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Monday, October 31, 2016

कश्मीर का लगातार भंग होता युद्ध विराम

कश्मीर का लगातार भंग होता  युध विराम

पाकिस्तानी रेंजर्स  ने नवंबर 2003 में युध विराम संधि को भंग कर कश्मीर के  आर  एस पुरा में भारतीय सीमा चौकियों पर हमला किया और सीमा सुरक्षा बाल के एक सिपाही को  आहत कर दिया / बाद में उस सिपाही की मौत हो गयी/ 21अक्तूबर 2016 को सीमा पर गोली बारी में पाकिस्तानी सीमा रक्षकों के कम से कम 7 लोग मारे गये /  बी एस एफ की एक प्रेस विज्ञप्ति  में बताया गया है कि सीमा पर गोलीबारी में पाकिस्तान की तरफ से एक आतंकी भारत में प्रवेश करने में कामयाब हो गया/ यह आतंकियो द्वारा अक्सर ऐसा किया जाता है / बी एस एफ के प्रवक्ता शुभेंदु भारद्वाज ने बताया कि स्नईपर फायर की आड़  में पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों को भारत में प्रवेश कराने की कोशिश करती है/ यही नहीं 19 अक्तूबर की बीती रात कठुआ जिले के हीरा नगर में  भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों के हमले को नाकाम कर दिया/ यह भी घुसपैठ की कोशिश थी और हमारी सेना की  फायरिंग में एक आतंकवादी मारा गया और बाकी भागने में सफल रहे/ 16 अक्तूबर की रात को राजौरी के नौशेरा में नियंत्रण रेखा पर भारतीय चौकियों  पर गोलीबारी हुई और एक सैनिक मारा गया/ इसके पूर्वा 29 सितंबर को भारतीय सेना सर्जिकल हमला किया था और इस दौरान पाकिस्तानी  सीमा में घुस कर कई आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया/ अपुष्ट सूत्रों के अनुसार इस हमले में 38 आतंकी और दो पाक सैनिक मारे गये/ यह हमला भारत के बारामूला जिले के उड़ी सेक्टर में आतंकवादियों द्वारा सेना के कैंप पर किए गये हमले के प्रतिशोध स्वरूप था/ इस हमले मेी 19 भारतीय सैनिक मारे गये थे/ 29 सितंबर के सर्जिकल हमले के बाद पाकिस्तानी फ़ौजियों ने नियंत्रण रेखा और आंतररष्ट्रीय सीमा पर युध विराम का 38 बार उलंघन किया/ लगातार गोलीबारी के कारण सीमा से सटे इलाक़ों में से लोगों का भारी संख्या में पलायन हो गया है/ हाल में वहाँ बुलेट प्रूफ वाहनो को लगाया गया है ताकि लोगों सुरक्षा पूर्वक निकाला जा  सके/ जम्मू कश्मीर में आंतररष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा और वास्तविक स्थिति रेखा पर युध विराम का समझौता 25 नवंबर 2003 को लागू हुआ था/ हालाँकि पाकिस्तान इस समझौते पर हस्ताक्षर के लिए कभी नहीं तैयार था पर कयी  क्षेत्रों से भारी दबाव के कारण उसने हस्ताक्षर किए और कुछ दिनो तक जम्मू कश्मीर में आतकी घटनाओं में हाने वाली मौतों की तादाद कम हो गयी/  मुशर्रफ़ के कार्यकाल तक तो सब कुछ ठीक चला पर उसके बाद फिर आतंकी घटनाएँ बढ़ने लगीं / पाकिस्तानी सेना आतंकियों को गोलीबारी के लिहाफ़ नीचे छिपा कर भारत में प्रवेश करने लगी/ सरकारी आँकड़ों के मुताबिक युध विराम की पहली घटना 19 जनवरी 2005 को हुई/ पुंछ इलाक़े में भारी गोलीबारी की/ सरकार का मानना है कि यह फायरिंग आतंकियों को प्रवेश कराने के लिए की गयी थी/ युध विराम के बाद  पाकिस्तानी गोलाबारी में पहली बार 25नवंबर 2007 को एक भारिया सैनिक मारा गया/ इन्स्टिट्यूट आफ कॉनफ्लिक्ट मैनेजमेंट द्वारा तैयार किए गये आँकड़ो के मुताबिक 2005 के बाद 1741 बार युध विराम का उल्लंघन किया है/ केवलीस साल 23अक्तूबर तक उसने 56बार युध विराम का उल्लंघन किया है/ सरकारी रेकार्ड के मुताबिक इस साल जनवरी से जून के बीच 16 बार युध विराम का उल्लंघन हुआ है और आतंकी घटनाओं में 218 लोग मारे गये/ सरकारी आँकड़े बताते हैं की 2012 से 30 सितंबर  2015 तक 300 आतंकवादी भारत में प्रवेश  कर चुके हैं/ 2015 के सितंबर में एक बार फिर दोनो देशों के सीमा रक्षकों के बीच सहमति हुई कि नवंबर 2003 के समझौते को मानेंगे/ आँकड़ो के विश्लेषण से पता चलता है कि जम्मू कश्मीर में मरने वालों की संख्या और नियंत्रण रेखा के उल्लंघन के बीच समानुपातिक संबंध है/ 2016 में कश्मीर में केवल 135 लोग मारे गये जबकि 2015 में इसी अवधि में 137   लोग मारे गये थे /   इन बढ़ती घटनाओं को देखते हे 25 जुलाई 2016 को लाहौर में एक बार फिर बैठक हुई और इसमें तय किया गया कि युध विराम को माना जायगा/ पर कोई लाभ नहीं  हुआ / जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद में तेज़ी से इज़ाफा हुआ/ पंजाब में भी आतंकी घटनाएँ हुईं/  18 सितंबर की घटना के फलस्वरूप भारत ने जो सर्जिकल हमला किया अब दुनिया मे पाकिस्तान उसी का रोना रो रहा है कि भारत ने युध विराम भंग किया है/  हालाँकि पाकिस्तान कुछ अवसरों को छ्चोड़ कर  अधिकृत कश्मीर में भारत के हमले से इनकार करता रहा है, क्योकि इससे उसकी सेना की नाक काटने के अवसर बढ़ जाते हैं / सीमा बढ़ती घटनाओ को देखते हुए लग रहा है कि निकट भविष्य में पाकिस्तान की तरफ से बदले की कार्रवाई होगी/

Sunday, October 30, 2016

गहरी साजिश की अाशंका

गहरी साजिश की आशंका  

शनिवार को  जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने देश के समग्र राजनितिक और सामाजिक वातावरण पर बात करते हुए शंका जाहिर की कि चारों तरफ एक गंभीर षड्यंत्र चल रहा है लोगों को भ्रमित करने का उन्हें डराने का / अगर आप अपने चारो तरफ के हालात का जायजा लें तो महसूस होगा की बात में सच्चाई है/ जिस तरह से इन दिनों गो हत्या विरोध साथ ही गोरक्ष्कों को आतंकी कहने के बयान, सर्जिकल स्ट्राइक , एल ओ सी के आर पार गोलीबारी, सोशल मिडिया पर घायल  सैनिकों की या मृत सैनिकों की तस्वीर और लोगों से जय हिन्द कहने की अपील परमाणु युध का बनावटी  डर , तीन तलाक का मसला और हिन्दू धर्म फे बारे में कोर्ट का फैसला / यह सब मिलजुल कर  निहायत भ्रामक वातावरण बना कर देशवासियों के मन में भय पैदा कर रहा है/ देश के सबसे बड़े प्रान्त उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं/ उसके पहले सांप्रदायिक ताकतों को हवा देने के प्रयास को भी उसी कड़ी में गिना जा सकता है/  राजनीतिज्ञ क्या सोचते हैं पर समाज में डर  और जोखिम की मनोवैज्ञानिक अवधारणा को अगर देखें तो पता चलेगा कि एक निहित स्वार्थ के कारण यह सब फैलाया जा रहा है/ विख्यात सामाजिक मनोविज्ञानी अम्बोर्स पिअर्से ने अपनी पुस्तक “ डेविल्स डिक्शनरी “ में लिखा है कि “ मष्तिष्क तो केवल आर्गन है जो सोचता है तो हमें लगता है की हम सोच रहे हैं/ हमारा जो भी फैसला होता है वह हमारी भावनाओं और अचेतन में मौजूद दलीलों के आधार पर होता है/  सबकी पृष्ठभूमि में कायम रहने की जद्दोजहद होती है/ जबसे हम बचपन में होश संभलते  हैं तबसे  मरने के दिन तक हमारी कोशिश कायम रहने की होती है , न कि आई  ए एस अफसर बनाने की या वैज्ञानिक बनाने की या फिर बड़ा बनाने की/ ये सब तो उस कायम रहने की कोशिशें हैं/ “  अतएव हम खतरे के संकेतों को भांपते रहते हैं और आनन फानन में उन्हें या जोखिम को भांप लेते हैं/ हम सभी “ वास्तविकताओं “ को समझने में देर नहीं करते और इसके लिए कई तरह के मानसिक शार्टकट अपनाते हैं/ हमहरे अवचेतन में जो चीजें जितनी ज्यादा होंगी हम उस के प्रति हर खतरे को तत्काल भांप लेंगे/ मसलन आपके पास दौलत है और आप उसे बहुत शिद्दत से चाहते हैं तो आपको हर खतरा उसी के प्रति दिखेगा/ समाज वज्ञानिक पॉल  स्लोवाक के इकोनोमिस्ट पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक मुताबिक “ अवचेतन में व्याप्त चाह मनुष्य की हर समस्या पर हावी दिखती है/ भारत में इन दिनों हिन्दू आबादी  के अवचेतन में अन्य सम्प्रदाय के प्रति खतरा व्याप्त है और वह हर बात को उसी फ्रेम में देखता है/” यह भाव दुश्चिंता को न केवल बढ़ा देता है बल्कि अंतर व्यक्तिक संपर्क से उसका प्रसार भी करता है/ उदाहरण के लिए देखें “ सरकार कहती है की समस्या काबू में हैं और रहत महसूस करने लगते हैं जब कि समस्या वहीं है जहां थी/ भारत में आज करोड़ों लोग इसके शिकार हैं/ सोशल मीडिया में इन दिनों एक बात चल रही है है “ हम कैसे मनाएं दिवाली क्योंकि पटाखों की बारूद चीन की बनी है जहाँ की गोलियां हमारे जवानों पर चलती हैं/” इसमें कितना सच है यह कोई नहीं जनता पर बाजार में चीन विरोधी वातावरण तो बन ही गया है/ पिछले महीने पिऊ रिसर्च के निष्कर्ष में कहा गया था कि चार में से तीन भरिय कहते हैं कि अर्थ व्यवस्था अच्छी है या खराब है पर किसी के पास कोई तार्किक कारण नहीं है/ हालाँकि देश की 45 प्रतिशत आबादी को ठीक से दो जून का भोजन नहीं मिलता है/ हमारे पास भीति की एक भावना है जिसका उपयोग राजनीतिज्ञ  करते हैं/ भय अच्छी बात है और यह इंसान के भीतर होना चाहिए पर स्वर्थी तत्वों द्वारा इसका दुरूपयोग नहीं  होना चाहिए/

