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Tuesday, January 4, 2011

अकेले विनायक सेन ही नहीं हैं


पिछले दिनों अखबारों में दो अजीब खबरें प्रकाशित हुई थीं। एक खबर थी कि डॉक्टर विनायक सेन को नक्सलियों से साथ रखने और शंकर गुहा नियोगी की हत्या में सहयोग देने के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनायी गयी है। दूसरी खबर थी घोटालों के सरताज ए राजा और सुरेश कलमाड़ी के हंसते हुये चित्र थे। शायद बहुतों को मालूम नहीं होगा कि डॉ. विनायक सेन पेशे से चिकित्सक हैं और रूरल हेल्थ पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का उन्होंने काम किया है। आदिवासियों की सेवा के लिये जीवन होम करने वाले उस डॉक्टर के बच्चे प्राथमिक शिक्षा तक से महरूम हैं।
डॉ सेन को एक ऐसे तंत्र द्वारा दोषी ठहराया गया है, जिसे मतिभ्रम के शिकार राजनेताओं द्वारा चंद भ्रमित पुलिस अफसरों की मदद से संचालित किया जाता है। निश्चित ही डॉ विनायक सेन को सुनायी गयी सजा को उच्चतर अदालतों में चुनौती दी जाएगी और ऐसा होना भी चाहिए।
डॉ सेन की पत्नी ने कहा है कि... एक तरफ जहां गैंगेस्टर और घपलेबाज आजाद घूम रहे हों, वहां एक ऐसे व्यक्ति को देशद्रोही ठहराया जाना एक शर्मनाक स्थिति है, जिसने देश के गरीबों की तीस साल तक सेवा की है।..
यह सच है और संभवत: सभी प्रबुद्ध भारतीय उनके इस मत से सहमत होंगे। विनायक सेन ने एक बुनियादी नैतिक गलती की है और वह यह कि वे गरीबों के पक्षधर हैं। हमारे आधिपत्यवादी लोकतंत्र में इस गलती के लिए कोई माफी नहीं है। सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम और यकीनन रमन सिंह के लिए इस बार का क्रिसमस वास्तव में ..'मेरी क्रिसमस.. रहा होगा।
कांग्रेस और भाजपा दो ऐसे राजनीतिक दल हैं, जो फूटी आंख एक-दूसरे को नहीं सुहाते। वे तकरीबन हर मुद्दे पर एक-दूसरे से असहमत हैं। लेकिन नक्सल नीति पर वे एकमत हैं। नक्सल समस्या का हल करने का एकमात्र रास्ता यही है कि नक्सलियों के संदेशवाहकों को रास्ते से हटा दो। हो सकता है कि डॉ विनायक सेन के राजनीतिक विचारों से सहमत नहीं हों लेकिन यह केवल एक तानाशाह तंत्र में ही संभव है कि असहमत होने वालों को जेल में ठूंस दिया जाए। भारत धीरे-धीरे दोहरे मापदंडों वाले एक लोकतंत्र के रूप में विकसित हो रहा है, जहां विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए कानून उदार है और वंचित तबके के लोगों के लिए यही कानून पत्थर की लकीर बन जाता है।
यह विडंबना है कि डॉ विनायक सेन को सुनायी गयी सजा की खबर क्रिसमस की सुबह अखबारों में पहले पन्ने पर थी। हम सभी जानते हैं कि ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर को नहीं हुआ था। चौथी सदी में पोप लाइबेरियस द्वारा ईसा मसीह की जन्म तिथि 25 दिसंबर घोषित की गयी, क्योंकि उनके जन्म की वास्तविक तिथि स्मृतियों के दायरे से बाहर रहस्यों और चमत्कारों की धुंध में कहीं गुम गयी थी।

क्रिसमस एक अंतरराष्ट्रीय त्यौहार इसलिए बन गया, क्योंकि वह जीवन को अर्थवत्ता देने वाले और सामाजिक ताने-बाने को समरसतापूर्ण बनाने वाले कुछ महत्वपूर्ण मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है। ये मूल्य हैं शांति और सर्वकल्याण की भावना, जिसके बिना शांति का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता। सर्वकल्याण की भावना किसी धर्म-मत-संप्रदाय से बंधी हुई नहीं है।
यदि काल्पनिक सबूतों के आधार पर डॉ विनायक सेन जैसों को दोषी ठहराया जाने लगे तो हिंदुस्तान में जेल कम पड़ जाएंगे। ब्रिटिश राज में गांधीवादी आंदोलन के दौरान ऐसा ही एक नारा दिया गया था। यह संदर्भ सांयोगिक नहीं है, क्योंकि हमारी सरकार भी नक्सलवाद के प्रति साम्राज्यवादी और औपनिवेशिक रवैया अख्तियार करने लगी है। विनायक सेन को जिस आधार पर सजा हुई है उस आधार पर कोलकाता, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में भी कई लोग मिल जायेंगे। आशा है ऊंची अदालतें समग्र रूप से विचार करेंगी और सचमुच न्याय करेंगी।

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