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Monday, February 23, 2009

Blogger Hariram Pandey behind the Prime Minister Manmohan Singh with other Editors of Newspapers of India after Editors Conference. Sitting with the PM are PMO offficials and media advisor of PM in 2007.

Blogger Hariram Pandey behind the Prime Minister Manmohan Singh with other Editors of Newspapers of India after Editors Conference. Sitting with the PM are PMO offficials and media advisor of PM in 2007.

Sunday, February 22, 2009

हथियारों की एक बड़ी खेप कोलकाता लाने का प्रयास

बंगलादेश समुद्री सीमा में पकड़ा गया जहाज
कुख्‍यात हूजी आतंकी भागकर पश्चिम बंगाल में घुसा
२०/१२/२००८
हरिराम पाण्डेय
कोलकाता :
बंगलादेश में आपातस्थिति के समाप्त होते ही वहां पाकिस्तान समर्थित भारत विरोधी गतिविधियां बड़े पैमाने पर शुरू हो गयीं। चटगांव बंदरगाह के सामने दूर समुद्र में भारतीय सीमा के करीब सोमवार की रात हथियारों से भरा एक जहाज पकड़ा गया। वह जहाज वहां छोटी नौकाओं पर हथियार उतार रहा था। कोलकाता लाये जाने वाले वे हथियार चटगांव पुलिस के हाथ लग गये। सूत्रों के मुताबिक हथियारों की उन पेटियों के साथ ४० पृष्ठो की एक फाइल और एक डायरी भी बरामद हुयी है। फाइल में भारतीय संसद भवन, रायसिना हिल्स और लुटियन क्षेत्र के थ्री- डी मानचित्र हैं। बंगलादेश के 'प्रो लिबरेशन ग्रुप' की विचारधारा वाले एक परिवार के नौजवान खुफिया अधिकारी और रॉ के 'ऑपरेटिव' की कोशिशों से वह खेप भारत में प्रवेश के पहले ही 'इटरसेप्ट' कर ली गयी। मुम्‍बई हमले के बाद पाकिस्तान के विरोध में तैयार अंतरराष्ट्रीय विरोध को देखते हुये बंगलादेश सरकार ने चुप्पी साध रखी है। परन्तु मंगलवार को रॉ मुख्‍यालय में रपट पहुंच गयी और कोलकाता को अलर्ट कर दिया गया। सन्मार्ग को मिली सूचना के अनुसार ये हथियार कम्‍बोडिया और चचेन्या से लाये गये थे और उन्हें पश्चिम बंगाल के तटवर्ती इलाकों में उतारा जाना था। ये हथियार बैंकाक की एक शिपिंग कम्‍पनी वोल्टो इंटरनेशनल के जहाज से १४ दिसम्‍बर की रात में अंडमान से -१०७ डिग्री पर लाया गया। इस खेप के लिये वोल्टो इंटरनेशनल के मालिक एम एम तमीमी को जून में १५ लाख डालर का भुगतान किया गया। डायरी में लिखे गये ホब्‍यौरे के मुताबिक यह भुगतान अमरीका के आर्लिंगटन शहर के ८५० एन वैनडोल्फ स्ट्रीट अपार्टमेंट नम्‍बर १२०६ आर्लिंगटन वी ए २२२०३ में किया गया। इसका बंदोबस्त आआआई इस आई के कर्नल मुनिरुल इस्लाम और दो कैप्‍टन इरशाद खान (पे बुक ३९९४१३६) और अब्‍दुल शाहिद (ओ सी ९४०१३७७)ने किया। इसके लिये चटगांव से ७०३८१३३० पर फैक्‍स भेज कर बताया गया कि अंडमान सागर में -१६० डिग्री पश्चिम एन एम पर वोल्टो इंटरनेशनल का जहाज इंतजार करेगा। वहां हथियारों की हासिल करने हफिजुर्रहमान जायेगा।हफीज हूजी का कुख्‍यात आतंकी है और विस्फोटक विशेषज्ञ है। छापा पड़ते ही हफीज वहां से खिसक लिया। सूत्रों के मुताबिक वह माल्दह में आकर छिप गया है।
पकड़े गये हथियारों की सूची : ४० मिमी की राकेट - ८४० ग्रेनेड्स (टी ८२२.२) - २५०२० ए के४७ रायफलें - ५१९२ए के ४७ रायफलों की मैगजीन - १००००रॉकेट साधने वाले यंत्र - १५ ए के ४७ की गोलियां - ११३९६८०

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Friday, February 20, 2009

सरकार की मदद से ही देश में आते हैं आतंकी

१७/१२/२००९

ट्रकों पर लाद कर बेखौफ लाये जाते हैं हथियार और गोला बारूद

हरिराम पाण्डेय

केन्‍द्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार की मदद से रोजाना सैकड़ों आतंकी और घुसपैठिये देश में प्रवेश कर रहे हैं। मुम्‍बई हमले के बाद भारत में आतंकवादी हरकतों पर लगाम लगाने के लिये बढ़ - चढ़ कर बोलने वाली केन्‍द्र सरकार ने आतंकियों के लिये असलहों के साथ बंगलादेश होकर भारत में प्रवेश करने के लिये दरवाजा खोल रखा है। सुनकर विश्वास नहीं होगा कि दुनिया में बंगलादेश से सटी पश्चिम बंगाल की सीमाएं ही एकमात्र ऐसी जगह हैं जहां सीमा चौकियों पर जांच नाम की कोई कार्रवाई नहीं होती। देश में अन्य सीमाओं पर जांच चौकियों पर सीमा सुरक्षा बल, केन्‍द्रीय एजेंसियां, कस्टम्‍स और आव्रजन विभाग के अफसर तैनात रहते हैं और वहां से हर आने जाने वालों की बारीकी से जांच करते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल और बंगलादेश की सीमाओं पर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यहां की सबसे बड़ी सड़क सीमा चौकी है दक्षिण २४ परगना में जैसोर रोड पर बेनापोल चौकी। इसके उस पार बंगलादेश का पेट्रापोल कस्बा है। इस सीमा चौकी से रोजाना औसतन २००० पासपोर्ट - विजा धारक आते - जाते हैं और औसतन ६०० ट्रक निर्यात का सामान लेकर जाते हैं। इन्हें सुविधाएं पहुंचाने के नाम पर लगभग ७०० क्‍लीयरिंग एजेंट हैं और इतने ही दलाल भी। ये क्‍लीयरिंग एजेंट किसी सरकारी संस्था द्वारा नियुक्त नहीं हैं। यह एक राजनीतिक दल से सम्‍बद्ध संगठन है। इस संगठन का एक वेलफेयर एसोसिएशन है जो अपने सदस्यों को सूचीबद्ध करता है। जानकर हैरान हो जायेंगे कि इस एसोसियेशन द्वारा जारी आईडेन्टिटी कार्ड ही इस पार उस पार जाने आने के लिये इस्तेमाल होता है। सीमा पर विसा लगे पासपोर्ट का दर्जा हासिल करने वाले इस कार्ड को जारी करने वाले लोगों या स्वयं उस संगठन को कोई कानूनी या सांविधानिक दर्जा हासिल नहीं है ना ही इस प्रकार का कोई अंतरराष्ट्रीय समझौता है। किंतु इस कार्ड से टेलीफोन कम्‍पनियों के सिम कार्ड भी जारी होते हैं। यही नहीं उस पार जाने वाले ट्रकों पर लदे सामान या उधर से आनेवाले ट्रकों की जांच की सिरफ खानापूरी होती है। इसकी जांच की जिम्‍मेदारी कस्टम्‍स विभाग पर है और यदि उन्होंने किसी आपाक्तिजनक वस्तु के जाने या आने पर रोक लगा दी तो उनकी खैर नहीं। ये एजेंट और उनके दलाल बॉर्डर जाम कर देंगे और दिल्ली को बताया जायेगा कि निर्यात रोका जा रहा है। इस कथित निर्यात को लेकर जाने वाले ट्रकों के ड्राइवरों और क्‍लीनरों का कहीं कोई रेकार्ड नहीं होता सिवा इसके कि सीमा पर बनी पश्चिम बंगाल पुलिस की एक चौकी में सादे कागज पर ड्राइवरों के लाइसेंस नम्‍बर लिख लिये जाते हैं। क्‍लीनरों का कोई हिसाब किताब नहीं। वे ट्रक लौट कर आये या नहीं इसका भी कोई लेखा जोखा नहीं होता। अब उन ट्रकों पर सैय्यद सलाहुद्दीन या बीमार ओसामा बिन लादेन या अजहर मसूद ही आ जाये तो कौन जानता है। सूत्रों के मुताबिक इस रास्ते बड़े पैमाने पर हथियार और आतंकी आते जाते हैं। अभी हाल में एक बहुत बड़ा आतंकी इसी रास्ते कोलकाता आया और अपने गुर्दे का उपचार करा लौट गया। सूत्रों का दावा है कि सिरफ इस बॉर्डर से निर्यात के नाम पर जाने वाले ६००-७०० ट्रकों के अलावा ट्रक तथा सुमो, कॉलिस और अन्य वाहन रोजाना तस्करी का सामान और पोटेशियम तथा अमोनियम नाइटे्रटेट और आर डी एक्‍स जैसे विस्फोटक, एके ४७ रायफलों की गोलियां और रायफल, टाइमर लेकर आसानी से आते हैं। सूत्रों के अनुसार सीमा के उस पार जैसोर तक दर्जनों आतंकी ट्रनिंग कैम्‍प हैं और नाजायज हथियारों के गोदाम। सूत्रों के मुताबिक पिछले ६ महीनों में उस पार से लगभग २०० किलोग्राम पोटास. १० से १२ हजार किलोग्राम अमोनियमम नाईट्रेट, १ हजार किलोग्राम सल्फर, ४००किलोग्राम आर डी एक्‍स और कलाशिनिकोव रायफलों की ५० हजार से ज्यादा गोलियां २ हजार जिलेटिन छड़ें, सैकड़ों टाइमर, सस्ते मोबाइल फोन भारत में केवल इस रास्ते से ट्रकों पर लद कर आये हैं। भारत में कार्रवाई के बाद आतंकी अपने साजो सामान के साथ भाग भी निकलते हैं। यह तो केवल एक चौकी की बात है। नदी और समुद्री सीमा पर तो और भी बुरी स्थिति है। देश के अन्य भागों में अपनी समुद्री सीमा तक आने जाने वाले मछुआरों को जो परिचय पत्र मिलते हैं उन्हें कस्टम्‍स और सीमा सुरक्षा बल द्वारा जारी किया जाता है पर पश्चिम बंगाल की समुद्री सीमा में मछुआरों को परिचय पत्र एक राजनीतिक दल से सम्‍बद्ध मत्स्य जीवी संघ जारी करता है। उन मछुआरों की नौकाओं पर सीमा के उस पार से क्‍या लद कर आता है इसका भगवान ही मालिक है। इस स्थिति पर कई बार केंद्रीय एजेंसियों ने सरकार का ध्यान दिलाया पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसका उदाहरण मुम्‍बई पर हुआ हमला है।

सरकार की मदद से ही देश में आते हैं आतंकी


१७/१२/२००९


ट्रकों पर लाद कर बेखौफ लाये जाते हैं हथियार और गोला बारूद


हरिराम पाण्डेय (कोलकाता) :


केन्‍द्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार की मदद से रोजाना सैकड़ों आतंकी और घुसपैठिये देश में प्रवेश कर रहे हैं। मुम्‍बई हमले के बाद भारत में आतंकवादी हरकतों पर लगाम लगाने के लिये बढ़ - चढ़ कर बोलने वाली केन्‍द्र सरकार ने आतंकियों के लिये असलहों के साथ बंगलादेश होकर भारत में प्रवेश करने के लिये दरवाजा खोल रखा है। सुनकर विश्वास नहीं होगा कि दुनिया में बंगलादेश से सटी पश्चिम बंगाल की सीमाएं ही एकमात्र ऐसी जगह हैं जहां सीमा चौकियों पर जांच नाम की कोई कार्रवाई नहीं होती। देश में अन्य सीमाओं पर जांच चौकियों पर सीमा सुरक्षा बल, केन्‍द्रीय एजेंसियां, कस्टम्‍स और आव्रजन विभाग के अफसर तैनात रहते हैं और वहां से हर आने जाने वालों की बारीकी से जांच करते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल और बंगलादेश की सीमाओं पर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यहां की सबसे बड़ी सड़क सीमा चौकी है दक्षिण २४ परगना में जैसोर रोड पर बेनापोल चौकी। इसके उस पार बंगलादेश का पेट्रापोल कस्बा है। इस सीमा चौकी से रोजाना औसतन २००० पासपोर्ट - विजा धारक आते - जाते हैं और औसतन ६०० ट्रक निर्यात का सामान लेकर जाते हैं। इन्हें सुविधाएं पहुंचाने के नाम पर लगभग ७०० क्‍लीयरिंग एजेंट हैं और इतने ही दलाल भी। ये क्‍लीयरिंग एजेंट किसी सरकारी संस्था द्वारा नियुक्त नहीं हैं। यह एक राजनीतिक दल से सम्‍बद्ध संगठन है। इस संगठन का एक वेलफेयर एसोसिएशन है जो अपने सदस्यों को सूचीबद्ध करता है। जानकर हैरान हो जायेंगे कि इस एसोसियेशन द्वारा जारी आईडेन्टिटी कार्ड ही इस पार उस पार जाने आने के लिये इस्तेमाल होता है। सीमा पर विसा लगे पासपोर्ट का दर्जा हासिल करने वाले इस कार्ड को जारी करने वाले लोगों या स्वयं उस संगठन को कोई कानूनी या सांविधानिक दर्जा हासिल नहीं है ना ही इस प्रकार का कोई अंतरराष्ट्रीय समझौता है। किंतु इस कार्ड से टेलीफोन कम्‍पनियों के सिम कार्ड भी जारी होते हैं। यही नहीं उस पार जाने वाले ट्रकों पर लदे सामान या उधर से आनेवाले ट्रकों की जांच की सिरफ खानापूरी होती है। इसकी जांच की जिम्‍मेदारी कस्टम्‍स विभाग पर है और यदि उन्होंने किसी आपाक्तिजनक वस्तु के जाने या आने पर रोक लगा दी तो उनकी खैर नहीं। ये एजेंट और उनके दलाल बॉर्डर जाम कर देंगे और दिल्ली को बताया जायेगा कि निर्यात रोका जा रहा है। इस कथित निर्यात को लेकर जाने वाले ट्रकों के ड्राइवरों और क्‍लीनरों का कहीं कोई रेकार्ड नहीं होता सिवा इसके कि सीमा पर बनी पश्चिम बंगाल पुलिस की एक चौकी में सादे कागज पर ड्राइवरों के लाइसेंस नम्‍बर लिख लिये जाते हैं। क्‍लीनरों का कोई हिसाब किताब नहीं। वे ट्रक लौट कर आये या नहीं इसका भी कोई लेखा जोखा नहीं होता। अब उन ट्रकों पर सैय्यद सलाहुद्दीन या बीमार ओसामा बिन लादेन या अजहर मसूद ही आ जाये तो कौन जानता है। सूत्रों के मुताबिक इस रास्ते बड़े पैमाने पर हथियार और आतंकी आते जाते हैं। अभी हाल में एक बहुत बड़ा आतंकी इसी रास्ते कोलकाता आया और अपने गुर्दे का उपचार करा लौट गया। सूत्रों का दावा है कि सिरफ इस बॉर्डर से निर्यात के नाम पर जाने वाले ६००-७०० ट्रकों के अलावा ट्रक तथा सुमो, कॉलिस और अन्य वाहन रोजाना तस्करी का सामान और पोटेशियम तथा अमोनियम नाइटे्रटेट और आर डी एक्‍स जैसे विस्फोटक, एके ४७ रायफलों की गोलियां और रायफल, टाइमर लेकर आसानी से आते हैं। सूत्रों के अनुसार सीमा के उस पार जैसोर तक दर्जनों आतंकी ट्रनिंग कैम्‍प हैं और नाजायज हथियारों के गोदाम। सूत्रों के मुताबिक पिछले ६ महीनों में उस पार से लगभग २०० किलोग्राम पोटास. १० से १२ हजार किलोग्राम अमोनियमम नाईट्रेट, १ हजार किलोग्राम सल्फर, ४००किलोग्राम आर डी एक्‍स और कलाशिनिकोव रायफलों की ५० हजार से ज्यादा गोलियां २ हजार जिलेटिन छड़ें, सैकड़ों टाइमर, सस्ते मोबाइल फोन भारत में केवल इस रास्ते से ट्रकों पर लद कर आये हैं। भारत में कार्रवाई के बाद आतंकी अपने साजो सामान के साथ भाग भी निकलते हैं। यह तो केवल एक चौकी की बात है। नदी और समुद्री सीमा पर तो और भी बुरी स्थिति है। देश के अन्य भागों में अपनी समुद्री सीमा तक आने जाने वाले मछुआरों को जो परिचय पत्र मिलते हैं उन्हें कस्टम्‍स और सीमा सुरक्षा बल द्वारा जारी किया जाता है पर पश्चिम बंगाल की समुद्री सीमा में मछुआरों को परिचय पत्र एक राजनीतिक दल से सम्‍बद्ध मत्स्य जीवी संघ जारी करता है। उन मछुआरों की नौकाओं पर सीमा के उस पार से क्‍या लद कर आता है इसका भगवान ही मालिक है। इस स्थिति पर कई बार केंद्रीय एजेंसियों ने सरकार का ध्यान दिलाया पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसका उदाहरण मुम्‍बई पर हुआ हमला है।

Wednesday, February 18, 2009

हमलावर कोलकाता की राह भी गये थे मुबई

४/१२/२००८
सभी कराची में रहने वाले बंगलादेशी थे
हरिराम पाण्डेय
कोलकाता : मुबई में हमला करने वाले आतंकी चार गुटों में पहुंचे थे और उनकी कुल संख्‍या ४० थी जिनमें १० महिलाएं थीं और उनमें से २५ लोग कोलकाता होकर मुबई गये थे। यहां वे फ्री स्कूल स्ट्रीट , पार्क सर्कस और कस्बा सहित दो धर्मस्थलों और कोलकाता विश्वविद्यालय के एक छात्रावास में लगभग हफ्‍ते भर तक ठहरे थे। ये लोग हमलावर टीम को 'लॉजिस्टिक सपोर्ट' दे रहे थे। बंगलादेश के अत्यंत उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार इस हमले में शामिल करने के लिये २४ लोगों को तैयार किया गया था और ये सभी कराची में रहने वाले बंगलादेशी थे और वहां छोटे- मोटे अपराध किया करते थे। सूत्रों के अनुसार सबसे पहले इस गिरोह के ६ लोग अगस्त में यहां आये थे और यहां से इंदौर होते हुए मुबई गये। उनके पास पश्चिम बंगाल के फर्जी आवासीय पत्र थे, जिसका प्रतिबंधित संगठन सिमी के स्थानीय सदस्यों ने बंदोबस्त किया था। यहां यह बता देना आवश्यक है कि सिमी के बहुत से कार्यकक्ता पाबंदियों को देखते हुए एक बहुत शक्‍तिशाली छात्र संगठन के सदस्य हो गये। इनका 'इस्लामी छात्र शिविर (बंगलादेशी कट्टरपंथी छात्र संगठन)' और 'हूजी बी(हरकत उल जेहाद अल इस्लामी बंगलादेश)' से पुराना सबंध है। मुबई जाकर वे लोग बंगलादेशी घुसपैठियों के बीच घुल-मिल गये। प्राप्त जानकारी के अनुसार इन ६ लोगों ने ही मुबई का व्यापक सर्वे किया और उसकी वीडियो सी डी तैयार की जिसे बाद में बरास्ते कोलकाता - ढाका भेजा गया। बताते हैं कि इसी सीडी से २४ लोगों को तैयार किया गया। उन्हें मुबई के गली कू पहचनवाये गये और मराठी भाषा के लटके - झटके सिखाये गये। सूत्रों के मुताबिक १९ -२० आदमी, जिनमें १० महिलाएं भी थीं, एक जलपोत से बंगलादेश के चटगांव बंदरगाह पहुंचे। यह जलपोत बंगलादेश की एक प्रमुख हस्ती का था। वहां एन एस आई के एक मेजर ने उनकी अगवानी की। बताते हैं यही लोग हथियारों और बमों का जखीरा लेकर आये थे और वे धीरे - धीरे कोलकाता से इलाहाबाद और नागपुर होते हुए मुबई पहुंचे। इनके साथ महिलाएं होती थीं ताकि किसी को संदेह न हो। चूंकि ये सब कराची के थे और बंगलादेशी थे इसीलिये उर्दू और बंगला दोनों बोल लेते थे। सबकी शिनाख्‍त पश्चिम बंगाल की थी। यहां सूत्रों के मुताबिक मोबारक नाम का एक आदमी मध्य कोलकाता के लेनिन सरणी के एक मकान और एक विदेशी उप दूतावास के अक्‍सर चक्कर लगाता था। उस युवक का रसूख इतना था कि उसे प्रवेश के लिये किसी रजिस्टर में अपना नाम वगैरह नहीं भरना होता था। उसने ही कुछ लोगों के कागजात बनवाये सूत्रों के मुताबिक जिनके कागजात बने उनमें से कुछ के नाम थे खुर्रम अब्‍बास मल्लिक, स्वाहिल इमरान, जफर हुसैन, फारुख अहमद, शाहिद अख्‍तर, इमरान मोईन अहमद यह सब इतने 'लो प्रोफाइल' में हुआ कि चेतावनी के बावजूद खुफिया एजेंसियां इसे भांप नहीं सकीं। मुबई पर हमले के दो -तीन दिन पहले दो औरतों को छोड़ कर सारी महिलाएं और अन्य कुछ्‍ लोग लौट गये। कुछ लोग उसके बाद भी यहीं रुके रहे और एक आराधनास्थल में उन्होंने जश्न मनाया। वे २७ नवंबर को इधर- उधर बिखर गये। बताते हैं कि जफर हुसैन सबका लीडर है और वह अल कायदा की ओर से अफगानिस्तान में लड़ चुका है और लश्कर के ट्रेनरों में से एक है। लश्कर -ए- तायबा में उसे 'कजा' के नाम से पुकारा जाता है।

Monday, February 16, 2009

holo sync centerpointe

काश ऐसा हर दम होता!

एक तरफ जहां देश की जनता का बड़ा भाग राजनीतिज्ञों के प्रति अपना गुस्सा जाहिर करने से थक नहीं रहा है वहीं गुरुवार को संसद में हमारे प्रतिनिधियों ने शायद पहली बार संतुलित ओर राष्टस्तरीय हितों के लिये एकजुटता का शालीन प्रदर्शन किया। मौका था मुबई हमलों के बाद की चर्चा का। पी.चिदंबरम देश के गृह मंत्री के p में पहली बार उपस्थित हुए थे और उन्होंने आतंकवाद के सफाये के लिये बनने वाले विधेयक के बारे में सदन को जानकारी दी और सदन को आश्वस्त किया कि सभी तरह की खुफियागीरी सीधे उन्हीं के अंतर्गत रहेगी। विपक्ष की ओर से चर्चा की शुरुआत करते हुए लाल कृष्ण आडवाणी ने सदन का सुर साधा और कहा कि आतंकवाद के नाश के लिये सरकार की हर कार्रवाई में विपक्ष उसके साथ है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सभी तरह के आतंकवाद की धुरी पाकिस्तान है। श्री आडवाणी ने कहा कि संसद का यह रिवाज रहा है कि तीखे मतभेदों के बाद भी सहमति होती है लेकिन यहां समय तथा वस्तुस्थिति की गंभीरता को देखते हुए ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए। इस सहयोग और सौमयता का सममान करते हुए विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आतंकियों को सजा देने की बात करते हुए 'दहकता' भाषण दिया साथ ही उन्होंने संयम बरतने और अंतररा‍ष्टि‍य सहयोग की वकालत भी की। आने वाले दिनों में बहुत कठिन कूटनीति की जरूरत पड़ेगी और इसमें सफलता के लिये संसद का सहयोग जरूरी है। गुरुवार को संसद की सम्‍पन्न बैठक अत्यंत शालीनता भरी थी। वक्ताओं को सदस्यों ने सुना कोई टोका - टाकी भी नहीं की। फिर भी कठिन प्रश्न अभी भी सामने नहीं आये। संसद की कार्यवाही का संचालन बड़े गरिमापूर्ण ढंग से हुआ और सब चुप भी रहे, गंभीर भी रहे। राजनीति में ऐसा बहुत कम देखा गया है, फिर भी कुछ लोगों ने कुछ ऐसा कह दिया जो सदन की स्थिति और मूड के अनुरूप नहीं था। मसलन माक्‍र्सवादी कम्‍युनिस्ट पार्टी के मोहम्‍मद सलीम ने जब हमले में अंतरराष्ट्रीय संदर्भ की बात उठायी। इस सहमतिपूर्ण वातावरण में भी तीखे राजनीतिक मतभेद कुंद नहीं हो सके हैं। इस उदास माहौल में संसद ने यह प्रदर्शित किया कि 'जनहित का काम हो रहा है।' काश! ऐसा हरदम होता। केन्‍द्र सरकार अब जल्द ही बहुचर्चित संघीय जांच एजेंसी के गठन के लिए संविधान संशोधन विधेयक ला सकती है। वस्तुतः प्रस्तावित एजेंसी के कामकाज के लिए राज्य पुलिस के कुछ अधिकारों को सीमित करना होगा और इस कारण यदि इसके लिए संविधान संशोधन का रास्ता चुना जाता है तो तमाम कानूनी अड़चनों की संभावना खत्म हो जाएगी। आतंकी घटनाओं पर रोकथाम एवं पृथकतावादी तत्वों से निपटने के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी अन्तरराज्यीय एवं अन्तरराष्ट्रीय मामलों की जांच के लिए ऐसी ही एजेंसी का सुझाव दिया था। आयोग के अनुसार संगठित अपराध, राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे, हथियार एवं मानव तस्करी के साथ ही अन्तरराष्ट्रीय चरित्र के बड़े अपराधी आदि से निपटने के लिए इन मामलों को राज्य पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर रख संघीय एजेंसी के दायरे में लाया जाना चाहिए। देन्‍श की एकता एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए के सरकार की यह कवायद हालांकि स्वागतयोग्य है फिर भी इसमें राजनीति की भी भनक सुनने को मिल रही है। केन्‍द्रिय सत्ता के विरोधी दलों ने ऐसी एजेंसी को राज्य की स्वायतता में हस्तक्षेप मानकर विरोध शुरू कर दिया है। एजेंसी के गठन के लिए बनाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को परिवर्तित किया जाएगा।

‍पाकिस्तान से खत्म कर दिये जाएं रिश्ते

कुंछ ऐसे लोग होते हैं जो न समझते हैं और न समझने को तैयार होते हैं, ऐसे लोगों को समझाया नहीं जा सकता है। यह तबसे इस देश का अनुभव है, जबसे पाकिस्तान हमारे देश को लहूलुहान करने के प्रयास में है, ताकि भारत कमजोर हो जाय और कश्मीर पर अपने दावे को छोड़ दे नतीजतन वहां भौगोलिक स्थिति बदल जाय। क्ऽत्त्फ् में एक-एक खालिस्तानी विमान अपहर्ता के कबजे से एक रिवाल्वर बरामद हुई थी। जर्मन अफसरों ने लिखित रूप में दिया था कि वह रिवाल्वर उसी खेप का हिस्सा है जिसे सैनिक सहयोग के तहत पाकिस्तान को बेचा गया था। क्ऽऽफ् में एक हथगोले के विस्फोट के बाद ऑस्टि्रयाई विशेषज्ञों ने लिख कर दिया था कि वह हथगोला आस्ट्रिया के सहयोग से पाकिस्तानी आयुध कारखाने में बना था। इसके अलावा कई सबूत हैं भारत में आतंकवाद को प्रोत्साहित करने में पाकिस्तानी हाथ के। जितने सबूत हम एकत्र करते हैं उतनी ही ताकत से उसे खारिज कर दिया जाता है। खासकर अमरीका की ओर से कि पाकिस्तान पर आरोप साबित करने के लिये यह पर्याप्त नहीं है। यह उसका बना- बनाया जबाब है। अमरीका केवल अपने नागरिकों के जान ओ माल की हिफाजत में दिलचस्पी रखता है और उसकी कोशिश होती है कि २६/११ की पुनरावृत्ति ना हो। जबसे पाकिस्तान ने अल कायदा से लड़ाई में अमरीका का साथ दिया है उसने भारत में जेहादी आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका की ओर से आंखें मूंद ली हैं। मुबई हमले के बाद आशा थी कि अमरीका का रुख बदलेगा, क्‍योंकि उसमें मरने वालों में भारतीयों के साथ कुछ अमरीकी और कुछ इसरायली नागरिक भी थे। इसरायली नागरिकों को नरीमन हाउस में इस बेदर्दी से मारा गया कि यहूदियों के खिलाफ नाजियों के जुल्म भी फीके पड़ गये। अमरीका को मालूम है कि इस हमले में लश्कर ए तैयबा की पूरी भूमिका थी। ... और लश्कर को पाकिस्तान सरकार ने बनाया है तथा अभी भी पालती है। इसके बावजूद अमरीकी रवैया बदला नहीं। वह सबूत मांगता है। कैसा सबूत- कुछ भारतीयों की मौत का या कुछ अमरीकियों के खून का या कुछ इसरायलियों की हत्या का या गिरफ्‍तार आतंकी के बयान का या हाफिज मोहम्‍मद सईद की गतिविधियों का या इंटरसेप्ट किये गये टेलीफोन वार्ता का, किसका सबूत मांगता है वह। कितने सबूत मांगता है वह, कैसे सबूत मांगता है वह। पश्चिमी बर्लिन के एक डिस्को में क्ऽत्त्म् में विस्फोट के बाद लीबिया पर बम बरसाने का हुक्‍म देने के पहले रीगन के पास कौन से सबूत थे? क्ऽऽत्त् में बिल क्‍लिंटन ने किन सबूतों के आधार पर अफगानिस्तान में मिसाइल से हमले किये थे? अल कायदा या तालिबान के कौन से सबूत थे अमरीका के पास कि उसने स्त्र अक्‍टूबर ख्क् को वहां की धरती पर टनों बारूद झोंक दिया? इराक पर हमले के पहले उसने कौन से सबूत देखे थे? जब अमरीकी नागरिकों की जान माल की बात आती है तो हर बार वह पहले बम बरसाता है तब सबूत खोजता है। वह इस बात की प्रतीक्षा नहीं करता कि दुनिया उसे क्‍या कहेगी। वह दुनिया को बता देना चाहता है कि अमरीकियों के जीवन से खेलने का नतीजा क्‍या होगा। भारत ने तो पहली बचकाना हरकत की कि उसने आतंकियों की सूची भेज कर उन्हें लौटाने की मांग की। कूटनीति में ऐसा क्‍या संभव है? यह तो अपना अपमान खुद करना है। देशवासियों को धोखे में रखना है। इसलिये हमें भी इंतजार नहीं करना चाहिए। पाकिस्तान पर कार्रवाई का समय आ गया है। हम अपने इस यकीन पर आगे बढ़ सकते हैं कि इन हमलों में पाकिस्तान की भूमिका है। सरकार तुरत तीन काम तो कर ही सकती है। पहला कि पाकिस्तान पर इतना दबाव बनाये कि वह लश्कर पर कार्रवाई के लिये मजबूर हो जाय। दूसरे कि उसके भारत में दूतावास में स्टाफ की संख्‍या कम की जाय, व्यापारिक व अन्य संबंधों को भंग कर दिया जाय। तीसरे कि रॉ के गोपनीय कार्यक्षेत्र के अधिकार को बढ़ाया जाय। यह हैरत की बात है कि रॉ के शीर्ष पर गोपनीय कार्यों का कोई विशेषज्ञ नहीं है। तत्काल इसकी व्यवस्था की जाय। पाकिस्तान पर सीधे फौजी कार्रवाई का उचित समय नहीं है। यह मान कर चलना चाहिये कि पाकिस्तान भविष्य में और हमले करेगा। अगर हम ये कदम उठाते हैं तो उसे थोड़ी हिचक होगी। अगर हमने कुछ्‍ नहीं किया तो बस यह मान कर चलें कि वह हमें तबाह करने पर तुल जायेगा। अब अगर दुबारा ऐसी घटना होती है तो पूरे देश का गुस्सा सरकार पर उतरेगा। कोरी बयानबाजी अब नहीं चलेगी। सरकार को कुछ करके दिखाना होगा ही। आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी है, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर हर गली में, हर नगर हर गांव में, हाथ लहराते हुये हर लाश चलनी चाहिए। सिरफ्‌ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