Friday, October 28, 2016

दीपावली का दर्शन

दीपावली का दर्शन 

कल दीपावली है। देश भर में इसे दीप उत्सव के रूप में मानाया जायेगा। दीपावली हमारे ऋग्वैदिक काल के ऋषियों की परिकल्पना है। इसे चाहे जिस भी मिथक से जोड़ें लेकिन यह कर्म की प्रधानता की व्याख्या करता है। इसकी व्याख्या बिम्बों के तौर पर है।हरेक दीप एक इकाई है। उसका निर्माण मिट्टी से हुआ है। उसके अंक में तेल है और कपास की बाती। प्रकाश इकाई नहीं है। हो भी नहीं सकता। वह ढेर सारी किरणों का समुच्चय है। वह सात रंगों से रचा बसा है। लेकिन दीपक में ऐसा प्रकाश भी इकाई के रूप में उगता है, अनंत से आता है, अनंत की सूचना देता है। प्रकाश का यह स्रेत अजर-अमर और अक्षय है। काल उसे बूढ़ा नहीं करता। काल उसे मार भी नहीं सकता। प्रकाश विराट अक्षर है। तभी तो कृष्ण के विराट रूप का वर्णन करते हुए कहा गया- दिव्य सूर्य सहस्त्राणि।ज्योति कभी ​स्थिर नहीं रहती और वह माटी के दिये पर , कपास की बाती से जलती है। माटी यानी धरा, भौतिकता, कपास यानी कृषि से पोषण  और लपलपाती दीपशिखा यानी जीवन की ऊर्जा जो लक्ष्मी है यानी धन है। कांपती दीपशिखा यानी चंचल स्वभाव। इसी समग्र दर्शन से हमारे देश में रुपया का चलन हुआ। रूप और या यानी लक्ष्मी का रूप। इसी रूप का बिमब हैं आज का रूपया। जिसका एक स्वरूप है और उसी स्वरूप के भीतर अव्यक्त और परोक्ष उर्जा समाहित है।रूप में यह कागज है, इस रूप के भीतर समस्त भौतिक वस्तुएं छुपी हैं। रुपया दो, जो पसंद है वह लो। रुपया बड़ा शक्तिशाली है। ऋग्वेद में मुद्रा को देवताओं जैसा शक्तिशाली बताया गया है। देवताओं की ताकत है- बहुरूपिया होना।  रुपया भी बहरूपया है। धनतेरस और दीपावली लक्ष्मी आराधना का मुहूर्त है। लक्ष्मी धन की देवी हैं। वे ‘शुभ लाभ’ देती हैं। हमारा देश भारत है। भा यानी प्रकाश और रत यानी प्रकाश में संलग्न। हमारी राष्ट्रीय संस्कृति ही प्रकाशोन्मुख है। प्रकाश और अंधकार का संघर्ष सनातन है। इसीलिये अंधकार से प्रकाश में ले जाने की बात हमारे वैदिक ऋषियों ने की है। विज्ञान कहता है कि प्रकाश का अभाव है अंधकार। अंधेरे की अनुभूति के लिए किसी अध्यात्म शास्त्र या योग ध्यान की जरूरत नहीं होती। अंधेरा प्रत्यक्ष होता है।  