एक तरफ जहां देश की जनता का बड़ा भाग राजनीतिज्ञों के प्रति अपना गुस्सा जाहिर करने से थक नहीं रहा है वहीं गुरुवार को संसद में हमारे प्रतिनिधियों ने शायद पहली बार संतुलित ओर राष्टस्तरीय हितों के लिये एकजुटता का शालीन प्रदर्शन किया। मौका था मुबई हमलों के बाद की चर्चा का। पी.चिदंबरम देश के गृह मंत्री के p में पहली बार उपस्थित हुए थे और उन्होंने आतंकवाद के सफाये के लिये बनने वाले विधेयक के बारे में सदन को जानकारी दी और सदन को आश्वस्त किया कि सभी तरह की खुफियागीरी सीधे उन्हीं के अंतर्गत रहेगी। विपक्ष की ओर से चर्चा की शुरुआत करते हुए लाल कृष्ण आडवाणी ने सदन का सुर साधा और कहा कि आतंकवाद के नाश के लिये सरकार की हर कार्रवाई में विपक्ष उसके साथ है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सभी तरह के आतंकवाद की धुरी पाकिस्तान है। श्री आडवाणी ने कहा कि संसद का यह रिवाज रहा है कि तीखे मतभेदों के बाद भी सहमति होती है लेकिन यहां समय तथा वस्तुस्थिति की गंभीरता को देखते हुए ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए। इस सहयोग और सौमयता का सममान करते हुए विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आतंकियों को सजा देने की बात करते हुए 'दहकता' भाषण दिया साथ ही उन्होंने संयम बरतने और अंतरराष्टिय सहयोग की वकालत भी की। आने वाले दिनों में बहुत कठिन कूटनीति की जरूरत पड़ेगी और इसमें सफलता के लिये संसद का सहयोग जरूरी है। गुरुवार को संसद की सम्पन्न बैठक अत्यंत शालीनता भरी थी। वक्ताओं को सदस्यों ने सुना कोई टोका - टाकी भी नहीं की। फिर भी कठिन प्रश्न अभी भी सामने नहीं आये। संसद की कार्यवाही का संचालन बड़े गरिमापूर्ण ढंग से हुआ और सब चुप भी रहे, गंभीर भी रहे। राजनीति में ऐसा बहुत कम देखा गया है, फिर भी कुछ लोगों ने कुछ ऐसा कह दिया जो सदन की स्थिति और मूड के अनुरूप नहीं था। मसलन माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मोहम्मद सलीम ने जब हमले में अंतरराष्ट्रीय संदर्भ की बात उठायी। इस सहमतिपूर्ण वातावरण में भी तीखे राजनीतिक मतभेद कुंद नहीं हो सके हैं। इस उदास माहौल में संसद ने यह प्रदर्शित किया कि 'जनहित का काम हो रहा है।' काश! ऐसा हरदम होता। केन्द्र सरकार अब जल्द ही बहुचर्चित संघीय जांच एजेंसी के गठन के लिए संविधान संशोधन विधेयक ला सकती है। वस्तुतः प्रस्तावित एजेंसी के कामकाज के लिए राज्य पुलिस के कुछ अधिकारों को सीमित करना होगा और इस कारण यदि इसके लिए संविधान संशोधन का रास्ता चुना जाता है तो तमाम कानूनी अड़चनों की संभावना खत्म हो जाएगी। आतंकी घटनाओं पर रोकथाम एवं पृथकतावादी तत्वों से निपटने के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी अन्तरराज्यीय एवं अन्तरराष्ट्रीय मामलों की जांच के लिए ऐसी ही एजेंसी का सुझाव दिया था। आयोग के अनुसार संगठित अपराध, राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे, हथियार एवं मानव तस्करी के साथ ही अन्तरराष्ट्रीय चरित्र के बड़े अपराधी आदि से निपटने के लिए इन मामलों को राज्य पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर रख संघीय एजेंसी के दायरे में लाया जाना चाहिए। देन्श की एकता एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए के सरकार की यह कवायद हालांकि स्वागतयोग्य है फिर भी इसमें राजनीति की भी भनक सुनने को मिल रही है। केन्द्रिय सत्ता के विरोधी दलों ने ऐसी एजेंसी को राज्य की स्वायतता में हस्तक्षेप मानकर विरोध शुरू कर दिया है। एजेंसी के गठन के लिए बनाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को परिवर्तित किया जाएगा।
Monday, February 16, 2009
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