पाकिस्तान से खत्म कर दिये जाएं रिश्तेकुंछ ऐसे लोग होते हैं जो न समझते हैं और ना समझने को तैयार होते हैं, ऐसे लोगों को समझाया नहीं जा सकता है। यह क्ऽत्त्क् से इस देश का अनुभव है जबसे पाकिस्तान हमारे देश को लहूलुहान करने केञ् प्रयास में है, ताकि भारत कमजोर हो जाय और कश्मीर पर अपने दावे को छोड़ दे नतीजतन वहां भौगोलिक स्थिति बदल जाय। क्ऽत्त्फ् में एक-एक खालिस्तानी विमान अपहर्ता केञ् कホजे से एक रिवाल्वर बरामद हुई थी। जर्मन अफसरों ने लिखित रूञ्प में दिया था कि वह रिवाल्वर उसी खेप का हिस्सा है जिसे सैनिक सहयोग केञ् तहत पाकिस्तान को बेचा गया था। क्ऽऽफ् में एक हथगोले केञ् विस्फोट केञ् बाद ऑस्टि्रयाई विशेषज्ञों ने लिख कर दिया था कि वह हथगोला आस्ट्रिया केञ् सहयोग से पाकिस्तानी आयुध कारखाने में बना था। इसकेञ् अलावा भी कई सबूत हैं भारत में आतंकवाद को प्रोत्साहित करने में पाकिस्तानी हाथ केञ्। जितने सबूत हम एकत्र करते हैं उतनी ही ताकत से उसे खारिज कर दिया जाता है। खासकर अमरीका की ओर से कि पाकिस्तान पर आरोप साबित करने केञ् लिये यह पर्याप्त नहीं है। यह उसका बना- बनाया उार है। अमरीका केञ्वल अपने नागरिकों केञ् जान ओ माल की हिफाजत में दिलचस्पी रखता है और उसकी कोशिश होती है कि ऽ/क्क् की पुनरावृाि ना हो। जबसे पाकिस्तान ने अल कायदा से लड़ाई में अमरीका का साथ दिया है उसने भारत में जेहादी आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका की ओर से आंखें मूंद ली हैं। मुミबई हमले केञ् बाद आशा थी कि अमरीका का रुख बदलेगा, タयोंकि उसमें मरने वालों में भारतीयों केञ् साथ म् अमरीकी और म् इसरायली नागरिक भी थे। इसरायली नागरिकों को नरीमन हाउस में इस बेदर्दी से मारा गया कि यहूदियों केञ् खिलाफ नाजियों केञ् जुल्म भी फीकेञ् पड़ गये। अमरीका को मालूम है कि इस हमले में लश्कर ए तैयबा की पूरी भूमिका थी। ... और लश्कर को पाकिस्तान सरकार ने बनाया है तथा अभी भी पालती है। इसकेञ् बावजूद अमरीकी रवैया बदला नहीं। वह सबूत मांगता है। कैञ्सा सबूत- क्म् भारतीयों की मौत का या म् अमरीकियों केञ् खून का या म् इसरायलियों की हत्या का या गिरヘतार आतंकी केञ् बयान का या हाफिज मोहミमद सईद की गतिविधियों का या इंटरसेप्ट किये गये टेलीफोन वार्ता का, किसका सबूत मांगता है वह। कितने सबूत मांगता है वह, कैञ्से सबूत मांगता है वह। पश्चिमी बर्लिन केञ् एक डिस्को में क्ऽत्त्म् में विस्फोट केञ् बाद लीबिया पर बम बरसाने का हुタम देने केञ् पहले रीगन केञ् पास कौन से सबूत थे? क्ऽऽत्त् में बिल タलिंटन ने किन सबूतों केञ् आधार पर अफगानिस्तान में मिसाइल से हमले किये थे? अल कायदा या तालिबान केञ् कौन से सबूत थे अमरीका केञ् पास कि उसने स्त्र अタटूबर ख्क् को वहां की धरती पर टनों बारूञ्द झोंक दिया? इराक पर हमले केञ् पहले उसने कौन से सबूत देखे थे? जब अमरीकी नागरिकों की जान माल की बात आती है तो हर बार वह पहले बम बरसाता है तब सबूत खोजता है। वह इस बात की प्रतीक्षा नहीं करता कि दुनिया उसे タया कहेगी। वह दुनिया को बता देना चाहता है कि अमरीकियों केञ् जीवन से खेलने का नतीजा タया होगा। भारत ने तो पहली बचकाना हरकत की कि उसने आतंकियों की सूची भेज कर उन्हें लौटाने की मांग की। कूञ्टनीति में ऐसा タया संभव है? यह तो अपना अपमान खुद करना है। देशवासियों को धोखे में रखना है। इसलिये हमें भी इंतजार नहीं करना चाहिए। पाकिस्तान पर कार्रवाई का समय आ गया है। हम अपने इस यकीन पर आगे बढ़ सकते हैं कि इन हमलों में पाकिस्तान की भूमिका है। सरकार तुरत तीन काम तो कर ही सकती है। पहला कि पाकिस्तान पर इतना दबाव बनाये कि वह लश्कर पर कार्रवाई केञ् लिये मजबूर हो जाय। दूसरे कि उसकेञ् भारत में दूतावास में स्टाफ की संチया कम की जाय, व्यापारिक व अन्य संबंधों को भंग कर दिया जाय। तीसरे कि रॉ केञ् गोपनीय कार्यक्षेत्र केञ् अधिकार को बढ़ाया जाय। यह हैरत की बात है कि रॉ केञ् शीर्ष पर गोपनीय कार्यों का कोई विशेषज्ञ नहीं है। तत्काल इसकी व्यवस्था की जाय। पाकिस्तान पर सीधे फौजी कार्रवाई का उचित समय नहीं है। यह मान कर चलना चाहिये कि पाकिस्तान भविष्य में और हमले करेगा। अगर हम ये कदम उठाते हैं तो उसे थोड़ी हिचक होगी। अगर हमने कुञ्छ नहीं किया तो बस यह मान कर चलें कि वह हमें तबाह करने पर तुल जायेगा। अब अगर दुबारा ऐसी घटना होती है तो पूरे देश का गुस्सा सरकार पर उतरेगा। कोरी बयानबाजी अब नहीं चलेगी। सरकार को कुञ्छ करकेञ् दिखाना होगा ही। आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी है, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर हर गली में, हर नगर हर गांव में, हाथ लहराते हुये हर लाश चलनी चाहिए। सिर्ड्डञ् हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

Sunday, February 15, 2009

मुミबई कें हमलावरों को कोलकाता से धन भिजवाया था दाऊद नें दिनों 5 दाऊद हैं कराची में और एक दुबई में

