जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं पश्चिम बंगाल की सियासत का तापमान बढ़ता जा रहा है। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि विगत 30 वर्षों में राज्य देश का सबसे पिछड़ा राज्य हो गया है। हाल ही में नोबेल विजेता अमर्त्य सेन ने कहा कि पश्चिम बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा भयानक है। प. बंगाल के राज्यपाल एम. के. नारायणन ने कहा है कि वे वहां के हालात से बेहद चिंतित हैं।
राज्य में बनती खतरनाक स्थिति के मद्देनजर इन दोनों की राय से शायद ही कोई असहमत हो। हालात ऐसे हैं कि बहुत से लोगों को 1970 के आसपास का जमाना याद आने लगा है, जब नक्सलबाड़ी विद्रोह की पृष्ठभूमि में राज्य के कालेज कैम्पसों से लेकर खेत-खलिहानों तक में अराजकता जैसी स्थिति बन गयी थी। लोगों को यह चिंता सता रही है कि क्या वही दिन अब वापस आ रहे हैं, क्या अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता हड़पने और बचाने की कोशिश में जुटी पार्टियां वैसे ही हालात पैदा करने पर आमादा हैं?
जानकार मानते हैं कि विधानसभा चुनाव के और करीब आने के साथ पश्चिम बंगाल में तनाव और टकराव के और बढऩे का अंदेशा है। पिछले तीन साल में बनी सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों की वजह से वाम मोर्चा पिछले साढ़े तीन दशक में सबसे कमजोर स्थिति में है और उसके विरोधी उसे उखाड़ फेंकने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते। दूसरी तरफ वाम मोर्चा भी अपना किला बचाने की जद्दोजहद में कोई तौर-तरीका छोडऩे को तैयार नहीं है।
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद हर स्तर के चुनाव में वाम मोर्चा को लगे झटकों की वजह से पार्टी के नेता और कार्यकर्ता हिले हुए हैं। सारी स्थितियों के लिये सचमुच तीन संकट जिम्मेदार हैं। पहला संकट है अर्थव्यवस्था का। दूसरा संकट है ममता बनर्जी की राजनीतिक बढ़त का और तीसरा संकट है माकपा की आंतरिक बदइंतजामी का।
वाममोर्चा सरकार को इन तीनों संकटों का एक ही साथ सामना करना पड़ रहा है। इनमें सबसे भयानक संकट है राज्य की अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन का। वाममोर्चा सरकार साढ़े तीन दशक से शासन में है लेकिन राज्य का आर्थिक प्रबंधन अभी तक अपनी बेढब चाल से चलना बंद नहीं हुआ है। आर्थिक कुप्रबंधन की इतनी बुरी मिसाल अन्यत्र किसी भी राज्य में देखने को नहीं मिलेगी। हालांकि पार्टी का दावा है कि हाल में उसे कुछ सकारात्मक संकेत मिले हैं, और उसे बेहतर सम्भावनाओं में बदलने के लिए मोर्चे ने अपने को पूरी तरह से झोंक दिया है।
पश्चिम बंगाल में इस रण की तैयारी अभी जिन औजारों के साथ हो रही है, वह लोकतांत्रिक नहीं है, बल्कि नि:संदेह यह कहा जा सकता है कि यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
Tuesday, January 4, 2011
भारी खतरों के संकेत
Posted by pandeyhariram at 2:24 AM
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