रहे हैं। इस पनामा पेपर्स में भारत की  कई  " महान हस्तियों " सहित 500 लोगों के नाम हैं। कुछ उल्लेखनीय हस्तियां हैं अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय, डी एल एफ मालिक के पी सिंह और " विख्यात" अडानी बंधुओं में से एक विनोद अडानी। हालांकि बताया यह जा रहा कि इन 500 " महान हस्तियों" में से 415 की जांच चल रही है और इस जांच के चलते हुए 15 महीने ह्यो गए पर अभी वह कहां तक पहुंची है यह किसी को मालूम नहीं है। यह उस सरकार की बात है , भाई साहब , जो ताल ठोंक कर कहती है कि करप्शन बर्दाश्त  नहीं किया जाएगा। पाकिस्तान में इस मामले को आग्गे बढ़ाया क्रिकेटर इमरान खान ने जिन पर पहले से ही करप्शन के चार्जेज हैं। शरीफ की जांच पाकिस्तान की कुख्यात सेना की एक टीम, जॉइन्ट इन्वेस्टिगेटिव टीम , ने की। दुनिया में ऐसा कहीं यही होता कि आर्थिक अपराधों की जांच सेना करे। जैसी की खबर है इस जांच दल में मध्य स्तरीय अफसर शामिल थे और सुप्रीम कोर्ट का एक रजिस्ट्रार इसमें अपने पसंदीदा अफसरों की तैनाती करा रहा था। इन अफसरों ने क्या खेल खेला यह मालूम नहीं है उनकी निष्पक्षता पर भारी संदेह है। जैसा कि ऐसे मौकों पर अक्सर होता है शरीफ की पार्टी के नेताओं ने जांच दल और सुप्रीम कोर्ट पर सीधा हमला किया। पर यह सब जबानी जमा खर्च था किसी ने  कुछ किया नहीं। शरीफ सरकार बंग कर फिर से चुनाव कराने जैसा दांव चल सकते थे और राष्ट्रपति, जिसे शरीफ ने ही नियुक्त किया था, केवल उनका इस्तीफा स्वीकार करते। पर ऐसा नही हुआ। हो सकता है राष्ट्र पति मामून हुसैन को सेना ने कोई इशारा किया होगा। वैसे भी चुनाव आयोग को इसके लिए तारीखें तय करनी होतीं, जिसकी  निष्पक्षता संदेहास्पद है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में राजनीतिक संस्थाएं सिफर हैं। उनकी अपनी कोई इज़्ज़त नहीं है और किसी के भी दबाव में आ जातीं हैं। वहां  मीडिया में भी वस्तु निष्ठा का अभाव है। अधिकांश विकासशील लोकतंत्रों की भांति पाकिस्तान भी पारिवारिक शासन की गिरफ्त में है। इसी लिए जांच दल की जांच भी भरोसेमंद नहीं है। पाकिस्तान में अब फिर से चुनाव ह्यो सकते हैं और एक बार फिर कोई नया  " शरीफ" गद्दीनशीन हो सकता है।पर गड़बड़ चालू रहेगी।
    अब सवाल उठता है कि क्या मोदी जी पनामा पेपर्स के दोषियों को सजा देंगे? शुरू से ही लग रहा है कि हमारे देश में इसपर लीपा पोती हो जाएगी , क्योंकि इसपर बहुत बड़े दांव लगे हैं।

Friday, July 28, 2017

न्यूयार्क में तैयार किये जा रहे हैं कश्मीर के लिये आतंकी

न्यूयार्क में तैयार किये जा रहे हैं कश्मीर के लिये आतंकी
पेंटागन से कुछ ही किलोमीटर दूर बना ‘इस्लामाबर्ग,’ लड़कियों को भी दी जा रही है ट्रेनिंग
बंगाल में भी जड़ें जमाने की कोशिशें, एन जी ओ के मुखौटे में शुरू हो सकता है काम

 हरिराम पाण्डेय
कोलकाता : अमरीका में कश्मीरी आतंकवादियों को जमकर ट्रेनिंग दी जा रही है और उन्हें अन्य प्रकार का सहयोग दिया जा रहा है। राजनयिक सूत्रों के मताबिक न्यूयार्क के समीप हैनकॉक में 70 एकड़ पर एक कम्यून है जिसका नाम रखा है इस्लामबर्ग और यहां भारत तथा अन्य कई देशों से नौजवानों को लाकर ट्रेनिंग दी जाती है और निफर कश्मीर में आजादी के लिये लड़ने को भेज दिया जाता है। क्या सियासत है कि  

अमरीका एक तरफ पाकिस्तान को आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला देश घोषित कर रहा है। कश्मीर में उपद्रव के लिये जिम्मेदार तथा पाकिस्तान के सबसे बड़े आतंकी संगठन हिज्ब -उल – मुजाहिदीन पर अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी होने का दोष मढ़ते हुये उसके नेता मोहम्मद युसूफ शाह उर्फ सैय्यद सलाहुद्दीन पर पाबंदी लगा रहा है वहीं अमरीका सबसे बड़े शहर न्यूयार्क में इस्लामी गांव - इस्लामबर्ग – बन गया है और वहां कश्मीर में उपद्रव के लिये ना केवल आतंकी तैयार किये जा रहे हैं ब्रलक उनके लिये मदद भी भेजी जा रही है। हिज्ब -उल – मुजाहिदीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा आतंकी संगठन है जिसने कश्मीर को आजाद कर खिलाफत की स्थापना करने का बीड़ा उठाया है।

इस्लामबर्ग का सबसे बड़ा नेता शेख गिलानी है और वह पिछले महीने कोलकाता में था और कठमांडू होता लाहौर पहुंच गया। उसके लाहौर पहुंचने के बाद रॉ को इसकी हवा लगी। हालांकि, उसके कोलकाता आने की खबर बंगलादेश के एन एस आई को थी और एन एस आई के एक बड़े अधिकारी ने मंगलवार को सन्मार्ग को इसकी जानकारी दी। उच्च पदस्थ राजनयिक सूत्रों के मुताबिक एम ओ ए ​ हिज्ब -उल – मुजाहिदीन और अलकायदा के पाकिस्तनी गिरोहों के बीच काम करता है। हैरत की बात यह है कि 2002 से अब तक एम ओ ए ने अमरीका में 22 इस्लामी गांव बना लिया है और हिज्ब -उल – मुजाहिदीन के लिये काम करता है। विगत 2 मई को हैनकॉक में एक प्रेस कांफेंस कर एम ओ ए ने कश्मीर को भारत से आजाद कराने के लिये और असम , बंगाल और बंगलादेश को मिलाकर खलीफा का साम्राज्य – खिलाफत – स्थापित करने की बहुकोणीय रणनीति की घोषणा की। इसके पहले मार्च में कश्मीर में भारतीय सेना के साथ ‘‘मुजाहिदीनों’’ की जंग का वीडियो दिखाया गया था जिसमें उन्हें ‘फ्रीडम फाइटर’ घोषित किया गया था। यही नहीं , 6 जुलाई 2016 को एम ओ ए ने एक सार्वजनिक पत्र जारी कर राष्ट्रसंघ से कहा था कि पाकिस्तान वाले कश्मीर में भारत के जुल्म को रोके। उसने दुनिया भर के मुसलमानों से अपील की कि वे एक जुट हो जाएं। एम ओ ए के सैनिक इकाई के प्रमुख हुसैन अडम्स वल्द बैरी अडम्स ने 2 मई वाले प्रेस कांफेंस में हिज्ब -उल – मुजाहिदीन की कोशिशों की बड़ाई के पुल बांधते हुये कहा कि उनका संगठन शुरू से ही कश्मीर के संघर्ष का समर्थन करता है। क्रिश्चियन उक्शन नेटवर्क के अध्यक्ष मार्टिन मावयेर ने सन्मार्ग को बताया कि एम ओ ए का जो चेहरटा दिखता है उससे वह कहीं ज्यादा खतरनाक है। उन्होंने हैनकॉक के इस्लामबर्ग में महिला आतंकियों की ट्रेनिंग का वीडियो देते हुये बताया कि एम ओ ए हिज्ब -उल – मुजाहिदीन के लोगों को ट्रेंड ही नहीं करता है बल्कि वह अपने एक अलग संगठन कश्मीरी अमरीकन फ्रेंडशिप सोसायटी और अमरीकन मुस्लिम मेडिकल रीलिफ टीम के जरिये धन और दवाइयां पहुंचाता है। अमरीकी विदेश विभाग के आतंकियों की सूची में एम ओ ए का नाम नहीं है पर हिज्ब -उल – मुजाहिदीन का नाम है।

 सी आई ए के पूर्व उपनिदेशक एवं भारत , चीन, बंगलादेश और पाकिस्तान सहित कई देशों में काम कर चुके टामस राईस (अवकाश प्राप्त) ने सन्मार्ग को बताया कि एम ओ ए ने एन जी ओ का मुखौटा पहन कर बंगलादेश के कई हिस्सों में अपने संगठन तैयार कर लिये हैं और वह भारत में खासकर बंगाल में अपने पैर जमाने की कोशिश में है। संदेह है कि उसने बंगाल में अपनी शुरूआत भी कर दी हो।

 

युद्ध के लक्षण नहीं

युद्ध के लक्षण नहीं
इन दिनों भारत चीन गपिरोध में सबसे बड़ी चर्चा जो है ​कि वह है क्या दोनों देशों में जंग होगी। हर आदमी यही जानना चाहता है। गुब्बरे की तरह फूलते शेयर बाजार से लेकर सब्जी बाजार तक सरकारी प्लेटफार्म से लेकर बस अड्डे तक एकही चर्चा है कि क्या जंग होगी? टी वी चैनलों पर चर्चा में जुटे ज्ञान गुमानियों का जत्था टी आर पी बड़ाने की गरज से कु इैसा बोलते हैं कि अब युद्ध शुरू हुआ कि तब हुआ। उधर सीमा पर  पाकिस्तान को सबक सिखाने के नारे लगते हैं तथा उ ननारों की गूजि सोशल मीडिया पर सुनी जाती है। विरोधी स्वरों को जयचंद, देशद्रोही और ना जाने क्या क्या कह दिया जाता है। दूसरी तरफ चीन की​ दाकियां भी बढ़ती जा रहीं हैं। चीन के पूर्व कौंसुल जनरल लियु योफा ने हाल ही मुम्बई में कहा कि भारतीय वापस लौट सकती है वरना उनहें बंदी बना लिया जा सकता है या मार दिया जा सकता है। चीनी विदेश विबाग कह रहा है कि धैर्य खत्म हो रहा है और हालात जंग में बदल सकते हैं। भारत के सेनाध्यक्ष कहते हैं कि वह ‘ढाई मोर्चों पर जंग लड़ सकते हैं।’ वायु सेनाध्यक्ष ने भी वायु सेना को कमर कस लेने का हुक्म दे दिया है। दोनों सेना प्रमुखों की बात कहीं से भी ऐसी नहीं लगती कि युद्ध होगा। उनके बयान संदेश हैं। पहली बात कि सेना को उनके हुक्म में रहना है, तथा ऑपरेशन के लिये तैयार रहना है। दूसरी बात कि भहारत के पास बेशक हथियारों की कमी है पर वह अपने संसाधनों का उपयोग कर युद्ध के मैदान में उतर सकता है। लेकिन जहां तक युद्ध का सवाल है वह दरअसल दूसरे तरीके से एक सियासत है और इतना गंभीर मसला है कि उसका फैसला फौज के जिम्मे नहीं छोड़ा जा सकता है। एक लोकतंत्र में राजनीतिक नेतृत्व ही युद्ध का फैसला करता है और फौज उस फैसले पर अमल करती है। पाकिस्तान की तरह किसी छद्म लोकतंत्र में सेना ही युद्ध का निर्णय करती है , जैसे कारगिल में हुआ या संसद पर हमले के समय हुआ। असल लोकतंत्र में सेना को सदा तैयार रहना होता है। अतएव सेना प्रमुखों की टिप्पणी सही है। बड़बोलापन चलता है लेकिन कोई बी देश युद्ध नहीं चाहता है। यह विवाद की चरम परिणति है। खासकर , परमाणु शस्त्रों की छाया में अपनी बात मनवाने के लिये युद्ध का बिगुल बजाना तो सिरफिरापन है। अपने सरहदों के जो हालात हैं उनके विश्लेषण से ऐसा नहीं लगता कि युद्ध होगा, अलबत्ता रोब दाब चलता है। जहां तक डोकलाम में भारत चीन गतिरोध का सवाल है तो चीन की तरफ हमला करने की सूरत में स्थान को देखते हुये उसे वहां और फौज उतारनी होगी तथा अतिरिक्त ताकत के लिये वायुसेना को भी लाना होगा। अगर चीन यह भी चाहता कि युद्दा डोकलाम तक ही सीमित रहे तो उसे भारतीय हमले को निरस्त करने के लिये सीमा पर तैनाती बढ़ानी होगी। अगर चीन ऐसा करता है तो बारत की तरफ से भी ऐसा ही होगा। निगरानी करने वाले दस्ते खतरे की घंटी बजा देंगे। भारतीय क्षेत्र में गश्त बड़ जायेगी। लेकिन अभी तक चीनी सीमा पर फौजी सक्रियता वैसी नहीं दिख रही है। भारत की तरफ से ऐसा कोई कदम नहीं उठया गया है कि लगे कि मुकाबले की तैयारी है। बेशक भारत तैयार जरूर है पर युद्ध के लक्षण नहीं दिख रहे हैं। दोनों तरफ से राजनयिक वार्ता जारी है।

जहां तक पाकिस्तान के मोर्चे का प्रश्न है तो दोनों देश चाहते हैं कि मामला जममू कश्मीर तक ही सीमित रहे। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर शांति बनी रहे। वायु सेना की तैनाती तनाव बड़ा सकती हे इसलिये उसे छोड़ दिया जाना चाहिये। कारगिल युद्ध के जमाने में भी बारत चाहता तो और मोर्चे, खोल सकता था पर वह कारगिल में सीमित रहा। संसद पर हमले के दौरान भी ऐसा हो सकता था पर नहीं किया गया। दोनों स्थितियों कार्रवाई विवादास्पद क्षेत्र तक ही सीमित रही। सियाचिन में भी गोलीबारी सामान्य बात है। दोनों देशों के पास भयानक विनाशक शस्त्र हैं। जिसके उपयोग से जानमाल की अकूत क्षति हो सकती है। यही नहीं युद्ध का देश की दुनिया भर में साख पर प्रतिगामी प्रभाव पड़ता है। सबसे सीदा बात है कि अगर ‘लोकलाइज्ड’ क्षेत्र से युद्ध अन्य मोर्चे पर गया तो दुनिया भर में यही कहा जायेगा कि युद्धरत देश में विवादित क्षेत्र में अपनी क्षमता साबित करने की ताकत नहीं है। इससे अंतरराष्ट्रीय कद भी घटता है। यह सब पगड़ी बचाने का ही तरीका है कि पाकिस्तान ने अपनी जनता को सही नहीं बताया कि झड़पों उसके कितने लोग मार गये। फौज की ताकत को बड़ाने का मुख्य उद्देश्य युद्ध निवारण है। युद्ध तो सब उपाय के नाकामयाब होने के बाद का रास्ता है। भारत पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एल ओ सी)पर हाथपायी कर सकते र्हैं पर चीन के साथ जो वास्तविक नियंत्रण रेखा(एल ए सी) है वह अब बअसर हो च्गुकी है और कूटनीतिक रास्ता ही एकमात्र उपाय है इस विवाद को सुलझाने का। इसी लिये वार्ता जारी है। युद्ध रातोरात नहीं होते। बहुत पहले से इसके लक्षण दिखने लगते हैं।  

 

 

 

      

Thursday, July 27, 2017

नीतीश मुख्यमंत्री थे , मुख्य मंत्री हैं  पर बदला क्या 

नीतीश मुख्यमंत्री थे , मुख्य मंत्री हैं  पर बदला क्या 
यह सब गद्दी का एक अजीब सा खेल महसूस हो रहा है। बुधवार की रात जद यू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने बड़े ही नाटकीय ढंग से इस्तीफा दे दिया और फिर सुबह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। कितना विचित्र नाटक है।रात में अंतरात्मा की आवाज़ पर इस्तीफा और सुबह राजनीतिक ज़रूरतों के चलते फिर  शपथ ग्रहण। 12 वर्षों में उन्होंने छठी बार इस पद की शपथ ली। कल शाम  बीच क्या बदला? महागठबंधन का एक कैबिनेट के नेतृत्व करने वाले सुबह में भा ज पा के झंडे तले बने एन डी ए की बैसाखी पर खड़े नजर आए। इस नए समीकरण पर नई मुहर लगी और सुशील मोदी ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बिहार के कार्यवाहक राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने 9 मिनट के एक समारोह में उन्हें पद  और गोपनीयता की शपथ दिलाई। आज यानी 28 जुलाई को सदन में शक्ति परीक्षण होगा। बुधवार की शाम को नीतीश जी आत्मा की आवाज पर इस्तीफा दिया पर सच तो यह था कि उन्होंने भा  ज पा  से हाथ मिलाने के लिए यह कदम उठाया। नीतीश कुमार के इस्तीफा देने के तुरंत बाद 132 विधायकों की सूची लेकर भा ज पा के नेता सुशील मोदी ने राजभवन की दौड़ लगाई। अपने इस लंबे करियर में नीतीश पार्टियों- मोर्चों और नेताओं को जोड़ने तथा तोड़ने में माहिर साबित हुए। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस और बिहार की जनता के साथ दगा किया है। मीडिया से बातें करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि नीतीश सिद्धान्तहीन और अवसरवादी हैं और अपने लाभ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ने सम्प्रदाय विरोधी संघर्ष के लिए  उन्हें( नीतीश जी को ) जनादेश दिया था पर उनहाने उसी जनता को शर्मिंदा किया है। लालू यादव ने भी भा ज पा और उसके नेताओं पर तीखे हमले किये। लालू यादव ने पूछा है कि नीतीश जी बिहार की जनता से बार बार  कहा कि  वे कभी भा ज पा में नहीं लौटेंगे पर लौट गए। अब वे बिहार की जनता को क्या मुंह दिखाएंगे? उन्होंने कहा कि नीतीश जी के इस्तीफे के बाद से उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी थी और उसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए था। वे इस मामले  को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
इस राजनीतिक ड्रामे से कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं। अगर नीतीश महागठबंधन से बाहर आये तो भा ज पा की बाहों में समा गए? नीतीश का टूटना, भाजपा द्वारा समर्थन करना और प्रधान मंत्री का ट्वीट सब सुनियोजित लगता है। इस सबके मूल में लालू प्रसाद अपने परिवार के लिए अंधा प्रेम दिखता है। दोनों को बिहार की जनता को जावेआब देने होंगे। अगर लालू भा ज पा को रोकना चाहते थे जैसे वे दुनिया को बताते चलते हैं तो उन्होंने अपने पुत्र तेजस्वी को इस्तीफा देने से क्यों रोका?  क्यों नहीं लालू जी ने तेजस्वी की जगह पार्टी के किसी सीनियर नेता को नामजद किया? नीतीश ने बहुत चालाकी से खुद भ्रष्टाचार  के विरूद्ध  योद्धा के रूप में पेश किया। नीतीश जानते थे कि लालू यादव पर दोष साबित हो चुका है और चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित हैं ,   इसके बावजूद उन्होंने लालू से हाथ मिलाए और सरकार गठित की, आखिर क्यों? इसका साफ अर्थ है कि उनकी भी नियत साफ नही थी। यह कितना जायज है कि करप्शन के दोषी - लालू- से हाथ मिलाते हैं और जिसपर करप्शन का आरोप ही केवल है उसके साथ सरकार नही चला पाते हैं। यह नैतिक और राजनीतिक तौर पर कयना सही है कि जिस पार्टी में एक ऐसा मंत्री - उमा भारती- है जिसपर बाबरी कांड में आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है, उस पार्टी के साथ मिल कर सरकार बना लें।भ ज पा का एक मंत्री- मध्य प्रदेश में-  चुनाव परिणाम में जालसाजी के कारण हटाया जा चुका है और उस पार्टी के साथ सरकार बनाना कितना जायज है? वैसे लगता है कि लालू प्रसाद भी कपङे अतीत से कुछ सीख नही पाए। जो उन्हें करना चाहिए था- तेजस्वी का इस्तीफा- वह नहीं किया और इस तरह से भारी विपत्ति मोल ले ली। इसका असर 2019 के चुनाव में दिखेगा। बिहार का असर देश में विपक्षी गठबंधन पर भी पड़ेगा और मोदी जी के लिए राह आसान हो गई। राज्य सभा में तो तत्काल इसका असर दिखेगा। दूसरी तरफ  ऐसा कर के नीतीश जी ने भविष्य में  लौटने के अपने दरवाजे बंद कर लिए। कहते हैं ना कि जो आदमी प्रधान मंत्री पद के लिए उम्मीदवार ह्यो सकता था वह मुख्यमंत्री तक सीमित हो गया।

बिहार में राजनीतिक बवंडर, नीतीश ने इस्तीफा दिया

बिहार में राजनीतिक बवंडर, नीतीश ने इस्तीफा दिया

बिहार में बुधवार तेजस्वी यादव को लेकर चले दिन भर के राजनीतिक ड्रामें के बाद शाम लगभग 6 बजे अचानक मुख्यमंत्री नतिश कुमार ने राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। बिहार के स्ट्रांगमैन लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव इन दिनो करप्शन के आरोप में फंस गये थे। नीतीश कुमार ने इस्तीफे के बाद कहा कि उनहोंने बिहार के हित में इस्तीफा दिया है। बिहार के जद यू विधायकों ने नीतिश कुमार के इस कदम को सराहा है और उनके साथ रहने का वादा किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा है कि ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुड़ने के लिये नीतशि कुमार जी को बहुत बहुत बधायी। सवा सौ करोड़ नागरिक इमानदारकि स्वागत करते हैं।’ उनके इस कदम के बाद गठबंधन के दोनों दलों में दूरी और बढ़ेगी। इस्तीफे के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि जब से तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं  तबसे उन्हें इस्तीफा देने के लिये कहा जा रहा है। लेकिन उन्होंने इसे नहीं माना, जबकि जरूरत इस बात की थी कि वे इस्तीफा देकर अपने को निर्दोष साबित करते पर उनहोंने ऐसा नहीं कियाग्  उल्टे इस्तीफा नहीं देने पर अड़े रहे।  हालात बिगड़ते गये। नीतीश कुमार ने कहा कि उनकु इस जिद के कारण वहां काम करना मुश्किल हो गया था। नीतीश कुमार ने यह फैसला लेने के पहले कांग्र्रेस के नेताह राहुल गांधी से भी मशविरा किया। नीतीश कुमार ने कहा कि इस फैसले के पहले उन्होंने कांग्रेस के नेताओं से भी समाधान खोजने को कहा था। नीतीश के बरम्बार कहने के बावजूद तेजस्वी ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया। यहां तक कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी साफ कह दिया कि  तेजस्वी इस्तीफा नहीं देंगे। इससे राजनीतिक हालत बिगड़ने लगी। इधर लालू प्रसाद ने कहा कि मीडिया मिथ्या प्रचार कर हममें और नीतश जी में दरार डाल रही है। उधर नतिश कुमार ने कहा कि 20 महीने के बाद जो चीजे सामने आ रहीं हैं उसमें काम करना मुश्किल हो गया है। हालांकि नीतीश कुमार ने कभी तेजस्वी से सीधे इस्तीफा नहीं मांगा और लालू यादव से भी बातें करते रहे।  राजनीति में खास कर सत्ता की सियासत में साफ होने से ज्यादा जरूरी होता है साफ दिखना। तेजस्वी साफ थे या नहीं यह तो कहना मुश्किल है पर वे साफ दिख नहीं रहे थे।  ऐसे में उनका कर्त्तव्य था कि वे सत्ता के गलियारे से बाहर आकर खुद को साफ प्रमाणित करते। इस मामले में उनहोंने राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी।  लालू यादव से भी लगातार बातें चल रहीं थी लेकिन लज्जाहीनता की हद हो गयी थी कि ना तेजस्वी तैयार थे इस्तीफे के लिये और ना लालू तैयार थे इस्तीफा दिलवाने के लिये। लालू आरंभ से ही भ्रष्टाचार को लेकर विवाद का विषय बनते रहे हैं। भारत की आधुनिक राजनीति में रुपया कमाना आम बात है पर इस तरह अगर बात खुल जाय तो कुछ करना जरूरी होता है। कफन में जेब नहीं होती कोई अपने साथ दौलत ले कर नहीं जाता। विगत तीन महीने से यह मामलाल चर रहा था। बिहार के विपक्ष के नेता सुशील मोदी बार बार कह रहे थे कि तेजस्वी ने और लालू यादव के परिवार के अन्य लोगों ने भारी बेनामी सम्पत्ति एकत्र की है। उधर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार में अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता सुशील मोदी को फोन कर रणनीति तैयार करने को कहा है और इस उद्देश्य से सुशील मोदी के घर में पार्टी के नेताओं की बैठक आरंभ हो चुकी है। नीतीश के इस कदम के बाद बिहार में गटबंधन का चलना कठिन होता दिख रहा है। मौजूदा स्थिति में बिहार विधान सभा में जद यू के 71, भाजपा के 53 और राजद के 80 विधायक हैं। राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने भी मध्यस्थता का प्रयास किया पर कुछ नहीं हो सका।  बिहार के गठबंधन के टूटने का असर देश बर में दिखेगा खासकर नरेंद्र मोदी के 2019 के चुनाव जीतने से रोकने के प्रयास पर तो इसका सीदा असर पड़ेगा। 18 विपक्षी दलों का जो संभावित गठबंधन होने वाला था अब उसमें दरार सी होती दिख रही है। क्योंकि यह गठबंधन बिहार स्टाइल में होने वाला था। बिहार का गटबंधन सत्ता की राजनीति का अनोखा उदाहरण था। यहां चार वर्षों के विरोधी दल ने हाथ मिलाये और भाजपा के विजय रथ को रोक दिया। नीतीश कुमार के इस कदम से राजद को काफी आघात लगा है और वह एक वैकल्पिक महागठबंधन बनाने की तैयारी में जुट गया है। धर इस्तीफा देकर नीतीश कुमार ने एक बड़ा सियासी दांव चला है। हालांकि राज्य में आगे सियासी हालात हांगे यह कहना कठिन है पर नीतीश कुमार ने इस फैसले से अपनी साहसिक छवि बकनायी है तथा जनता में संदेश भेजा है कि वे साहसिक फैसले ले सकते हैं और करप्शन बर्दाश्त नहीं करते हें। फिलहाल 243 सदस्यों की बिहार विधान सभा में सरकार बनाने के लिये 122 विधायकों की जरूरत है और भाजपा तथा जद यू को मिला कर 129 विधायक होते हैं। संभव है वहां भाजपा को मिला कर सरकार बन जाय।