CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, February 24, 2010

चालबाजियों की आड़ में वार्ता

आज से भारत - पाकिस्तान में सचिव स्तरीय वार्ता आरंभ होने वाली है। राजनयिक सर्किल में सरगोशियां हैं और विशेषज्ञ मुतमइन हैं कि जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान को रियायत देने के लिये भारत पर अमरीका ओर पश्चिमी देशों का भारी दबाव पड़ेगा। इसमें हैरत नहीं कि इसमें रूस, चीन और ईरान वगैरह देश बी भारत कें खिलाफ एकजुट हो जाएं। आखिर ऐसा क्यों और भारत को अब क्या करना चाहिये? यह बड़ा महत्वपूर्ण सवाल हैं जो आम लोग जानना चाहेंगे। दरअसल अब तक भारत और पाकिस्तान के मध्य जम्मू- कश्मीर ही एकमात्र बकाया मसला था। इसमें कश्मीर का भारत में पूरी तरह विलय हो गया और एक संसदीय संकल्प भी है कि पाक अधिकृत कश्मीर को भारत को देना होगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बारम्बार कह चुके हैं कि सीमा मसले में फैसला करने लायक बहुमत उनके पास नहीं है। अब इस स्थिति के सम्बंध में बहुत से उपप्रश्र हैं। चूंकि जम्मू- कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और इस कारणवश यह भारत के धर्मनिरपेक्ष और बहुजातीय समाज का प्रतीक है। अब अगर यह भारत के साथ नहीं रह पाता है तो एक बार दोनों देशों में फिर बंटवारे की आग भड़क सकती है। इस मामले में सबसे खराब होगा कि देश बंट जायेगा। लश्कर- ए- तय्यबा, पाकिस्तानी फौज और आई एस आई का लक्ष्य ही यही है। दूसरी तरफ पाकिस्तान खुद को जम्मू- कश्मीर के बगैर पूर्ण नहीं मानता। बंगलादेश की फांस सदा उनके जिगर में चुभती रहती है। हालांकि इस विभाजन के लिये जनरल याह्या खां और भुट्टो दोषी थे पर पाकिस्तानी कट्टरपंथी इसके लिये भारत को दोषी मानते हैं। वे महसूस करते हैं कि यदि जम्मू- कश्मीर पाकिस्तान को मिल जाय और भारत तबाह-ओ-बर्बाद हो जाय तो रूह को जरा राहत मिलेगी। भारत को भी यह मालूम है और यह भी मालूम है कि 1947 से ही पाकिस्तान किसी ना किसी तरह भारत को तबाह करने में लगा हुआ है। भारत बड़ी दिलेरी से इसका मुकाबला करता रहा है। तब शुक्रवार को होने वाली बैठक में नया क्या है और कश्मीर पर दबाव में पुराना क्या है? पाकिस्तान ने जम्मू- कश्मीर मसले को बड़ी सफलता से अंतरराष्ट्रीय स्वरूप दे दिया है। अब वह इस अफगान- पाक की डिजायन पर ले जाना चाहता है। हालांकि जम्मू- कश्मीर और अफगानिस्तान पाकिस्तान में कहीं सम्बंध नहीं है। लेकिन पाकिस्तान ने अपनी जुगत से सोवियत संघ को अफगानिस्तान से निकालने के बाद वह खुद को बहादुर मान रहा है। उसने ऐसी स्थिति तैयार कर रखी है कि बड़ी ताकतें खास कर अमरीका और यूरोप यह सोचे कि पाकिस्तान को कश्मीर मामले में संलग्न रहना चाहिये। इसके पुख्ता कारण भी हैं। यह तो सब जानते हैं कि अफगानिस्तान को गणतांत्रिक बनाने की राह में पाकिस्तान खड़ा है। अमरीका और यूरोप को भी मालूम है कि अल कायदा/ तालिबान से पाकिस्तान का चोली दामन का साथ है। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अफगानिस्तान से फौज वापस लाने की अंतिम तिथि तय की है। अब पाकिस्तान के सामने दो ही विकल्प हैं पहला कि वह तालिबान को सत्ता तक आने दे और कश्मीर में अपने हित साधन को कठिन बना दे अथवा कश्मीर में अपना पांव जमाने के लिये मौका पाने के बदले अल कायदा/ तालिबान को अमरीका / यूरोप के हाथों बेच देगा। यहीं पर आकर भारत- पाक वार्ता का स्वरूप बिल्कुल नया हो जा रहा है। पाकिस्तान की इस चाल से सरकार को सतर्क रहना होगा।

0 comments: