अखबारों में खबर है कि लद्दाख सीमा पर चीनी फौज का जमावड़ा बढ़ रहा है और एक जगह तो उन्होंने भारतीय फौजियों पर गोलियां भी चलायी हैं। यह सब उस समय हो रहा जब हमारा ध्यान केवल लद्दाख पर है। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में उनकी हरकतों ने सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर दिया है।
चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जमात-उल-दावा (जो पहले लश्कर-ए-तय्यबा कहलाता था) को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन घोषित करने से रोक दिया। चीन ने ही संयुक्त राष्ट्र में जैश-ए-मुहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर पर रोक लगाने का विरोध किया। हालांकि वह दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हमले का जिम्मेवार था। यह देखा जा सकता है कि चीन ने पाकिस्तान को सैनिक सहायता, जिसमें युद्धक विमान और पाकिस्तानी नौसेना के लिए फ्रिगेट व थलसेना के लिए टैंक भी शामिल थे, में वृद्धि कर दी है। इसके अलावा चीन पाकिस्तान को उसके परमाणु हथियारों और मिसाइल कार्यक्रमों के आधुनिकीकरण और सुधार में मदद कर रहा है। चीन की ये हरकतें उस समय हो रही हैं जब अरुणाचल प्रदेश की सीमा को लेकर उसका रवैया ज्यादा कठोर हो गया है और नेपाल में चीन समर्थक गुट भारतीय प्रभाव कम करने के लिए पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारियों पर हमले जैसी हरकतें कर रहे हैं। इन सबको लेकर चिंता स्वाभाविक है हालाँकि सरकार चीन की इन हरकतों को ज्यादा महत्व नहीं देने की कोशिश कर रही है।
सीमा के मामले को हल करने के लिए चर्चाएं दिसंबर 1988 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा के बाद से चल रही हैं लेकिन सीमा पर चीन के अतिक्रमण की समस्या बनी हुई है। भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू और कश्मीर में वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण तो किया जा चुका है लेकिन दोनों पक्षों की सहमति के बावजूद भारत और चीन के बीच की सीमा का निर्धारण हो ही नहीं पाया है जिसे दोनों पक्ष स्वीकार करें। तय किया गया था कि सीमा निर्धारण का काम भारत और चीन एक-दूसरे को वास्तविक नियंत्रण रेखा की सही स्थिति बताते हुए नक्शे एक-दूसरे को सौंपते हुए करें और इसमें जो मतभेद हों उन्हें बातचीत से हल करें। मध्यक्षेत्र (उत्तराखंड से लगा हुआ) के नक्शे दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को दे दिए हैं। भारत ने चीन को पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख) की वास्तविक नियंत्रण रेखा के नक्शे 2002 में ही सौंप दिए थे, लेकिन चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर अपने पक्ष के नक्शे देने से इनकार कर दिया। पूर्वी क्षेत्र (सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश) की वास्तविक नियंत्रण रेखा के नक्शे देने से भी उसने इनकार कर दिया। इस गतिरोध के कारण 2003 में तय किया गया कि दोनों देश सीमा समस्या का राजनीतिक हल तलाश करेंगे।
आबादी वाले सीमावर्ती इलाकों में 2005 के बाद की स्थिति में कोई बदलाव नहीं लाने के लिए राजी हो जाने के बावजूद चीन अभी अड़ा है। इस शर्त पर अड़ा हुआ है कि लद्दाख में वह भारतीय दावे को स्वीकार करने के लिए तैयार है बशर्ते उसे पूर्वी सीमा में छूट मिले। छठे दलाई लामा की जन्मस्थली होने के कारण चीन बौद्ध धर्मस्थल तवांग का महत्व समझता है और इस पर अपना कब्जा चाहता है, क्योंकि इससे वह तिब्बत पर अपने शासन के औचित्य का एक कारण बता सकता है। भारत ने तवांग पर चीन के दावे को सीधे-सीधे खारिज कर दिया है। प्रणव मुखर्जी कहते हैं, 'संविधान के अनुसार भारत की किसी भी चुनी हुई सरकार को कोई अधिकार नहीं है कि वह किसी ऐसे क्षेत्र को अपने से अलग कर सके जहां से भारतीय संसद के लिए प्रतिनिधि चुना जाता है।Ó अब तक चीन अरुणाचल प्रदेश को लेकर अपना अडिय़ल रुख अपनाए हुए है। भारत ने यह भी संकेत दिए हैं कि वह चीन के साथ लगी सीमा पर सड़कों के जाल को बढ़ाने जा रहा है और साथ ही, पूर्वी क्षेत्र में वायु सुरक्षा को भी मजबूत कर रहा है।
बावजूद इसके कि मौसम के बदलाव विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) वार्ताओं और विश्व पटल पर एकाधिक ध्रुवों के बनने के मामले में भारत और चीन के हित साझा हैं, भारत की सीमा पर और सीमा पार के कारनामों से चीन भारत के खिलाफ सक्रिय है। इससे दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़ ही रहे हैं, लेकिन हमें इन तनावों को और अधिक नहीं बढऩे देना चाहिए।
Wednesday, September 16, 2009
चीन ललकारता ही रहेगा क्या?
Posted by pandeyhariram at 7:31 AM
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