CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Friday, January 30, 2009

जनता सरकारों से पूछे

जनता सरकारों से पूछे
अगले दो दशकों में भारत की आबादी इसके समग्र विकास की राह में रोड़े बनने लगेगी और समस्या आर्थिक विकास में परिवर्तन और पर्यावरण में बदलावों से ज्यादा दुरुंह होगी। आबादी में इस वृद्धि का आधा केंवल हिंदी भाषी प्रांतों में होगा जिसके अगुवा बिहार और प्रदेश कहे जाते हैं। タया इन प्रांतों केञ् मुチयमंत्री इन भयावह प्रभावों से चिंतित हैं? सवाल है कि タया लापरवाही केञ् कारण भारत को पिछड़ जाना चाहिये? एक नजरिये से तो हमारे देश को उत्पादनशील नौजवानों का समूह प्राप्त हो रहा है, लेकिन यह नजरिया बिल्कुञ्ल सही नहीं है, タयोंकि अंतरप्रांतीय असमानताएं बढ़ती जा रही हैं। आकार और आबादी में बदलावों से समस्याएं जटिल होती जा रही हैं। आज जरूञ्री हो गया है कि इनकेञ् कारणों का विश्लेषण किया जाय और タया होने वाला है इसका अनुमान लगाया जाय। सन्‌ ख्ख्म् तक भारत की बढ़ने वाली कुञ्ल आबादी का आधा बिहार, छाीसगढ़, झारखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उार प्रदेश में होगा। इसी अवधि में दक्षिणी प्रांतों में आबादी की वृद्धि महज क्फ् प्रतिशत होगी। आबादी में वृद्धि पर जो नियंत्रण केञ्रल ने क्ऽत्त्त्त् में, तमिलनाडु ने सन्‌ ख् में और आंध्र प्रदेश ने सन्‌ ख्ख् में हासिल कर लिया था उसे प्राप्त करने में हिंदी पट्टस्न्ी को कम से कम तीन दशक लगेंगे। परिवार कल्याण विभाग द्वारा किये गये ताजा सर्वेक्षण केञ् अनुसार देश में क्त्त् वर्ष से कम आयु में शादी करने वाली ग्रामीण कन्याओं की सबसे बड़ी तादाद आंध्र प्रदेश में है। यही नहीं ब्भ् साल तक केञ् उम्र समूह में अपढ़ महिलाओं की संチया यहीं सर्वाधिक है। इस नजरिये से तकनीकी तौर पर विकसित प्रांत आंध्रप्रदेश पूर्ववर्ती 'बीमारूञ्' राज्यों से भी पिछड़ा हुआ है। इन सबकेञ् बावजूद यदि आंध्र केञ् युवा वर्ग को देखें तो बहुत बड़े परिवर्तन की उミमीद दिख रही है। मसलन आंध्र में क्भ् से ख्ब् साल तक केञ् अविवाहित माध्यमिक पास युवकों और युवतियों का अनुपात कर्नाटक, महाराष्टस्न््र और गुजरात से ज्यादा है। वैसे ही आंध्र प्रदेश में ब् वर्ष की उम्र की माताओं की औसत संतान संチया फ् है। यही अनुपात तमिलनाडु, चंडीगढ़, गोवा और पंजाब केञ् समान है, जबकि गुजरात, महाराष्टस्न््र, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में यह संチया ब् है, जबकि बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में यह औसत भ् है। उधर उार प्रदेश में तो हद हो गयी है। वहां केञ् स्त्र प्रतिशत जिलों में यह औसत म् है और महिलाएं परिवार कल्याण केञ् साधनों को अपनाती भी नहीं हैं। बच्चों केञ् पैदा लेने की दर पर नियंत्रण से दो लाभ हैं पहला वर्तमान में पारिवारिक जीवन आसान होता है और दूसरा बच्चों का भविष्य सुखमय होता है। यदि प्रजनन दर में कमी होगी तो महिलाएं न केञ्वल अपनी संतानों को उचित ढंग से पाल सकेंगी, बल्कि लड़कियां उम्र केञ् पहले ホयाहने से बच जाएंगी। जीवन सरल और भविष्य सुखकर हो सकता है। दक्षिण भारत केञ् राज्यों ने बीसवीं सदी में ही इन लक्ष्यों को हासिल कर लिया है। अब मायावती, नीतीश कुञ्मार, शिवराज सिंह चौहान, अशोक गहलोत, रमन सिंह और झारखंड केञ् राज्यपाल केञ् सलाहकार चंद सवालों का उार दें। ये सवाल हैं कि タया वे लोग परिवार नियोजन (सरकारी नाम परिवार कल्याण) या यों कहें कि परिवार सीमित करने केञ् बारे में बोलने से डरते हैं? वे कच्ची उम्र में लड़केञ्-लड़कियों की शादियां रोकते タयों नहीं? タया उन्हें मालूम है कि गांव केञ् आधे लड़कों की शादी वैध उम्र केञ् पहले हो जाती है। आप इसे रोक तो सकते ही हैं, तो रोकते タयों नहीं? कहते हैं कि बढ़ती आबादी केञ् कारण लोग अपनी मांगें नहीं मांगते और राजनीतिज्ञों केञ् लिये यह मुफीद है। タया आप इससे सहमत हैं। याद रखें बढ़ती आबादी हमारे संसाधनों को सोख लेगी और भविष्य को कठिन बना देगी। यदि सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती तो यह जनता का कर्तव्य है कि वह सरकार को मजबूर करे। जनता सरकार से खुलेआम उपरोक्तञ् सवालों को पूछे।

