पाकिस्तान के लाहौर में मंगलवार की सुबह श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हथियारों से लैस 12 आतंकियों ने हमला कर दिया। इस हमले में 6 खिलाड़ी घायल हुए और इतने ही पुलिस वाले खेत रहे। हमलावर गोलियां चलाते हुए निकल भागे। खिलाड़ी खतरे से बाहर बताये जाते हैं। उन्हें लाहौर से दूर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया है। क्रिकेट पर यह पहला आतंकवादी हमला है और वह भी उस सूरत में जब पाकिस्तान ने खिलाडि़यों की हिफाजत का पक्का आश्वासन दिया था। इस आलेख के लिखे जाने तक किसी भी आतंकी गुट ने हमले की जिम्मेदारी नहीं स्वीकारी है, लेकिन लाहौर के पुलिस कमिश्नर ने संदेह जाहिर किया है कि इस हमले में भारत का हाथ हो सकता है। कमिश्नर ने यह स्थापित करने की कोशिश की है कि ये हमले मुम्बई हमलों के समान ही थे।क्योंकि हमलावरों ने वैसे ही थैले पीठ पर लटका रखे थे और एके 47 रायफलों से धुआंधार फायरिंग कर रहे थे। उनके हमले के ढंग से ऐसा लग रहा था कि वे काफी टेंरड थे, लेकिन पुलिस कमिश्नर तोहमत लगाने के चक्कर में दो बातें भूल गये कि अपराध में सबसे महत्वपूर्ण स्थान और समय होता है क्योंकि उसी के समन्वय से बनता है 'एलिमेंट ऑफ सरप्राइज।' अपराध की कामयाबी इसी पर निर्भर करती है। लाहौर हमले में लक्ष्य की निशानदेही से लेकर एक्शन तक कहीं भी 'एलिमेंट ऑफ सरप्राइज' नहीं दिखता बल्कि सारा कुछ एक सधी हुई तैयारी की तरह है। हमलावरों के निशाने पर कोई क्रिकेटर नहीं आता है। वे बस पर गोलियां चलाते हैं। भरा हुआ स्टेडियम और पूरी सुरक्षा व्यवस्था को भेद कर 12 हथियार बंद नौजवान रिक्शे पर आते हैं , सुरक्षा व्यूह को भेद कर गोलियां चलाते हैं और फरार हो जाते हैं। निशाने पर कोई नहीं था। जो लोग घायल हुए हैं उन्हें गोलियां नहीं लगी हैं बल्कि छर्रे लगे हैं या किरचें लगी हैं। जो मरे हैं वे क्रिकेट से जुड़े नहीं थे। खैर अभी निश्चित तौर पर कुछ भी कह पाना मुमकिन नहीं है, क्योंकि घटना के बारे में बहुत कम विवरण मिल रहे हैं और जो मिल रहे हैं वे भी कुछ ऐसे ही हैं जैसे लाहौर के पुलिस कमिश्नर ने दिये। यह अभी मालूम नहीं हो सका है कि आश्वासन के बावजूद खिलाडि़यों को कितनी सुरक्षा दी गयी थी और सड़क पर कितना 'बफर जोन' था। हां एक बात साफ दिखती है कि यह हमला श्रीलंका पर नहीं बल्कि इसका निशाना भारत था, क्योंकि घायल 6 खिलाडि़यों में से 4 आई पी एल में खेलने वाले थे। वैसे यह हमला एक 'हाई प्रोफाइल' समूह पर किया गया था और आई पी एल में नहीं खेलने के लिए चेतावनी देने का उद्देश्य कितना था अथवा नहीं यह विश्लेषण का विषय है।खेल पर सियासत अच्छी बात नहीं है। हां एक बात तो तय है कि यह हमला पाकिस्तान के खिलाफ था। समन्वित दृष्टि से देखें तो एक तथ्य और उभर कर आता है कि यह हमला पाकिस्तानी सुरक्षा में बिखराव का लक्षण है। राष्ट्रपति जरदारी के फैसलों के खिलाफ दंगे हो रहे हैं और उनका भी केन्द्र लाहौर ही है। जरदारी के बारे में एक आम कहावत है कि 'वे लाभ के लिये कुछ भी कर सकते हैं।' जरदारी की गतिविधियों से तो ऐसा लगता है कि उन्हें न सियासत का ज्ञान है और ना पाकिस्तान के संविधान का और न उन्हें यह मालूम है कि 17 करोड़ की आबादी वाले उस देश में कैसे शांति होगी। उन्हें लोकतंत्र का अर्थ मालूम नहीं है पर गुमान जरूर है कि वे इसके पहरुआ हैं। जरदारी सारे अधिकार अपने हाथों में रखना चाहते हैं यह ठीक वैसी ही कोशिश है जैसी जनरल मुशर्रफ ने की थी। शरीफ को चुनाव लड़ने से रोकना और लाहौर में क्रिकेटरों पर फायरिंग अपने आप में एक समीकरण है। यह पाकिस्तानी फौज और आई एस आई में असंतोष का संकेत भी है। पाकिस्तानी फौज में अधिकांश लोग पंजाब से हैं यहां तक कि जनरल कियानी भी वहीं के हैं। बेशक नवाज शरीफ को फौज नापसंद करती है पर पंजाबी होने के नाते उनसे एक सहानुभूति तो है ही। दूसरे कि कट्टरपंथी गुटों में पंजाबियों का वर्चस्व है। जरदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी थोड़ी वामपंथी विचारधारा की है और सिंधी के रूप में उसकी शिनाख्त है। हो सकता है कि क्रिकेट टीम पर नाप तौल कर हमला पाकिस्तान में अराजक स्थिति की शुरुआत का बिगुल हो और सैनिकों द्वारा तख्ता पलट की ओर पहला कदम।
Wednesday, March 4, 2009
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