3.12.2014
पुरानी कहानी है कि भारत की 111 पट्टिïयां करीब 17160 एकड़ जमीन बंगलादेश के कब्जे में हैं और 51 बंगलादेशी पट्टिïयां लगभग 7110 एकड़ जमीन भारतीय कब्जे में हैं। जमीन के ये टुकड़े कूच बिहार के राजा और रंगपुर के फौजदार में चौसर की बाजी में लिये- दिये गये। पहले जुआ या चौसर में जमीनों का लेनदेन हुआ करता था ऐसे सबूत हैं। इधर, आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि यह अग्रेजों की देन है। यह तब हुआ था जब भारत और पाकिस्तान का ताबड़तोड़ बंटवारा हुआ। कुछ घिरे - सकपकाये लोगों को ऐसी जगह डाल दिया गया जो दूसरे देश के कब्जे में चला गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन क्षेत्रों की अदला बदली का जो प्रस्ताव रखा है वह परिपक्व राजनीतिक सोच का सबूत है। हालांकि ऐसा किया जाना भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती रुख के विलोम है , लेकिन वह सोच नक्शे के आधार पर तैयार किया गया था न कि राजनीतिक सामाजिक अनिवार्यताओं और आवश्यकताओं के आधार पर। इस अदला- बदली के लिये 2011 में यू पी ए सरकार और बंगलादेश में समझौता हुआ था। इससे पहले 1971 में इंदिरा - मुजीब भूमि समझौते में कुछ ऐसा ही हुआ था। पर कुछ काम नहीं हो सका क्योंकि इसकी अभिपुष्टिï नहीं की जा सकी थी क्योंकि इसके लिये संसद से मंजूरी लेनी पड़ती है। लेकिन अब इसके लिये राह खुल चुकी है। 31 सदस्यीय संसदीय समिति ने मंजूरी दे दी है। इस समिति के अध्यक्ष कांग्रेस के नेता शशि थरूर हैं और उनका मानना है कि ऐसा किया जाना देश हित के लिये जरूरी है। क्योंकि इससे भारत - बंगलादेश सीमा समस्या स्थाई तौर पर सुलझ जायेगी। पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर की अगुवाई वाली समिति ने दोनों देशों के बीच सीमा तय करने के लिए 119वें संविधान संशोधन विधेयक को अपनी कुछ सिफारिशों के साथ मंजूरी दे दी है। समिति ने केंद्र और राज्य सरकारों को इसके क्रियान्वयन में मानवीय पक्ष का ध्यान रखने तथा पुनर्वास पैकेज को लागू करने की प्रक्रिया पर भी स्पष्टता बनाने को कहा है। समिति ने सीमा निर्धारण पर अमल से पहले राज्यों व केंद्र के बीच बेहतर तालमेल व उच्च राजनीतिक स्तर पर मशविरे पर जोर दिया। पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर की अगुवाई वाली समिति ने दोनों देशों के बीच सीमा तय करने के लिए 119वें संविधान संशोधन विधेयक को अपनी कुछ सिफारिशों के साथ मंजूरी दे दी है। समिति ने केंद्र और राज्य सरकारों को इसके क्रियान्वयन में मानवीय पक्ष का ध्यान रखने तथा पुनर्वास पैकेज को लागू करने की प्रक्रिया पर भी स्पष्टता बनाने को कहा है। समिति ने सीमा निर्धारण पर अमल से पहले राज्यों व केंद्र के बीच बेहतर तालमेल व उच्च राजनीतिक स्तर पर मशविरे पर जोर दिया। मोदी ने यहां भाजपा कार्यकर्ताओं की रैली को संबोधित करते हुए कहा, मैं इस तरह के बंदोबस्त करूंगा, जिसके बाद रोज-रोज असम आने वाले और उसे तबाह करने वाले बंगलादेशियों के लिए सभी रास्तों को बंद कर दिया जाएगा। मेरी बात का भरोसा कीजिए कि असम की इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए भूमि हस्तांतरण समझौता किया जाएगा। यह समझौता दोनों देशों के बीच भूमि सीमा सहमति के तहत सीमा के निर्धारण से संबंधित है। मोदी ने यह आश्वासन ऐसे समय में दिया है जब भाजपा की प्रदेश इकाई और असम गण परिषद ने इस आधार पर समझौते का विरोध किया है कि जमीनों की अदला-बदली में असम को बंगलादेश की तुलना में अधिक क्षेत्र गंवाना पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि केवल असम की जनता और सीमा की सुरक्षा के लिए जमीन का हस्तांतरण किया जाएगा और राज्य को किसी तरह के नुकसान के लिए यह कदम नहीं उठाया जाएगा। उन्होंने कहा, मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह बात कह रहा हूं। मोदी ने कहा कि भूमि के आदान-प्रदान से जुड़े समझौते के संबंध में वह राज्य की जनता की भावनाओं को समझते हैं और असम की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। यही नहीं इस अदला बदली में भारत को कानूनी तौर पर 2777 एकड़ जमीन प्राप्त होगी। यह जमीन दरअसल भारत की है पर शासन बंगलादेश का चलता है, यही नहीं इसी तरह बंगलादेश की 2267 एकड़ जमीन बंगलादेश को प्राप्त होगी। यह एक परिपक्व समझौता है जो दो मित्र राष्टï्रों के बीच सीमा के अनबन को खत्म कर देगा। भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है और अपनी गरिमा को देखते हुए इस अदलाबदली को शालीनता से स्वीकार कर लेना चाहिये। 2013 में असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सार्वजनिक तौर पर ऐसी अदलाबदली की वकालत की थी और कहा था कि इससे असम को प्रत्यक्ष लाभ होगा। अतीत में तृणमूल कांग्रेस ने इसका विरोध किया था पर वर्तमान में इसके एक नेता सौगत बोस 31 सदस्यीय कमिटी में हैं और उन्होंने इस समझौते को मंजूरी दी है। इससे भारत को चीन से सीमा वार्ता करने में सहूलियत मिलेगी।
पुरानी कहानी है कि भारत की 111 पट्टिïयां करीब 17160 एकड़ जमीन बंगलादेश के कब्जे में हैं और 51 बंगलादेशी पट्टिïयां लगभग 7110 एकड़ जमीन भारतीय कब्जे में हैं। जमीन के ये टुकड़े कूच बिहार के राजा और रंगपुर के फौजदार में चौसर की बाजी में लिये- दिये गये। पहले जुआ या चौसर में जमीनों का लेनदेन हुआ करता था ऐसे सबूत हैं। इधर, आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि यह अग्रेजों की देन है। यह तब हुआ था जब भारत और पाकिस्तान का ताबड़तोड़ बंटवारा हुआ। कुछ घिरे - सकपकाये लोगों को ऐसी जगह डाल दिया गया जो दूसरे देश के कब्जे में चला गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन क्षेत्रों की अदला बदली का जो प्रस्ताव रखा है वह परिपक्व राजनीतिक सोच का सबूत है। हालांकि ऐसा किया जाना भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती रुख के विलोम है , लेकिन वह सोच नक्शे के आधार पर तैयार किया गया था न कि राजनीतिक सामाजिक अनिवार्यताओं और आवश्यकताओं के आधार पर। इस अदला- बदली के लिये 2011 में यू पी ए सरकार और बंगलादेश में समझौता हुआ था। इससे पहले 1971 में इंदिरा - मुजीब भूमि समझौते में कुछ ऐसा ही हुआ था। पर कुछ काम नहीं हो सका क्योंकि इसकी अभिपुष्टिï नहीं की जा सकी थी क्योंकि इसके लिये संसद से मंजूरी लेनी पड़ती है। लेकिन अब इसके लिये राह खुल चुकी है। 