-हरिराम पाण्डेय मकर संक्रांति यानी सूर्य का मकर राशि में प्रवेश को मकर संक्रांति कहते हैं। यही समय है जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। सूर्य उत्तरायण होना केवल शास्त्र समत नहीं बल्कि विज्ञान समत भी है। चूक सूरज धरती का केंद्र है और सारे ग्रह उसका चक्कर लगाते हैं। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। धरती का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना 'क्रांति चक्रÓ कहलाता है। इस परिधि को 12 भागों में बांट कर 12 राशियां बनी हैं। हमारे पूर्वजों ने सितारों के समूह की आकृति के हिसाब से उन्हें नाम दे रखा था। जो सितारा समूह शेर की तरह दिखता था, उसे सिंह राशि घोषित कर दिया, जो लडकी की तरह उसे कन्या और जो धनुष की तरह दिखें धनु राशि। पृथ्वी का एक राशि से दूसरी में जाना संक्रांति कहलाता है। यह एक खगोलीय घटना है जो साल में 12 बार होती है। सूर्य एक स्थान पर ही खड़ा है, धरती चक्कर लगाती है। अत: जब पृथ्वी मकर राशि में प्रवेश करती है, एस्ट्रोनामी और एस्ट्रोलॉजी में इसे मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति त्योहार नहीं बल्कि व्रत है। व्रत शब्द वृ धातु से बना है, जिसका अर्थ होगा- वरण या च्वायस। संक्रांति का अर्थ है- संक्रमण या ट्रांजिशन। संक्रांति के समय सूर्य एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के समय सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रविष्ट कर जाता है। यही वह समय होता है जब सूर्य उत्तरायण होने लगता है। आम आदमी इस तरह के वर्गीकरण से विरक्त रहता है। लेकिन भारतीय संस्कृति में व्रत उस तरह के पर्वों को कहते हैं, जो पूरे साल को एक वृत्त या गोले के रूप में देखते हैं। यह गोल घूमता हुआ गोला साल में अनेक व्रतों को जन्म देता है। यही कारण है कि मकर संक्रांति की स्थिति लगभग हर साल स्थिर या फिक्स रहती है। आजकल मकर संक्रांति हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाई जाती है। आज से सौ वर्ष पहले यह 12 या 13 जनवरी को मनाई जाती थी। इस संबंध में नासा ने बड़ी दिलचस्प खोज की है। नासा के वैज्ञानिकों पृथ्वी के भ्रमण पथ का आकलन करते हुये पाया कि पिछले हजारों साल से धरती की रतार हर कुछ साल पर 72 घंटे धीमी हो जाती है। क्योंकि धरती की रतार लगातार धीमी होती जा रही है, अत: साल भर में 12 की जगह 13 राशियां हो चुकी हैं। ज्योतिष के विद्वान पता नहीं इसे मानते हैं या नहीं, पर नासा वालों का कहना है कि इस तेरहवीं राशि को गणना में न लेने की वजह से लगभग 84 प्रतिशत भविष्यवाणियां सटीक नहीं हो पाती हैं। यह मकर संक्रांति पर भी लागू है। यही कारण है कि 100 वर्ष पहले मकर संक्रांति 12 या 13 जनवरी को पड़ती थी। आज 14 या 15 जनवरी को पड़ती है। हो सकता है 200 वर्ष बाद यह 24 या 25 जनवरी को पड़े। यहां यह बताना जरूरी है कि व्रत व्यक्तिगत पर्व माना जाता है, जबकि त्योहार सामूहिक पर्व माने जाते हैं। मकर संक्रांति एक पर्व है, लेकिन होली एक त्योहार है। जो व्यक्तिगत पर्व होगा, उसमें अनुष्ठान ज्यादा होगा और उल्लास कम। जबकि सामूहिक पर्व में अनुष्ठान न के बराबर होता है, लेकिन उल्लास अपने अतिरेक पर होता है। यही कारण है कि मकर संक्रांति व्यक्तिगत पर्व होने की वजह से सेलेक्टिव हो जाता है। हम चाहें तो उसे मनाएं या न मनाएं। लेकिन होली के हुडदंग में हम शामिल हों या न हों, होली के असर से बच नहीं सकते हैं। दुनिया की हर संस्कृति में सूरज की पूजा होती है। सूरज की पूजा दुनिया के सभी प्राचीन सयताओं में होती है। शायद सूरज की पूजा करना इन धर्मों को बड़ा वैज्ञानिक बना देता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती पर जीवन का जो भी लक्षण है, वह सूरज की मेहरबानी है। आज से करोडों साल बाद जब सूरज ठंडा हो जाएगा, तो धरती पर जीवन समाप्त हो जाएगा। अत:मकर संक्राति हमारी सांस्कृतिक श्रेष्ठïता का प्रतीक है।
Sunday, January 13, 2013
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment