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Sunday, August 19, 2012

राजनीतिक दलों के एकजुट होने की जरूरत



-हरि राम पाण्डेय
18 अगस्त 2012
बंगलुरू से उत्तर पूर्व, खासकर, असम के लोगों में भगदड़ मची हुई है। सरकार के लाख आश्वासन के बावजूद वे आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं। असम के कोकराझाड़ में रहवासियों और घुसपैठियों में संघर्ष के बाद कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने उसे मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा का रूप दे दिया और अफवाहों की चिंगारी छोड़ दी जिसने दावानल का रूप ले लिया है। अफवाह बम सुनियोजित अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है। सुरक्षा एजेंसियों को इसकी भनक तो थी, लेकिन जिस तरह इसे अंजाम दिया गया उससे वे भी सकते में हैं। आई बी के वरिष्ठ अधिकारी मान रहे हैं कि असम हिंसा के बाद जिस तरह का अभियान चलाये जा रहा है वह बेहद खतरनाक है। सोशल मीडिया के जरिए चलाए जा रहे इस अभियान का मकसद देश में अल्पसंख्यकों को मास मोबिलाइज करना है। आई बी के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, इस मुहिम के पीछे वे जिहादी ताकतें हैं जो भारत में अस्थिरता फैलाना चाहती हैं। मुंबई में हुई हिंसा इसकी बानगी भर थी। एनआईए सूत्रों के मुताबिक, इस मुहिम के पीछे लश्कर-ए-तायबा और आईएसआई का हाथ है। सूत्रों के मुताबिक, चार सालों में लश्कर ने देश में ऐसे ओवर ग्राउंड ग्रुप खड़े कर दिए हैं जो कभी भी कुछ भी करने को तैयार हैं। आतंकवादी संगठनों के लिए खुलेआम काम करने के लिए लाखों लोग हाजिर हैं। कुछ जनप्रतिनिधि भी इस मुहिम में शामिल हैं। सोशल मीडिया ने इसमें अहम भूमिका निभायी। बंगलुरू और कर्नाटक के अन्य शहरों में फैलने वाली अफवाहें असुरक्षा के एक खास दुष्चक्र की तरफ इशारा करती हैं। कर्नाटक में पिछले कुछ सालों से सामाजिक असहिष्णुता की एक लहर सी चल रही है, जिसे बीजेपी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार का अघोषित समर्थन प्राप्त है। वहां दिनदहाड़े चर्च जलाए गये तो तत्कालीन मुख्यमंत्री बी एस येदयुरप्पा ने इसे धर्मांतरण के विरुद्ध स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताया। ऐसे में अपने खिलाफ कोई अफवाह फैल जाने के बाद सुरक्षा के सरकारी दावों पर यकीन कैसे करे? इसमें कोई शक नहीं कि कुछ निहित स्वार्थी तत्व असम के दंगों को एक बड़े सांप्रदायिक तनाव जैसा रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि कुछ अन्य लोग उनकी इस कोशिश को अपनी सियासत का मोहरा बना लेने का जुगाड़ भी बिठा रहे हैं। बंगलोर से जा रहे लोगों का कहना था कि जरूरत पडऩे पर उनकी मदद के लिए कोई आगे आयेगा, इसका उन्हें कोई भरोसा नहीं है। बहुलतावादी संस्कृति में यकीन रखने वाले एक लोकतांत्रिक समाज के लिए इससे ज्यादा शर्मिंदगी की बात और क्या हो सकती है? इसलिये जरूरी है कि जब तक असम और म्यांमार में साम्प्रदायिक स्थिति नियंत्रित नहीं हो जाती तबतक देश भर की पुलिस और खुफिया एजेंसियों को बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। यही नहीं पुलिस और राजनीतिक नेतृत्व के लिये भी जरूरी है कि वह इस स्थिति पर मुस्लिम नेताओं के निकट सम्पर्क में रहें और उनसे हालात को सुधारने के लिये सहयोग लें। उन्हें बताएं कि असम और अन्य तनावग्रस्त क्षेत्रों में सरकार क्या कदम उठा रही है तथा वे इस स्थिति का राजनीतिक लाभ न उठाएं। अगर कोई मुस्लिम नेता इस सलाह को न माने तो पुलिस को कानून के अनुसार उस पार कार्रवाई जरूर करनी चाहिये और राजनीतिक नेतृत्व को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। यही नहीं सभी राजनीतिक दल एक जुट होकर इस अफवाह को रोकने और समग्र रूप में देश वासियों में कानून के प्रति भरोसा पैदा करने का प्रयास करें।




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