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Wednesday, March 24, 2010

हेडली और 'स्टुपिड कॉमन मैन

डेविड कोलमैन हेडली के मामले में सभी सरकारें लोगों को बरगलाने में लगी हैं, इसलिये अकेले मनमोहन सिंह की सरकार पर यह दोष नहीं मढ़ा जा सकता है। कुछ विशिष्ट पत्रकारों के माध्यम से मनमोहन सिंह की सरकार, खास कर हमारे माननीय गृह मंत्री महोदय, लगातार बताने की कोशिश कर रहे हैं कि एफ बी आई के समक्ष हेडली का कबूलनामा हमारी कूटनीति की बड़ी भारी विजय है। हमारे गृह सचिव ने बिल्कुल विजयी अंदाज में बताया कि बेशक इस मामले में हेडली का प्रत्यर्पण नहीं हो सकता है लेकिन अन्य मामले में उसके प्रत्यर्पण के रास्ते खुले हैं। लेकिन उन्होंने यह बताने की कृपा नहीं की कि वे अन्य मामले क्या हैं? गृहमंत्री का कहना है कि हम कोशिश जारी रखेंगे और 'इस बीच आतंकियों के हाथों आम भारतीयों का खून जारी रहेगा।
देश के एक बहुत बड़े अंग्रेजी अखबार ने लिखा कि हेडली के कबूलनामे से जो भारत को विजय मिली है वह चार प्रकार से महत्वपूर्ण है। पहला कि, पहली बार अल कायदा और लश्कर में रिश्ते की पोल अमरीकी अदालत में खुली। क्या सचमुच? जी नहीं अमरीकी अदालत में इस तरह की पहली घटना सन् 2003 में तब हुई थी, जब जार्ज बुश राष्ट्रपति थे। इसके बाद भी पाकिस्तानी, अफगान और सऊदी मूल के कई अमरीकी नागरिक इन मामलों में गिरफ्तार किये गये। उन पर अमरीकी भूमि से भारत के खिलाफ जंग करने के आरोप थे। दूसरा कारण उस पत्र ने यह बताया है कि हेडली पर मृत्युदंड का खतरा कायम है। अब उन्हें कौन बताये अमरीकी कानून के अंतर्गत एफ बी आई अगर किसी मामले में मृत्युदंड का विकल्प त्याग देता है तो किसी भी नये सबूत के उद्घाटित होने पर वह उस मामले में मृत्युदंड की मांग नहीं कर सकता है। ... और तीसरा कि भारत अभी भी अमरीका जाकर हेडली से पूछताछ कर सकता है। अब क्या बताया जाय कि अपनी हिरासत में पूछताछ और एफ बी आई की हिरासत में पूछताछ में क्या फर्क है। पहले तो एफ बी आई को लिखित प्रश्न सौंपने होंगे और वह उनकी समीक्षा करेगा, तब ही पूछताछ करने की अनुमति मिलेगी। चौथा कारण है कि लश्कर के खिलाफ भारत का दावा और मजबूत हो गया। अब ये, बता सकते हैं कि क्या भारत लश्कर के अमीर प्रो. हाफिज सईद को पाकिस्तान के हाथों गिरफ्तार करवा सकता है और सजा दिलवा सकता है? या, भारत यह देख सकता है कि पाकिस्तान में लश्कर के शिविर बर्बाद किये गये अथवा नहीं? क्या भारत ऐसा कुछ कर सकता है जिससे 26 / 11 जैसी घटना दुबारा ना हो? अगर ऐसा नहीं हो सकता है। तो दावा मजबूत होने से क्या लाभ? एक ओर बड़े अंग्रेजी अखबार ने अपने ज्ञान के जोम में यह बताया है कि हेडली के अपराध कबूले जाने से बेशक मृत्युदंड उसे नहीं मिलेगा पर जो मिलेगा वह क्या कम है? क्या वे यह कहना चाहते हैं कि भारत की निरीह जनता, दैट स्टुपिड कॉमन मैन, आतंक के नाम पर जो झेल रही है वह बहुत कम है। 26/11 मसले पर भारत की जांच दो समानांतर रेखाओं पर चल रही है। पहला कि यह सरासर लश्कर का काम है और इसका पाकिस्तान सरकार से कोई लेना-देना नहीं है और दूसरा कि इसके प्रति पाकिस्तान सरकार की कोई जिम्मेदारी भी नहीं है। इस कबूलनामे से अमरीका अपना दो उद्देश्य सफल करना चाहता है। पहला कि भारत सबको बताये कि इसमें लश्कर दोषी है और दूसरा कि इसमें पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं है। यहां मुख्य बात यही है।
अब देखिये कि एफ बी आई के हलफनामे के अनुसार हेडली को क्या मालूम है? हेडली की दोस्ती इलियास कश्मीरी से थी। इलियास 313 ब्रिगेड से ताल्लुक रखता है और ओसामा बिन लादेन का करीबी है। उसने ही हाल में आई पी एल मैचों और कामनवेल्थ खेलों पर हमले की धमकी दी थी। हेडली की उससे अंतिम मुलाकात सन् 2009 के आरंभ में उत्तरी वजीरिस्तान में हुई थी। वह लश्कर के कई नेताओं को जानता है और पाकिस्तानी सेना के कई आला अफसरों से उसका दोस्ताना है। इसके अलावा वह जो जानता है वह एफ बी आई ने बताया नहीं। वह जरूर जानता होगा कि भारत में लश्कर के कौन-कौन लोग हैं और उसके संगठन कहां-कहां हैं ? अगर अमरीका ने भारतीय अफसरों को पूछताछ की इजाजत दी होती तो कम से कम पुणे कांड नहीं हुआ होता। एफ बी आई यह समझता है कि हम (भारत) अगर सीधे पूछताछ करें तो वह कुछ नहीं जान पायेगा। यह हमारे आत्मसम्मान पर सीधा आघात है। हममें दम है पर हम सीधे खड़े होने में न जाने क्यों हिचक रहे हैं? जो लोग इसे अपनी विजय बता रहे हैं उन्हें मालूम होना चाहिये कि अगर कोई तालिबान अफगानिस्तान में पकड़ाता है तो पाकिस्तान उसे अपनी हिरासत में लेकर पूछताछ करता है। अगर अफगानिस्तान को आपत्ति भी होती है तो अमरीका उसे घुड़क देता है। और बाद में अमरीका भी उससे पूछताछ करता है। अगर पाकिस्तान आनाकानी करता है तो उसे परिणाम भुगतने को तैयार रहने को कहा जाता है।
हरिराम पांडेय

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