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Tuesday, July 13, 2010

विदेश सचिव और दलाई लामा की मुलाकात

हरिराम पांडेय
भारत की विदेश सचिव निरुपमा राव ने शनिवार (१०-७-२०१०) को परम पावन दलाई लामा से उनके आवास में जाकर मुलाकात की। परम पावन दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं। यहीं इनकी सरकार का मुख्यालय भी है। धर्मशाला में ही उनके मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहते हैं। जिस समय निरुपमा राव ने परम पावन से मुलाकात की उस समय उनके प्रधानमंत्री सामधोंग रिनपोछे भी उपस्थित थे उनके अलावा परम पावन के सलाहकार भी साथ थे । अतएव यह मुलाकात गोपनीय नहीं थी। जैसा कि अखबारों में कहा गया है कि इस दौरान भारत में रह रहे तिब्बतियों के कल्याण और दलाई लामा की सुरक्षा पर चर्चा हुई। हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने भी 9 जुलाई को रिपोर्टरों को बताया था कि 10 और 11 जुलाई को विदेश सचिव धर्मशाला आयेंगी पर उन्होंने यह नहीं कहा था कि वे परम पावन दलाई लामा से मिलेंगी भी। वैसे अपने देश में यह रिवाज रहा है कि जो भी विदेश सचिव होगा वह परम पावन दलाई लामा से मुलाकात करेगा। निरुपमा राव ने जब इस पद पर कार्य भार संभाला तब से दो तीन बार वहां जाने की योजना बनायी गयी और हर बार किसी न किसी कारण से मुल्तवी हो गयी। आखिरी बार वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के प्रधानमंत्री के विशेष दूत के रूप में 3 जुलाई को बीजिंग जाने से पहले जाना चाहती थीं पर नहीं जा सकीं। यहां यह इसलिये बताया जा रहा है कि यह मुलाकात असामान्य नहीं थी और ना ही गोपनीय, लेकिन तब भी कूटनीतिक हलकों में अटकलों का बाजार गरम है क्योंकि गिलगित- बाल्टिस्तान इलाके में सड़क बनाने में चीन पाकिस्तान की मदद कर रहा है। इस सड़क से भारतीय सुरक्षा को भारी खतरा है। भारत की इसी चिंता से चीन की सरकार को अवगत कराने के लिये शिवशंकर मेनन प्रधानमंत्री का विशेष संदेश लेकर बीजिंग गये थे। हालांकि बीजिंग ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। अब यह समझा जा रहा है कि इसी मसले को लेकर निरुपमा राव ने परम पावन दलाई लामा से भेंट की है।
गिलगित बाल्टिस्तान दरअसल कश्मीर का ही हिस्सा है और 1948 से पाकिस्तान ने उस पर कब्जा किया हुआ है। चीनी इलाके से गुजरने वाले काराकोरम हाईवे के निर्माण में पाकिस्तान की चीन ने मदद की थी और उसी के आभारस्वरूप पाकिस्तान ने गिलगित - बाल्टिस्तान का कुछ हिस्सा 1960 में चीन को दे दिया। अब भी काराकोरम हाई वे की मरम्मत में चीन पाकिस्तान को मदद दे रहा है। अब जब भारत ने इसपर एतराज जताया तो चीन नें यह कहकर टाल दिया कि इससे पाकिस्तान- सिंकियांग में तिजारत में मदद मिलेगी, लेकिन भारत के लिये यह गंभीर खतरे का बायस है। इसके माध्यम से पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में आनन फानन में फौजी हथियार और रसद ला सकता है। यही नहीं फौजी हमले के दौरान बड़ी तेजी से चीन अपनी सेना सिकियांग में भेज सकता है। यह भी भारत के खिलाफ पाकिस्तान की मदद हुई। यही नहीं इससे लद्दाख और करगिल में सेना की संख्या में वृद्धि से मामला और जटिल हो जायेगा। यहां यह भी ध्यान देने लायक तथ्य है कि चीन लद्दाख में अर्से से अपना कब्जा चाहता है।
हालांकि विदेश सचिव का परम पावन दलाई लामा से मुलाकात में ऐसा कुछ भी नहीं था पर भारत सरकार को चाहिये कि वह अपनी जायज चिंता को हर मंच पर पूरी ताकत से उठाये। हमारे नीति निर्माताओं को भी चाहिये कि वे इस बात पर विचार करें कि चीन की इस कार्रवाई का कैसे मुकाबला किया जाय। इसमें दलाई लामा से मुलाकातों में वृद्धि और म्यूनिख में 'उइगर कांग्रेस में शिरकत भी एक तरीका हो सकता है।

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