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Wednesday, September 27, 2017

खतरनाक दोपहरी और लापरवाह ड्राइवर

खतरनाक दोपहरी और लापरवाह ड्राइवर   

हिन्दू लोकाचार में कहा गया है कि सूरज जब मध्य आकाश से नीचे की और ढलने लगे तो यात्राएं रोक देनी चाहिए. न जाने समय और स्थितियों के किन दबाव के तहत यह कहा गया था पर देश में आधुनिक काल में यह उक्ति सच होती हुई मालूम पड़ रही है.2016  के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारतीय सड़कों पर हुई कुल 4 लाख 80 हज़ार 652 सड़क दुर्घटनाओं में से 85 हज़ार 834 यानी 18 प्रतिशत  दुर्घटनाएं दोपहर 3  बजे से 6  बजे के बीच हुईं. सड़क परिवहन एवं हाई वे मंत्रालय की अगस्त 2017 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ 2005 -16 के बीच देश में कुल सड़क दुर्घटनाओं में 15 लाख 55 हज़ार 98 लोग मारे गए. यह संख्या बहरीन की आबादी से ज्यादा है. 2016 के आंकड़े बताते हैं कि देश मे हर घंटे 55 सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गयीं. इन दुर्घटनाओं में 1 लाख 50 हज़ार 786 लोग मारे गए यानि प्रति घंटे 17  आदमी या कहें हर 3 मिनट पर एक आदमी सड़क पर दौड़ती मौत के मुह में समा गया. इस अवधि  में घायल होने वालों की संख्या 4 लाख 94 हज़ार 624 है. सबसे बड़ी ट्रेजेडी है की मरने वालों में 25 प्रतिशत लोग 25 वर्ष से 35 वर्ष की आयु वर्ग के थे. इसके बाद सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं शाम 6 बजे से 9 बजे तक हुईं.2016 में इस अवधि  में 84 हज़ार 555 एक्सीडेन्ट्स हुए. भारत में सबसे ज्यादा एक्सीडेन्ट्स दोपहर बाद 3 बजे रात 9  बजे तक हुईं. 2016 में इस दौरान कुल 35% एक्सीडेन्ट्स हुए. इन दुर्घटनाओं में 4 लाख 3 हज़ार 598 या 85% एक्सीडेन्ट्स चालक की गलती से हुए. इनमें 1 लाख 21 हज़ार 216  लोग मारे गए. ड्राइवर की गलती में सबसे ज्यादा हाथ तेज रफ़्तार से गाडी चालने का है. ड्राइवर की गलती से जितने एक्सीडेन्ट्स हुए उनमें 66 प्रतिशत घटनाएं तेज़ रफ़्तार के कारण हुईं इनमें 73हज़ार 896 लोग मरे. इनमें आगे जाने की होड़ के कारण 7.3 प्रतिशत और गलत  साइड में गाडी चलाने के कारण 4.4 प्रतिशत एक्सीडेन्ट्स हुए जिनमें 1 लाख 21 हज़ार 126 लोगों में से क्रमशः7.8 प्रतिशत और 4. 7 % लोग मारे गये. शराब पीकर गाडी चलाने के कारण 14,894 दुर्घटनाओं में 6131 लोग मारे गए. यानी शराब पीकर या किसी और नशे के प्रभाव में आकर की गए वहां चलाने से रोज 17 लोग मारते जाते हैं . गाडी चलाते वक्त मोबाइल  फोन का उपयोग करने से 4,976 घटनाएं हुईं जिनमें 2138 लोग मारे गए. दूसरे शब्दों में रोजाना 14 एक्सीडेन्ट्स हुए जिनमें 6 लोग मारे गए.

  2016 में दोपहिया वाहनों की 1 लाख 62 हज़ार 280 दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 1 लाख13 हज़ार 167 दुर्घटनाएं कार , जीप और टैक्सी से हुईं बाकि बाकि ट्रकों , टेम्पोज  और ट्रैक्टर्स से हुईं. इन एक्सीडेन्ट्स में 28 लोग हर रोज मारे गए. लेकिन इस समस्या के पीछे ख़तरनाक ड्राइविंग और कमज़ोर कानून ही एकमात्र वजह नहीं है. शहरों  में वाहनों की संख्या में बहुत तेज़ी से इज़ाफ़ा हो रहा है. बी बी सी के अनुसार मुंबई में इस अव्यवस्थित ट्रैफ़िक में हर 10 सेकेंड में एक नई गाड़ी जुड़ जाती है. इस तरह से यहां हर रोज़ क़रीब 9हज़ार नए वाहन सड़क पर आते हैं.इससे यहां की सड़कें बुरी तरह से जाम हो चुकी हैं. यहां दो गाड़ियों के बीच सुरक्षित दूरी बनाकर रखना एक तरह से असंभव हो गया है.

सरकार लक्ष्य  अगले दो सालों में सड़क हादसों में हताहतों की संख्या50 प्रतिशत कम करना  है. पुलिस के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक, सड़क हादसों (84 प्रतिशत), मौत (80.3 प्रतिशत) और घायल (83.9 प्रतिशत) के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार एकमात्र कारण चालकों की लापरवाही है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 13राज्यों में 86 प्रतिशत हादसे होते हैं. ये राज्य तमिलनाडु, मध्य प्रदेश,कर्नाटक, उत्तर प्रदेश,आंध्र प्रदेश, गुजरात,तेलंगाना, छत्तीसगढ़,पश्चिम बंगाल, हरियाणा,केरल, राजस्थान और महाराष्ट्र है.

 

   

Tuesday, September 26, 2017

बेटी पढाओ तब जब बेटी बचाओ

बेटी पढाओ तब जब बेटी बचाओ

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक नारा दिया की “ बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ “ लेकिन इन दिनों पढने जाती या पढने गए बेटियाँ जब सकुशल लौट कर घर नहीं आ जातीं तबतक बेटी बचाने यानी उनके जनक और उनके पालक दोनों की साँसे अटकी रहती हैं. अभी हाल में अमिश त्रिपाठी की एक पुस्तक पढ़ी “ सीता – वैरिअर ऑफ़ मिथिला “ उस योद्धा सीता का भी अपहरण हो गया और वहाँ से आज तक अगर कोई आंकड़े एकत्र करे तो लगेगा हमारी बेटियाँ हर काल में जूझती रहीं हैं वक़्त के रिवाज़ से और समाज की दरिंदगी से. दूर कहाँ जायेंगे, अभी हाल में वाराणसी के विख्यात विश्व विद्यालय – “ बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी” के परिसर एक छात्रा से छेड़ छड के बाद विरोध करने पर छात्राओं पर ही लाठियां चलाई गयी. योगी जी की “ मर्द” पुलिस जो उत्तर प्रदेश से अपराधियों को मिटाने के लिए रोजाना एक इनकाउन्टर का दवा करती है वह पुलिस छात्रों पर लाठियां चलाती हैं जो विश्व विद्यालय परिसर के भीतर  अपना हक़ और हिफाज़त मांग रहीं थीं. यही नहीं , परिसर में हिंसा और अन्य  अपराध करने के आरोप में 1200 छात्रों पर मामला भी दर्ज किया गया है.  बी एच यू के कुलपति प्रोफ़ेसर गिरीश चन्द्र त्रिपाठी का कहना है कि इलाहाबाद और दिल्ली के कुछ अराजक तत्वों ने माहौल खराब किया है तथा लडकियां दिन ढले बाहर निकलती ही क्यों हैं?  बनारस जहां  पत्थर महादेव हो जाते हैं और काठ वासदेव वहाँ छात्राएं लाठियों से पीटी जाती हैं. घायल छात्राओं को घेरकर पुलिस का जत्था खडा रहता है. सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़ शनिवार की रात वहाँ पी ए सी की एक टुकड़ी सहित 1500 जवान तैनात किये गए थे. हे भगवान्, वहाँ कोई आतंकी घुस आया था क्या? कहते हैं कि वहाँ कुछ छात्रों ने नारे लगाए कि हम बी एच यू को जे एन यू नहीं बनाने देंगे. इस नारे का अर्थ और प्रसंग समझ से बाहर है. बस मोती तौर पर पता चलता है कि इसका उद्देश्य वहाँ परिसर में वामपंथी विचारों के प्रसार को रोकना है. अगर यह मंशा है तो उससे जोड़ कर पुलिस लाठीचार्ज को देखा जाय  तो लगता है कि योगी आदित्य नाथ उन बच्चों को भावी वामपंथी  मान कर पिटवा  रहे थे. या, ऐसा भी हो सकता है कि जे एन यू का खुलापन दकियानूसी  बनारसी दिमाग को रास नहीं आता हो और उन्होंने इसी के बहाने लड़कियों को सबक देने की सोची हो. क्योंकि जहां लड़के लड़की को सड़क पर घूमते देख कर पुलिस चालान कर देती है वहाँ विश्वविद्यालय  परिसर के भीतर यह कैसे बर्दाश्त हो. इस सबके बावजूद 2014 -15 के दरम्यान उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराध में 33 प्रतिशत वृद्धि हुयी है और इनमें 74% मामलों में किसी को सजा नहीं हो सकी है. एन सी आर बी के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार यू पी में महिलाओं पर जितने हमले होते है उनमें तीन चौथाई यौन अपराध हैं. बी एच यू परिसर में    आंदोलनरत छात्राओं  का कहना था  कि परिसर में छेड़खानी आम बात है और वे तो बस अपनी हिफाजत की मांग कर रहीं थीं और पुलिस ने लाठियां चलानी शुरू कर दी. खबर है कि इसके पहले भी लड़कियों से छेड़खानी हुई है और विरोध करनेवाली छात्राओं को “ कट्टा “ ( देसी पिस्तौल) लहरा कर या सरे बाज़ार दुपट्टा खींचने की धमकी देकर चुप करा दिया जाता है. शिकायत करने पर उन लड़कियों से पूछा जाता है की बेवक्त क्यों बाहर निकलती हो. मजे की बात है कि जब बी एच यू उबल रहा था तो मोदी जी बनारस में थे और बनारस उनका चुनाव क्षेत्र भी है. मोदी जी यदि यहाँ आकर देश की इन बेटियों के साथ एक सेल्फी ले लिए होते तो इनकी सुरक्षा का ख़तरा ही ख़त्म हो जाता. आये नहीं ना सही पर एक ट्वीट  तो कर दिया होता तो राष्ट्र को यह अहसास होता कि इन बेटियों को बचानेवाला खडा है. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और शनिवार की रात लड़कियों का धरना प्रदर्शन जबरन ख़त्म कर दिया गया. लेकिन यह मसला पूरे देश में सुलगने लगा इसपर  केवल सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि “ हमारी सरकार इस घटना पर अत्यंत दुखी है और मामले की जांच की जा रही है.”

