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Wednesday, March 24, 2010

सरकार को जोखिम उठाना ही होगा

इन दिनों कांग्रेस लम्बे मुबाहिसों में ज्यादा उलझी सी दिख रही है। आखिर उसके इस बदले नजरिये का कारण क्या है? क्या वह अपने सहयोगी दलों की विश्वसनीयता आजमा रही है? लेकिन ऐसा नहीं लगता, क्योंकि कांग्रेस रहे या जाये घटक दलों की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है और जहां तक द्रमुक का सवाल है तो वह इसलिये चिपका हुआ है कि कहीं कोई मंत्रिपद ही हाथ लग जाय। बाकी सब या तो कांग्रेस से भितरघात करने में जुटे हैं या अविश्वसनीय हैं। इसके बाद भी कांग्रेस जोखिम पर जोखिम उठा रही है। इससे उसके संसदीय दल में खिंचाव भी आ सकता है। आखिर क्यों? यह अच्छा है कि संसद में लम्बी बहसें होती हैं और बाद में स्थायी समितियों द्वारा बीच बचाव करके उन पर रुख नरम नहीं किया जाता, क्योंकि यही तरीका है जिससे कांग्रेस के सांसद यह सीख सकें कि सांसदों का आचरण कैसा हो। सांसदों को साप्ताहिक निर्देशों का अध्ययन करना होगा और अगर किसी मौके पर वे गैरहाजिर होते हैं तो उन्हें मुख्य सचेतक से इसका स्पष्टीकरण देना होगा। उन्हें मतदान के लिये उपस्थित रहना होगा। अगर कांग्रेस 200 मतों के बारे में आश्वस्त हो तो अन्य घटकों से वह बातें कर सकती है। उन्हें बांटना भी सहज हो जायेगा। आखिर फूट डाल कर राज करने की इजारेदारी केवल अंग्रेजों की थोड़े ही है। इसके अलावा आगे जो आने वाला है उसके लिये एक अनुशासित और सुगठित कांग्रेस की जरूरत भी है। राहुल गांधी पार्टी को अपना आधार बनाना चाह रहे हैं। उनकी योजना है कि सन् 2012 में उत्तरप्रदेश पर कब्जा कर लिया जाय और लगे हाथ हो के तो बिहार पर भी। पश्चिम बंगाल को कब्जा करने में थोड़ा समय लग सकता है। क्योंकि ममता बनर्जी को पहले वहां से जीतने देना होगा फिर उनकी अक्षमता को प्रचारित करना होगा तब कहीं जाकर इसके आगे वाले चुनाव में कुछ हाथ लग सकता है। सन् 2014 में जब आम चुनाव होगा तब कांग्रेस उसी शर्त पर अकेले बहुमत में आ सकती जब विपक्ष कमजोर हो और कांग्रेस मजबूत हो। इसे विकसित देश की आधुनिक पार्टी की तरह होना होगा बस फर्क केवल इतना होगा कि इसके शीर्ष पद किसी खास के लिये आरक्षित होंगे। इसीलिये पार्टी ने राजनीति को नयी दिशा देने के लिये महिलाओं को जोडऩे का प्रयास किया है। सपा, राजद ओर बसपा अभी मंडल से चिपके हुए हैं और भविष्य में उन्हें बड़ी चुनौतियों का सामना कर पड़ सकता है। आने वाली सरकार को यदि जनता की आकांक्षाएं पूरी करनी हैं तो उसे जनता को साफ-साफ बताना होगा कि उसकी सीमाएं क्या हैं वरना वह कामयाब नहीं हो सकती है। जनता को बताने का यह रास्ता बेशक जोखिम भरा है।
हरिराम पांडेय

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