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Wednesday, February 18, 2009

हमलावर कोलकाता की राह भी गये थे मुबई

४/१२/२००८
सभी कराची में रहने वाले बंगलादेशी थे
हरिराम पाण्डेय
कोलकाता : मुबई में हमला करने वाले आतंकी चार गुटों में पहुंचे थे और उनकी कुल संख्‍या ४० थी जिनमें १० महिलाएं थीं और उनमें से २५ लोग कोलकाता होकर मुबई गये थे। यहां वे फ्री स्कूल स्ट्रीट , पार्क सर्कस और कस्बा सहित दो धर्मस्थलों और कोलकाता विश्वविद्यालय के एक छात्रावास में लगभग हफ्‍ते भर तक ठहरे थे। ये लोग हमलावर टीम को 'लॉजिस्टिक सपोर्ट' दे रहे थे। बंगलादेश के अत्यंत उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार इस हमले में शामिल करने के लिये २४ लोगों को तैयार किया गया था और ये सभी कराची में रहने वाले बंगलादेशी थे और वहां छोटे- मोटे अपराध किया करते थे। सूत्रों के अनुसार सबसे पहले इस गिरोह के ६ लोग अगस्त में यहां आये थे और यहां से इंदौर होते हुए मुबई गये। उनके पास पश्चिम बंगाल के फर्जी आवासीय पत्र थे, जिसका प्रतिबंधित संगठन सिमी के स्थानीय सदस्यों ने बंदोबस्त किया था। यहां यह बता देना आवश्यक है कि सिमी के बहुत से कार्यकक्ता पाबंदियों को देखते हुए एक बहुत शक्‍तिशाली छात्र संगठन के सदस्य हो गये। इनका 'इस्लामी छात्र शिविर (बंगलादेशी कट्टरपंथी छात्र संगठन)' और 'हूजी बी(हरकत उल जेहाद अल इस्लामी बंगलादेश)' से पुराना सबंध है। मुबई जाकर वे लोग बंगलादेशी घुसपैठियों के बीच घुल-मिल गये। प्राप्त जानकारी के अनुसार इन ६ लोगों ने ही मुबई का व्यापक सर्वे किया और उसकी वीडियो सी डी तैयार की जिसे बाद में बरास्ते कोलकाता - ढाका भेजा गया। बताते हैं कि इसी सीडी से २४ लोगों को तैयार किया गया। उन्हें मुबई के गली कू पहचनवाये गये और मराठी भाषा के लटके - झटके सिखाये गये। सूत्रों के मुताबिक १९ -२० आदमी, जिनमें १० महिलाएं भी थीं, एक जलपोत से बंगलादेश के चटगांव बंदरगाह पहुंचे। यह जलपोत बंगलादेश की एक प्रमुख हस्ती का था। वहां एन एस आई के एक मेजर ने उनकी अगवानी की। बताते हैं यही लोग हथियारों और बमों का जखीरा लेकर आये थे और वे धीरे - धीरे कोलकाता से इलाहाबाद और नागपुर होते हुए मुबई पहुंचे। इनके साथ महिलाएं होती थीं ताकि किसी को संदेह न हो। चूंकि ये सब कराची के थे और बंगलादेशी थे इसीलिये उर्दू और बंगला दोनों बोल लेते थे। सबकी शिनाख्‍त पश्चिम बंगाल की थी। यहां सूत्रों के मुताबिक मोबारक नाम का एक आदमी मध्य कोलकाता के लेनिन सरणी के एक मकान और एक विदेशी उप दूतावास के अक्‍सर चक्कर लगाता था। उस युवक का रसूख इतना था कि उसे प्रवेश के लिये किसी रजिस्टर में अपना नाम वगैरह नहीं भरना होता था। उसने ही कुछ लोगों के कागजात बनवाये सूत्रों के मुताबिक जिनके कागजात बने उनमें से कुछ के नाम थे खुर्रम अब्‍बास मल्लिक, स्वाहिल इमरान, जफर हुसैन, फारुख अहमद, शाहिद अख्‍तर, इमरान मोईन अहमद यह सब इतने 'लो प्रोफाइल' में हुआ कि चेतावनी के बावजूद खुफिया एजेंसियां इसे भांप नहीं सकीं। मुबई पर हमले के दो -तीन दिन पहले दो औरतों को छोड़ कर सारी महिलाएं और अन्य कुछ्‍ लोग लौट गये। कुछ लोग उसके बाद भी यहीं रुके रहे और एक आराधनास्थल में उन्होंने जश्न मनाया। वे २७ नवंबर को इधर- उधर बिखर गये। बताते हैं कि जफर हुसैन सबका लीडर है और वह अल कायदा की ओर से अफगानिस्तान में लड़ चुका है और लश्कर के ट्रेनरों में से एक है। लश्कर -ए- तायबा में उसे 'कजा' के नाम से पुकारा जाता है।

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