पंजाब के गुरदासपुर में सोमवार को आतंकी हमला हुआ जिसका पंजाब पुलिस ने बड़ी दक्षता और साहस से मुकाबला किया। इसमें पुलिस के सात लोग शहीद हो गये और तीन आतंकी मारे गये। घटनास्थल पर चीन के बने बम पाये गये। वहां बरामद जी पी एस से पता चला कि हमलावर रविवार को ही पाकिस्तान से आये थे। पंजाब में विगत दो दशक में यह पहला हमला है और जम्मू- कश्मीर के बाहर इस तरह के मोर्चे बनाकर पहला फिदायीं हमला है। यहां यह बताना उचित होगा कि यह क्षेत्र जम्मू क्षेत्र के करीब है। इस हमले को लेकर कुछ ज्ञान गुमानी लोगों में दो बातें चल रही हैं। पहली कि यह खालिस्तान की मांग से जुड़ा है और दूसरा यह लाकूब मेमन की फांसी का बदला है। हालांकि इसकी समीक्षा करें तो दोनों जुमले भ्रामक हैं। यह हमला खालिस्तान की मांग से इसलिये जुड़ा नहीं है कि ‘खालिस्तान समर्थक आत्महंता नहीं हैं और इस हमले में जीवन के समाप्त हो जाने तक लड़ते रहने का संकल्प दिखता है। ’ रही बात याकूब मेमन की फांसी के बदले स्वरूप तो यह हमला गुरदासपुर में नहीं होता बल्कि महाराष्ट्र या दिल्ली में होता। यह हमला वहां इसलिये हुआ कि जम्मू- कश्मीर में सीमा पर कड़ी चौकसी होने के कारण फिदायीं आतंकी समूहों को नये मार्ग तलाशने पड़े। उनके पास जीपीएस का पाया जाना इस बात का प्रमाण है कि वे इस क्षेत्र से अनजान थे। आतंकी अनजान क्षेत्रों में अक्सर अपना टार्गेट जी पी एस से ही खोजते हैं। आईबी ने इस महीने के शुरू में आर्मी स्टेशन्स पर हमले की चेतावनी दी थी। जिन स्टेशन्स को लेकर खासतौर पर चेतावनी दी गई थी उनमें 9 कोर (हिमाचल प्रदेश), 26 इन्फेंट्री डिविजन (जम्मू-कश्मीर) और 29 इन्फेंट्री डिविजन (पठानकोट) शामिल हैं। इन तीनों पर हमले की आशंका इसलिए है क्योंकि ये तीनों ही क्रॉस बॉर्डर आतंकवाद से निपटने में माहिर मानी जाती हैं। घारोट से घुसपैठ की आशंका को तो खास तौर पर आईबी अलर्ट में उल्लेख किया गया था। दीना नगर के करीब कठुआ पुलिस स्टेशन पर इसी साल मार्च में हमला हो चुका है लेकिन इसके बाद भी पंजाब के थानों की सुरक्षा कड़ी नहीं की गई।
जहां तक हमले का चरित्र है उसका अध्ययन करने पर पता चलता है कि यह लश्कर-ए तायबा और जैश-ए-मोहम्मद की कार्रवाई हो सकती है। इन संगठनों के आतंकियों ने इस बार हमले की जगह जम्मू से बदल कर पंजाब कर दी थी। भारी हथियारों और पूरे रसद पानी के साथ आए इन आतंकियों का निशाना इस राजमार्ग से होकर गुजरने वाले अमरनाथ यात्री बनने वाले थे। लेकिन कश्मीर के बलताल में बादल फटने के बाद अमरनाथ यात्रा को तात्कालिक रूप से रोक दिया गया था और यह राजमार्ग आस्थावानों की भीड़ से खाली था। इस ईश्वरीय संयोग ने तीर्थयात्रियों की जान तो बचा ली लेकिन इसकी कीमत देश के सात सपूतों को अपनी जान से चुकानी पड़ी। पठानकोट जम्मू हाईवे कोई ऐसा- वैसा राजमार्ग नहीं है। जम्मू- कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने वाली यह इकलौती सड़क है और पाकिस्तान से लगी हमारी सीमा के लगभग समानांतर चलती है। कई जगहों पर सीमा से इसकी दूरी पांच किलोमीटर तक सिमट जाती है। इसलिए पाकिस्तान के आतंकियों के हमले के लिहाज से यह खास संवेदनशील इलाका है। इस साल आतंकियों ने कम से कम तीन बार इस राजमार्ग को निशाना बनाया है जिस पर हमें तत्काल चेतने की जरूरत है। इस राजमार्ग के किनारे सेना के दर्जनों कैंटोनमेंट हैं और अनेक रेलवे स्टेशन इससे जुड़े हैं। ऐसे हमले तड़के उस समय होते हैं जब दुनिया की अलसायी आंखें खुल रही होती हैं और व्यवस्था अमूमन सुस्त रहती है। ऐसी हालत में पाकिस्तान को कोसने से कुछ नहीं होने वाला। अपने बचाव की हर तैयारी हमें खुद रखनी होगी और हर ऐसी कायराना हरकत के मुंहतोड़ जवाब के लिए सतर्क रहना होगा। आतंक पर राजनीति की रोटियां सेंकने वालों पर भी तत्काल लगाम की जरूरत है। पिछले दिनों रूस के उफा शहर में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों में जैसी गर्मजोशी नजर आई थी, उसके लिए नवाज शरीफ का जबर्दस्त विरोध हुआ।
पाकिस्तान के कट्टरपंथी डरे हुए हैं कि कहीं दोनों मुल्कों के रिश्ते सुधरने न लगें। लगता है, यह हमला दोस्ती की किसी भी संभावना को कमजोर करने के लिए ही कराया गया है। खुद पाकिस्तान सरकार भी देश में अपने पांव टिकाए रखने के लिए भारत विरोधी बयानबाजी का सहारा लेती है। अगले महीने दोनों मुल्कों के नेशनल सिक्युरिटी एडवाइजर्स की मीटिंग होने वाली है। मीटिंग में पाकिस्तान 'बलूचिस्तान में भारत की भूमिका' का मुद्दा उठाएगा। एक बात तो तय है कि अभी की स्थितियों में पाकिस्तान पर भरोसा करना बेहद मु्श्किल है। फिर भी बातचीत का रास्ता बंद नहीं होना चाहिये। पाकिस्तान को यह अहसास करा देना जरूरी है कि भारत विरोधी आतंकवाद को पालना व्यर्थ है।
जहां तक हमले का चरित्र है उसका अध्ययन करने पर पता चलता है कि यह लश्कर-ए तायबा और जैश-ए-मोहम्मद की कार्रवाई हो सकती है। इन संगठनों के आतंकियों ने इस बार हमले की जगह जम्मू से बदल कर पंजाब कर दी थी। भारी हथियारों और पूरे रसद पानी के साथ आए इन आतंकियों का निशाना इस राजमार्ग से होकर गुजरने वाले अमरनाथ यात्री बनने वाले थे। लेकिन कश्मीर के बलताल में बादल फटने के बाद अमरनाथ यात्रा को तात्कालिक रूप से रोक दिया गया था और यह राजमार्ग आस्थावानों की भीड़ से खाली था। इस ईश्वरीय संयोग ने तीर्थयात्रियों की जान तो बचा ली लेकिन इसकी कीमत देश के सात सपूतों को अपनी जान से चुकानी पड़ी। पठानकोट जम्मू हाईवे कोई ऐसा- वैसा राजमार्ग नहीं है। जम्मू- कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने वाली यह इकलौती सड़क है और पाकिस्तान से लगी हमारी सीमा के लगभग समानांतर चलती है। कई जगहों पर सीमा से इसकी दूरी पांच किलोमीटर तक सिमट जाती है। इसलिए पाकिस्तान के आतंकियों के हमले के लिहाज से यह खास संवेदनशील इलाका है। इस साल आतंकियों ने कम से कम तीन बार इस राजमार्ग को निशाना बनाया है जिस पर हमें तत्काल चेतने की जरूरत है। इस राजमार्ग के किनारे सेना के दर्जनों कैंटोनमेंट हैं और अनेक रेलवे स्टेशन इससे जुड़े हैं। ऐसे हमले तड़के उस समय होते हैं जब दुनिया की अलसायी आंखें खुल रही होती हैं और व्यवस्था अमूमन सुस्त रहती है। ऐसी हालत में पाकिस्तान को कोसने से कुछ नहीं होने वाला। अपने बचाव की हर तैयारी हमें खुद रखनी होगी और हर ऐसी कायराना हरकत के मुंहतोड़ जवाब के लिए सतर्क रहना होगा। आतंक पर राजनीति की रोटियां सेंकने वालों पर भी तत्काल लगाम की जरूरत है। पिछले दिनों रूस के उफा शहर में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों में जैसी गर्मजोशी नजर आई थी, उसके लिए नवाज शरीफ का जबर्दस्त विरोध हुआ।
पाकिस्तान के कट्टरपंथी डरे हुए हैं कि कहीं दोनों मुल्कों के रिश्ते सुधरने न लगें। लगता है, यह हमला दोस्ती की किसी भी संभावना को कमजोर करने के लिए ही कराया गया है। खुद पाकिस्तान सरकार भी देश में अपने पांव टिकाए रखने के लिए भारत विरोधी बयानबाजी का सहारा लेती है। अगले महीने दोनों मुल्कों के नेशनल सिक्युरिटी एडवाइजर्स की मीटिंग होने वाली है। मीटिंग में पाकिस्तान 'बलूचिस्तान में भारत की भूमिका' का मुद्दा उठाएगा। एक बात तो तय है कि अभी की स्थितियों में पाकिस्तान पर भरोसा करना बेहद मु्श्किल है। फिर भी बातचीत का रास्ता बंद नहीं होना चाहिये। पाकिस्तान को यह अहसास करा देना जरूरी है कि भारत विरोधी आतंकवाद को पालना व्यर्थ है।