हरिराम : मुミबई हमलों में वांटेड दाऊद इब्राहिम को लेकर जहां भारत और पाकिस्तान में तू - तू मैं - मैं हो रही है और कई तरह की अफवाहें उठ रहीं हैं वहीं आई एस आई की सलाह पर उसने अपने पांच अतिरिक्तञ् इミपोस्टर बनवाये हैं। यहां पश्चिमी राजनयिक हलकों में चर्चा केञ् मुताबिक मुミबई हमलों से दाऊद सीधे नहीं जुड़ा था। चूंकि वह इन दिनों पूर्वी और दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में तेल की तस्करी करता है अतः उसने हमलावरों को आने की राह बतायी थी और कोलकाता से हवाला केञ् माध्यम से धन मुहय्या करवाया था। कराची से सोमवार को रॉ को मिली सूचना केञ् अनुसार ये इミपोस्टर यमन केञ् शाह अजल स्पेशलिटी अस्पताल में डा. अबरार मलिकी और डा. युसूफ हसन ने एक महीने की कोशिश केञ् बाद तैयार किये हैं। मलिकी जहां पाकिस्तानी मूल का ब्रिटिश नागरिक है वहीं हसन भारतीय मूल का ऑस्टे्रलियाई नागरिक है। दोनों विशेषज्ञ कॉसमेटिタस सर्जन हैं। रॉ की सूचना केञ् अनुसार इन 'नकली दाऊदों' और असली में タया अंतर है यह केञ्वल दाूद ही जानता है। इन दिनों ये कराची केञ् विभिन्न स्थानों में रह रहे हैं। प्राप्त सूचना केञ् अनुसार उनकेञ् पते हैं: क्. म्क्स्त्र सीपी बेरार सोसायटी, ホलॉक स्त्र-त्त् कराची। ख्. हाउस नミबर फ्स्त्र, स्ट्रीट फ्, ड्डेञ्ज- क्, डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी, कराची फ्. हाउस नं. क् हिल टॉप आर्केञ्ड, डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी, कराची ब्. मोईन पैलेस, दूसरी मंजिल, अホदुल्ला शाह गाजी दरगाह केञ् सामने, タलिफटन, कराची। भ्. फरीद कैञ्सल, स्त्रम् अल्लमा रोड, कराची। म्. वाइट हाउस, अल वसाल रोड, जुमेरिया, दुबई, संयुक्तञ् अरब अमीरात। अब इन पतों में दाऊद और उसकेञ् हमशタल रह रहे हैं। रॉ केञ् संदेशों केञ् मुताबिक पाकिस्तान ने ऐसी व्यवस्था की है कि दाऊद का एक हमशタल किसी देश में मामूली अपराध में पकड़ा जायेगा और तब पाकिस्तान केञ् सिर से यह इल्जाम खत्म हो जायेगा कि वह पाकिस्तान में है। साथ ही उसे सौंपने का दबाव भी जाता रहेगा। रॉ केञ् एक वरिष्ठ अधिकारी ने सन्मार्ग को बताया कि कोलकाता शेयर बाजार में दाऊद की पूंजी भी लगी है। इस मामले में दो बड़े दलालों पर संदेह है। उनपर निगरानी रखी जा रही है। बड़ा बाजार का एक हवाला कारोबारी भी उसी केञ् रसूख से हवाला कारोबार करता है। यही नहीं कोलकाता में एक मीडिया हाउस की पूंजी में भी उसकी भागीदारी है। सूत्रों केञ् मुताबिक दाऊद का नेटवर्कञ् इन दिनों अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में ज्यादा सक्रिञ्य है। ऊर्जा की अनिश्चयता केञ् फलस्वरूञ्प उसने तेल की तस्करी का नया कारोबार शुरूञ् किया है और दक्षिण एशिया तथा पूर्वी एशिया केञ् छोटे - छोटे देशों की तेल की जरूञ्रतों का एक भाग दाऊद केञ् तस्करी नेटवर्कञ् से ही पूरा होता है। वह इस रूञ्ट में चलने वाले सभी तेल टैंकरों से, चाहे वे टैंकर सरकारी तेल कミपनी केञ् हों या निजी, उसकी कुञ्ल क्षमता का ब् वां हिस्सा तेल वसूलता है नहीं देने पर मध्य- पूर्व एशिया केञ् जिस देश से भी वह टैंकर तेल लेता है वहीं उसकेञ् कप्तान या चालक दल केञ् अन्य सदस्य को उठा लिया जाता है और उसे सजा दी जाती है। सूत्रों केञ् मुताबिक दाऊद ने गत सितミबर में जार्जिया में निबंधित एक बड़े तेल टैंकर केञ् कप्तान केञ् दोनों पैर कटवा दिये थे। इन टैकरों से वसूला हुआ तेल वह छोटे - छोटे टैंकरों में लाद कर तयशुदा जगहों पर पहुंचवा देता है। सूत्रों केञ् मुताबिक इन दिनों उसने ड्रग का कारोबार रोक रखा है और कोलकाता, गुवाहटी, काठमांडू, बंगलादेश जैसे स्थानों में हवाला, तेल चोरी, हथियारों की तस्करी और अपने तस्करी नेटवर्कञ् से आतंकियों को इधर उधर पहुंचाने में लगा है।

Friday, February 6, 2009

चुनाव आयोग और चुनाव

मुチय चुनाव आयुタत गोपालस्वामी ने चुनाव आयुタत नवीन चावला को तरタकी नहीं देने की सिफारिश की है और इसे लेकर राजCheck Spellingनीतिक माहौल सरगर्म हो गया है। दलों को एतराज इस बात पर है कि कहीं यह मामला ऐन चुनाव केञ् वक्तञ् किसी करवट लेट गया तो सामने बाधा ही बाधा होगी। गोपालस्वामी ख् अप्रैल को रिटायर होने वाले हैं और पहले यदि वे अपने विचारों से राष्टस्न््रपति को अवगत कराते हैं तो इसमें कोई असामान्यता नहीं है। गड़बड़ तो तब हुई जब राष्टस्न््रपति का भेजा गया पत्र मीडिया में लीक हो गया और उस पर राजनीति हो गयी। भाजपा नवीन चावला को हटाने लिए नारे लगाने लगी तो कांग्रेस उनकेञ् समर्थन में खड़ी हो गयी। चावला की नियुタति केञ् पहले गोपालस्वामी ने उनका विरोध किया था। अब विरोधी दलों का कहना है कि वे मौका पाकर वही खुंदक निकाल रहे हैं। =बाद चुनाव आयोग ने बढि़या काम किया था। उार प्रदेश, कश्मीर इत्यादि राज्यों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाये। वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल फ् मई को समाप्त हो रहा है। यानी इसकेञ् पहले चुनाव करवाना जरूञ्री है। आमतौर पर चुनाव प्रक्रिञ्या केञ् शुरूञ् होने और चुनाव सミपन्न होने केञ् बीच एक महीने का समय लग जाता है। यदि चुनाव कई चरणों में हुए तो समय कुञ्छ ज्यादा भी लग सकता है। वर्तमान सुरक्षा की स्थितियों को देखते हुए चुनाव कम से कम चार चरणों में सミपन्न होंगे और फिर पुनर्मतदान और वोटों की गिनती इत्यादि को मिला कर कम से कम डेढ़ महीना लग सकता है। ऐसे में चुनाव की प्रक्रिञ्या क्भ् अप्रैल से शुरूञ् करनी होगी। इसकेञ् लिए गोपाल स्वामी केञ् कार्यकाल को कम से कम म् हヘतों केञ् लिए बढ़ाना जरूञ्री होगा वरना वे बीच में ही रिटायर कर जायेंगे। वर्तमान स्थिति को देखते हुए उनका कार्यकाल बढ़ाना सミभव नहीं लगता है। ऐसे में उचित है कि गोपाल स्वामी अपने समय पर रिटायर कर जाएं और नवीन चावला को मुチय चुनाव आयुタत बना दिया जाय। तीसरे चुनाव आयुक्तञ् की नियुक्तिञ् कानूनी रूञ्प में अनिवार्य नहीं है पर यदि सरकार ऐसा कुञ्छ करती है तो इसकेञ् लिए उचित होगा कि वह विपक्षी दल केञ् नेता, लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा केञ् सभापति से परामर्श कर ले। यह संविधान समीक्षा समिति की सिफारिशों केञ् अनुकूञ्ल होगा और इससे सरकार की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। अभी हाल में तीसरे चुनाव आयुक्तञ् एस वाई कुञ्रेशी और मुチय चुनाव आयुक्तञ् गोपालस्वामी ने मुミबई में एक विचार गोष्ठस्न्ी में भाग लिया था। उसमें चुनाव सुधारों और चुनाव से जुड़े कई अन्य सवालों पर विचार हुए थे। उस गोष्ठस्न्ी में तीन प्रस्ताव पारित किये गये। इनमें पहला प्रस्ताव था कि किसी गंभीर अपराध केञ् अभियुक्तञ् को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी जाय। दूसरा कि इलेタट्रानिक वोटिंग मशीन में किसी को वोट नहीं दिये जाने वाला भी एक बटन होना चाहिये। यदि कुञ्ल प्राप्त मतों से किसी उミमीदवार को नहीं दिये जाने वाले मतों की संチया ज्यादा हो तो वहां दुबारा मतदान करवाये जाएं और उसमें उस उミमीदवार को चुनाव लड़ने की अनुमति न मिले और तीसरा राजनीतिक पार्टियों को नियंत्रित करने केञ् लिए एक विस्तृत कानून बनाया जाये। उधर चुनाव आयुक्तञें ने भी कई सुधारों का जिक्रञ् किया। यहां बुनियादी सवाल चुनाव आयुक्तञें की नियुक्तिञ् नहीं है, बल्कि चुनाव केञ् प्रति जागरूञ्कता और मतदाता सूचियों में त्रुटिहीनता है। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक निष्पक्ष चुनाव की कल्पना ही बेकार है। चावला का रहना या मुチय चुनाव आयुक्तञ् नहीं बनाये जाने पर विवाद व्यर्थ है।

