दुनिया का कोई भी समझदार आदमी इसे संसदीय प्रणाली का अपमान कहेगा कि वर्षाकालीन सत्र के पहले हफ्ते का अधिकांश समय इस बात पर बर्बाद हो गया कि महंगाई के मुद्दे पर बहस किस नियम के तहत होनी चाहिए?
क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि जो विपक्ष नियम की मांग पर अड़ा हुआ है वह बहस से भाग रहा है? देश की जनता को क्या फर्क पड़ता है कि बहस किस नियम के तहत होती है, उसे मतलब इस बात से है कि जो लोग महंगाई पर रात-दिन एक कर रहे हैं उनके पास कौन से ऐसे तरीके व सुझाव हैं जिससे महंगाई कम हो सकती है? जनता उनके इन विचारों को जानना चाहती है, मगर क्या कयामत है कि संसद का सत्र चल रहा है और प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा महंगाई कम करने के लिए राष्ट्रपति को ज्ञापन देने की सोचती है ?
क्या यह पार्टी इतनी विचार शून्य हो गयी है कि वह महंगाई कम करने का एक भी प्रस्ताव सरकार को नहीं सुझा सकती ?
दरअसल यह पार्टी अपने जाल में खुद ही फंस चुकी है। महंगाई पर चर्चा किस नियम के तहत हो इस पर हुई चर्चा में सदन के नेता व वित्तमन्त्री श्री प्रणव मुखर्जी ने इसे उल्टा लपेट दिया है। जिस मिट्टी के तेल व गैस सिलेंडर के दाम बढ़ाये जाने के मसले पर भाजपा ढिंढोरा पीट रही थी कि ऐसा कभी नहीं हुआ, वह अपने ही जाल में तब उलझ गयी जब श्री मुखर्जी ने कहा कि आपने तो अपने शासन में मिट्टी के तेल के भाव सीधे 2 रुपये लीटर से बढ़ा कर 9 रुपये कर दिये थे हमने तो केवल तीन रुपये ही बढ़ाये हैं। जाहिर है कि यह हकीकत भाजपा के सभी तर्कों को निगल गयी इसीलिए उसने संसद की जगह राष्ट्रपति भवन जाने का रास्ता चुना क्योंकि संसद में बहस होने पर वह अपने ही कारनामों के आगे सिर झुकाने को मजबूर हो सकती है। गनीमत है कि भाजपा ने पेट्रोल व डीजल के दामों को मुद्दा नहीं बनाया क्योंकि ऐसा करने पर उसकी हालत और भी ज्यादा पतली होती।
जहां नीयत ही यह हो कि चाहे जैसे भी हो बहस से भागा जाए वहां... तू नहीं तो और सही... की नीति लागू करके काम चलाया जाता है।
अगर वास्तव में विपक्ष महंगाई पर गंभीर है तो वह संसद के भीतर अपने तर्कों से सरकार को निरुत्तर करे और देश को बताये कि उसने महंगाई से निजात पाने के लिए कैसी नीति दी है ? वह देश की जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उसका यह प्रयास शायद ही सफल हो।
भारत की जनता भली-भांति समझ चुकी है कि राम का नाम लेने वाले किस तरह राम के नाम की तिजारत करते हैं।
देश में लोकतंत्र की सबसे बड़ी संस्था लोकसभा को कांग्रेसियों ने भी लाचार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और उन्होंने प्रधानमन्त्री को ही राज्यसभा का सदस्य बना डाला। भाजपा की राजनीति तो कांग्रेस की ऐसी ही खामियों की वजह से जिन्दा है। आज की हकीकत तो यह है कि एक तरफ संसद में महंगाई के मुद्दे पर घमासान मचा हुआ है और दूसरी तरफ बरसात के मौसम में अनाज खुले में पड़ा सड़ रहा है।
Friday, July 30, 2010
यह क्या हो रहा है संसद में?
Posted by pandeyhariram at 10:39 PM
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