हरिराम पांडेय
माओवादियों के खिलाफ सरकार के कदम बहुत प्रभावशाली नहीं हो पा रहे हैं और एक तरह से सरकार की कार्रवाई उनके पक्ष में जा रही है। सरकार एक तरह से बचाव करती नजर आ रही है। क्योंकि जिन क्षेत्रों को माओवादियों ने मुक्त घोषित कर दिया है, उन क्षेत्रों में आंध्र प्रदेश को छोड़ कर जितने माओवादी मारे गये हैं उससे कहीं ज्यादा सुरक्षा बलों के जवान शहीद हुये हैं। सुरक्षा बलों से जितने हथियार लूटे गये हैं उससे कहीं कम हथियार माओवादियों से जब्त किये जा सके हैं। इन क्षेत्रों में 2010 में 170 सुरक्षा सैनिक शहीद हुये जबकि कार्रवाई में महज 108 माओवादी मारे जा सके। सन् 2009 में भी 312 सुरक्षा बलों के मुकाबले 294 माओवादी मारे गये। सन् 2008 में 214 सुरक्षा बलों के जवान खेत रहे और इतनी ही संख्या में माओवादी भी मारे गये। पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के जवान माओवादियों के मुकाबले को लेकर ज्यादा सक्रिय देखे गये नतीजा यह हुआ कि माओवादियों ने अपनी कार्रवाई बढ़ा दी और इसके फलस्वरूप इन दो राज्यों में सुरक्षा बलों के जवान ज्यादा मारे गये। इससे माओवादियों को बेशुमार प्रचार मिला और उनका आतंक ब्याप गया। इन दो राज्यों में भी वही मुश्किलें हैं जो इस मामले को लेकर अन्य राज्यों में हैं। इन दो राज्यों में न्यून आर्थिक विकास हुआ है, खस्ता हाल सड़कें हैं, घने जंगल हैं जिसमें माओवादी शरण लेते हैं। इसके अलावा इन राज्यों में उनके मुकाबले के लिये पुलिस बलों की संख्या कम है और इन्हें कार्रवाई के लिये केंद्रीय बलों पर निभॆर रहना पड़ता है। इनमें छत्तीसगढ़ की स्थिति सबसे खराब है।..लाल विद्रोह.. के इतिहास को देखें तो इसकी तुलना चीन के यनान प्रांत में आरंभ हुए कम्युनिस्ट आंदोलन से कर सकते हैं। भुखमरी और अकाल से जूझते शनाक्सी प्रांत के यनान सहे, जहां से माओ त्से तुंग ने क्रांतिकारी कूच की शुरूआत कर चीन की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। सन् 1971 में मार्क शेल्डन ने एक किताब लिखी थी। नाम था 'द यनान वे इन रिवोल्युशनरी चाइना।'' उसके माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया था कि किस तरह माओ ने आम आदमी को गुरिल्ला युद्ध से जोड़ दिया था। अगर यनान चीनी क्रांति को सफलता दिला सकती है तो दंतेवाड़ा में माओवादी क्यों नहीं सफल हो सकते जबकि हालात समान हैं।
इसके लिये जरूरी है कि पुलिस बल को ताकतवर बनाया जाय और ग्रामीण पुलिस बंदोबस्त का विस्तार किया जाना चाहिये। साथ ही उन क्षेत्रों का आर्थिक विकास भी होना चाहिये ताकि इस नये हालात को रोका जा सके।
Monday, June 7, 2010
माओवाद से माओ के आंदोलन की ओर
Posted by pandeyhariram at 1:37 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comments:
nice post
Post a Comment