  परिसरों में छेड़खानी के मनोविज्ञान का जहां तक सवाल  है तो विख्यात अपराध शास्त्री डेबोरा जे कोहेन का कहना है कि ऐसे काम बहुत कम लोग करते हैं और ख़ास तौर पर वही करते हैं जिन्हें पकडे जाने का डर नहीं होता औरे जिन्होंने पहले भी ऐसा किया होता है. इतना ही नहीं ऐसे लोगों के साथियों के समूह भी पृथक होते हैं जो इस तरह के कार्यों में सहयोग करते हैं.

  घटना के प्रति मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री जी के रुख से पता चलता है कि इस काण्ड को अंजाम देने वाला प्रशासन द्वारा ज्ञात है. इस बात की पुष्टि ऐसे भी होती है कि विश्वविद्यालय की छुट्टिया बढ़ा दी गयीं और होस्टल की तलाशी के नामपर कुछ “ छात्रों से जबरदस्ती “ की गयी. ये सारे हालत इशारा करते हैं कि इसमें किसी प्रभावशाली आदमी के बिगडैल औलाद की भूमिका है. ऐसे में बेतिओं को पढ़ाने से ज़रूरी उन्हें बचाना है. बनारस उस भगवन शिव का शहर है जिन्होंने सती के मात्र अपमान  के बाद तांडव किया था. लेकिन यहाँ तो हमें अपनी बेटियों को पढ़ाने से पहले उन्हें बचाना जरूरी है.    

Monday, September 25, 2017

रोहिंग्या संकट : भारत को कदम उठाना चाहिए

रोहिंग्या संकट : भारत को कदम उठाना चाहिए

इकॉनोमिस्ट पत्रिका ने अपने ताजा अंक में कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी संकट इस दशक में सबसे बड़ा है. हर हफ्ते म्यांमार से भागने वाले इन शरणार्थियों की संख्या रवांडा के नरमेध से कहीं ज्यादा है. राष्ट्र संघ के इंटरनेशल  ओर्गानाइजशन फॉर माइग्रेशन के अनुसार “ यह भगदड़ संख्या और रफ़्तार में अद्भुद है.” राष्ट्र संघ के मानवाधिकार के प्रमुख जायेद रद हसन ने इसे “ जातीय सफाई की पाठ्यपुस्तक “ कहा है. म्यांमार की नेता और नोबेल पुरस्कार विजेता अंग सांग सु क्यी ने १९ सितम्बर को एक बयान में कहा कि   गत 5  सितम्बर से गाँव खाली नहीं हो रहे हैं और ना किसी का दमन किया जा रहा है. उधर एमनेस्टी इन्तार्नेशानल ने इसे “ असत्य और पीड़ितों पर दोष मढने की क्रिया का मिला जुला स्वरुप “ बता रहा है. आंकड़ों के मुताबिक़ लगभग 1 लाख 20 हज़ार लोग हर हफ्ते आराकान की पहाड़ियों के अपने गाँव से भागते हैं इसमें सबसे ज्यादा लोग बँगला देश में घुस रहे हैं बाकि एनी जगहों पर जा रहे हैं. इन जगहों में भारत भी शामिल हैं. हालांकि सु क्यी ने कहा है कि उनकी सरकार किसी भी समय पहचान की प्रक्रिया आरम्भ कर सकती है और तब बँगला देश से कुछ रोहिंग्या शरणार्थी लौट सकते हैं. म्यांमार में हो रहे नरसंहार से रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति दयनीय के साथ-साथ जटिल भी हो गई है. अपने देश वे जा नहीं सकते, जहां वे सुरक्षित रह सकते हैं वहां से उन्हें निकालने की तैयारी हो रही है, और जो उन्हें आने दे रहा है उसकी क्षमता सीमित है. उनकी हालत ‘न ज़मीं अपनी न आसमां अपना’ वाली है. ऐसे में उनके प्रति सहानुभूति रखने वाला व्यक्ति अच्छी कल्पना से ज़्यादा क्या ही कर सकता है!

      बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने यही किया. कुछ दिन पहले जब उनसे रोहिंग्या मुद्दे पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अगर बुद्ध होते तो निश्चित ही रोहिंग्या मुसलमानों की मदद करते. आगे उनका कहना था कि जो लोग रोहिंग्याओं को सता रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए ऐसे हालात में बुद्ध निश्चित ही उन कमज़ोर मुसलमानों की मदद करते.

      वैसे तो म्यांमार समेत अन्य देशों के पास रोहिंग्या मुद्दे पर दलाई लामा की बुद्ध वाली बात से आंखें फेरने के कई ‘जायज़ बहाने’ हैं,लेकिन बुद्ध अपने आप में ऐसा विचार हैं जिससे आंखें तो फेरी जा सकती हैं, लेकिन मन नहीं. दलाई लामा का यह कहना कि ‘बुद्ध निश्चित ही मदद करते’,उनके जीवन से जुड़ी एक बेहद अहम घटना की याद दिलाता है. यह तब की बात है जब बुद्ध, बुद्ध नहीं थे. उस समय वे सिद्धार्थ थे. यह कम चर्चित घटना बुद्ध के गृह त्याग को लेकर चली आ रही कहानी पर भी सवाल उठाती है,जिसके मुताबिक़ ज्ञान प्राप्ति के लिए राजकुमार सिद्धार्थ आधी रात को सोती पत्नी और पुत्र को छोड़कर चले गए थे.

       जहां तक भारत का प्रश्न है तो रोहिंग्या शरणार्थियों पर बेशक दया की जा सकती है लेकिन उनकी पीड़ा से व्याकुल होकर भारत की नीति का संचालन नहीं  किया जा सकता. किसी के दर्द को मह्सूस करने की भावना का दुनिया की हर संस्कृति में कीमत है पर जैसा कि मनोशास्त्री पॉल ब्लूम लिखते हैं कि दूसरे के दर्द को महसूस करना केवल धार्मिक भाव के लिये ही होता है ना कि स्थायी तौर पर और हर क्षेत्र  में. भारत ने इन शरणार्थियों को हटाने का मन बना लिया है. हालांकि कई संगठनों ने भारत सरकार के इस फैसले का विरोध किया है. भारत सरकार का मानना है कि इन शरणार्थियों में इस्लामी आतंकी गुटों का प्रवेश हो रहा है. इससे अलग बांग्ला देश सरकार ने इसे मानवता का संकट माना है और कहा है की , भारत एक क्षेत्रीय शक्ति है और वह भी इस पीड़ा से आक्रांत है अंतत:  वह उन्हें वापस भेजने के लिए कोई रणनीति ज़रूर बनाएगा.हालांकि म्यांमार अपने नागरिकों के रूप में रोहिंग्या को नहीं पहचानता है, नई दिल्ली  शरणार्थियों को वापस लेने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ताकतों को मनाने में भूमिका निभा सकती है. “म्यांमार,बांग्लादेश और भारत सभी बिम्सटेक के सदस्य हैं, और एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत को अपनी ताकत और प्रभाव  का इस्तेमाल करके म्यांमार को इन रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी के लिए प्रेरित करना चाहिए.

 

 

 

 

 

Sunday, September 24, 2017

ये पकिस्तान का रोना कब तक चलेगा

ये पकिस्तान का रोना कब तक चलेगा

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शनिवार को राष्ट्र संघ महासभा में पकिस्तान के प्रधान मंत्री शाहिद खान अब्बासी के आरोपों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए कहा की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से सत्ता संभाली है पहले दिन से ही वे पाकिस्तान से दोस्ती की पेशकश करते आ रहे हैं लेकिन पकिस्तान उसे नहीं मान रहा है. दुनिया के सामने पाकिस्तान को इओस बात की सफाई देनी होगी. विदेश मंत्री ने अपने ख़ास आक्रामक अंदाज़ में कहा की हम विद्वान् बनाते हैं ,डाक्टर और इंजिनियर बनाते हैं और वे आतंकी बनाते हैं. डाक्टर मौत के मुंह से इंसानों को खींच लाते हैं और आतंकी लोगों को मौत के मुंह में धकेल देते हैं. उन्होंने कहा की हम गरीबी से जंग में मसरूफ हैं और पकिस्तान हमसे ही लड़ने में जुटा है. उन्होंने कहा कि मोदी जी ने गरीबी के प्रति भारत के नज़रिए को ही बदल दिया है. उन्होंने कहा कि नोटबंदी करप्शन को ख़त्म करने के लिए उठाया गया बेहद जोखिम भरा कदम था.लेकिन इसका नतीजा हुआ कि कालाधन चलन से बहार हो गया. हिंदी में दिए अपने 30 मिनट के भाषण में उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि पकिस्तान की अडचनों के बावजूद भारत कई चुनौतियों के मुकाबिले में दुनिया को मदद कर रहा है. ... और पकिस्तान तो केवल आतंकवाद निर्यात करने में लगा है. ऐसा क्यों कि भारत दुनिया में आई टी सुपरपावर बन बैठा और पाकिस्तान आतंक निर्यात का कारखाना बना हुआ है. शुषमा  जी ने कहा की हम गरीबों में निवेश कर के गरीबी मिटा रहे हैं , मोदी जी का नज़रिया है कि सहायता और हाथ थमने के परम्परागत तरीकों को छोड़ दिया जाय. हमारे प्रधानमन्त्री जी ने आर्थिक सशक्तिकरण की राह से आगे बढ़ने का ज्यादा सही तरिका चुना है. गरीब असहाय  नहीं हैं  हमने केवल उन्हें अवसर दिया है. उन्होंने कहा कि गरीबी का पूरी तरह खात्मा ही वर्तमान सरकार का उद्देश्य है. हमारे प्रधान मंत्री ने इसके लिए जोरदार योजनाएं  बनायी है, वे हैं वित्तीय समावेश के लिए जनधन योजना, लघु उद्यमियों के लिए कम व्याज पर क़र्ज़ के उद्देश्य से मुद्रा योजना और गरीबों को रसोई गैस देने के लिए उज्ज्वला योजना. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही बाज़ार सुधार के लिए जी एस टी भी लागू किया गया.

