असम में भड़की हिंसा की चिनगारी मुम्बई न केवल पहुंची है बल्कि उसके शोलों की आग भी महसूस होने लगी है। मानवीय कानून जाति भेद नहीं मानता है, ना किसी नस्ल या क्षेत्र का भेद मानता है और न घुसपैठियों और रहवासियों में फर्क करता है, यहां तक कि अपराधी अथवा दुर्दांत आतंकवादी भी अगर हिरासत में हैं तो उन्हें भी भोजन और औषधि दिये जाने का प्रावधान होता है। अंतरराष्टï्रीय कानून के अंतर्गत हर देश को घुसपैठियों को रोकने का अधिकार है और इसके लिये सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने या फौज को तैनात करने और उसे घुसपैठियों को देखते ही गोली मार देने तक का आदेश देने तक का अधिकार है। अगर कोई घुस आया भी तो उसे कानून के अंतर्गत गिरफ्तार करने और सीमा से बाहर कर देने का अधिकार है। संसद में भाजपा के नेता ने असम के दंगे पर बयान देते हुए कहा कि वह घुसपैठियों और असम के मूल निवासियों के बीच का संघर्ष था। बेशक ऐसा ही था लेकिन क्या इससे हिंसा का औचित्य प्रमाणित हो जाता है। जब तक वे घुसपैठिये हमारे देश में हैं तब तक अंतरराष्टï्रीय मानवीय कानूनों के अंतर्गत उनकी जान की हिफाजत करना , उन्हें भोजन तथा औषधि इत्यादि देना सरकार का दायित्व है। सरकार इससे इंकार नहीं कर सकती है। लेकिन खबरें मिल रहीं हैं कि असम , बंगलादेश और म्यांमार के कई क्षेत्रों में हाल की हिंसा के परिप्रेक्ष्य में मुसलमानों के समूह को घुसपैठिया मानकर सरकारें अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रही हैं। म्यांमार के राखिने प्रांत में अभी हाल में रोहिंगा मुसलमानों और बौद्धों में संघर्ष समाचारों के बीच शिकायतें मिलीं हैं कि रोहिंगाओं को बंगलादेशी घुसपैठिया करार देकर म्यांमार की सरकार और सेना कोई सहायता नहीं दे रही है। पश्चिमी देशों की कुछ सरकारों ने जैसे फ्रांस ने म्यांमार की सरकार से अनुरोध किया है कि वह रोहिंगाओं की दशा पर ध्यान दे। बंगलादेश की सरकार ने भी कथित तौर पर राखिने में मारकाट के बाद वहां से पलायन करने वाले रोहिगाओं को मानवीय सहायता नहीं देने का आदेश दिया है साथ ही 1990 से शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंगाओं को दी जाने वाली सहायता को भी रोक देने का आदेश दिया है। जुलाई के आखिरी हफ्ते तक मिली जानकारी के मुताबिक बंगलादेश सरकार ने रोहिंगा शरणार्थी शिविरों में राहत का काम कर रहे ब्रिटिश और फ्रांसिसी दलों से कहा है कि वे राहत कार्य बंद कर दें क्योंकि इससे और शरणार्थी यहां पहुंचने लगेंगे। अमरीकी सरकार और राष्टï्रसंघ शरणार्थी उच्चायोग ने बंगलादेश सरकार से अनुरोध किया है कि वह राहत स्थगन आदेश वापस ले। बंगलादेश के कोकराझाड़ और बोडो इलाके में हाल के दंगों के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी अपने घरों से पलायन कर राहत शिविरों में आ गयी। अब खबरें मिल रहीं हैं कि सरकार राहत दिये जाने के मामले में भारतीय मुसलमानों और उस पार से आये मुसलमानों में भारी विभेद कर रही है। अगर ये खबरें सच हैं तो इस स्थिति को तत्काल खत्म किया जाना चाहिये।
अंतरराष्टï्रीय कानूनों का पालन करने और मानवीय सहायता कार्यों को करने में भारत का प्रशंसनीय रिकार्ड रहा है। यह सच है कि भारत में बंगलादेशी घुसपैठियों की भारी संख्या है और वे हमारी सुरक्षा के लिए खतरा भी हैं लेकिन जब तक वे यहां हैं तब तक अंतरराष्टï्रीय कानूनों के तहत हिफाजत के हकदार हैं। जब तक ऐसा हो सकता है तब तक बिना भेदभाव के राहत कार्य चलना चाहिये वरना यह गुस्सा उन्हें ठेलकर आतंकियों के खेमे में पहुंचा देगा।
Tuesday, August 14, 2012
मानवीय सहायता रोकें नहीं
Posted by pandeyhariram at 10:57 AM
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