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Saturday, May 5, 2012

गुदगुदी या बेहयाई

हरिराम पाण्डेय
फिल्म अभिनेत्री रेखा और जया बच्चन का नाम राज्य सभा के लिये अनुमोदित किया है सरकार ने। इसे लेकर मीडिया में बड़ी चर्चा है। रसदार कहानियां गढ़ी जा रहीं हैं। वे कहां बैठेंगीं, एक साथ बैठेंगी या नहीं, बैठेंगी तो बतियायेंगी या नहीं वगैरह-वगैरह।
इस सिलसिले में एक प्रसंग बताना पड़ रहा है। वह जमाना था जब ना 'पिपली लाइवÓ थी और ना बटुकनाथ एपीसोड। जमाना था जब सन्मार्ग के सम्पादक यशस्वी सम्पादक रामअवतार जी गुप्त हुआ करते थे। उन दिनों सन्मार्ग में एक 'बोल्डÓ तस्वीर छप गयी। अब पूरे स्टाफ की खिंचाई हो गयी। उन्होंने अपने डिप्टी को आदेश दिया कि दुबारा ऐसा ना हो। उस दिन इसका कारण समझ में नहीं आया था। बस इतना ही समझा गया था कि 'नैतिकता के प्रति बेहद निष्ठïावान आदमी हैं इसलिये यह आदेश दिया।Ó पर कुछ दिनों के बाद की घटना है जब प्रोफेसर मटुकनाथ की प्रेमिका जूली को उनकी पत्नी सरेआम पीटती है। टेलीविजऩ चैनल वाले किसी प्रायोजित कार्यक्रम की तरह इसका लाइव प्रसारण करते हैं। फिर बाद में लूप में डालकर बार-बार दिखाते हैं। आश्चर्य न पिटायी में है न टीवी चैनलों की बेहयाई में। आश्चर्य उस गुदगुदी में है, जो मन के भीतर होती है। आश्चर्य है कि यह सब देखकर मन नहीं पसीजता, दुख नहीं उपजता। चरमसुख जैसा कुछ मिलता सा लगता है। ऐसा ही सुख तब भी मिलता था जब अखबारों में और बाद में पत्रिकाओं में तस्वीरें देखा करते थे। बार-बार देखा करते थे।
याद है आपको? घर की बड़ी बहू सोनिया गांधी के दिवंगत देवर की पत्नी और घर की छोटी बहू मेनका गांधी को घर से निकाल दिया गया था। सामान सड़क पर पड़ा था। एक छोटा बच्चा सामान के साथ खड़ा था। याद है आपको मन कैसा मुदित होता था ये तस्वीर देखकर? मन बावरा है। तरह-तरह की कल्पनाएं करता है। अब तक वो तस्वीर मन में है। अब भी वह नजर लगाए रखता है कि संसद के भीतर दोनों बहुओं के बीच कभी नजरें मिलती हैं या नहीं। खबरों पर नजर रहती है, छोटी बहू के घर बहू आ रही है तो बड़ी बहू की प्रतिक्रिया कैसी है।
आश्चर्य है कि बेगानी शादी में अब्दुल्ला क्यों दीवाना हो जाता है। अरे शादी में हो जाए तो हो जाए, शादी टूटने-बिखरने लगती है तो भी चटखारे लेने में मजा आता है।
किसी ने फुसफुसाकर कहा था, देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने की बहू एक पूर्व मिस इंडिया से नाराज है। होती है तो हो, हमारी बला से। लेकिन आश्चर्य है कि मन में गुदगुदी हुई। दिल में एक लहर उठी। वह फुसफुसाहट एक कान से सुनी और फिर तुरंत दूसरा कान भी लगा दिया। परमानंद इसी को कहते होंगे। अब हर कोई अखबार के कोने के कॉलम में पढ़ रहा था कि मिसेस शाहरुख खान यानी गौरी इन दिनों प्रियंका चोपड़ा नाम की एक फिल्म अभिनेत्री से नाराज हैं। सुना है कि उन्होंने कई और अभिनेता पत्नियों को अपनी नाराजगी में साझेदार बना लिया है। है तो बुरा। लेकिन क्या करें कि मन मंद-मंद मुस्काता है। पुराने खाज को खुजलाने जैसा सुख मिलता है। सौतिया डाह की खबर जैसा सुख परनिंदा में भी नहीं। अब फिर बात आती है संसद में। जया बच्चन के घर के सामने वाले आंगन में बैठा बोफोर्स नाम का भूत 25 साल बाद ले- देकर टला। राहत की सांस को दो दिन भी नहीं बीते थे कि अपने पत्रकार भाई-बहन लोग उनके पिछले आंगन की तस्वीरें लेने लगे। पूछा तो कहा कि पिछले दरवाजे से एक और भूत घुस आया है। रेखा नाम का। रेखा जी, कुछ ही दिनों में माननीय सांसद होंगी। बस शपथ लेने की देर है। लेकिन लोग क्या-क्या चुटकुले सुना रहे हैं। एक आदरणीय मित्र ने लिखा, जो अमिताभ नहीं कर पाए वो सरकार ने कर दिया, जया और रेखा अब एक ही हाउस में हैं। बाद में पाया कि मित्र की कल्पनाशीलता फेसबुक नाम के जंजाल में फैल गयी है। हर कोई ऐसा ही कुछ लिख रहा है और साथ में एक इस्माइली चिपका रहा है।
गुदगुदी असर दिखा रही है। किसी ने कहा, 'जिसने अमिताभ को बोफोर्स में झूठा फंसाया था, उन्हीं लोगों की करतूत है कि अब बोफोर्स से छूटे तो राज्यसभा में फंसा दिया।Ó
लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कि किस दिन दोनों देवियां आमने-सामने होंगीं। एक कल्पनाशील पत्रकार मित्र ने सलाह दी, 'राज्यसभा के सिटिंग अरेंजमेंट का ग्राफिक बनवाकर उसमें दिखाओ कि जया कहां बैठेंगीं और रेखा कहां बैठेंगीं। इसे वेबसाइट पर लगवाओ। देखो कैसे हिट होता है।Ó कल्पना के घोड़े भाग रहे हैं। लोग आंखे मूंदे मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं। इस महंगाई के जमाने में लोगों को मुफ्त में सुख मिल रहा है। आश्चर्य है कि कोई दुखी नहीं है। आपको अगर दुख है, तो अपना इलाज करवाइए। ये मटुकनाथ उर्फ चौराहे पर प्रेम का गलीज जमाना है। हमारी मीडिया के पास यही सब सुनाने के लिये है और हमारा यही मूल्यबोध है। हो सकता मेरे इस विरोध का हमारे पाठक विरोध करें पर यह तो तय है कि आज पीढ़ी मूल्यहीनता के गहरे गर्त में गिर चुकी है और खास किस्म की बेहयाई को हम तरक्की का चोला पहना रहे हैं।

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