इसी लिये ,समाज के लिए. लेकिन प्रकाश स्थायी लब्धि नहीं बन पाया। स्वयं हमने ही प्रकाश की ओर से मुंह फेरा, अंधेरे को गले लगाया। अंधेरा बहुआयामी हुआ। चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा है। हमारे देव प्रकाशवाची होते हैं। इसलिये सूर्यदेव हैं और हम चांद को भी अर्घ्य देकर पूजते हैं क्योंकि चंद्रमा भी अंधकार से लड़ता है। अमावस्या की रात दीपावली का भी एक खास वैदिक महत्व है। दीपक अंधकार को पराजित करता है और उसी दिन से प्रकाश बढ़ने लकाता है। अंधकार पराजिमत होने लगता है। रोज अंधकार पिटता है। हर रात प्रकाश की विजय होती है। यह क्रम पूर्णिमा तक चलता है। हमारे अंदर अंधकार को पराजित करने की प्रेरणा देकर चांद धीरे से चला जाता है। एक पखवाड़े के लिये। फिर चांद आता है हमारे प्रयास को देखने। हर साल दिवाली हमारे प्रयास की सफलता का पर्व है। साल दर साल सफलता। सफलता ही लक्ष्मी है। लक्ष्मी जो कमल पर विराजती हैं। कमल यानी पंकज। पंक यानी अकर्मण्यता से अछूते रह कर कर्म करना और उससे धन की प्राप्ति ही तो लक्ष्मी का संकेत है। लक्ष्मी कोई देवी नहीं हैं दर्शन के अनुसार। उनके एक हाथ में धान्य जो धन है और दूसरे हाथ से निकलती मुद्राएं। मुद्रा खुद धन का प्रतीक है और धान्य परलोक में नहीं इसी लोक में होता है। लक्ष्म इसी लोक की देवी हैं। जहां-जहां तम वहां-वहां उसे पराजित करने के लिये दीप है।  दीपोत्सव मनुष्य की कर्मशक्ति का गढ़ा तेजोमय प्रतीक है। प्रकाश ज्ञानदायी और समृद्धिदायी भी है। भारत इस रात केवल भूगोल नहीं होता, राज्यों का संघ नहीं होता। भारत इस रात ‘दिव्य दीपशिखा’ हो जाता है। घर, आंगन, तुलसी के चौबारे, गरीब किसान के दुवारे, खेत-खलिहान, नगर, गांव, मकान, दुकान, ऊपर-नीचे सब तरफ दीपशिखा। इसीलिए दीप पर्व स्वाभाविक ही लक्ष्मी-गणोश का मुहूर्त बना। दीप-उत्सव है अतिरिक्त आनंद का अतिरेक। संपूर्णता का केंद्र है उत्स। उत्सव इसी केंद्र का उफनाया आनंद है। पहले उत्सव की खबर ऋतु देती थी, अब उत्सव की खबर अखबारी विज्ञापन देते हैं। वस्तुएं उत्सव का विकल्प बनती है। बाजार में मादक क्रांति है। उत्सवी मानुष हलकान है। महंगाई आसमान पर है। लक्ष्मी समृद्धि की देवी हैं। हम उनके उपासक हैं। लेकिन गहन रूप में आहत् हैं। तमस् ने आवृत्त और आच्छादित कर लिया है। 

यू पी में झगड़ा भारी

यूपी में झगड़ा भारी

उत्तर प्रदेश का राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। बुधवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यंत्री अखिलेश सिंह यादव ने राज्यपाल से भेंट कर सरकार के कामकाज की जानकारी दी। उसके पहले  यानी मंगलवार को उन्होंने बिहार के एक मंत्री से टेलीफोन पर कहा कि ‘यदि अभी सफाई नहीं होगी तो बहुत देर हो चुकी होगी। ’ दूसरी तरफ सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने मंगलवार को ही कहा कि ‘तमाम मतभेदों के बावजूद हम एक हैं। ’ पार्टी के अंदरूनी झगड़े के सोमवार को चौराहे पर आ जाने के सार्वजनिक प्रभाव को बचाने का मुलायम सिंह का यह प्रयास कहा जा सकता है। पर इसके साथ यह भी प्रतीत होता है कि हर मतभेद के बावजूद मुलायम और अखिलेश का एक दूसरे के बिना नहीं चल सकता है। देश भर में समाजवादी पार्टी में विभाजन की अटकलों का बाजार गर्म है। मंगलवार को इनहीं अटकलों पर धूल डालने के लिये मुलायम सिंह ने एक विशेष प्रेस कांफ्रेंस की और बताया कि हम सबी एकजुट हैं। उधर भीतर ही बीतर इस मतभेद को मिटाने के प्रयास चल रहे हैं। इसका कारण यह है कि बाप और बेटा दोनों यह समझते हैं कि अगर वे पार्टी को तोड़ते हैं और अलग- अलग विधान सभा चुनाव लड़ते हैं तो उनकी हैसियत खत्म हो जायेगी। पार्टी का वजूद घट जायेगा। ऐसी स्थिति में अखिलेश चाहते हैं कि 35 वर्ष से चली आ रही यह पार्टी अभी भी चलती रहे और मुलायम चाहते हैं कि अखिलेश मुख्यमंत्री रहें। अखिलेश प्रांत में पार्टी के स्वरूप के बिमब हैं और पार्टी की इमेज के क्षरण के बावजूद अखिलेश की छवि को कोई असर नहीं पहुचा है। वे प्रदेश के नौजवानों तथा महिलाओं के बाच उसी तरह लोकप्रिय हैं जैसे पहले थे। लोग अखिलेश को एक अच्छा नेता समझते हैं जो प्रदेश का विकास चाहता है पर लोगों के दिमाग में यह बात बैठ गयी है कि शिवपाल सिंह यादव तथा पिता मुलायम सिंह यादव की लगातार टोका टाकी से वे कुछ कर नहीं पा रहे हैं। अखिलेश का मान जनता में इसलिये और बढ़ गया कि वे खुल्लम खुल्ला अपने चाचा शिवपाल सिंह का विरोदा कर रहे थे और इस राह में रोड़े अटकाने के लिये उनहोंने अपने पिता तक को नहीं छोड़ा। लेकिन चाहे जितना मतभेद हो अखिलेश अकेले चलन का फैसला नहीं कर सकते हैं क्योंकि चुनाव लड़ने के लिये उनहें पार्टी का खास कर जमी जमाई पार्टी -समाजवादी पार्टी -  का बैनर चाहिये और सादा ही पार्टी की चुस्त दुरुस्त मशीनरी। उधर मुलायम और शिवपाल सिंह यादव इस पार्टी के संस्थापकों में से हैं और अबी बी पार्टी पर उनकी अच्छी पकड़ है। बेशक अखिलेश सिंह को अच्छा समर्थन हासिल है पर पार्टी की लगाम अभी मुलायम तथा शिवपाल के हाथों में है। क्योंकि पिछले चुनाव का टिकट उन्होंने ही बांटा था। इसी लिये अखिलेश बेचैन हैं कि इस बार टिकट बंटवारे में उनकी बात ज्यादा चले। लेकिन इस झगड़े का चरित्र देख कर महसूस होता है कि पार्टी की विरासत हासिल करने की यह रस्साकशी है। चाहे जो हो मुलायम फिलहाल लगाम छोड़ने के मूड में नहीं दिखते हैं। यही कारण है कि उन्होंने सोमवार को भी सभा में अखिलेश सिंह को झिड़का और भाई शिवपाल सिंह की तरफदारी की। मुलायम सिंह की बात से यह भी लगता है कि वे अखिलेश सिंह के भीतर कायम यह मुगालता भी खत्म कर देना चाहते हैं कि उन्हें नौजवानों का समर्थन हासिल है। मुलायम ने सोमवार को कहा था कि ‘कोई उन्हें कमजोर ना समझें और इस भ्रम में ना रहे कि नौजवान उनके साथ नहीं हैं। उन्होंने पिछले चुनाव में कई नौजवान नेताओं को टिकट दिये थे। ’ सियासत में बेहद पटु और संगठन की चातुरी के बेहतरीन खिलाड़ी मुलायम सिंह नहीं चाहेंगे कि पार्टी के लगाम उनके हाथ से निकल जाये। लेकिन सबके बावजूद ,मुलायम यह भी नहीं चाहेगे कि अखिलेश पार्टी से बाहर निकल जायें क्योंकि स्वास्थ्य और बीमारी के बारे में कोई कह सकता है और मुलायम सिंह की उम्र हो गयी। इसलिये उन्होंने झंडा तो अखिलेश को सौंप दिया परपार्टी चलाने के लम्बे अनुभव के कारण वे शिवपाल सिंह को भी नहीं छोड़ सकते हैं। यही कारण है कि उनहोंने घोषणा की कि वे अखिलेश को मुख्यमंत्री पद से हटायेंगे नहीं पर साथ ही साथ उन्होंने चेतावनी दी कि अखिलेश सही राह पर चलें।  उधर अखिलेश सिंह यादव ने स्पष्ट खंडन किया है कि वे पार्टी में विखंडन चाहते हैं। फिर भी जो हो चुका उसे मिटाया नहीं जा सकता हां जो कटुता आगयी है उसे खत्म करना आसान नहीं है। 

