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Wednesday, July 14, 2010

भारत में गरीबी


यूएनडीपी ह्यूमन डिवेलपमेंट रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सबसे अधिक गरीब रहते हैं। देश में कुल गरीबों की संख्या 42 करोड़ है, जो 26 अफ्रीकी देशों के गरीबों से एक करोड़ ज्यादा है। यूएनडीपी की ह्यूमन डिवेलपमेंट रिपोर्ट के ताजा संस्करण में कहा गया है कि भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और राजस्थान में गरीबों की बाढ़ है। यहां पर गरीबी निरंतर बढ़ती जा रही है। इसके चलते गरीबों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। एक तरफ जहां देश में अरबपति और करोड़पति बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ गरीबों की संख्या भी बढ़ रही है।
यूएनडीपी की नजर में गरीब का मतलब है वह परिवार जिसे हर रोज एक डॉलर से कम आमदनी पर गुजारा करना पड़ता है। आज के हिसाब से जिस परिवार की आमदनी 45 रुपये या उससे कम है, लेकिन कैसी विडम्बना है कि देश के एक वर्ग में हजारों करोड़ की बातें आम हैं। लाखों करोड़ के सौदे होते हैं। करोड़ों रुपए के एडवांस इनकम टेक्स भरे जा रहे है, लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और राजस्थान में भूख पांव पसार रही है। किसी को परवाह नहीं है कि इस जगमगाते हुए इंडिया में एक भारत भी बसता है जिसमें सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ही 42 करोड़ से ज्यादा ऐसे लोग हैं जो गरीबी की रेखा के नीचे रहने पर अभिशप्त है।
भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रिन्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़े और तथाकथित सर्वेक्षण इस रेखा को निर्धारित करते हैं। उसके अनुसार गरीबी की रेखा की परिभाषा कुछ इस तरह है। ग्रामीण इलाकों में जिन्हें 2400 कैलोरी और शहरी इलाकों में 2100 कैलोरी का भोजन या जो भी खाद्य-अखाद्य पदार्थ मिल जाते हैं, वे गरीब नहीं रहते। एक दिन में 2400 कैलोरी का मतलब है छह रोटी, सब्जी और एक कटोरी दाल, दो वक्त में। आप कल्पना कीजिए कि अगर आप भद्र लोग दिखने के लिए डाइटिंग नहीं कर रहे हैं तो आप कितनी कैलोरी खाते हैं। एक आम आदमी को स्वस्थ और कर्मठ रहने के लिए रोज कम से कम चार हजार कैलोरी की जरूरत है। मगर सन 1970 में यानी आज से चालीस साल पहले बनाया गया परिभाषा का यह आंकड़ा आज भी चल रहा है और इसी के हिसाब से 42 करोड़ लोग भारत में गरीब हैं। सन 1970 के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में ये एक महीने के लिए 2400 कैलोरी 62 रुपए में और शहरी इलाकों में 71 रुपयों में खरीदी जा सकती है। मुद्रास्फीति के साथ 2000 तक यह आंकड़ा ग्रामीण इलाकों में 328 रुपए और शहरी इलाकों में 454 रुपए पहुंच गया थे। सन 2004 तक 5.5 प्रतिशत मुद्रास्फीति हो चुकी थी और यह आंकड़ा 454 और 540 रुपए मासिक तक पहुंच गया था। हम क्या बात कर रहे हैं?
हम यानी हमारी सरकार यह कह रही है कि अगर आपकी मासिक आमदनी 540 रुपए है और आप शहर में रहते हैं तो आपको गरीब नहीं माना जाएगा। मान लीजिए आप 600 रुपए कमाते हैं और 540 रुपए खाने पर खर्च कर देते हैं तो आप गरीब कैसे हुए?
रोजगार गारंटी योजना का बहुत डंका पीटा जाता है। लाखों करोड़ रुपए का बजट है। इस बजट का बहुत बड़ा हिस्सा पहले अधिकारी खाते थे और अब अधिकारियों की कायरता की वजह से माओवादी खा जाते हैं। लेकिन इस परम कल्याणकारी योजना में गरीबी की सीमा रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए साल में सौ दिन का अनिवार्य रोजगार लगभग सत्तर रुपए रोज के हिसाब से सुनिश्चित किया गया है। अगर ईमानदारी से यह रोजगार और मजदूरी मजदूरों तक पहुंचे - और हम काल्पनिक स्थिति की बात कर रहे हैं- तो भी एक व्यक्ति को पूरे साल में सात हजार रुपए की आमदनी पूरा दिन मजदूरी करने के बाद मिलेगी। वातानुकूलित भवनों में जो गरीबी विशेषज्ञ बैठे हैं, उन्हें चुनौती है कि सात हजार रुपए में एक सप्ताह का अपना खर्चा चला कर बता दे। इतना तो उनके ड्राइवर का वेतन होता है। इससे कई गुना ज्यादा बिजली का बिल होता है। इससे कई सौ गुना गरीबी के नाम पर उनके हवाई सर्वेक्षणों पर खर्च किया जाता है। कालाहांडी या छतरपुर के गांवों में जा कर देखिए जहां एक उबले हुए आलू के सहारे पूरा परिवार आधा पेट चावल खाता है और हम कैलोरी की गिनती कर के उन्हें गरीब मानने से इनकार कर देते हैं। यह पाखंड हैं, आपराधिक और नारकीय पाखंड हैं।

3 comments:

Anjoria said...

आदरणीय हरिराम पांडेय जी,

आपका लेख बहुत सही जगह चोट करता है परन्तु मुझे लगता है कि कहीं चूक हो गई है. नरेगा में आजकल एक सौ दस रुपये रोजाना की दर से मिल रहे हैं और इस हिसाब से उस मजदूर को साल भर में एगारह हजार रुपये तक मिल सकते हैं अगर प्रधान जी, मुखिया जी, नेता जी उस पर मेहरबान रहे और उस बेचारे के भुगतान से कोई कटौती नहीं ली गई जो सामान्य रुप से दस रुपया रोज की दर से ले लिया जाता है.

आपका शिष्य

Shah Nawaz said...

आपका लेख डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट के आज के संस्करण में छपा है. हार्दिक शुभकामनाएँ.

http://65.175.77.34/dailynewsactivist/Details.aspx?id=8215&boxid=27113000&eddate=7/23/2010


http://65.175.77.34/dailynewsactivist/epapermain.aspx

Anonymous said...

mujhe yah padhkar bahut khushi hui ki aapne aisa likha hai jo kai logon ne nahin likha. Mein 9 saal ki hoon aur mein apne vidhyalay ke liye ek nibandh likhna chaahti thi aur maine yah nabandh aapka padhkar teh kar liya ki main garibi pe hi nibandh likhungi. Aapka bahut shukriyada.