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Saturday, June 26, 2010

भ्रष्टïचार का महादानव

हरिराम पाण्डेय

बुरी खबरों का जमाना है, हर तरफ बुरी खबरें हैं। हर मर्ज की जड़ एक ही है। अपराध, बगावत, गरीबी, हिंसा, सभी के पीछे एक ही बुनियादी कारण है: भ्रष्टाचार । लेकिन अफसोस की बात यह है कि यही ऐसा विषय भी है, जिसके बारे में अब कोई भी बात करना नहीं चाहता। भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं, वह हमारे सिस्टम में इस तरह पैठा हुआ है कि हम सभी ने यह मान लिया है कि उससे अब किसी तरह की निजात मुमकिन नहीं है। लिहाजा हम भ्रष्टाचार को छोड़कर दूसरे सभी मसलों का सामना करने में मसरूफ हैं।
अभी केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने देशव्यापी एक बड़ा घोटाला पकड़ा है- रेलवे की भर्तियों का। गजब यह कि पिछले साल नवंबर में ही माननीया रेलवे मंत्री ममता बनर्जी ने सभी 20 रेलवे भर्ती बोर्डों के 'भ्रष्टÓ अध्यक्षों को बाहर का रास्ता दिखाया था। उन सबको हटाया ही इस आधार पर गया था कि वे पूर्व रेल मंत्री के विश्वस्त थे और 'भ्रष्टÓ थे। इस कार्रवाई से पहले इलाहाबाद तथा अजमेर में पेपर लीक होने की खबरें सामने आयी थीं और तब ममता बनर्जी ने तुरत-फुरत 'ऑपरेशन क्लीनÓ चलाया था। अब साबित हो रहा है कि फर्क सिर्फ इतना ही पड़ा है कि लालूजी के 'भ्रष्टÓ की जगह अब ममताजी के विश्वस्त 'भ्रष्टÓ आ चुके हैं। जिनकी नियुक्ति भ्रष्ट तरीके से होगी तो वे क्या लोगों की सेवा तथा सुरक्षा करेंगे? वे भ्रष्ट होने के लिए तैयार बैठे रहेंगे पहले दिन से। उनकी पहली प्राथमिकता भ्रष्टाचार होगी। पुराने तरीकों से काम नहीं चलेगा तो वे नए तरीके ढूंढेंगे। कोई तरीका भ्रष्टाचार का अब तक नहीं रहा होगा तो अब उसका भी रास्ता निकालेंगे और क्या करेंगे वे? इनके 'पूर्वजÓ भी जो इनके तरीकों से नौकरी में आए होंगे, तो यही सब कर रहे होंगे। और इस तरह भ्रष्टाचार का एक पूरा चक्र है। यह केवल रेल मंत्रालय के साथ ही नहीं है, सब जगह है। सरकारी नौकरियों में तो सब जगह है। यह भ्रष्टाचार एक ऐसा रहस्य है, जिसे सब जानते हैं। अब तो बच्चा-बच्चा भी जानता है कि पैसे के अलावा कुछ नहीं चलता।
भ्रष्टाचार का यह घुन सारी सरकारी नौकरियों को खा गया है। अध्यापकों तक की नियुक्ति में यही हो रहा है। जिस देश में बच्चों की बुनियाद मजबूत करने का जिम्मा, चरित्र निर्माण का दायित्व जिस अध्यापक पर होता है, वह भ्रष्ट तरीकों से आएगा, तो क्या होगा?
इस तरह हमारे देश के प्रधानमंत्री की ईमानदारी कितनी ही मशहूर हो लेकिन वह जिस देश के मुखिया हैं, उसे चलाने वाले तमाम लोग, तमाम स्तरों पर भ्रष्ट हैं और भ्रष्ट कर दिए गए हैं। मुश्किल यह है कि नौकरी की सुरक्षा सिर्फ सरकारी तंत्र में है और ऊपर के वर्ग के कुछ युवाओं को छोड़ दें तो औसत युवा को पक्की नौकरी का भरोसा चाहिए, ताकि जीवन में निश्चिंतता पैदा हो। इसलिए जहां भी बड़े पैमाने पर नियुक्तियां होती हैं, गरीब-निम्नवर्गीय युवा हजारों की तादाद में पहुंच जाते हैं और हर कीमत देने को तैयार हो जाते हैं। तो यह तंत्र ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा है। जो इसमें धंसना नहीं चाहते, उन्हें भी जबर्दस्ती इस दलदल में धंसा दिया गया है। ऐसे में आप मांग करते रहिए या अखबारों में छापते रहिए कोई फर्क नहीं पडऩे को। उसे तो इसी व्यवस्था के तमाम एजेंटों ने भ्रष्ट होना घुट्टी में पिलाया है। जहां भ्रष्टाचार होगा, वहां अक्षमता होगी ही। ऊपर से सरकारें हर उपाय करती हैं कि जो लोग छोटे-मोटे धंधे करके गुजारा करते हैं, वे भी ऐसा न करें। पत्रकार के रूप में कई लोगों ने बरसों यह कोशिश की है कि लोगों को उनके हक की वह चीज दिलवाई जाय। यह आसान नहीं है। अक्सर तो यह जोखिमभरा भी हो सकता है क्योंकि भ्रष्टों का नेटवर्क तगड़ा होता है। आप एक मामले में दखल दीजिए और बीस लोग बीच में कूद पड़ेंगे। न जाने कहां से नये मामले खुल जाते हैं। मांगें बढ़ती चली जाती हैं। आज हर आदमी निराश है,क्योंकि पहले लाखों भारतीयों की तरह उनके पास भी घूस देने या नहीं देने का विकल्प मौजूद नहीं है। अब ऐसा नहीं है। हमारे विकल्प कम हो गये हैं। आज हम सभी एक भ्रष्ट सिस्टम के गुलाम हैं। यदि आप रिश्वत चुकाने से इनकार करते हैं तो पूरा सिस्टम आपको घेर लेगा, जैसे वह आपको कोई उदाहरण बनाकर पेश करना चाहता हो। यदि हमने यह अभी नहीं रोका तो समस्याएं बढ़ती जाएंगी। अगर न्याय न हो तो शांति भी नहीं हो सकती। और न्याय तब तक मुमकिन नहीं है, जब तक ईमानदार लोगों को ईमानदारी से जीने की इजाजत नहीं मिलती।

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