मुチय चुनाव आयुタत गोपालस्वामी ने चुनाव आयुタत नवीन चावला को तरタकी नहीं देने की सिफारिश की है और इसे लेकर राजनीतिक माहौल सरगर्म हो गया है। दलों को एतराज इस बात पर है कि कहीं यह मामला ऐन चुनाव केञ् वक्तञ् किसी करवट लेट गया तो सामने बाधा ही बाधा होगी। गोपालस्वामी ख् अप्रैल को रिटायर होने वाले हैं और पहले यदि वे अपने विचारों से राष्टस्न््रपति को अवगत कराते हैं तो इसमें कोई असामान्यता नहीं है। गड़बड़ तो तब हुई जब राष्टस्न््रपति का भेजा गया पत्र मीडिया में लीक हो गया और उस पर राजनीति हो गयी। भाजपा नवीन चावला को हटाने लिए नारे लगाने लगी तो कांग्रेस उनकेञ् समर्थन में खड़ी हो गयी। चावला की नियुタति केञ् पहले गोपालस्वामी ने उनका विरोध किया था। अब विरोधी दलों का कहना है कि वे मौका पाकर वही खुंदक निकाल रहे हैं। =बाद चुनाव आयोग ने बढि़या काम किया था। उार प्रदेश, कश्मीर इत्यादि राज्यों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाये। वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल फ् मई को समाप्त हो रहा है। यानी इसकेञ् पहले चुनाव करवाना जरूञ्री है। आमतौर पर चुनाव प्रक्रिञ्या केञ् शुरूञ् होने और चुनाव सミपन्न होने केञ् बीच एक महीने का समय लग जाता है। यदि चुनाव कई चरणों में हुए तो समय कुञ्छ ज्यादा भी लग सकता है। वर्तमान सुरक्षा की स्थितियों को देखते हुए चुनाव कम से कम चार चरणों में सミपन्न होंगे और फिर पुनर्मतदान और वोटों की गिनती इत्यादि को मिला कर कम से कम डेढ़ महीना लग सकता है। ऐसे में चुनाव की प्रक्रिञ्या क्भ् अप्रैल से शुरूञ् करनी होगी। इसकेञ् लिए गोपाल स्वामी केञ् कार्यकाल को कम से कम म् हヘतों केञ् लिए बढ़ाना जरूञ्री होगा वरना वे बीच में ही रिटायर कर जायेंगे। वर्तमान स्थिति को देखते हुए उनका कार्यकाल बढ़ाना सミभव नहीं लगता है। ऐसे में उचित है कि गोपाल स्वामी अपने समय पर रिटायर कर जाएं और नवीन चावला को मुチय चुनाव आयुタत बना दिया जाय। तीसरे चुनाव आयुक्तञ् की नियुक्तिञ् कानूनी रूञ्प में अनिवार्य नहीं है पर यदि सरकार ऐसा कुञ्छ करती है तो इसकेञ् लिए उचित होगा कि वह विपक्षी दल केञ् नेता, लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा केञ् सभापति से परामर्श कर ले। यह संविधान समीक्षा समिति की सिफारिशों केञ् अनुकूञ्ल होगा और इससे सरकार की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। अभी हाल में तीसरे चुनाव आयुक्तञ् एस वाई कुञ्रेशी और मुチय चुनाव आयुक्तञ् गोपालस्वामी ने मुミबई में एक विचार गोष्ठस्न्ी में भाग लिया था। उसमें चुनाव सुधारों और चुनाव से जुड़े कई अन्य सवालों पर विचार हुए थे। उस गोष्ठस्न्ी में तीन प्रस्ताव पारित किये गये। इनमें पहला प्रस्ताव था कि किसी गंभीर अपराध केञ् अभियुक्तञ् को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी जाय। दूसरा कि इलेタट्रानिक वोटिंग मशीन में किसी को वोट नहीं दिये जाने वाला भी एक बटन होना चाहिये। यदि कुञ्ल प्राप्त मतों से किसी उミमीदवार को नहीं दिये जाने वाले मतों की संチया ज्यादा हो तो वहां दुबारा मतदान करवाये जाएं और उसमें उस उミमीदवार को चुनाव लड़ने की अनुमति न मिले और तीसरा राजनीतिक पार्टियों को नियंत्रित करने केञ् लिए एक विस्तृत कानून बनाया जाये। उधर चुनाव आयुक्तञें ने भी कई सुधारों का जिक्रञ् किया। यहां बुनियादी सवाल चुनाव आयुक्तञें की नियुक्तिञ् नहीं है, बल्कि चुनाव केञ् प्रति जागरूञ्कता और मतदाता सूचियों में त्रुटिहीनता है। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक निष्पक्ष चुनाव की कल्पना ही बेकार है। चावला का रहना या मुチय चुनाव आयुक्तञ् नहीं बनाये जाने पर विवाद व्यर्थ है।
Friday, February 6, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment