मास्को में दो मेट्रो स्टेशनों पर सोमवार की रात आतंकवादी हमला हुआ। इसमें लगभग 40 लोग मारे गए। इस तरह के हमले की चेतावनी पिछले महीने ही दी गयी थी। चेतावनी खूंखार गुरिल्ला डाकू उमेराव ने दी थी। इस चेतावनी को संभवत: उसी ने शायद यथार्थ में बदल दिया है। ये हमले मेट्रो स्टेशन, रूसी सरकार के विदेश मंत्रालय तथा पूर्व सोवियत संघ की कुख्यात जासूसी एजेंसी केजीबी का स्थान लेने वाली एफएसबी के मुख्यालय के करीब हुए। जाहिर है कि हमले बहुत योजनाबद्ध ढंग से किए गए जिनमें महिला आतंकवादियों के शामिल होने की खबर है। मास्को की मेट्रो विश्व की सबसे व्यस्त मेट्रो में से एक मानी है जिसके कार्यदिवसों में लगभग 70 लाख लोग प्रतिदिन सफर करते हैं। अत: आतंकवादियों के लिए अपना संदेश देने का इससे बेहतरीन तरीका नहीं हो सकता था। इस आतंकवादी हमले में ठीक-ठीक किसका हाथ है, यह तत्काल पता नहीं चला मगर सबकी नजर चेचन अलगाववादियों पर जाती है, जो अलग राष्ट्र की मांग करते रहे हैं। अतीत में रूस के तीन तनावग्रस्त क्षेत्रों चेचन्या, इंगुशेतिया और दागिस्तान से जुड़े अलगाववादी संगठनों ने मॉस्को और अन्य रूसी शहरों में भीड़ वाली जगहों पर विस्फोट किए हैं। संयोगवश ये तीनों ही इलाके मुस्लिम बहुल हैं और इनमें जारी अलगाववादी आंदोलनों की एक धारा वैचारिक रूप से अल कायदा के करीब है। इसके आधार पर इन विस्फोटों को अल कायदा की नवीनतम कार्रवाई की तरह भी देखा जा सकता है लेकिन रूस की ओर से हाल में न तो अल कायदा के, न ही चेचन्या, इंगुशेतिया और दागिस्तान के अलगाववादी आंदोलनों के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई हुई है, जिसकी तात्कालिक प्रतिक्रिया के साथ इस घटना को जोड़ा जा सके।
घटना का सबसे भयानक पहलू है कि इसका भूमिगत रेल स्टेशनों पर अंजाम दिया जाना, जहां लोगों के पास भागकर जान बचाने की तो बात ही दूर, खुलकर सांस लेने की भी जगह नहीं होती। बिल्कुल आम लोग, जिनका सरकार के फैसलों या उन पर अमल की प्रक्रिया से कुछ भी लेना-देना नहीं होता, एक बंद जगह में हुए विस्फोट की दहशत और चारों तरफ मची भगदड़ के बीच कुचल कर मर जाएं, इस तरह के पागलपन के जरिए कोई भला क्या हासिल करना चाहता है? बहरहाल, यह पागलपन ही हमारे समय की हकीकत है, लिहाजा भारत के जिन दो शहरों दिल्ली और कोलकाता में फिलहाल भूमिगत मेट्रो ट्रेनें चल रही हैं, उनके नीति नियंताओं को मॉस्को की घटना से तत्काल यह सबक लेना चाहिए कि ट्रेनों और स्टेशनों की सुरक्षा व्यवस्था को पूरी तरह अचूक बनाया जाय। इसके लिए अगर जरूरी हो तो मेट्रो विस्तार के अगले चरण का काम कुछ समय के लिए स्थगित रख कर भी सभी स्टेशनों पर बॉडी स्कैन का इंतजाम किया जाना चाहिए। अभी एक्स-रे स्कैनिंग की व्यवस्था सिर्फ सामानों के लिए है। लोगों की जांच हाथों से छूकर ही की जाती है और ज्यादा भीड़ वाले क्षणों में तो यात्रियों की सूरत देख कर ही उनकी सीरत का अंदाजा लगा लिया जाता है। ध्यान रहे, मॉस्को में मेट्रो 1935 से चल रही है और उस पर पहला आतंकवादी हमला आर्मीनियाई अलगाववादियों ने 1977 में, यानी अब से 33 साल पहले किया गया था। इसके सुपर पावर लेवल के सुरक्षा इंतजाम तभी से मौजूद हैं, इसके बावजूद पिछले 15 सालों में मॉस्को मेट्रो पर यह चौथा हमला है। घास में छिपे हरे सांप की तरह घात लगाए बैठे आतंकवादियों से बचाव का अकेला उपाय चौबीसों घंटे की सतर्कता के सिवाय और कुछ भी नहीं है।
Tuesday, March 30, 2010
मास्को मेट्रो पर हमला
Posted by pandeyhariram at 4:46 AM
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