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Friday, April 30, 2010

पाकिस्तानी खुफियागीरी पर ध्यान देने की जरूरत

भारतीय विदेश सेवा की अफसर माधुरी गुप्ता को पाकिस्तान के लिये जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। माधुरी गुप्ता इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग में प्रेस एवं सूचना प्रभाग में द्वितीय सचिव थीं। उन्हें दक्षेस सम्मेलन पर परामर्श के बहाने दिल्ली बुलाया गया और हवाई अड्डे पर ही दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया। खुफिया ब्यूरो (आई बी), रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग (रॉ) और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीम की पूछताछ के बाद प्राप्त प्राथमिक जानकारी के आधार पर उन्हें अदालत में पेश कर हिरासत में ले लिया गया। लगता है मीडिया को यहीं से बात पता लगी और उसके बाद चल पड़ी तरह- तरह की कहानियां। वे सब संभवत: गृह मंत्रालय से लीक की गयी सूचनाओं पर आधारित थीं। पिछले कुछ महीनों से शंका हो रही थी कि प्रधानमंत्री पाकिस्तान से समन्वित वार्ता शुरू करना चाहते थे पर विदेश मंत्रालय की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। इस कांड के बाद तो विदेश मंत्रालय के विचारों को और बल मिल गया कि जब तक पाकिस्तान दुश्मनी ना छोड़े तब तक उससे वार्ता व्यर्थ है। माधुरी गुप्ता का मामला बेहद लज्जाजनक है तब भी शायद प्रधानमंत्री इस आधार पर वार्ता का अपना फैसला बदलें, क्योंकि प्रधानमंत्री के फैसले का आधार इस प्रश्न से जुड़ा है कि भारत के खिलाफ आतंकवाद पाकिस्तानी धरती से जरूर है लेकिन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों की इसमें भूमिका नहीं है और ना ये एजेंसियां भारत में अपने एजेंट बना कर यह सब करवा रहीं हैं। वे 1947 से यह सब कर रहे हैं और हम लोग भी। खुफिया एजेंसियों का काम ही भेद जानना है और इस मुखबिरी के लिये एजेंट तैयार किये ही जाते हैं। भारतीय उच्चायोग में जासूसों की घुसपैठ की यह दूसरी घटना है और बेशक चिंता की बात है पर हमें इस पर ज्यादा छाती पीटने की जरूरत नहीं है। ऐसा कर हम प्रतिगुप्तचरी की अपनी अक्षमता पर ही पर्दा डालेंगे। यहां जरूरत है यह जानने की कि कैसे उसे गुप्तचरों ने अपने में शामिल किया, कैसे उससे काम लेना शुरू किया और क्यों उसने ऐसा किया?
इसके विश्लेषण के लिये तीन प्रश्नों पर विचार करना जरूरी है। पहला कि हमारी प्रतिगुप्तचरी में कमजोरियां कहां हैं जिससे पाकिस्तानी जासूस घुस पाये, दूसरा कि माधुरी ने कितनी हानि पहुंचाई है और तीसरा कि पाकिस्तानी खुफिया संगठनों का इन दिनों काम करने का तरीका क्या है?
माधुरी गुप्ता के पाकिस्तानी एजेंसियों से सम्बंध के इतिहास के बारे में जानकारी नहीं के बराबर है और ना ही यह पूरी तरह मालूम है कि उसने कितनी हानि पहुंचाई है। मीडिया की गरमा गरम खबरों के बीच एक छोटी सी खबर जरूर दिखी कि माधुरी गुप्ता को आई एस आई ने नहीं पाकिस्तानी आई बी ने पटाया था। अगर यह सच है तो इसका मतलब है कि पाकिस्तानी इंटेलिजेंस ब्यूरो (आई बी) को अभी भी भारत और अफगानिस्तान में भारत की भूमिका के बारे में सूचनाएं एकत्र करने की जिम्मेदारी सौंपी हुई है। कुछ दिन पहले तक खबर थी कि आई बी ऐसे मामलों में अब हाथ नहीं डाल रही है और उसका पुलिस चरित्र खत्म हो गया है। हालांकि बेनजीर भुट्टो ने अपने शासन काल में आई बी का पुलिस चरित्र फिर से तैयार करने का प्रयास किया पर आई एस आई ने उसे व्यर्थ कर दिया। अगर माधुरी गुप्ता के मामले में यह खबर सच है तो हमें आई बी पर ध्यान देने की जरूरत है न कि आई एस आई पर। हमारे जासूस आई एस आई को टोहते रहे और मामला हाथ से निकल गया। हमारी प्रति गुप्तचरी की सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम विकल्पों के दरवाजे खुला छोड़ देते हैं।
यही नहीं हमारी व्यवस्था में परिपक्वता की भारी कमी है। यह मामला आखिर क्यों उछाला जा रहा है। माधुरी के बारे में मिली जानकारी के अनुसार वह इस्लामाबाद में सेकेंड सेक्रेटरी थी और उसका काम गोपनीय फाइलों से नहीं पड़ता था। वह पाकिस्तानी मीडिया को संभालती थी। वह इस्लामाबाद उच्चायोग में उर्दू अनुवादक थी और वहां के स्थानीय अखबारों की कटिंग काटना उसका काम था। उसकी पहुंच महत्वपूर्ण फाइलों तक थी ही नहीं। लेकिन उसके साथ रॉ के कथित स्टेशन हेड का नाम भी उछाला जा रहा है। किसी जासूस का भेद खुलना उसके लिये मौत के समान होता है, क्योंकि अब वह दुनिया के किसी देश में तैनात नहीं हो सकता और दूसरे उसकी जान के भी हजारों दुश्मन हो जायेंगे। हमारी मीडिया क्यों इतनी गैर जिम्मेदार है। यह बात समझ से परे है।

1 comments:

HBMedia said...

आपका जनचेतना का प्रयास मुझे बहुत ही अच्छा लगा..आगे भी यु ही लिखते रहे ..धन्यवाद बहुत खूब ! आप जैसे लोग ही इन्टरनेट के जरिये कुछ बदलाव ला सकते है .