31 सदस्यीय संसदीय समिति ने मंजूरी दे दी है। इस समिति के अध्यक्ष कांग्रेस के नेता शशि थरूर हैं और उनका मानना है कि ऐसा किया जाना देश हित के लिये जरूरी है। क्योंकि इससे भारत - बंगलादेश सीमा समस्या स्थाई तौर पर सुलझ जायेगी। पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर की अगुवाई वाली समिति ने दोनों देशों के बीच सीमा तय करने के लिए 119वें संविधान संशोधन विधेयक को अपनी कुछ सिफारिशों के साथ मंजूरी दे दी है। समिति ने केंद्र और राज्य सरकारों को इसके क्रियान्वयन में मानवीय पक्ष का ध्यान रखने तथा पुनर्वास पैकेज को लागू करने की प्रक्रिया पर भी स्पष्टता बनाने को कहा है। समिति ने सीमा निर्धारण पर अमल से पहले राज्यों व केंद्र के बीच बेहतर तालमेल व उच्च राजनीतिक स्तर पर मशविरे पर जोर दिया। पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर की अगुवाई वाली समिति ने दोनों देशों के बीच सीमा तय करने के लिए 119वें संविधान संशोधन विधेयक को अपनी कुछ सिफारिशों के साथ मंजूरी दे दी है। समिति ने केंद्र और राज्य सरकारों को इसके क्रियान्वयन में मानवीय पक्ष का ध्यान रखने तथा पुनर्वास पैकेज को लागू करने की प्रक्रिया पर भी स्पष्टता बनाने को कहा है। समिति ने सीमा निर्धारण पर अमल से पहले राज्यों व केंद्र के बीच बेहतर तालमेल व उच्च राजनीतिक स्तर पर मशविरे पर जोर दिया। मोदी ने यहां भाजपा कार्यकर्ताओं की रैली को संबोधित करते हुए कहा, मैं इस तरह के बंदोबस्त करूंगा, जिसके बाद रोज-रोज असम आने वाले और उसे तबाह करने वाले बंगलादेशियों के लिए सभी रास्तों को बंद कर दिया जाएगा। मेरी बात का भरोसा कीजिए कि असम की इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए भूमि हस्तांतरण समझौता किया जाएगा। यह समझौता दोनों देशों के बीच भूमि सीमा सहमति के तहत सीमा के निर्धारण से संबंधित है। मोदी ने यह आश्वासन ऐसे समय में दिया है जब भाजपा की प्रदेश इकाई और असम गण परिषद ने इस आधार पर समझौते का विरोध किया है कि जमीनों की अदला-बदली में असम को बंगलादेश की तुलना में अधिक क्षेत्र गंवाना पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि केवल असम की जनता और सीमा की सुरक्षा के लिए जमीन का हस्तांतरण किया जाएगा और राज्य को किसी तरह के नुकसान के लिए यह कदम नहीं उठाया जाएगा। उन्होंने कहा, मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह बात कह रहा हूं। मोदी ने कहा कि भूमि के आदान-प्रदान से जुड़े समझौते के संबंध में वह राज्य की जनता की भावनाओं को समझते हैं और असम की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। यही नहीं इस अदला बदली में भारत को कानूनी तौर पर 2777 एकड़ जमीन प्राप्त होगी। यह जमीन दरअसल भारत की है पर शासन बंगलादेश का चलता है, यही नहीं इसी तरह बंगलादेश की 2267 एकड़ जमीन बंगलादेश को प्राप्त होगी। यह एक परिपक्व समझौता है जो दो मित्र राष्टï्रों के बीच सीमा के अनबन को खत्म कर देगा। भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है और अपनी गरिमा को देखते हुए इस अदलाबदली को शालीनता से स्वीकार कर लेना चाहिये। 2013 में असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सार्वजनिक तौर पर ऐसी अदलाबदली की वकालत की थी और कहा था कि इससे असम को प्रत्यक्ष लाभ होगा। अतीत में तृणमूल कांग्रेस ने इसका विरोध किया था पर वर्तमान में इसके एक नेता सौगत बोस 31 सदस्यीय कमिटी में हैं और उन्होंने इस समझौते को मंजूरी दी है। इससे भारत को चीन से सीमा वार्ता करने में सहूलियत मिलेगी।
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