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Monday, February 16, 2009

‍पाकिस्तान से खत्म कर दिये जाएं रिश्ते

कुंछ ऐसे लोग होते हैं जो न समझते हैं और न समझने को तैयार होते हैं, ऐसे लोगों को समझाया नहीं जा सकता है। यह तबसे इस देश का अनुभव है, जबसे पाकिस्तान हमारे देश को लहूलुहान करने के प्रयास में है, ताकि भारत कमजोर हो जाय और कश्मीर पर अपने दावे को छोड़ दे नतीजतन वहां भौगोलिक स्थिति बदल जाय। क्ऽत्त्फ् में एक-एक खालिस्तानी विमान अपहर्ता के कबजे से एक रिवाल्वर बरामद हुई थी। जर्मन अफसरों ने लिखित रूप में दिया था कि वह रिवाल्वर उसी खेप का हिस्सा है जिसे सैनिक सहयोग के तहत पाकिस्तान को बेचा गया था। क्ऽऽफ् में एक हथगोले के विस्फोट के बाद ऑस्टि्रयाई विशेषज्ञों ने लिख कर दिया था कि वह हथगोला आस्ट्रिया के सहयोग से पाकिस्तानी आयुध कारखाने में बना था। इसके अलावा कई सबूत हैं भारत में आतंकवाद को प्रोत्साहित करने में पाकिस्तानी हाथ के। जितने सबूत हम एकत्र करते हैं उतनी ही ताकत से उसे खारिज कर दिया जाता है। खासकर अमरीका की ओर से कि पाकिस्तान पर आरोप साबित करने के लिये यह पर्याप्त नहीं है। यह उसका बना- बनाया जबाब है। अमरीका केवल अपने नागरिकों के जान ओ माल की हिफाजत में दिलचस्पी रखता है और उसकी कोशिश होती है कि २६/११ की पुनरावृत्ति ना हो। जबसे पाकिस्तान ने अल कायदा से लड़ाई में अमरीका का साथ दिया है उसने भारत में जेहादी आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका की ओर से आंखें मूंद ली हैं। मुबई हमले के बाद आशा थी कि अमरीका का रुख बदलेगा, क्‍योंकि उसमें मरने वालों में भारतीयों के साथ कुछ अमरीकी और कुछ इसरायली नागरिक भी थे। इसरायली नागरिकों को नरीमन हाउस में इस बेदर्दी से मारा गया कि यहूदियों के खिलाफ नाजियों के जुल्म भी फीके पड़ गये। अमरीका को मालूम है कि इस हमले में लश्कर ए तैयबा की पूरी भूमिका थी। ... और लश्कर को पाकिस्तान सरकार ने बनाया है तथा अभी भी पालती है। इसके बावजूद अमरीकी रवैया बदला नहीं। वह सबूत मांगता है। कैसा सबूत- कुछ भारतीयों की मौत का या कुछ अमरीकियों के खून का या कुछ इसरायलियों की हत्या का या गिरफ्‍तार आतंकी के बयान का या हाफिज मोहम्‍मद सईद की गतिविधियों का या इंटरसेप्ट किये गये टेलीफोन वार्ता का, किसका सबूत मांगता है वह। कितने सबूत मांगता है वह, कैसे सबूत मांगता है वह। पश्चिमी बर्लिन के एक डिस्को में क्ऽत्त्म् में विस्फोट के बाद लीबिया पर बम बरसाने का हुक्‍म देने के पहले रीगन के पास कौन से सबूत थे? क्ऽऽत्त् में बिल क्‍लिंटन ने किन सबूतों के आधार पर अफगानिस्तान में मिसाइल से हमले किये थे? अल कायदा या तालिबान के कौन से सबूत थे अमरीका के पास कि उसने स्त्र अक्‍टूबर ख्क् को वहां की धरती पर टनों बारूद झोंक दिया? इराक पर हमले के पहले उसने कौन से सबूत देखे थे? जब अमरीकी नागरिकों की जान माल की बात आती है तो हर बार वह पहले बम बरसाता है तब सबूत खोजता है। वह इस बात की प्रतीक्षा नहीं करता कि दुनिया उसे क्‍या कहेगी। वह दुनिया को बता देना चाहता है कि अमरीकियों के जीवन से खेलने का नतीजा क्‍या होगा। भारत ने तो पहली बचकाना हरकत की कि उसने आतंकियों की सूची भेज कर उन्हें लौटाने की मांग की। कूटनीति में ऐसा क्‍या संभव है? यह तो अपना अपमान खुद करना है। देशवासियों को धोखे में रखना है। इसलिये हमें भी इंतजार नहीं करना चाहिए। पाकिस्तान पर कार्रवाई का समय आ गया है। हम अपने इस यकीन पर आगे बढ़ सकते हैं कि इन हमलों में पाकिस्तान की भूमिका है। सरकार तुरत तीन काम तो कर ही सकती है। पहला कि पाकिस्तान पर इतना दबाव बनाये कि वह लश्कर पर कार्रवाई के लिये मजबूर हो जाय। दूसरे कि उसके भारत में दूतावास में स्टाफ की संख्‍या कम की जाय, व्यापारिक व अन्य संबंधों को भंग कर दिया जाय। तीसरे कि रॉ के गोपनीय कार्यक्षेत्र के अधिकार को बढ़ाया जाय। यह हैरत की बात है कि रॉ के शीर्ष पर गोपनीय कार्यों का कोई विशेषज्ञ नहीं है। तत्काल इसकी व्यवस्था की जाय। पाकिस्तान पर सीधे फौजी कार्रवाई का उचित समय नहीं है। यह मान कर चलना चाहिये कि पाकिस्तान भविष्य में और हमले करेगा। अगर हम ये कदम उठाते हैं तो उसे थोड़ी हिचक होगी। अगर हमने कुछ्‍ नहीं किया तो बस यह मान कर चलें कि वह हमें तबाह करने पर तुल जायेगा। अब अगर दुबारा ऐसी घटना होती है तो पूरे देश का गुस्सा सरकार पर उतरेगा। कोरी बयानबाजी अब नहीं चलेगी। सरकार को कुछ करके दिखाना होगा ही। आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी है, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर हर गली में, हर नगर हर गांव में, हाथ लहराते हुये हर लाश चलनी चाहिए। सिरफ्‌ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

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