Sunday, January 25, 2009

ब्रिटिश भरोसे कें लायक नहीं

ब्रिटिश भरोसे कें लायक नहीं सरकार ने ब्रिटिश विदेश सचिव मिलीबैंड का अध्याय बुधवार को समाप्त कर दिया, लेकिन タया कूञ्टनीति में यह अध्याय बंद हो सकता है। सरकार की थोड़ी मजबूरी थी इसलिये उसने ऐसा कहा, लेकिन भारत की जनता और इतिहास इसका उार तो खोजेंगे कि आखिर मिलीबैंड ने ऐसा タयों कहा? उसकेञ् 'नासमझी भरे' बयान का कारण タया था? किन कारणों से लाचार मिलीबैंड ने मुミबई केञ् हमले केञ् कारण को कश्मीर से जोड़ने की कोशिश की, जबकि किसी कश्मीरी आतंकी गिरोह ने भी ऐसा नहीं कहा। タया मिलीबैंड को यह नहीं समझ में आया कि मुミबई केञ् हमलावरों ने जिन देशों केञ् नागरिकों को मारा है उन देशों ने अफगानिस्तान में नाटो सेना का साथ दिया है। इस हमले का कश्मीर अथवा भारत केञ् मुसलमानों की शिकायतों से कोई लेना देना नहीं था। मिलीबैंड का बयान उन लोगों केञ् लिये हैरतअंगेज था जिन लोगों को इंग्लैंड में ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों और अधिकृञ्त कश्मीर केञ् मीरपुरी समुदाय में सांठ गांठ का इतिहास नहीं मालूम और जिन्हें यह भी नहीं मालूम है कि मीरपुरी लेबर पार्टी केञ् वोट बैंक हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान केञ् बाद इंग्लैंड आतंकियों का सबसे बड़ा शरण स्थल है। सिख उग्रवादियों ने वहां पनाह ले रखी थी। श्रीलंकाई तमिल और चेचेन, मीरपुरी, हिजबुल, अल मुहाजिरों इत्यादि न जाने कई आतंकी संगठनों केञ् अनगिनत 'स्लीपिंग सेल्स' हैं। उनकी तादाद का अनुमान ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों को भी नहीं है। चूंकि अल कायदा को पाकिस्तानी प्रोत्साहन मिलता है इसलिये जरूञ्री है कि पाकिस्तानियों केञ् इंग्लैंड या अमरीका में घुसने की फितरत का विश्लेषण किया जाय। इंग्लैंड या अमरीका जाने वाले मुस्लिम समूहों में सबसे बड़ा समूह पाकिस्तानियों का होता है। इसकेञ् बाद नミबर आता है भारत और बंगलादेशी समुदायों का। एक अनुमान केञ् अनुसार केञ्वल इंग्लैंड में पाकिस्तानी मूल केञ् स्त्र लाख मुस्लिम हैं, इनमें सबसे