    पकिस्तान के प्रधान मंत्री शहीद खान अब्बासी ने कहा कहा था कि भारत कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन कर रहा है. पकिस्तान के प्रधान मंत्री के आरोप का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्र संघ में कश्मीर के प्रस्ताव पर यह तय हो चुका  है कि दोनों देश पारस्परिक वार्ता से इस झगडे को  सुलझाएंगे. लाहौर घोषणा और शिमला समझौते में यह स्पष्ट भी हो चुका है. 2015 में एक नवाज शरीफ ने  द्विपक्षीय विस्तृत वार्ता को स्वीकृति दी थी. विदेश मंत्री ने कहा कि पकिस्तान को अपनी समस्याओं के कारणों को समझना चाहिए और अपने नागरिकों पर व्यय कर चाहिए. उन्होंने पर्यावरण परिवर्तन, सुरक्षा चुनौतियां और विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में  भारत को  अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का भागीदार के रूप में पेश करते हुए कहा कि राष्ट्र संघ को जितनी जल्द हो सके आतंकवाद की सर्वमान्य परिभाषा को अपना लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर हम अपने दुश्मन से अवगत रहना चाहिए वरना हम उससे कैसे लड़ सकेंगे. 

 अपने सम्पूर्ण भाषण में सुषमा स्वराज भारत की गरीबी और पाकिस्तान के आतंकवाद की चर्चा करती रहीं. अगर कहा जाये तो उनका भाषण भारत के कद के बराबर नहीं था. उन्होंने दो बात कही कि भारत विकास लक्ष्यों , सुरक्षा चुनौतियों पर्यावरण परिवर्तन से मुकाबिले में दुनिया से भागीदारी करेगा. यह एक विशाल लक्ष्य है और उसे हासिल करने वाला गरीबी आतंकवाद का स्यापोआ नहीं करता. उन्होंने कहा कि भारत इंजीनियर , डाक्टर बनाता है और वह आतंक्व्वादी. बेशक यह बात सरकार के भगतों को अच्छी लगेगी पर यह बात दुनिया में भारत की हैसियत को छोटी करने वाली हैं. वह भारत जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता की होड़ में हैं , वह भारत जो ब्रिक्स  देशों का हिस्सा है, वह भारत जो दुनिया की तीन महाशक्तियों में शामिल होने का दम भरता है , उस भारत की विदेश मंत्री मोहल्ले की नल पर बाल्टी लिए खड़ी महिलाओं की तरह   “ तेरी – मेरी “ करतीं  नज़र आयीं. भारत ने केवल रोना रोया या अपनी तरफ से कोई रन नीति नहीं पेश कर पाया. आज दुनिया में अमरीका का रूतबा घट रहा है और एक शून्य बन रहा है, भारत को इसकी जगह लेनी चाहिए थी वरना चीन यहाँ घुस कर बैठ जाएगा और मोदी जी 56 इंच का सीना लेकर  जगह ढूंढते रह जायेंगे. भारत को अगर दुनिया में अपनी जगह बनानी है तो पकिस्तान का रोना बंद करना होगा, क्योंकि इससे भारत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई लाभ नहीं होने वाला बेशक देश में उसे कुछ तालियाँ मिल जायेंगी.    

 

Friday, September 22, 2017

शिक्षा की दुरावस्था

शिक्षा की दुरावस्था

शिक्षा के विकास के नाम पर भारत में दो असंतुलित कार्य हो रहे हैं. एक तो बच्चों को दनादन स्कूल भेजा जा रहा है , जिससे स्कूलों  में छात्रों की बाढ़ आ गयी है और उनका बोझ संभाले नहीं संभल रहा है और दूसरा की शिक्षा एक धंधा बनता जा रहा ही. उस धंधे में प्रतियोगता को बढ़ावा मिल रहा है. बड़े पैमाने पर महंगे स्कूल खुल रहे हैं. बच्चों की देख बाल नहीं हो पा रही है लिहाजा अप्रिय घटनाएं घट रहीं हैं. शिक्षा का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा हैं. शिक्षा, शिक्षक और शिक्षण की श्रृंखलाबद्ध प्रतिरिया के अंतर्गत अच्छे शिक्षकों  का बड़े पैमाने पर अभाव होता जा रहा है और इस अभाव के कारण शिक्षण प्रभावित हो रहा है जिससे शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है. ख़ास कर भाषा को लेकर.

 एक वैश्विक अध्ययन से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक़ देश में जितने छात्र अभी हैं , खास कर सेकेंडरी कक्षाओं में उतने पहले कभी नहीं रहे पर उन्हें पढ़ाया नहीं जा पा रहा है. जो कमजोर वर्गों के छात्र  हैं उनकी हालत तो और खराब है. तेलंगना और आन्ध्र प्रेअदेश जैसे अपेक्षाकृत एडवांस राज्यों की भी स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है.

    ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा चार देशों में किये गए इस अध्ययन के अनुसार भारत में दो ही बातें  सकारात्मक हैं पहली कि क्लास 9 में छात्रों की सामान्य उम्र 15 पायी गयी है यानी ये बच्चे पहली क्लास में 5 वर्ष की उम्र में आ चुके थे. इधर अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को पढ़ाने का लोभ और शिक्षण में अच्छे शिक्षकों का अभाव के कारन बच्चे ना हिंदी सीख पाते हैं और ना अंग्रेजी. 2009  ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के आकलन कार्यक्रम ( प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल  स्टूडेंट असेसमेंट , पीसा) में अंग्रेजी , हिंदी और बोलचाल की भाषा के पाठ में औसत से भी खराब प्रदर्शन किया था. दूसरे देशों ने हमारे छात्रों से बहुत अच्छा किया था. इसका मुख्य कारण हमारे देश में शिक्षा की गुणवत्ता का अभाव. हमारे छात्रों की हालत यह है की ना वे अच्छी  अंग्रेजी जानते हैं ना अच्छी  हिंदी. औसत छात्र दोनों में से किसी भाषा में पांच सुसंगत पंक्तियाँ नहीं लिख सकते. अंग्रेजी के जानकार होने का दवा करने वाले हिंदी के शब्दों का सही उच्चारण नहीं कर पाते. मसलन दत्त को दत्ता , बुद्ध को बुद्धा , अशोक को अशोका कहना आम बात है. अभी हाल में एक आयोजन में एक बड़े लेखक और विद्वान को “ शिव को शिवा ”  कहते सुना गया , जबकि वे महाशय पौराणिक विषयों पर लिख कर करोड़ों कमाते हैं. अब उन्हें कैसे बताया जय कि शिव और शिवा के अर्थ पुराण में भिन्न हैं.

  इसका मुख्य कारण है कि हिंदी माध्यम के स्कूलों में सही शिक्षण का अभाव . अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के प्रति मोह इसी गुणवत्ता का लोभ है. इस लोभ के कारन समाज में मनोवैज्ञानिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है. अगर कोई हिंदी में या अपनी क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा ग्रहण करता है तो उसे निम्न स्तर का माना जाता है. इससे सामाजिक प्रतिष्ठा के जुड़ जाने के कारण अब लोगों के सामने कोई चारा नहीं रह जाता कि वे बच्चों को अनिवार्य रूप से अंग्रेजी की शिक्षा दें. लेकिन वास्तविकता तो यह है कि अधिकाँश अंग्रेजी स्कूलों में भी वही हाल है. अंग्रेजी पढ़े ऐसे नौजवान मिलेंगे जो अखबारों की ख़बरों को भी ठीक से नहीं समझ पाते. इस हालत में उन्हें अंग्रेजी हिंदी और अपनी भाषा की खिचड़ी के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता. अंग्रेजी की गम्भीर पुस्तकों को पढ़ने की बात छोड़ दें तो भी वे अंग्रेजी से जूझने में अपनी सारी शक्ति खर्च करते हैं और मजबूरन अपनी भाषा या हिंदी के ज्ञान के प्रति लापरवाही बरतते हैं.और इस प्रक्रिया में उन्हेंभाषा  की भ्रमित खिचड़ी के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता. इसी के साथ उनकी विचार क्षमता पर भी गंभीरप्रभाव पड़ता है क्योंकि भाषा शब्दों को समझने,विचारों को तौलने  और संवाद के प्रयोग का प्राथमिक साधन इसका मतलब यह भी है कि हमारी राजनीति में उन लोगों का प्रभुत्व हो चुका है जो गुणवत्तापरक शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाये हैं.इसीलिए शिक्षा स्तरहीन होटी जा रही है.