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Saturday, September 19, 2009

बड़ों ने पैदा किए अवरोध

विश्व व्यापार संगठन ने सन् 1993 में अपनी स्थापना के आठ वर्ष बाद सन 2001 में पश्चिमी एशिया के कतर देश की राजधानी दोहा में दोहा विकास चक्र की शुरुआत की। उस अवसर पर दुनिया के सत्तर देशों ने संगठन के मुख्य निदेशक माइकेल मूर को एक ज्ञापन देकर बताया कि गत चार साल के दौरान पैदा हुई उनकी समस्याओं और शिकायतों पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। संगठन की शिकायतें दूर करने वाली कमेटी निष्क्रिय सी थी, किंतु, उस ज्ञापन पर विचार करने का वचन देकर, एक नया विकास चक्र शुरू किया गया। भारत के वाणिज्य मंत्री मुरासोली मारन और उनके साथ चौवन अन्य देशों ने इस पर आपत्ति की थी, किंतु अंत में, धनी और विकसित देशों के दबाव के चलते, सभी खामोश हो गए। अलबत्ता, नयी दिल्ली लौटकर मुरासोली मारन ने अपनी हताशा व्यक्त करते हुए इस बात पर बल दिया था कि विकासशील देशों को अपनी एकता बनानी और कायम रखनी चाहिए अन्यथा वे इसी तरह पिसते रहेंगे।
विश्व व्यापार संगठन एक गैर बराबरी वाली दुनिया में व्यापार के ऐसे नियम बनाने के लिए स्थापित किया गया है जो समान रूप से सभी देशों पर लागू हो। उम्मीद की गई थी कि अंतरराष्टï्रीय व्यापार नियमित तौर पर चलेगा। सात विकसित औद्योगिक देशों ने उसकी स्थापना की पहल की थी जिनमें संयुक्त राज्य अमरीका, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और कनाडा हैं। उनके दबाव में 145 अन्य विकासशील और सबसे कम विकसित देश भी संगठन के सदस्य बन गए। सन 1997 से सन 2001 के अनुभव के आधार पर उनकी सामान्य शिकायत थी कि खेती उजड़ रही है, उद्योग बंद हो रहे हैं और धन का बहाव गरीब देशों से अमीर देशों की ओर बढ़ रहा है। दोहा में उन्होंने इसी बात को भारत के नेतृत्व में उठाया था।
विकसित देश एक नया फार्मूला ले आए हैं कि हम अपने आयात शुल्क को 54 प्रतिशत घटा देंगे और विकासशील देश उन्हें 36 प्रतिशत घटा दें, परंतु सन 2008 में अमरीकी संसद ने कानून बना दिया कि सरकार कृषि उत्पाद को दी जाने वाली सुविधा 300 अरब डॉलर तक बढ़ा सकती है। जेनेवा में उसी वर्ष जो बातचीत हुई, उसमें अमरीकी प्रतिनिधि ने कहा कि हम उस सुविधा को 15 अरब से ज्यादा नहीं बढ़ाएंगे। उधर भारत पर यह दबाव बनाया गया कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सरकार जो सुविधा राशि लगा रही है वह उसे बंद कर दे, क्योंकि विकसित देश वैसी सुविधा नहीं दे रहे हैं। ऐसे दो मुंहे रुख के कारण जेनेवा में तो विकसित और विकासशील देशों में आपसी बातचीत लगभग खत्म हो गई। किसी देश को तब यह आशा नहीं रही थी कि दोहा विकास चक्र पूरा हो जाएगा। स्थिति यह थी कि कृषि उद्योगों और सेवा के तीनों क्षेत्रों के संबंध में विकसित देशों ने अडिय़ल नीति अपनाई है। वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते, अस्थायी तौर पर, उन्होंने अपनी मुक्त अर्थव्यवस्था को कुछ नियमित किया है।

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