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Monday, January 30, 2012

बंगाल में ममता और मारवाडिय़ों ठनी

- हरिराम पाण्डेय
पश्चिम बंगाल में इन दिनों प्रवासी राजस्थानियों , जिन्हें यहां मारवाड़ी कहा जाता है, और सरकार में तनाव पैदा हो गया है। आमरी अस्पताल कांड में गिरफ्तार निदेशकों के मामले में फिकी के बयान पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया से राज्य मारवाड़ी काफी नाराज से प्रतीत हो रहे हैं अस्पताल में आग की दुखद घटना के बाद अस्पताल के केवल मारवाड़ी निदेशकों को ही गिरफ्तार किया गया जबकि बंगाली निदेशकों को कार्रवाई के दायरे से बाहर रखा गया। हालांकि, एएमआरआई घटना से संबंधित बिल्कुल अव्यवस्थित तरीके से चयनित गिरफ्तारियां निश्चित रूप से निंदनीय हैं, लेकिन बंगाल में व्यापार और राजनीति के रिश्तों की बदलती प्रकृति को जानना रोचक है।
याद कीजिए 60 का दशक जब नक्सलियों के पूंजीवाद विरोधी आंदोलन के दौरान कोलकाता (तब कलकत्ता) में किसी भी मारवाड़ी व्यापारी पर कोई हमला नहीं हुआ। 80 के दशक तक खेतान, गोयनका, खेमका, चितलांगिया, कनोडिय़ा और कोठारी, लोढ़ा, रुइया और तोदी बंधुओं ने तेजी से अपना व्यापार साम्राज्य खड़ा करना शुरू कर दिया। इनमें से ज्यादातर औद्योगिक साम्राज्य उन ब्रिटिश कंपनियों के अधिग्रहणों से स्थापित हुए, जिनके प्रवतज़्क विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम लागू होने के बाद भारत छोड़ गए थे। अधिनियम लागू होने के बाद उनके लिए भारतीय सहायक इकाइयों में हिस्सेदारी घटाना जरूरी था। गौर करने वाली बात यह रही कि लगातार हड़ताल और तालाबंदी की वजह से राज्य में उस दौरान काम का नुकसान होने वाले दिनों की संख्या बढ़ती जा रही थी, लेकिन मारवाड़ी समुदाय को कोई परेशानी नहीं हुई और उनकी कमाई क्षमता भी नहीं घटी। मसलन, 70 के दशक के अंत तक जूट उद्योग बड़े पैमाने पर मारवाडिय़ों के हाथों में चला गया। मजदूरी को लेकर मिलों के कर्मचारी काम बंद करते रहे और मिल मालिक अक्सर तालाबंदी की घोषणा करते रहे, नतीजतन जूट किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे दशकों पुराने मामलों के प्रति वैचारिक रूप से सवहारा वर्ग की खैरख्वाह पार्टी का ध्यान जाना चाहिए था, लेकिन ऐसे दलों के प्रतिनिधियों ने इन मसलों की कोई परवाह नहीं की।
इसके बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति में बनर्जी के उभार से वर्षों पुराना समीकरण बड़े पैमाने पर बिगडऩे लगा क्योंकि उद्योगपतियों ने वाम मोर्चे पर भरोसा किया था, वे भी अब बंगाल से कदम पीछे खींच रहे हैं।
जबसे ममता बनर्जी ने सत्ता संभाली तबसे उन्होंने उद्योग विरोधी अपनी छवि को खत्म करने के लिये कई उपक्रम किये। जिसमें बंगाल लीड्स ताजा उदाहरण है। बंगाल लीड्स के परिणाम के बारे में प्राप्त जानकारी के मुताबिक उद्योगपतियों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखायी है। यहां यह बता देना जरूरी है कि राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा को यह पद इसलिये मिला कि वे फिकी के सेक्रेटरी जनरल रह चुके हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि फिकी , जिसमें अभी भी मारवाड़ी समुदाय के उद्योगपतियों का बाहुल्य है। मित्रा बखूबी जानते हैं कि यह भारतीय उद्योगपतियों का स्वदेशी मंच हुआ करता था और उसे पक्का राज मल्टीनेशनल्स के संगठन एसोचेम के मुकाबले जी डी बिड़ला ने आरंभ किया था। परंपरागत तौर