CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Tuesday, July 26, 2011

भाजपा अकर्मण्य न बने



हरिराम पाण्डेय
23 जुलाई 2011
अवैध खनन मामले में लोकायुक्त द्वारा आरोपी बनाए गये कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा को उनके पद से हटाने की मांग अब भाजपा के भीतर से ही उठने लगी है। पार्टी के उपाध्यक्ष और कर्नाटक के पूर्व प्रभारी शांता कुमार ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को लिखे पत्र में यह मांग की है। पत्र में कहा गया है कि येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने से देश भर में भाजपा की छवि खराब होगी। पार्टी इस मामले में पहले ही काफी समझौता कर चुकी है। लेकिन अब उसे राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के लिए और प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।Ó भाजपा, हालांकि आधिकारिक रूप से अभी इस बारे में इस आधार पर कुछ कहने से बचती रही है कि लोकायुक्त की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है।
हालांकि रिपोर्ट में दूसरी पार्टी के बड़े नेताओं के भी नाम हैं लेकिन सत्ताधारी पार्टी होने के नाते सबसे ज्यादा कीचड़ बीजेपी और मुख्यमंत्री पर उछलेगा।
अक्सर पार्टी विद डिफरेंस का नारा देने वाली बीजेपी जब कर्नाटक का जिक्र आता है तो कन्नी काट जाती है। दक्षिण में उसकी पहली सरकार उसके लिए लगातार शर्मिंदगी का सबब बनी हुई है। जमीन के सौदे, राज्यपाल से लगातार टकराव, सीएम और बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के बीच समस्याएं ऐसी ही कुछ वजहें हैं।
देश में जारी भ्रष्टाचार से आजिज आ चुके लोगों के दिलोदिमाग में इन मामलों से यह आम भावना पुख्ता होगी कि पार्टी विद डिफरेंस होने के बजाय बीजेपी और कांग्रेस में कोई अंतर नहीं है। बहुत ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। जब केंद्र्र में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए सरकार सत्ता में आई थी, तब विश्लेषकों का कहना था कि 'हो सकता है मतदाताओं ने कांग्रेस को कई मौके दिए हों, लेकिन वे (मतदाता) आपको उतने मौके नहीं देने वाले। क्यों? क्योंकि वे उम्मीद करते हैं कि कोई उन्हें बेहतर शासन दे। क्योंकि पार्टी बहुत से वादों के साथ सत्ता में आयी है, अतएव उससे बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं और अगर वे बेहतर शासन देने में नाकाम रहते हैं तो इसका मतलब होगा कि लोगों का गुस्सा उनके प्रति और ज्यादा बढ़ जाएगा। इसलिए सबसे पहले उन्हें जनता की भलाई के बारे में सोचना चाहिए। इससे खुश होकर जनता उन्हें अगली बार और अधिक पावर का इनाम देगी। लेकिन यह सब कहना आसान है करना मुश्किल।Ó
यहां यह कहने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिये कि भ्रष्टïाचार के कुछ नये पैमाने तत्कालीन एनडीए सरकार के कुछ हाई प्रोफाइल मंत्रियों ने ही बनाये थे। इसमें कोई हैरानी नहीं थी जब जनता ने पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया। जब सरकार का कार्यकाल समाप्ति की ओर था, तब हालात संभालने की कुछ कोशिशें हुईं लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। अब फिर यह डर है कि यह इस बार भी खुद को ऐसे ही मोड़ पर खड़ा पा रही होगी। हालांकि फिलहाल केवल एक राज्य पर शासन को लेकर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन इसके परिणाम देशभर में देखने को मिलेंगे। इसमें मीडिया को कवरेज के लिये नया मसाला मिल जायेगा। ईमानदारी से देखा जाए, तो बीजेपी जब सत्तासीन यूपीए और कांग्रेस को भ्रष्टïाचार के मामलों में पकडऩे की कोशिश करती है तब वह खुद कहां इससे अछूती रह जाती है? हमने पिछले कुछ सालों में केन्द्र में अब तक की सबसे करप्ट सरकार देखी है। अगर मौका मिले तो मतदाता इस शासन को जल्द से जल्द समाप्त कर दें। लेकिन, जब वे देखते हैं उनके पास विकल्प ऐसा है तो वे बहुत ही दुविधापूर्ण और ठगा हुआ महसूस करते हैं। बीजेपी और विपक्षी पार्टी में अगर थोड़ी सी भी हिम्मत और विवेक है तो वे ताकतवर नेताओं की खुशामद करने में और समय गंवाने के बजाय उन पर कार्रवाई करें। हो सकता है कि तात्कालिक तौर पर इससे सत्ता का नुकसान हो लेकिन कालांतर में यह उनकी विश्वसनीयता बढ़ाने का काम करेगा।

0 comments: