हरिराम पाण्डेय किसी शहर को सुंदरी के रूप में देखा जाना सचमुच बड़ी अजीब कल्पना है। लापियरे ने बेशक कोलकाता को जीवंत तौर पर परखा है लेकिन तिलोत्तमा के रूप में इस शहर की कल्पना के साथ ही कोलकाता के बारे में गालिब का वह शेर याद आता है कि, जिक्र कलकत्ते का तूने किया जो जालिम इक तीर मेरे दिल में वो मारा के हाय हाय। गालिबन मिर्जा गालिब दुनिया के पहले शायर थे जिन्होंने कोलकाता या कलकत्ता में दुविधाओं के बीच भी जीवन की राह तलाशनी शुरू की थी। कोलकाता ऐसा शहर है जहां सवाल ईमान और कुफ्र का नहीं, सवाल धर्मी और विधर्मी का नहीं, सवाल एक नयी रोशनी का है एक नये नजरिये का है। पता नहीं आपको मालूम होगा या नहीं कि जब हम किसी शहर को देखते हैं तो वह शहर भी हमें देखता है। हुगली नदी के किनारे तीस मील की लम्बाई में बसा हुआ महानगर, एक करोड़ के आसपास आबादी जिसके जवाब में सिर्फ टोकियो, लन्दन और न्यूयॉर्क के नाम लिए जा सकते हैं लेकिन इसमें उनसे कहीं ज्यादा वहशतें आबाद हैं। आसमान की बुलंदियों से नीचे देखें तो दूर-दूर तक हरियाली दिखाई देती है, कहीं गहरी सियाही, कहीं पीलाहट लिए हुए। लेकिन ये सारे रंग प्रदर्शन , अभिव्यक्ति के लिए बेचैन एक अनदेखी ऊर्जा का रूपक हैं। ठीक वैसे ही जैसे सोलहों सिंगार के बाद कोई सुंदरी दर्पण देखने को बेचैन होती है। आसमान से दिखने वाली इन्हीं हरियालियों में यहां-वहां चमकता, चौंकता, कौंधता हुआ पानी। झीलें, नहरें और नदी। एक तरफ हद्दे नजर तक फैली हुई चांदनी की चादर। एक नन्हा सा बिंदु इस लैंडस्केप में धीरे-धीरे फैलता जाता है और एक शहर की तस्वीर उभरती है। कुत्ते के पैर जैसी आकृति रखने वाली चौड़ी भूरी नदी के गिर्द बसा हुआ यह शहर, किनारों पर लंगर डाले कश्ितयां और जहाज, बड़ी बड़ी क्रेनेंं, मिलों की चिमनियां और कारखानों की जंग लगी लोहे की चादरों की छतें। फिर जरा और नीचे आने पर ताड़ के झुण्ड दिखते हैं। एक तरफ से झुण्ड से उभरता हुआ ब्रिटिश राज की यादों में बसे हुए पुराने गिरजे की सफेद खामोश मीनार जैसे स्कूली जमाने की किताबों में प्रेमी द्वारा दिये गये सूखे फूल। यह शहर अजीब द्वन्द्व का है और अनोखे टकराव भरे तजुर्बों का। गालिब ने लिखा है कि जब वे यहां से लौटे तो 'जेहन में आधुनिकता लेकर लौटे थे।Ó मैने कहा न कि टकराव भरे तजुर्बे का यह शहर है। ठीक एक शायर की तरह , चौदहवीं की रात में शब भर रहा चर्चा तेरा किसी ने कहा चांद है, मैंने कहा चेहरा तेरा लॉर्ड क्लाइव के खयाल में कलकत्ता दुनिया की सबसे बुरी बस्ती थी, लेकिन एक अंग्रेज अफसर विलियम हंटर ने एक रात अपनी प्रेमिका को लिखे पत्र में कहा 'कल्पना करो उन तमाम चीजों की जो फितरत में सबसे शानदार हैं और उसके साथ-साथ उन तमाम कलाकृत्तियों का जो कला के मामले में सबसे ज्यादा हसीन हैं, फिर तुम अपने आप कलकत्ता की एक धुंधली सी तस्वीर देख लोगी। Ó उन्नीसवीं सदी के अंत में चर्चिल ने अपनी मां से कहा था 'कलकत्ते को देखकर मुझे हमेशा ख़ुशी होगी क्योंकि इसे एक बार देखने के बाद दोबारा देखने की जरूरत नहीं रह जाती। ये एक शानदार शहर है। रात की ठण्डी हवा और सुरमई धुन्ध में ये लन्दन जैसा दिखाई देता है।Ó कोलकाता एक बहुवचनी नगर है। एक में अनेक - मोराज(फिल्म संग्रथन) की तरह। कोलकाता अर्धनारीश्वर महानगर है। एक अंग से राजनीति का तांडव है तो दूसरे से दुर्गा उत्सव, रवींद्र संगीत का लास्य-टू-इन-वन। 'भीषण सुंदरÓ या 'दारुण सुंदरÓ जैसे बंगला के विरोधाभासी शब्द युग्म विरोधों के सामंजस्य के प्रतीक हैं या विपरीतों के मिलनोत्कर्ष के? तभी तो 'वर्ग संघर्षÓ के 'भीषणÓ के साथ अमीरी का 'सुंदरÓ मजे में मिल कर रहता है। मुझे नहीं लगता कि सुरुचि, सौंदर्य, कोमलता, दर्शन, भक्ति, कल्पना, प्रेम, करुणा, उदासी जैसी भाव-राशि को कोलकाता ने वैज्ञानिक यथार्थवाद के दुद्र्धर्ष काल में भी कभी त्यागा होगा। शरद और रवींद्र कभी उसके जीवन से परे धकेले न जा सके। रवींद्र और नजरूल या सुभाष और राम कृष्ण की पूजा कोलकाता एक ही झांकी में बराबर से कर सकता है। तभी तो कोलकाता पूरे भारत का कोलाज बना हुआ है। कोलकाता का स्वभाव सुंदरियों की तरह लिरिकल है - गेय है। कोई भी शुभारंभ यहां बिना रीति के नहीं होता। आंदोलन या उग्र रैली (मिछिल) में भी जो नारे लगाए जाते हैं वे बोल कर नहीं गाकर लगाए जाते हैं। अन्याय अत्याचार के नारे भी गेय हैं और उसे 'चलने न देंगेÓ का उद्घोष भी गेय है - 'चोलबे ना, चोलबे नाÓ नारा भी वे ऐसा झुलाते हुए लगाते हैं कि उसे कहीं न गद्य का झटका लगे, न ठहराव आए। कभी आपने सोचा है कि कोलकाता पर लिखी प्राय: सभी कविताएं उसकी प्रशंसा और सामथ्र्य में क्यों लिखी गई हैं, जबकि दिल्ली पर लिखी कविताओं में दिल्ली के प्रति तल्खी, आशंका, भय और निंदा से भरी है? कोलकाता भी एक 'गोपनÓ का नाम है,और बंगाल भी। वह भी अपने मूल्यवान को दबाए-ढांपे हैं, यहां जो कुछ भी मूल्यवान और अप्रतिम है उसे आप सतह पर नहीं पा सकते - फिर चाहे वस्तु हो या व्यक्ति। कोलकाता का पारंपरिक और किसी हद तक वर्तमान वास्तु इसका प्रमाण है कि बाहर से देखने पर भीतर खुलने वाले भव्य और विराट का अनुमान नहीं लगा सकते।
Friday, January 25, 2013
Wednesday, January 23, 2013
हिंदू आतंकवाद या कांग्रेस का छद्म सेक्युलरवाद
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चिंतन नहीं चुनाव शिविर
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सामाजिक असंतुलन की ओर बढ़ती दुनिया
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Saturday, January 19, 2013
तेल की धार में चला चनावी चक्कर
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सेना को सियासत में ना घसीटें
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Tuesday, January 15, 2013
पाक पर हमला गैरजरूरी
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Sunday, January 13, 2013
भावुकता का दोहन है बच्चा चोरी की अफवाह
महानगर में बच्चा चोरी की घटनाओं में वृद्धि की लगातार अफवाहें फैलायी जा रहीं हैं और विभिन्न इलाकों में इसे लेकर किसी को मारने पीटने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। हालांकि यह तय नहीं हुआ है कि बच्चा चोर बता कर जिन लोगों पर भीड़ ने जान लेवा हमले किये उन्होंने सचमुच बचा चुराया था या नहीं। पुलिस के रिकार्ड के मुताबिक जिन लोगों पर हमले हुये या जहां उन्हें बच्चा चुराने के संदेह में घेरा गया वहां किसी बच्चे को चुराने की घटना के सबूत नहीं है और ना ही कोई बच्चा चुराया गया बताते हैं। यानी फकत अफवाह फैला कर किसी को घेर कर मार डालने का प्रयास हो रहा है। जिन्हें मारा पीटा जा रहा है वे एक खास सम्प्रदाय के निहायत साधनहीन लोग हैं - कोई भीख मांगता है तो कोई ठोंगा बनाता है। सामाजिक विद्वेष फैलाने की इस खास किस्म की साजिश को गढऩे वाले बेशक अंधियारे में खड़े हैं , लेकिन उनकी