महानगर में बच्चा चोरी की घटनाओं में वृद्धि की लगातार अफवाहें फैलायी जा रहीं हैं और विभिन्न इलाकों में इसे लेकर किसी को मारने पीटने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। हालांकि यह तय नहीं हुआ है कि बच्चा चोर बता कर जिन लोगों पर भीड़ ने जान लेवा हमले किये उन्होंने सचमुच बचा चुराया था या नहीं। पुलिस के रिकार्ड के मुताबिक जिन लोगों पर हमले हुये या जहां उन्हें बच्चा चुराने के संदेह में घेरा गया वहां किसी बच्चे को चुराने की घटना के सबूत नहीं है और ना ही कोई बच्चा चुराया गया बताते हैं। यानी फकत अफवाह फैला कर किसी को घेर कर मार डालने का प्रयास हो रहा है। जिन्हें मारा पीटा जा रहा है वे एक खास सम्प्रदाय के निहायत साधनहीन लोग हैं - कोई भीख मांगता है तो कोई ठोंगा बनाता है। सामाजिक विद्वेष फैलाने की इस खास किस्म की साजिश को गढऩे वाले बेशक अंधियारे में खड़े हैं , लेकिन उनकी करतूतों से उनके दिमाग का सुराग तो मिल ही सकता है। इसे जो लोग फैला रहे हैं तथा उससे उत्पन्न भावुकता को क्रियात्मक स्वरूप प्रदान कर रहे हैं , वे उन्हीं लोगों में से हैं जिन्हें वर्तमान सरकार को कमजोर करने का राजनीतिक लाभ मिल सकता है। लोकतंत्र में बेशक जनता अपना मुकद्दर लिखने वालों को चुनती है पर इस चुनाव के पीछे जनता के मानस को प्रभावित कर उनके विचारों को नियंत्रित करने का काम पार्टियों की मशीनरी करती है। हाल तक सत्ता का सुख लेने के कारण लोक से विमुख हो जाने वाली पार्टी को अफवाहें फैला कर जन भावना को उत्प्रेरित करने और उस उत्प्रेरण के प्रभाव से जन्में भावुकतापूर्ण गुस्से को अपनी मर्जी से उपयोग करने का हुनर मालूम है। वह कभी बच्चा चोरी तो कभी अन्य हिंसक घटनाओं को बहाना बना कर जनभावना को अनवरत भड़का रही है। पिछले दिनों की घटनाओं को अगर गौर से देखें तो लगेगा ये सारे वाकयात उन्हीं इलाकों में हुये हैं जहां पूर्व में उस पार्टी विशेष का गढ़ रहा है तथा पहले इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। इन ताजा घटनाओं में आप पायेंगे कि बच्चा चोर बता कर कुछ लोगों का समूह एक आदमी को बुरी तरह पीट रहा है और कोई आदमी उस मार खाने वाले आदमी की तरफ से खड़ा हुआ नहीं दिख रहा है। इसके दो ही कारण हो सकते हैं पहला कि जो लोग मार पीट कर रहे हैं उन्हें वहां के क्षेत्रीय लोग पहचानते हैं और उनके खौफ के कारण हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। वरना बंगाल की संस्कृति इतनी संवेदनशील है कि ऐसे मौकों पर आम जन चुप हो ही नहीं सकते। रवींद्रनाथ और विवेकानंद का नगर कोलकाता मानसिक तौर पर इतना संवेदनशील है कि किसी भी अफवाह की संभाव्यता को थोड़ा पुख्ता कर के उसे विश्वसनीय समाचार की शक्ल में बदला जा सकता है। बच्चा चोरी चूंकि एक संभावना है और सौ पचास लोग इस संभावना को दृढ़ कर उसे विश्वसनीयता प्रदान कर देते हैं। इसी विश्वसनीयता की अंधी दौड़ पर खौफ का धुंध डाल कर उसे सक्रियता में बदल देता है। यही कारण है कि व्यापक सामाजिक तंत्र वाले लोग इस तरह की गतिविधियों पर जल्दी ही कब्जा कर लेते हैं। चूंकि ऐसे कार्यों में भारी भीड़ संलग्नता होती है अतएव सरकार उनपर कठोर कार्रवाई नहीं कर सकती है और इस लाचारी का वे तत्व फायदा उठा कर शासन के नकारा हो जाने का भ्रम पैदा कर देते हैं। ऐसे मौकों पर सबसे जरूरी होता है कि अफवाहों पर न जाकर सच का संधान करना। कौवा कान ले गया तो कौवा के पीछे दौड़ पडऩे से उत्तम होता हे अपने कान को देख लेना। बच्चा चोरी की घटना में जिसे पकड़ा गया क्या उसने सचमुच बच्चा चुराया है। शक होने पर पुलिस की मदद लें, कानून को अपने हाथ में न लें। कानून का निर्णय हमेशा सही होगा।
Sunday, January 13, 2013
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