बड़ी संチया पाकिस्तान केञ् पंजाब सूबे केञ् मुसलमानों की है और उसकेञ् बाद अधिकृञ्त कश्मीर केञ् मुसलमानों की है। ये लोग मूल कश्मीरी नहीं हैं बल्कि पंजाब केञ् ही हैं पर पीढि़यों से अधिकृञ्त कश्मीर में जा बसे हैं। ये कोई अमीर लोग नहीं हैं। मंगला डैम बनने केञ् बाद जब उनकेञ् रोजगार छिन गये तो वे यूरोप की ओर रवाना हो गये तथा बड़ी संチया में पश्चिमी इंग्लैंड में जा बसे। उनकेञ् वहां जाने का कारण था कि वहां पहले से पंजाबी भाषी मुसलमान रह रहे थे। अमरीका में इनकी संチया タया है नहीं मालूम। जब इंग्लैंड में इनकी संチया बढ़ी तो मस्जिदें बनीं। शुरूञ् में तो इन मस्जिदों पर बरेलवियों का कホजा था। वे थोड़े उदार थे। क्ऽस्त्रस्त्र में पाकिस्तान में जिया उल हक साा में आये। वे कट्टस्न्र देवबंदी थे और वहां केञ् मस्जिदों में देवबंदियों का बाहुल्य होने लगा। चूंकि यहां से अफगानिस्तान में सोवियत संघ केञ् खिलाफ लड़ने केञ् लिये लोग जाते थे अतएव ब्रिटिश खुफिया एजेंसियां कुञ्छ नहीं बोलती थीं। सोवियत संघ का टंटा खत्म होने केञ् बाद कोसोवो में लड़ने लगे। धीरे- धीरे इनकी बर्बरता बढ़ती गयी और जब तक ब्रिटिश खुफिया एजेंसियां समझें तब तक ये काबू से बाहर हो गये। आज निर्दोष ब्रिटिश नागरिक अपने देश केञ् अफसरों और नेताओं की गैरजिミमेदारी का खामियाजा भुगत रहे हैं। जब भारत केञ् खिलाफ जेहादी आतंकवाद शुरूञ् हुआ तब तक वे ब्रिटेन में एक मजबूत वोट बैंक बन चुकेञ् थे और भारत संबंधी अंग्रेजी नीतियों को प्रभावित करने लगे। जेहादियों और पाकिस्तानी आतंकियों केञ् खिलाफ नहीं बोलने का मिलीबैंड का यही कारण था। उधर उनकी प्रतिक्रिञ्या पर जब भारत सरकार भड़की तो ब्रिटेन ने समझाया कि उसे (भारत को) सहयोग दिया जा रहा है और वह विरोध कर रही है यह कूञ्टनीति केञ् खिलाफ है। मौका मिलते ही भारत सरकार ने इस पर पटाक्षेप कर दिया। उधर भारत सरकार का यह कदम नैतिक रूञ्प से आतंकी संगठनों का अंतरराष्टस्न््रीय समुदाय द्वारा समर्थन है। अतएव भारत को सावधान रहना होगा। पाकिस्तान बंटवाने वाले ये अंग्रेज भारत केञ् पक्ष में कभी सोचेंगे भी कहीं।