करतूतों से उनके दिमाग का सुराग तो मिल ही सकता है। इसे जो लोग फैला रहे हैं तथा उससे उत्पन्न भावुकता को क्रियात्मक स्वरूप प्रदान कर रहे हैं , वे उन्हीं लोगों में से हैं जिन्हें वर्तमान सरकार को कमजोर करने का राजनीतिक लाभ मिल सकता है। लोकतंत्र में बेशक जनता अपना मुकद्दर लिखने वालों को चुनती है पर इस चुनाव के पीछे जनता के मानस को प्रभावित कर उनके विचारों को नियंत्रित करने का काम पार्टियों की मशीनरी करती है। हाल तक सत्ता का सुख लेने के कारण लोक से विमुख हो जाने वाली पार्टी को अफवाहें फैला कर जन भावना को उत्प्रेरित करने और उस उत्प्रेरण के प्रभाव से जन्में भावुकतापूर्ण गुस्से को अपनी मर्जी से उपयोग करने का हुनर मालूम है। वह कभी बच्चा चोरी तो कभी अन्य हिंसक घटनाओं को बहाना बना कर जनभावना को अनवरत भड़का रही है। पिछले दिनों की घटनाओं को अगर गौर से देखें तो लगेगा ये सारे वाकयात उन्हीं इलाकों में हुये हैं जहां पूर्व में उस पार्टी विशेष का गढ़ रहा है तथा पहले इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। इन ताजा घटनाओं में आप पायेंगे कि बच्चा चोर बता कर कुछ लोगों का समूह एक आदमी को बुरी तरह पीट रहा है और कोई आदमी उस मार खाने वाले आदमी की तरफ से खड़ा हुआ नहीं दिख रहा है। इसके दो ही कारण हो सकते हैं पहला कि जो लोग मार पीट कर रहे हैं उन्हें वहां के क्षेत्रीय लोग पहचानते हैं और उनके खौफ के कारण हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। वरना बंगाल की संस्कृति इतनी संवेदनशील है कि ऐसे मौकों पर आम जन चुप हो ही नहीं सकते। रवींद्रनाथ और विवेकानंद का नगर कोलकाता मानसिक तौर पर इतना संवेदनशील है कि किसी भी अफवाह की संभाव्यता को थोड़ा पुख्ता कर के उसे विश्वसनीय समाचार की शक्ल में बदला जा सकता है। बच्चा चोरी चूंकि एक संभावना है और सौ पचास लोग इस संभावना को दृढ़ कर उसे विश्वसनीयता प्रदान कर देते हैं। इसी विश्वसनीयता की अंधी दौड़ पर खौफ का धुंध डाल कर उसे सक्रियता में बदल देता है। यही कारण है कि व्यापक सामाजिक तंत्र वाले लोग इस तरह की गतिविधियों पर जल्दी ही कब्जा कर लेते हैं। चूंकि ऐसे कार्यों में भारी भीड़ संलग्नता होती है अतएव सरकार उनपर कठोर कार्रवाई नहीं कर सकती है और इस लाचारी का वे तत्व फायदा उठा कर शासन के नकारा हो जाने का भ्रम पैदा कर देते हैं। ऐसे मौकों पर सबसे जरूरी होता है कि अफवाहों पर न जाकर सच का संधान करना। कौवा कान ले गया तो कौवा के पीछे दौड़ पडऩे से उत्तम होता हे अपने कान को देख लेना। बच्चा चोरी की घटना में जिसे पकड़ा गया क्या उसने सचमुच बच्चा चुराया है। शक होने पर पुलिस की मदद लें, कानून को अपने हाथ में न लें। कानून का निर्णय हमेशा सही होगा।
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मकर संक्राति हमारी सांस्कृतिक श्रेष्ठïता का प्रतीक है
-हरिराम पाण्डेय मकर संक्रांति यानी सूर्य का मकर राशि में प्रवेश को मकर संक्रांति कहते हैं। यही समय है जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। सूर्य उत्तरायण होना केवल शास्त्र समत नहीं बल्कि विज्ञान समत भी है। चूक सूरज धरती का केंद्र है और सारे ग्रह उसका चक्कर लगाते हैं। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। धरती का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना 'क्रांति चक्रÓ कहलाता है। इस परिधि को 12 भागों में बांट कर 12 राशियां बनी हैं। हमारे पूर्वजों ने सितारों के समूह की आकृति के हिसाब से उन्हें नाम दे रखा था। जो सितारा समूह शेर की तरह दिखता था, उसे सिंह राशि घोषित कर दिया, जो लडकी की तरह उसे कन्या और जो धनुष की तरह दिखें धनु राशि। पृथ्वी का एक राशि से दूसरी में जाना संक्रांति कहलाता है। यह एक खगोलीय घटना है जो साल में 12 बार होती है। सूर्य एक स्थान पर ही खड़ा है, धरती चक्कर लगाती है। अत: जब पृथ्वी मकर राशि में प्रवेश करती है, एस्ट्रोनामी और एस्ट्रोलॉजी में इसे मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति त्योहार नहीं बल्कि व्रत है। व्रत शब्द वृ धातु से बना है, जिसका अर्थ होगा- वरण या च्वायस। संक्रांति का अर्थ है- संक्रमण या ट्रांजिशन। संक्रांति के समय सूर्य एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के समय सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रविष्ट कर जाता है। यही वह समय होता है जब सूर्य उत्तरायण होने लगता है। आम आदमी इस तरह के वर्गीकरण से विरक्त रहता है। लेकिन भारतीय संस्कृति में व्रत उस तरह के पर्वों को कहते हैं, जो पूरे साल को एक वृत्त या गोले के रूप में देखते हैं। यह गोल घूमता हुआ गोला साल में अनेक व्रतों को जन्म देता है। यही कारण है कि मकर संक्रांति की स्थिति लगभग हर साल स्थिर या फिक्स रहती है। आजकल मकर संक्रांति हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाई जाती है। आज से सौ वर्ष पहले यह 12 या 13 जनवरी को मनाई जाती थी। इस संबंध में नासा ने बड़ी दिलचस्प खोज की है। नासा के वैज्ञानिकों पृथ्वी के भ्रमण पथ का आकलन करते हुये पाया कि पिछले हजारों साल से धरती की रतार हर कुछ साल पर 72 घंटे धीमी हो जाती है। क्योंकि धरती की रतार लगातार धीमी होती जा रही है, अत: साल भर में 12 की जगह 13 राशियां हो चुकी हैं। ज्योतिष के विद्वान पता नहीं इसे मानते हैं या नहीं, पर नासा वालों का कहना है कि इस तेरहवीं राशि को गणना में न लेने की वजह से लगभग 84 प्रतिशत भविष्यवाणियां सटीक नहीं हो पाती हैं। यह मकर संक्रांति पर भी लागू है। यही कारण है कि 100 वर्ष पहले मकर संक्रांति 12 या 13 जनवरी को पड़ती थी। आज 14 या 15 जनवरी को पड़ती है। हो सकता है 200 वर्ष बाद यह 24 या 25 जनवरी को पड़े। यहां यह बताना जरूरी है कि व्रत व्यक्तिगत पर्व माना जाता है, जबकि त्योहार सामूहिक पर्व माने जाते हैं। मकर संक्रांति एक पर्व है, लेकिन होली एक त्योहार है। जो व्यक्तिगत पर्व होगा, उसमें अनुष्ठान ज्यादा होगा और उल्लास कम। जबकि सामूहिक पर्व में अनुष्ठान न के बराबर होता है, लेकिन उल्लास अपने अतिरेक पर होता है। यही कारण है कि मकर संक्रांति व्यक्तिगत पर्व होने की वजह से सेलेक्टिव हो जाता है। हम चाहें तो उसे मनाएं या न मनाएं। लेकिन होली के हुडदंग में हम शामिल हों या न हों, होली के असर से बच नहीं सकते हैं। दुनिया की हर संस्कृति में सूरज की पूजा होती है। सूरज की पूजा दुनिया के सभी प्राचीन सयताओं में होती है। शायद सूरज की पूजा करना इन धर्मों को बड़ा वैज्ञानिक बना देता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती पर जीवन का जो भी लक्षण है, वह सूरज की मेहरबानी है। आज से करोडों साल बाद जब सूरज ठंडा हो जाएगा, तो धरती पर जीवन समाप्त हो जाएगा। अत:मकर संक्राति हमारी सांस्कृतिक श्रेष्ठïता का प्रतीक है।
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