हरिराम पाण्डेय
19.1.2013
तीन तेल कम्पनियों का इस छमाही में कुल घाटा 1लाख 66 हजार 8 लाख करोड़ हो गया। पिछले साल इस अवधि में यह लगभग इतना ही था। सरकार ने घाटे के कुछ अंश को पूरा करने के लिये गुरुवार को तेल कम्पनियों को तेल की कीमतों में थोड़ी - थोड़ी वृद्धि करने की इजाजत दे दी। इसके बाद भी घाटे की जो राशि है उसे देख कर नहीं लगता कि इस वृद्धि से घाटा पूरा होगा। इसी कारण से तेल कम्पनियों ने सरकार को 85 हजार 586 करोड़ का बिल दिया है जिसके लिए भुगतान करने की हैसियत नार्थ ब्लॉक में नहीं है। कुल मिला कर कहा जा सकता है वर्तमान वित्त वर्ष तेल की अर्थव्यवस्था में बगैर किसी सुधार के समाप्त हो जायेगा। लेकिन इसका एक प्रभाव तो यह भी होगा कि सरकार ने महंगाई के बोझ तले दबे आम आदमी का बोझ और बढ़ा दिया है लेकिन सब्सिडी वाले गैस सिलेंडरों की संख्या साल में छह से बढ़ाकर नौ करके इस बोझ को कुछ हल्का करने की कोशिश जरूर की है। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए अभी ऐसे फैसलों की उम्मीद नहीं थी लेकिन सरकार ने निर्वाचन आयोग के सामने यह दलील रखते हुए इसकी मंजूरी प्राप्त कर ली कि यह निर्णय आचार संहिता लागू होने से पहले ही लिए जा चुके थे और इनकी घोषणा अब की जा रही है। सवाल यह है कि सरकार को डीजल को नियंत्रणमुक्त करने और सब्सिडी वाले रसोई गैस के सिलेंडरों की संख्या छह से बढ़ाकर नौ करने की इतनी जल्दी क्या थी? इन फैसलों को लागू करने के पीछे सरकार तर्क भले कुछ भी दे लेकिन सच यह है कि ये फैसले सरकार की दूरगामी सियासी सोच का नतीजा हैं। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों के अलावा 2014 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। जिसके चलते सरकार को अगले महीने पेश होने वाले आम बजट को लोक लुभावन बनाना है। बजट में सरकार ऐसी कोई घोषणा नहीं करना चाहती थी जिससे मतदाता कांग्रेस से विमुख हों, इसलिए उसने बजट से ठीक पहले डीजल को नियंत्रणमुक्त किए जाने का कड़ा फैसला ले लिया। सब्सिडी वाले गैस सिलेंडरों की संख्या साल में 12 किए जाने की सहयोगी दलों की मांग के बावजूद इसे नौ तक ही सीमित करने के पीछे भी सरकार की मंशा यह दिखती है कि वह देखना चाहती है कि इन फैसलों पर आम आदमी और सहयोगी दलों की क्या प्रतिक्रिया रहती है। अगर यह प्रतिक्रिया कड़ी होती है तो सरकार 28 फरवरी को पेश होने वाले आम बजट में रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या नौ से बढ़ाकर 12 कर सकती है। लेकिन इन सबके बावजूद आम आदमी को राहत मिलने वाली नहीं है क्योंकि डीजल की कीमतों को नियंत्रणमुक्त किए जाने के दूरगामी परिणाम होंगे। भाड़ा महंगा होगा तो आम आदमी के इस्तेमाल की लगभग सभी चीजें महंगी हो जाएंगी। महंगाई बढ़ेगी तो रिजर्व बैंक ब्याज की दरों में वृद्धि करेगा, जिससे कर्ज महंगा होगा और उद्योगों में उत्पादन घटेगा। जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान रखने वाला कृषि क्षेत्र भी बुरी तरह प्रभावित होगा। किसानों को सिंचाई और जुताई के लिए डीजल महंगा मिलेगा तो उनकी आमदनी प्रभावित होगी और वे कर्ज लेने पर मजबूर होंगे। कर्ज न अदा कर पाने की स्थिति में किसानों की आत्महत्या की दर बढऩे का भी अंदेशा है। सरकार को चाहिए था कि डीजल की कीमतों को नियंत्रणमुक्त करने से पहले एक ऐसा खाका तैयार करती जिसमें खाद्य व अन्य आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई पर लगने वाले भाड़े पर डीजल मूल्यवृद्धि का असर न होता, साथ ही किसानों को भी बिना किसी रोक-टोक के सस्ता डीजल मिलता रहता। अलबत्ता डीजल से चलने वाली लक्जरी कारों की कीमतें बढ़ाकर इसकी भरपाई की जा सकती थी लेकिन सरकार ने उच्च आय वर्ग के दबाव में लक्जरी कारों के दामों में वृद्धि करने के बजाए 'चुनावी चक्करÓ में आम आदमी पर ही महंगाई का बोझ और बढ़ा दिया।
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