चुनाव आयोग और यमुチ चुनाव आयुタत

मुチय चुनाव आयुタतगोपालस्वामी ने चुनाव आयुタत नवीन चावला को तरタकी नहीं देने की सिफारिश की है और इसे लेकर राजनीतिक माहौल सरगर्म हो गया है। दलों को एतराज इस बात पर है कि कहीं यह मामला ऐन चुनाव केञ् वक्तञ् किसी करवट लेट गया तो सामने बाधा ही बाधा होगी। गोपालस्वामी ख् अप्रैल को रिटायर होने वाले हैं और इसकेञ् पहले यदि वे अपने विचारों से राष्टस्न््रपति को अवगत कराते हैं तो इसमें कोई असामान्यता नहीं है। गड़बड़ तो तब हुई जब राष्टस्न््रपति का भेजा गया पत्र मीडिया में लीक हो गया और उस पर राजनीति हो गयी। भाजपा नवीन चावला को हटाने केञ् लिए नारे लगाने लगी तो कांग्रेस उनकेञ् समर्थन में खड़ी हो गयी। चावला की नियुタति केञ् पहले गोपालस्वामी ने उनका विरोध किया था। अब विरोधी दलों का कहना है कि वे मौका पाकर वही खुंदक निकाल रहे हैं। इसकेञ् बाद चुनाव आयोग ने बढि़या काम किया था। उार प्रदेश, कश्मीर इत्यादि राज्यों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाये। वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल फ् मई को समाप्त हो रहा है। यानी इसकेञ् पहले चुनाव करवाना जरूञ्री है। आमतौर पर चुनाव प्रक्रिञ्या केञ् शुरूञ् होने और चुनाव सミपन्न होने केञ् बीच एक महीने का समय लग जाता है। यदि चुनाव कई चरणों में हुए तो समय कुञ्छ ज्यादा भी लग सकता है। वर्तमान सुरक्षा की स्थितियों को देखते हुए चुनाव कम से कम चार चरणों में सミपन्न होंगे और फिर पुनर्मतदान और वोटों की गिनती इत्यादि को मिला कर कम से कम डेढ़ महीना लग सकता है। ऐसे में चुनाव की प्रक्रिञ्या क्भ् अप्रैल से शुरूञ् करनी होगी। इसकेञ् लिए गोपाल स्वामी केञ् कार्यकाल को कम से कम म् हヘतों केञ् लिए बढ़ाना जरूञ्री होगा वरना वे बीच में ही रिटायर कर जायेंगे। वर्तमान स्थिति को देखते हुए उनका कार्यकाल बढ़ाना सミभव नहीं लगता है। ऐसे में उचित है कि गोपाल स्वामी अपने समय पर रिटायर कर जाएं और नवीन चावला को मुチय चुनाव आयुタत बना दिया जाय। तीसरे चुनाव आयुक्तञ् की नियुक्तिञ् कानूनी रूञ्प में अनिवार्य नहीं है पर यदि सरकार ऐसा कुञ्छ करती है तो इसकेञ् लिए उचित होगा कि वह विपक्षी दल केञ् नेता, लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा केञ् सभापति से परामर्श कर ले। यह संविधान समीक्षा समिति की सिफारिशों केञ् अनुकूञ्ल होगा और इससे सरकार की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। अभी हाल में तीसरे चुनाव आयुक्तञ् एस वाई कुञ्रेशी और मुチय चुनाव आयुक्तञ् गोपालस्वामी ने मुミबई में एक विचार गोष्ठस्न्ी में भाग लिया था। उसमें चुनाव सुधारों और चुनाव से जुड़े कई अन्य सवालों पर विचार हुए थे। उस गोष्ठस्न्ी में तीन प्रस्ताव पारित किये गये। इनमें पहला प्रस्ताव था कि किसी गंभीर अपराध केञ् अभियुक्तञ् को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी जाय। दूसरा कि इलेタट्रानिक वोटिंग मशीन में किसी को वोट नहीं दिये जाने वाला भी एक बटन होना चाहिये। यदि कुञ्ल प्राप्त मतों से किसी उミमीदवार को नहीं दिये जाने वाले मतों की संチया ज्यादा हो तो वहां दुबारा मतदान करवाये जाएं और उसमें उस उミमीदवार को चुनाव लड़ने की अनुमति न मिले और तीसरा राजनीतिक पार्टियों को नियंत्रित करने केञ् लिए एक विस्तृत कानून बनाया जाये। उधर चुनाव आयुक्तञें ने भी कई सुधारों का जिक्रञ् किया। यहां बुनियादी सवाल चुनाव आयुक्तञें की नियुक्तिञ् नहीं है, बल्कि चुनाव केञ् प्रति जागरूञ्कता और मतदाता सूचियों में त्रुटिहीनता है। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक निष्पक्ष चुनाव की कल्पना ही बेकार है। चावला का रहना या मुチय चुनाव आयुक्तञ् नहीं बनाये जाने पर विवाद व्यर्थ है।