Wednesday, October 26, 2016

बढ़ता जा रहा है जोखिम

बढ़ता जा रहा है जोखिम 

जब मोदी जी विपक्षी नेता थे तो पाकिस्तान पर कार्रवाई नहीं करने के लिये भारत सरकार को पानी पी पी कर कोसते थे। जब प्रदानमंत्री बने तो पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी शिविरों पर सीधा हमला कर दिया। इससे देश भर में उनको वाह वाही मिली। पूरे देश में देशभक्ति का ज्वार उमड़ पड़ा। लेकिन पड़ोस से मिल रही खबरों के आधार पर यह समझा जा सकता है कि परमाणु हथियार से लैस सनकी पाकिस्तान भारत के साथ युद्ध कर सकता है। युद्ध का खतरा दिनोंदिन बड़ता जा रहा है। वहां सेना और आतंकी संगठनों में चोली दामन का साथ है। सोमवार की रात क्वेटा पुलिस कैम्प पर हमला नवाज शरीफ को एक चेतावनी थी। मोदी जी के पास रोज रोज विकल्प घटते जा रहे हैं और जंग का डर बढ़ता जा रहा है। डर इस बात का भी बढ़ रहा है कि अगर आतंकियों ने भारत के किसी क्षेत्र पर बड़ा हमला किया तो क्या कदम उठायेगी सरकार। यह तो तय है कि आज नहीं तो कल भारत में कही ना कहीं बड़ा आतंकी हमला होगा ही। यही नहीं अगर भारत कोई कार्रवचई करता है उस हमले के विरुद्दा तो पाकिस्तान का क्या रुख होगा? सी आई ए के पूर्व अधिकारी और दक्षिण एशियाई मामलों में कई अमरीकी राष्ट्रपतियों के पूर्व सलाहकार ब्रुस रीडल का कहना है कि ‘भारत बड़ी खतरनाक स्थिति में है। हालांकि अभी वह विन्दु नहीं पहुंचा है जहां से कदम वाप नहीं आ सकते।’ डर इस बात का है कि अगर भारत पर बड़ा आतंकी हमला होता है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों की तरह चुप नहीं बैठ सकते हैं और ना उनकी तरह कूटनीतिक विकल्प का रास्ता अपना सकते हैं। इससे उनकी वर्तमान छवि को आघत लग सकता है। जब उड़ी के फौजी शिविर पर हमला हुआ था तो मोदी जी ने खुल्लम खुल्ला बदला लेने की बात कही थी। उन्होंने अधिकृत कश्मीर पर हमला करके बदला लिया भी और पूरी दुनिया को बताया भी। हालांकि इसके पहले भी सरकार ने इस तरह के हमले किये थे पर सबकुछ पोशीदा था। मोदी जी ननके हमले के अलावा पाकिस्तान को अलग थलग करने की कार्रवाई भी करनी आरंभ कर दी। उन्होंने गोवा में ब्रिक्स की बैठक ममें पाकिस्तान को ‘आतंकवाद का आधारपोत कहा।’ इस क्रिया से देश भर में पाकिस्तान के प्रति गुस्से की लहर दौड़ गयी। इस भावना को रोका भी नहीं जा सकता है। मायरा मैकडोनाल्ड ने अपनी पुस्तक ‘डिफीट इज एन ऑरफन : हाउ पाकिस्तान लॉस्ट द ग्रेट साउथ एशियन वार’ में लिखा है कि ‘भारत में फैले इस क्राधाग्नि को अखबारों और अन्य मीडिया ने हवा दे दी है। हालांकि पाकिस्तान भारत से बदला लेना नहीं चाहता था इसलिये वह इसे जानबूझ् कर नजरअंदाज कर रहा था या मामूली बता रहा था। परंतु भारत द्वारा इसे प्रचारित करने के बाद उस पर बदले के लिये भीतर दबाव पड़ने लगा। ’ सच यह है कि नवाज शरीफ नहीं चाहते हैं कि जंग हो पर पाक की सेना भारत के खिलाफ जहां आतंकियों को मद कर रही है वही सरकार के प्रति भी देश में घोर विरोध पैदा कर रही है। वह किसी भी तथ्य को शांति के चश्मे से नहीं देखना चाहती। पाकिस्तानी सेना ने शुरू से पाकिस्तान के रक्षक के रूप में अपनी छवि बना रखी है। वह अपनी छवि को कायम रखने के लिये हमला जरूर करेगी। यह नहीं कहा जा सकता कि यह हमला कहां होगा। यहां सबसे बड़ा सवाल है कि अगर भारत ने ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पर पैर रख दिया तो इसे कैसे वापस लिया जा सकता है। हमलोगों की हालत वैसी नहीं है जैसी गाजा पटृटी में इसराइल की थी या हैती में अमरीका की थी बल्कि उसके विपरीत भारत की दुनिया की चौथी सबसे बड़ी फौज का मुकाबला दुनिया की 11वीं सबसे फौज से होगा। हालांकि कई विशेषज्ञों ने समस्या को निपटाने में मोदी की मेधा की प्रशंसा की है। खास कर उन्होंने अपनी बात कह कर अमरीका का समर्थन हासिल कर लिये इसके लिये वे प्रशंसा के पात्र हैं। मोदी जी की बॉडी लैंग्वेज देख कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे इस समय आत्मविश्वास से पूर्ण हैं और उस पार से किसी भी बदले की कारवाई के बाद उत्पन्न स्थिति को बेकाबू होने से संभाल सकते है। साथ ही पाकिस्तान में मोदी जी की यह छवि बनी है कि वे कुछ भी कर सकते हैं। उधर पाकिस्तान की सरकार जंग के पक्ष में नहीं है लेकिन वहां की शासन व्यवस्था लाकतां​त्रिक तौर पर चुनी गयी सरकार और सेना में विभाजित है तथा सेना का वर्चस्व ज्यादा है। शरीकि एक सीमा है किवह सेना को कहां तक दबा सकते हैं ज्यादा दबाव देने से डर है कि सेना उन्हें उखाड़ ना फेंके। इसके साथ ही सेना का आतंकियों को समर्थन है। इसलिये वे कई जगह लोकल हीरो बने हैं। इधर भारत में राष्ट्रवाद की लहर ऐसी उफन रही है कि मोदी अगर चाहें भी तो उसे रोक नहीं सकते। वे शेर पर सवार तो हो चुके हैं पर उससे उतर नहीं सकते। साथ ही उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं और मोदी तथा भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि देशभक्ति का यह ज्वार कायम रहे। इससे लोगों के दिमाग से आर्थिक विकास की बात हट जायेगी। लेकिन इससे एक हानि भी है वह है कि पाकिस्तान में यह बात बहुत तेजी से फैल रही है कि भारत हमलावर है वह अमनपसंद नहीं है।  लेकिन मोदी जी सरकार का कहना है कि हम अमन चाहते हैं, बेशक हम शांतिकामी हैं पर पाकिस्तान को आतंकियों से मुक्त कराना चाहते हैं। अब इससे हुआ कि दोनो तरफ एक बड़ी आबादी अपनी अपनी सेना के समर्थन में खड़ी हो गयी है। इससे भारत में जहां बेवजह की युद्धप्रियता दिख रही है वहीं पाकिस्तान में फौज पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वह भारत के खिलाफ कदम उठाये। इस स्थिति से वार्ता के द्वार तो अब बंद हो चुके हैं और बहुत ही खतरनाक स्थिति दिख रही है जिसका उपसंहार आतंकी हमले से लेकर पूर्ण युद्ध के रूप में कुछ भी हो सकता है।