पर फिकी के अधिकांश सदस्यों के व्यवसायिक सम्पर्क कोलकाता से थे और हैं। ये लंबा सम्पर्क प्रमाणित करता है कि बंगाल में बंगाली मारवाड़ी विभाजन नहीं था। यहां तक कि चुनाव के पहले वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा था कि - ममता जी मारवाड़ी समुदाय की जरूरतों, भावनाओं और अपेक्षाओं को अच्छी तरह समझती हैं और मैं समझता हूं कि राज्य में पूंजी का निवेश कैसे होगा-इसी कारण से उम्मीद थी कि यहां इस तरह के सामुदायिक विभेद नहीं होगा। यहां तक अमित मित्रा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान साफ कहा था कि एक अर्थशास्त्री के तौर मैं विगत कई वर्षों से देख रहा हूं कि यहां से पूंजी का पलायन हो रहा है और राज्य का आर्थिक विकास हतोत्साहित हो रहा है। अगर हम बहुत जल्दी इस प्रवृत्ति को उलटने का प्रयास नहीं करते हैं तो काफी विलम्ब हो जायेगा और बात बिगड़ जायेगी। लेकिन हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। हालांकि मारवाड़ी समुदाय के प्रति नकारात्मक रुख रखने के लिये मशहूर पूर्ववर्ती माक्र्सवादी सरकार के लेजेंड मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने अपने सम्बंध सुधार रखे थे। उनके बारे में कहा जाता था कि सी पी एम के एम का अर्थ मारवाड़ी है।
परंतु आमरी कांड के बाद ममता जी की टिप्पणियों से पूरा समुदाय क्षेभ में है। यहां तक कि शहर के मशहूर औद्योगिक घराने के मुखिया का कहना है कि वे यहां अब और निवेश के मूड में नहीं हैं। जबकि वे महानुभाव पहले ममता जी के हर आयोजन में दिखते थे। बंगाल लीड्स सम्मेलन में भी उद्योगपति बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं दिखे। कई बड़े उद्योगपति तो दिखे ही नहीं। कई बड़े परिवार जो अस्पताहल के धंधे में थे उनहोंने कारोबार समेटना शुरू कर दिया है और कई अस्पताल बंद हो रहे हैं। शहर के एक मशहूर अस्पताल श्री विशुद्धानंद अस्पताल के ्रदरवाजे बंद होने के बाद सरकार के आश्वासन के बाद खुला है। लेकिन कई बड़े मारवाड़ी परिवार जिन्होंने आजादी के बाद यहां की अर्थ व्यवस्था को सुधारने मे बहुत बड़ा योगदान किया है, वे अब पूंजी समेटने के चक्कर में हैं और अनमें से कई ने तो खुल कर कहना भी आरंभ कर दिया है कि वे अब यहां से कारोबार समेट कर गुजरात या राजस्थान में पूंजी लगायेंगे। यहां तक कि मारूति के पूर्व प्रबंध निदेशक जगदीश खट्टïर का कहना है कि आमरी के निदेशकों के खिलाफ जो भी कार्रवाई की जा रही है वह कानून के अनुरूप होनी चाहिये वरना इससे पूंजी निवेश प्रभावित होगा।
वतज़्मान माहौल में मारवाडिय़ों के खिलाफ सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है। ज्यादातर मारवाडिय़ों ने कारोबार के विस्तार की योजनाएं बनाई थीं, लेकिन उनके ताजा निवेश पर विराम लग गया है। उनमें से कुछ तो कंपनी बोर्ड छोडऩे पर भी विचार कर रहे हैं, जहां वे स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका में हैं।
ममता बनर्जी मैनिकियन (एक विशेष और प्राचीन पंथ जहां अच्छे और बुरे की सतत लड़ाई चलती है) ब्रांड की राजनीति करती हैं, जिसका मतलब है कि वामपंथ के प्रति उनका निष्ठुर रवैया हमेशा बरकरार रहेगा। लिहाजा वाम
मोर्चे से जुड़ाव का खमियाजा मारवाड़ी समुदाय को भी झेलना होगा। एएमआरआई त्रासदी से भी यही संदेश मिला है और यह देखना है कि कौन सा पक्ष इससे क्या सबक लेता है। - लेखक वरिष्ठï पत्रकार हैं

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