हरिराम पाण्डेय ( 23.3.2012)
समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी के नेताओं - कार्यकत्र्ताओं के लिये निर्देश जारी किया है कि वे आम जनता के बीच अच्छा आचरण प्रस्तुत करें। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी कहा कि वे अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं की गुंडागर्दी बिल्कुल नहीं बर्दाश्त करेंगे। जातिगत और सांप्रदायिक राजनीति का गढ़ होने की वजह से देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले इस महत्वपूर्ण प्रांत में काफी समय से वस्तुत: सरकार नाम की कोई चीज थी ही नहीं। चुनाव के दौरान उन्होंने वादा किया कि उनकी सरकार आयी तो विकास और उन्नति की बातें होंगी। बदले की राजनीति नहीं होगी, आपराधिक तत्वों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और उनसे सख्ती से निपटा जाएगा। जनता ने उनकी बातों पर एतबार कर लिया। चुनाव के दौरान डी पी यादव जैसे मंत्री को टिकट नहीं देकर उन्होंने अपने वायदों पर चलने की उम्मीद भी जगायी थी परंतु शपथ ग्रहण के बाद से जो कुछ भी हो रहा है वह बहुत खतरनाक संकेत है। अखिलेश को निर्णायक बहुमत मिलने के कुछ दिनों के भीतर ही दावों और वादों की हकीकत सामने आने लगी। समाजवादी पार्टी के जीतते ही उसके समर्थक गुंडागर्दी पर उतर आए। कुछ जगहों से रिपोर्टें आयीं कि विजय जुलूस के दौरान समर्थक हथियार लहराते देखे गए। यह एक तरह से चेतावनी थी कि अब हम से मत टकराना। बात यहीं नहीं रुकी। अखिलेश ने समझौता करने की पारंपरिक राजनीति के सामने हथियार डाल दिए और अपनी कैबिनेट में 'कुंडा का गुंडाÓ के नाम से मशहूर बाहुबली कुंवर रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को शामिल कर लिया।
बात यहीं खत्म हो जाती, तो भी संतोष होता। इससे भी बुरा होना था। मंत्रियों में जब विभागों का बंटवारा हुआ तो राजा भैया को जेल मंत्री बनाया गया। अखिलेश और उनके विचारों के प्रबल समर्थकों के लिए भी यह किसी झटके से कम नहीं था।
राजा भैया का आपराधिक इतिहास रहा है। वह अब भंग हो चुके पोटा कानून के तहत जेल में रहे हैं और उनके घर पर रेड मारने वाले पुलिस ऑफिसर की हत्या के आरोपी हैं। संदेहास्पद परिस्थिति में पुलिस अधिकारी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी। सीबीआई अभी भी इस मामले की जांच कर रही है। इसके अलावा भी उनके खिलाफ मुकदमों की लंबी लिस्ट है। इस विधानसभा चुनाव के दौरान राजा भैया ने चुनाव आयोग में जो हलफनामा जमा किया है, उसके मुताबिक उनके खिलाफ लंबित आठ मुकदमों में हत्या की कोशिश, अपहरण और डकैती के मामले भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश गैंगेस्टर ऐक्ट के तहत भी उनके खिलाफ मामला चल रहा है।
अखिलेश लंबे-चौड़े वादे के साथ सत्ता में आये हैं और शासन (सुशासन) के लिए तरस रही सूबे की जनता उनकी ओर उम्मीद भरी निगाह से देख रही है। जैसा कि पड़ोसी राज्य बिहार ने दिखाया है कि वोटर भी अंत में केस और संप्रदाय की राजनीति के बजाय उन्नति और विकास को तरजीह देते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग तर्क दें कि उत्तर प्रदेश जैसे सूबे में जहां प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ आरोप तय किए जाने में जाति और दूसरी बातों का ध्यान रखा जाता है, राजा भैया एक पीडि़त हैं और उनके खिलाफ ज्यादातर मामले झूठे हैं। राजा भैया को कैबिनेट में शामिल किए जाने पर पूछे गए सवाल के जवाब में अखिलेश ने भी यही तर्क दिया। पर, क्या अखिलेश ने यह नहीं सुना है कि सार्वजनिक जीवन जीने वाले और उनके सहयोगियों को शंका से परे होना चाहिए। एक तो दागी को मंत्री बनाया, उस पर से उसे जेलों का इंचार्ज बना दिया। जहां तक लोगों के नजरिए की बात है, तो निश्चित रूप से यह उन्हें पचता नहीं दिख रहा है। और, नजरियों का प्रबंधन बेहद जरूरी है। यह एक चोर को पुलिस का दर्जा देने जैसा है। यानी आशंका है कि फिर वही सब होगा जो अबतक यूपी में होता आया है। महाकवि धूमिल से क्षमा याचना के साथ उनकी पंक्तियों में मामूली संशोधनों के बाद कह सकता हूं कि 'इतना बेशरम हूं कि उत्तर प्रदेश हूॅं....।Ó
Sunday, March 25, 2012
नहीं सुधरेगा उत्तर प्रदेश
Posted by pandeyhariram at 4:05 AM
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